STORYMIRROR

Prabodh Govil

Action

4  

Prabodh Govil

Action

बैंगन-27

बैंगन-27

3 mins
364

सहसा बैठे-बैठे कुछ दिन पहले की बात मुझे याद आई जब घर पर पत्नी ने मुझसे कहा था- ज़रा एक अख़बार का काग़ज़ तो लाकर पकड़ा दो मुझे, देखो तो ये मिसरानी भी कैसे गीले से कपड़े को लगाकर रोटी रख गई है कैसरोल में !

मैंने लापरवाही से एक पुराना अख़बार लेकर उसे पकड़ा दिया।

मैं सोच रहा था कि अब वो अपने नाटकीय अंदाज में कहेगी, थैंक यू जी थैंक यू ! ये उसकी पुरानी आदत है। पहले तो कोई भी घटिया से घटिया काम बता देगी, फ़िर धन्यवाद देगी, मानो कोई कर्जा उतार रही हो।

लेकिन ये क्या?

मैं अख़बार पकड़ा कर पलटा ही था कि पीछे से उसकी आवाज़ आई- छी छी छी... तुमसे अच्छी तो वो अनपढ़ काम वाली ही है, देखो तो क्या दे गए हो? अरे मुझे किसी फोटोग्राफी की इंटरनेशनल एक्जीबिशन में नहीं भेजना ये फ़ोटो, रोटी के नीचे लगाना है ! देखो तो जरा क्या पकड़ा गए??

मैं चौंक कर वापस पलटा और गौर से उस अख़बार के काग़ज़ को देखने लगा जिसे मैंने रोटी के नीचे लगाने को दिया था और श्रीमती जी ने उसे ऐसे पटक दिया जैसे छत से उड़ कर आ गई पड़ोसन की कोई साड़ी हो।

ओह, सचमुच ये काग़ज़ रोटी के नीचे लगाने लायक तो नहीं है।

अख़बार पर एक झील के किनारे हज़ारों मरे पड़े हुए पक्षियों की तस्वीर छपी थी। लिखा था कि न जाने किसने इन बेजुबान परिंदों की जान ली है और इनके शवों को यहां सड़ने के लिए छोड़ दिया।

मुझे याद आया। सचमुच कुछ समय पहले नमक की एक झील के किनारे देशी विदेशी नस्ल के हज़ारों पक्षियों के मारे जाने की खबर छपी थी।

मेरा मुंह चित्र देख कर ही कसैला सा हो गया।

पत्नी ने फ़िर दोबारा मुझसे अख़बार नहीं मांगा। खुद ही जाकर खोज कर लाई।

मेरे एक दूर के रिश्ते की बुआ का बेटा भी एक बार यहां किसी सरकारी दौरे पर आया था जो एक बड़ा वैज्ञानिक था।

उसी ने मुझे कहा था कि भाईसाहब अगर गांधीजी आज होते और पढ़ने के लिए विलायत जाते तो पता है उनके माता - पिता उन्हें शराब न पीने और मांस न खाने की सीख देने के बदले क्या कहते?

- क्या कहते? मैंने कौतूहल से पूछा।

वो बोला- गांधीजी से ये कहा जाता कि बेटा, कभी भी अपने स्कूल के बाहर खड़े आदमी से खरीद कर बर्फ़ का गोला मत खाना। किसी के लाख ज़ोर देने पर भी बाज़ार के सील पैक्ड चिप्स मत खाना... और किसी मल्टी नेशनल फूड चेन से ऑनलाइन मंगा कर खाना मत खाना।

मैं उसके व्यंग्य पर हंस कर रह गया था।

ये सब मैं बैठा बैठा इसलिए सोच पा रहा था क्योंकि हमारी बस काफ़ी देर से एक टोल प्लाजा पर रुकी हुई थी। तन्मय तो मेरे कंधे पर सिर टिका कर आराम से सोया हुआ था, मानो रात भर का जागा हुआ हो।

मैंने उकता कर खिड़की से सिर बाहर निकाल कर देखने की कोशिश की, कि आख़िर बात क्या है, बस यहां क्यों रुकी हुई है? पहले तो वाहनों की स्पीड के लिए शानदार चौड़े चौड़े हायवे बनाते हैं और फ़िर उनपर टोल प्लाजा बना कर स्पीड का सत्यानाश कर देते हैं।

लेकिन सामने का दृश्य देख कर सारी बात समझ में आ गई। सड़क के बीचोंबीच आगे एक एक्सीडेंट हुआ था और रगड़ खाते चले गए दो विशाल काय ट्रक उल्टे पड़े थे। टक्कर इतनी भीषण थी कि एक की तो लगभग सारी बॉडी पिचक कर रह गई थी। दूसरे में भी जमकर टूट फूट हुई थी।

दो चार जानें तो ज़रूर गई होंगी।

एक्सीडेंट भिनसारे ही हुआ था पर अब तक मलबा ठीक से हटाया नहीं जा सका था।

एक ट्रक से कपड़ों के बड़े- बड़े गट्ठर निकल कर सड़क पर फैले हुए थे और दूसरे से ढेर के ढेर बैंगन लुढ़कते हुए पूरी सड़क पर इस तरह फ़ैल गए थे जैसे किसी पहाड़ी नदी से बह कर गोल- गोल पत्थर सतह पर आ जाते हैं। शालिगराम ! काले कोलतार की सड़क मानो चमकती हुई बैंगनी गेंदों से पट गई हो !


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Action