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Jisha Rajesh

Tragedy

3  

Jisha Rajesh

Tragedy

बात है राज़ की...

बात है राज़ की...

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"तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?" लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है, “आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आँखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जवाब का इंतजार हो उसे।

जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आँखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?


"संदली! क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?" प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

"जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।" मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

“कैसी हो ? क्या चल रहा है आजकल ?" जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

"बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई...." संदली ने जवाब दिया। "आप सुनाइये।"

"बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।" चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

"अरे वाह ! क्या सीख रही है इन दिनों?" संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गयी।

"कम्पूटर सीख रही हूँ।" जानकी ने बड़े गर्वे से कहा। 

"कम्पूटर नहीं, आंटी," संदली खिलखिलाकर हँस पड़ी, "उसे, कंप्यूटर कहते है।"


"चलो, ऐसे ही सही, तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान तो आयी।" जानकी ने संदली की आँखों में झाँक कर देख और कहा, "देख, बेटा मैं जानती हूँ, कोई बात ज़रूर है जो तुम्हें अंदर-ही-अंदर खाये जा रही है। कहने को तो मैं उम्र में तुमसे बहुत बड़ी हूँ, पर फिर भी हम में रिश्ता तो सहेलियों जैसा है न। क्या तुम मुझे नहीं बताओगी की तुम्हारी परेशानी क्या है ?" 


संदली पल भर के लिए हिचकिचाई और फिर उसने नज़रें उठा कर जानकी को देखा। उनकी आँखों में देख कर संदली को ऐसा लगा जैसे उसके सीने पर जो बोझ रखा था, जिसकी वजह से वो पिछले कुछ दिनों से सांस तक नहीं ले पा रही थी, वो ज़रा सा हल्का हो गया है। उसे यकीन को गया की वो जानकी आंटी पर विश्वास कर, उन्हें वो सब बता सकती हैं जिसका अनुभव उसने पिछले कुछ दिनों में किया था। वो स्वयं भी तो यही चाहती थी की किसी को अपने दिल के राज़ खोल कर बताये। किसी से कह सके की आखिर क्यों वो सब से कट कर रहने लगी हैं। क्यों वो भीड़ में भी तनहा हो जाती है।  


"जिस बिल्डिंग में मैं रहती हूँ, वहां पिछले दो दिनों से कुछ अजीब सा हो रहा है।" संदली की आँखों में ख़ौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था। "मुझे ऐसा लगता है वहां कोई बहुत घिनौना षडयंत्र चल रहा है।"

"ऐसा क्या हुआ है, बेटा ?" संदली को काँपते देख, जानकी खुद भी डर गयी। "तुम मुझे पूरी बात बताओ, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ।"


"मेरे फ्लैट के ऊपरवाले फ्लैट में वीणा दीदी और उनके पति विशाल भैया रहते है।" संदली धीमे स्वर में बोली, "मैं जब कॉलेज जाती हूँ तो अपने तोते 'मिट्टू' को उनके पास छोड़ जाती हूँ क्यूंकि माँ - बाबा भी काम पर चले जाते है और घर पर कोई नहीं होता। हर शाम, कॉलेज से आकर, मैं मिट्टू को वापस ले आती हूँ। लेकिन दो दिन पहले जब मैं मिट्टू को लेने गयी तो विशाल भैया ने बताया की दीदी अपने मायके चली गयी। मुझे बड़ा अजीब लगा क्यूंकि उनके माता-पिता दोनों गुज़र गए हैं। और क्यूंकि, वीणा दीदी उनकी इकलौती संतान थी, तो फिर वो भला किस लिए मायके जाएँगी ? पर मैंने विशाल भैया से कोई सवाल-जवाब नहीं किया और मिट्टू को लेकर वापस आ गयी। वीणा दीदी, मिट्टू को रोज़ कुछ न कुछ सिखाती थी, जैसे 'राम-राम' कहना या फिर 'नमस्ते'। मिट्टू की आदत थी की वो सुनता था, वो वही बात दोहराता था। लेकिन उस दिन उसने कुछ ऐसी बात कही की जिसे सुनकर मेरे पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी।"


"ऐसा क्या कहा उसने ?" जानकी की जिज्ञासा बढ़ गयी।

"उसने कहा, 'तुम्हें जाना तो पड़ेगा ही, तलाक़ नहीं, तो मौत ही सही।" संदली के माथे से पसीने की एक बूँद नीचे की ओर फिसली।

