Nidhi Garg

Abstract

4.4  

Nidhi Garg

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बात बराबरी की।

बात बराबरी की।

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"आ जाओ दोनो रसोई में। आज सैंडविच बनाना सीखते हैं", कविता जी ने आवाज़ लगायी।

कविता जी एक सरकारी नौकरी करती थी और उनके पति प्राइवेट फ़र्म मे कार्यरत थे। कविता जी की बिटिया ने कक्षा 12 के एग्ज़ाम दिये थे और बेटे ने कक्षा 10 के। दोनो की स्कूल में छुट्टियाँ चल रही थी। कविता जी का मानना था कि लडकियों और लड़को मे कोई फर्क नही है।आज जब बेटी को हर प्रकार से सक्षम बनाया जा रहा है तो उसी प्रकार बेटो को भी हर तरह से सक्षम बनना होगा। किचेन का सारा काम अब बेटों को भी सिखाना होगा। ताकि आगे चलकर मामला बराबरी का हो। और लड़का लड़की दोनो आत्मनिर्भर रहें।

"वाओ मम्मी", कहकर निकिता और उससे एक साल छोटा उसका भाई गौरव रसोई की तरफ भागे।

"देखो ऐसे आलू को छीलना है और फिर इसे चाकू से ऐसे काटना है", कविता अपने दोनो ही बच्चों को बड़े प्यार से खाना बनाना सिखा रही थी।

तभी बाहर से आवाज़ आयी " गौरव तुम क्यूं किचन मे घुसे हो? बाहर निकलो। लड़कों का काम नही है किचन मे जाना। तुम्हारी मा का तो दिमाग खराब हो गया है। पहले तो बस निकिता की जिन्दगी खराब कर रही थी तुम्हारी माँ और अब तुम्हारी भी कर देगी। कोई ज़रुरत नही है तुम्हे कुछ करने की। अभी तुम्हारी दादी जिन्दा है",कहते हुए कौशल्या जी ने गुस्से मे हुन्कार भरी।

कौशल्या जी की बातों को इग्नोर करते हुए कविता जी ने अपनी ट्रेनिंग जारी रखी।

"गौरव तुम मत सुनो। तुम अपनी दीदी की मदद करो दुसरा सैंडविच बनाने में। मै अभी आती हुँ", कहते हुए कविता जी किचन से बाहर निकल आयी।

कौशल्या जी वहीं बैठी बड़बड़ा रही थी।

कविता को देखते ही वो बोलीं, "देख कविता ये ठीक नही है। तूने मेरे बेटे को अपना गुलाम बना लिया है। और अब गौरव को ये सब सिखना क्या ठीक है। उसकी बीवी आयेगी और करेगी ये सब उसके लिये। उसको पढ़ा लिखा कर इन्जीनियर बनाना है। भूल गयी हो क्या? जा को काम ताको साझे। तुझे समझ क्यूं नही आता? मेरे मना करने के बावजूद तुने निकिता को इंजीनियर बनाने का फैसला नही छोड़ा। मैने गम खा लिया पर गौरव को ये सब रसोई का काम क्यूँ सिखाना है ?

अब कविता का पारा चड़ गया।

"देखीये माजी आप अपने बच्चे पाल चुकी हैं और अब मुझे मेरे पाल लेने दिजीये। आपके बेटे से शादी की है मैने। मुझे पता है अच्छे संस्कार दिये हैं आपने उन्हे। पर सन्सकारों के अलावा भी एक आत्मनिर्भर जिन्द्गी होती है जो आपने अपने बेटे को नही दी। खाना खा कर प्लेट यूँही पड़े छोड़ना, पानी का गिलास यहां वहाँ फेकना, जूते तौलिये कहीं भी पटक देना, और तो और कभी मेरी तबियत खराब हो तो सर्वाईवल फूड भी वो नही बना सकते। आपने उनके यही दिमाग मे डाला है कि बीवी आयेगी वो सब करेगी। ऐसा नही होता मांजी। मै भी उनके बराबर का कमाती हूँ। और दिन भर मरती हूं घर के काम मे भी"।

सांस भर कर कविता ने बोलना जारी रखा " मैं समझती हूँ कि कल को मेरी बेटी भी अपने पति के बराबर ही कमायेगी या शायद उस से भी ज्यादा। पर उसकी शादी अगर गौरव जैसे किसी लड़के से हुई जिसकी दादी उसे किचन मे घुसने भी नही देती तो मेरी बेटी को भी वही कष्ट झेल्ने पड़ेंगे जो मै झेल रही हूँ। कोई एक कप चाय भी बना कर नही देगा उसे वहाँ ससुराल में। और वो घर और बाहर दोनों जगह खुद को साबित करने के लिये अपने स्वास्थ्य को दाव पर लगा देगी। प्लीस मुझे मेरे दोनो बच्चों को मेरे हिसाब से पाल लेने दिजीये। मै आज पहल करूँगी तभी गौरव कुछ सीख पायेगा और अपने वैवाहिक जीवन की गाड़ी दोनो पहियों पर बराबरी के साथ दौड़ा पायेगा।

कहते कहते कविता का गला रुंध गया और वो अपने कमरे मे चली गयी।

कौशल्या जी पर घड़ो पानी पड़ गया। वो वहीं बैठ कर आत्मग्लानी मे डूब गयीं।

ताज्जुब की बात है कि बेटियों को आज के समय में हर प्रकार से सक्षम बनाया जा रहा है। पर कोई ये क्यूँ नही सोच पा रहा कि एक हर प्रकार से सक्षम महिला को अपनी बराबरी का ही जोड़ी दार चाहिये होगा। जो एक सशक्त महिला की जिम्मेदारियां साझा कर पायेगा और उसकी आकन्क्षएँ समझ पायेगा। क्या हम बेटों को वो हुनर और शिक्षा दे रहे हैं ?

बात बराबरी की है तो दोनो तरफ से होनी चाहिये। तभी समाज का पहिया तेजी से दौड़ सकेगा।

स्वयं विचारियेगा।


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