Gita Parihar

Tragedy

0.4  

Gita Parihar

Tragedy

बाणगंगा

बाणगंगा

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मैं, बाणगंगा, मेरे उद्गम की कथा ही पहले बता दूं। जब महा पराक्रमी पांडू पुत्रों को कौरवों ने कुटिलता से जुए में हरा दिया था और उन्हें

 13 वर्ष अज्ञातवास का दंड दे दिया था तब अज्ञातवास में जाने से पूर्व पांडवों ने अपने शस्त्र मेरे भविष्य में होने वाले उद्गम स्थल पर एक शमी वृक्ष पर छिपा दिए थे। लम्बे अज्ञातवास के पूर्ण होने पर अर्जुन ने छिपाए हुए दिव्य अस्त्र -शस्त्रों को गंगाजल से शुद्ध करने का संकल्प किया,इस हेतु उन्होंने पवित्र पावनी गंगा का आह्वान किया। धरती को लक्ष्य कर तीर संधान किया। जलधारा प्रवाहित हो गईं, बाण संधान से अवतरित जलधारा,मैं ,बाणगंगा कहलायी।

 मैं पवित्र व ऊर्जावान थी। मेरे किनारे मेले लगने लगे। मेरे जल में स्नान,आचमन पाप विमोचन होने लगे। श्रद्धालु मेरा पूजन करते। मेरे उद्गम स्थल पर विशाल पांडव मंदिर बना, जहां धर्मराज युधिष्ठिर ,भीम ,अर्जुन, सहदेव, नकुल और द्रोपदी की अति दुर्लभ पौराणिक मूर्तियां स्थापित हुईं,वे आज भी हैं। उनकी पूजा होती है। वे पूजित हैं। किंतु मैं?

 पांडु पुत्रों के अज्ञातवास की गवाह, मैं मैं, आज स्वयं अज्ञातवास भोग रही हूं। कौन जाने की इच्छा करता है कि बांदा की सीमा पर चित्रकूट के भरतकूप के आगे खंभरिया ग्राम पंचायत स्थित कोल्हुआ जंगल में मेरामेरा,जिसे कहते तो बड़ी पौराणिक धरोहर हैं,उसका अस्तित्व सिमट रहा है।

जल संरक्षण और नदी बचाओ अभियान मुझ से कोसों दूर हैं।  कुंड से निकली मेरी जलधारा रसिन बांध तक सिमट गई है। कहां तो यह ऐतिहासिक महत्व का स्थल,एक बड़ा पर्यटन केंद्र बन सकता था, वहां मुझे बचाने की दिशा में ही प्रयास नहीं हुए!

 क्यों? क्या इसलिए कि कोल्हुआ के घने जंगल में मेरा उद्गम स्थल है ?माना कि कभी इस क्षेत्र में दस्यु सक्रिय रहे हैं,किंतु वर्तमान में डकैतों का प्रभाव नहीं है। सुना कई सरकारी और वह क्या तो कहते हैं एन जी ओ, हां, घोर उपेक्षित जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने की दिशा में लगे हैं,किसीने कभी मेरी सुधि लेने का प्रयास नहीं किया ! इस घोर उपेक्षा से मैं गुमनामी के अंधेरे में पहुंच गई हूं। मुझ तक पहुंचने के लिए रास्ते में संकेत तक नहीं हैं। बिजली और सड़क का इंतजाम भी नहीं है।

 जब बांदा के नरैनी विकासखंड अंतर्गत बघोलन तिराहे के पास स्थित एसटीएफ स्मारक से कोल्हुआ के जंगल में तारा सिंह का पुरवा तक बारिश से पहले, साढ़े 4 किलोमीटर सड़क बनी,मेरी आशा बलवती हुई कि मेरे दिन भी शायद बहुरेंगे। दुर्दैव कि चार करोड़ रुपए लागत से बनी यह सड़क बनी भी और टूट भी चुकी हैपर मेरा उद्धार नहीं हुआ।

 श्यामलाल का पुरवा तक आधा मीटर सड़क नहीं है। भरतकूप से मडफा कालिंजर मार्ग होकर पहुंचने में भी 8 किलोमीटर रास्ता खतरे से भरा है, भला कौन खतरा मोल लेगा मुझ तक पहुंचने के लिए?

मुझे पौराणिक, धार्मिक ऐतिहासिक स्थल कहने वाले आएं ,देखें मेरा क्या हाल हुआ है ! मैं गुमनामी के अंधेरे में ख़त्म होने की कगार पर हूं। मैं, जो कभी पवित्र व ऊर्जावान थी।  


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