"क्या?" जानकी के दिमाग में कई सवाल उठ रहे थे।

"वीणा दीदी का फ्लैट हमारे फ्लैट के ठीक ऊपर हैं।" संदली का गला सूख रहा था पर फिर भी वो बोलती रही, "उनके बाथरूम से पानी लीक होकर हमारे बाथरूम की छत से टपकता था। लेकिन उस शाम, जब मैं नहाने गयी तो मेरे तौलिये पर खून की बूंदे टपकी।"


"तुम घबराओ मत, बेटा।" जानकी ने संदली को दिलासा देने के लिए कह तो दिया पर उसे अब खुद भी घबराहट होने लगी थी। "मेरी एक सहेली का बेटा दीपक, पुलिस इंस्पेक्टर हैं। अब वही हमारी मदद कर सकता है। मैं उसे फ़ोन कर दूंगी, वो फ़ौरन आ जायेगा।"


कुछ घंटों बाद, इंपेक्टर दीपक और संदली, जानकी के घर बैठ कर चाय पी रहे थे।

"हमारे पास अभी कोई पुख़्ता सबूत नहीं हैं।" दीपक ने कहा, "इसलिए तहक़ीकात हमें बड़े ख़ुफ़िया ढंग से करनी होगी। चलिए, हम विशाल शर्मा से मिल आते हैं।"

विशाल के घर पर ताला लगा हुआ था। दीपक ने एक पड़ोसी से पूछा तो उसने बताया की विशाल पिछली रात को किसी से कुछ कहे बिना, अचानक कहीं चला गया। 

"अब तो ताला तोड़ना होगा," दीपक ने जानकी और संदली से कहा, "मैं फॉरेंसिक की एक टीम को भी बुला लेता हूँ।"


आधे घंटे बाद, फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स की एक टीम आ गयी। वे ताला तोड़ कर अंदर घुसे और हर कमरे की तलाशी ली। बाथटब, बर्फ के टुकड़ो से भरा हुआ था|

दीपक ने बर्फ को गौर से देखा और कहा की बर्फ पर खून के निशान हैं। फॉरेंसिक वालों ने बताया की फर्श पर भी खून है जिसे बाद में साफ़ कर दिया गया था। उनका कहना था की फर्श पर पड़ा खून बहुत ज़्यादा है और अगर इतना खून बह जाए तो फिर उस इंसान का बचना नामुमकिन हैं। दीपक ने बिल्डिंग में लगे सी०सी०टी०वि कैमरा पर रिकॉर्ड हुए दृश्य देखे। बीती रात को विशाल एक बड़ा सा सूटकेस लिए अपने घर से बहार निकला। वो घबराया हुआ था। उसने आस पास देखा और जल्दी से लिफ्ट की ओर बढ़ गया। वो लिफ्ट से नीचे गया, सूटकेस को अपनी कार में रखा और तेज़ी से निकल गया।

"हमें विशाल की कार का नंबर मिल गया है," दीपक ने पास खड़ी संदली और जानकी से कहा। "मैं कुछ पुलिसवालों को उसके पीछे लगा दूँगा। वो जहाँ भी होगा, हम उसे ढूंढ निकालेंगे। "


एक हफ्ते बाद, संदली को दीपक का फ़ोन आया।

"संदली," दीपक ने बड़े गंभीर स्वर में कहा, "आपकी वीणा दीदी अब नहीं रहीं। उनके पति विशाल ने ही उनका क़त्ल किया है। हमने विशाल को गिरफ्तार कर लिया है और उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। उसने वीणा की लाश को पहले तो बाथटब में रखा और फिर मौका देख कर उसने लाश को सूटकेस में डाला और पुराने कब्रिस्तान में दफ़न कर दिया। वो देश छोड़कर भागने ही वाला था की हमने उसे धर-दबोचा।”


"आपका बहुत - बहुत शुक्रिया, इंस्पेक्टर साहेब।" संदली ने कहा और फ़ोन रख दिया।

संदली को अपनी वीणा दीदी को खोने का बहुत दुःख हुआ। पर साथ ही ख़ुशी भी थी की उसने दीदी के कातिल को पकड़वा कर उन को इन्साफ़ दिला दिया।


 






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