रचना शर्मा "राही"

Romance

4.7  

रचना शर्मा "राही"

Romance

बारिश वाला प्यार

बारिश वाला प्यार

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वो दिन भी क्या दिन थे । कॉलेज के दिन होते ही ख़ास हैं । आज अचानक रिमझिम बारिश को देख 'नीरा' को अपने कॉलेज के दिन याद आ गए ।

 दिल्ली विश्विद्यालय का जाना माना कॉलेज जिसमें वो हिंदी ऑनर्स कोर्स कर रही थी। वो कानपुर से थी इसलिए उसी कॉलेज के हॉस्टल में रह रही थी ।

सत्तर के दशक की बात थी । कक्षा में भी लड़के लड़कियां उन दिनों पास पास ना बैठते थे । लड़कियों का समूह अलग, लड़कों का समूह अलग ।पर तब भी उस दौर की बात ही कुछ और थी । अध्यापक के आते ही छात्र छात्राओं का अदब से खड़े हो जाना । ध्यानपूर्वक उनकी बातों को सुनना । हिंदी साहित्य के विद्यार्थी कॉलेज में अलग से ही जाने जाते । कबीर, रसखान, प्रेमचंद , अज्ञेय , गोपाल दास 'नीरज ' व कुंवर नारायण आदि महान कवियों को पढ़ना फ़िर समझना व उन पर आलोचनात्मक टिप्पणी करना आसान काम नहीं था । 'नीरा' सारी किताबों को पढ़ती । संदर्भ ग्रंथ लेकर आती । लाइब्रेरी में घंटों किताबों में खोई रहती । उसे कक्षा में हर प्रश्न का जवाब जो देना होता था । वहां लड़कों के समूह से 'कबीर' अध्यापक के हर जवाब को देने का उत्सुक रहता । 'नीरा ' और कबीर में मानो अघोषित प्रतियोगिता सी चलती रहती । कभी नीरा आगे कभी कबीर आगे ।

जब प्रेम कविताएं पढ़ाई जाती तो दोनों यूं सावधान हो सुनते कि कहीं कुछ छूट ना जाए । नीरा तो स्वप्नलोक में खो जाती कि ऐसा प्रेमी मिलना कितना अद्भुत है । वहीं कबीर को लगता कि प्रेम व्रेम तो बस किताबों की बातें हैं । दोनों एक दूसरे से कितने अलग अलग थे । एक ही बात कॉमन थी कि दोनों ही पढ़ाकू थे । धीरे धीरे वो एक दूसरे की तरफ आकर्षित भी हो रहे थे । पर डरते भी थे कि सब क्या कहेंगे ??

एक रोज़ की बात है कि नीरा हॉस्टल में ही थी कि बहुत ही तेज़ बारिश होने लगी । उसे अपने कुछ नोट्स बनाने थे इसलिए लाइब्रेरी जाना था । पर बारिश में कहां जाती । वो कुछ सोच ही रही थी कि खिड़की से देखा तो सामने सड़क पर कबीर खड़ा दिखाई दिया । वो बारिश में पूरी तरह से भीग गया था शायद । उसके पास छाता भी नज़र नहीं आ रहा था । वो पास ही की चाय की दुकान पर ही खड़ा हो गया था । पता नहीं क्या हुआ उस पल नीरा को । वो खुद को रोक नहीं पा रही थी । उसे कबीर के प्रति आकर्षण तो था पर आज वो महसूस भी कर पा रही थी । कबीर के प्रति खुद के प्रेम को । उसको ठंड ना लग जाए इस चिंता को । उसने अपना छाता निकाला और एक तौलिया भी साथ में लिया । वो सामने की ओर चल पड़ी । उसने कबीर के पास जाकर उसे तौलिया दे दिया बाल पोंछने का कहकर । कबीर भी हतप्रभ सा देख रहा था । जानता तो था वो कि नीरा यहां ही हॉस्टल में रहती है । पर उसने सोचा भी नहीं था कि नीरा यूं आ जाएगी । दोनों एक दूसरे को ही देख रहे थे । कबीर ने तौलिए से सिर पोंछा और कहने लगा कि नीरा यहां बैठो । बेंच गीला नहीं था । चाय की दुकान पर शेड लगा था वहीं बेंच था । दोनों बैठ गए । चाय ऑर्डर की और बात करने लगे । जल्दी जल्दी दोनों चाय पीने लगे । नीरा ने पूछा बारिश में बाहर क्यों निकले तुम ?? कबीर ने बताया कि वो जब अपने दोस्त के यहां से निकला था तो मौसम साफ था । बारिश नहीं हो रही थी और रास्ते में ही अचानक मूसलाधार बारिश होने लगी । नीरा ने कहा तुम्हारे कपड़े भी गीले हो गए हैं तुम जल्दी से जाओ और पहले जाकर कपड़े बदल लो । मेरा छाता ले जाओ ।

 नीरा और कबीर के दिल शायद अब क़रीब आ चुके थे । ना तो नीरा का मन था कि वो जाए और ना ही कबीर का । पर नीरा को ही फ़िर कहना पड़ा कबीर को जाने के लिए । उसे कबीर के बीमार पड़ जाने का डर जो था । अबकी बार उसने आदेशात्मक लहज़े में कहा- जाओ नहीं तो फ़िर बात नहीं करूंगी तुमसे । अब कबीर की बारी थी उसने जवाब दिया- आपकी बात सर आंखों पर मोहतरमा । दोनों को ही आज प्यार का कैसा अजब एहसास हो रहा था । कबीर को अपने गीले होने से बीमारी की चिंता ही नहीं थी । नीरा को कबीर के बीमार होने का डर सता रहा था । दोनों ही एक दूसरे की आंखों से ओझल नहीं होना चाहते थे पर फिर दोनों ने एक दूसरे से विदा ले ही ली ।

वो बारिश के दिनों की शुरुआत और उन दोनों के प्यार का शुभारंभ । जब जब बारिश होती दोनों ही मदहोश हो जाते । क्लास में नज़रों में बातें होती । जो रह जाता प्रेमपत्र में लिखकर कहते । हिंदी के विद्यार्थी थे दोनों ही लंबे लंबे प्रेम रस में डूबे पत्र लिखते । जब कभी जहां भी मिल पाते बस एक दूसरे को ही देखते रहते । धीरे - धीरे अब उनका प्रेम परवान चढ़ रहा था । कॉलेज में कोर्स भी खत्म होने जा रहा था । अब उनके मिलने के घंटे भी बढ़ रहे थे । दोनों घंटों एक दूजे में खोए रहते । साथ ही पढ़ भी लेते ।

आख़िरी साल का आख़िरी पेपर और दोनों की मुलाक़ात । उन दोनों के लिए ही ख़ास थी । दोनों ने जीवनभर एक दूजे का साथ निभाने का फ़ैसला कर लिया था ।

 नीरा अतीत से अब वर्तमान में आ चुकी थी । कबीर को अपने जीवनसाथी के रूप में पाकर वह बहुत ही खुश है । वो अपने भरे पूरे परिवार के साथ दिल्ली में ही रहती है । पर आज भी जब कभी बारिश आती है तो उसे अपना हॉस्टल वाला पहला इज़हार याद आ जाता है । पोते पोतियों के हो जाने के बाद भी कबीर बारिश में आज भी जानबूझ कर गीले होकर आते हैं और उसके हाथ से दिए तौलिए का इंतज़ार करते हैं । वो भी तो फटाफट से अपने हाथ की बनी चाय तैयार करती है । प्यार यही तो है एक दूसरे की देखभाल करना । एक दूसरे का ख्याल रखना । एक दूसरे का साथ देना । प्यार की संपूर्णता प्यार को निभाने में ही है । बारिश की बोछारों सा ठंडी बयार सा पहला प्यार जो भुलाए नहीं भूलता । हर बारिश के साथ वो और परिपक्व होता जाता है ।

आज की युवा पीढ़ी के लिए नीरा और कबीर आदर्श हैं , जिन्होंने सिर्फ़ प्यार किया ही नहीं उसे मुकाम तक पहुंचाया तथा आज भी वृद्धावस्था में दोनों एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं । उन दोनों के प्यार के जज्बे को सलाम ।



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