बालिका मेधा 1.02
बालिका मेधा 1.02
बालिका मेधा 1.02अपनी कक्षा छह की परीक्षा की तैयारी एवं परीक्षा देने में मेरी व्यस्तता से अगले दो माह, मुझे मम्मी से विशेष चर्चा का समय नहीं मिला था। मैंने अनुभव किया था कि इस बीच अपने ऑफिस के कामों या अन्य किसी बात को लेकर मेरी मम्मी का मूड भी अच्छा नहीं रहा था।
यद्यपि पापा एवं मुझसे वे बातें तो अच्छी तरह से करती थीं मगर तब भी उनके मुख पर सहज प्रसन्नता के भाव नहीं दिखते थे। परीक्षा समाप्त हुई तब मुझे जानने की जिज्ञासा हुई थी। मैं तब मम्मी के वीक एंड की प्रतीक्षा करने लगी थी।
अच्छी बात यह हुई थी कि तब 3 दिनों का लॉन्ग वीक एंड आया था। जिसके बाद अगले वर्किंग डे पर पापा को अपने कम्पनी सीईओ के सामने एक प्रेजेंटेशन देना था। पापा को अपना प्रेजेंटेशन घर पर ही रहकर तैयार करना था। पहले दिन जब नाश्ता हो चुका तब मैंने कहा - "मम्मी बहुत दिन हुए आपने मुझे ट्यूशन नहीं दी है।"
मम्मी ने मेरा आशय समझ कर हँसते हुए कहा था - "मेधा आज पापा बिजी हैं इसलिए हमें मार्केट या डिनर पर कहीं बाहर तो जाना नहीं है। अतः आज मैं लंच के बाद कुछ देर, दिन की नींद का आनंद लेना चाहती हूँ। सोकर उठने पर चाय के बाद हम तसल्ली से बैठते हैं तब कोई अच्छी चर्चा करते हैं। ठीक रहेगा?"
मैंने कहा - "जी मम्मी, दिस आईडिया इज क़्याइट फाइन (यह विचार काफी अच्छा है)।"
फिर मैंने उनको आलिंगन करके उनके सुंदर गालों को चूम लिया था। मम्मी ने भी मेरे गालों को चूमा था।
तयानुसार फिर चाय लेने के बाद मम्मी मेरे कमरे में आ गईं थीं। हम दोनों मेरे बेड पर ही आराम से बैठ गए थे।
मम्मी ने कहा - "मेधा, चलो आज मैं अपने जन्म और तुम्हारे जन्म की बात बताती हूँ। तुम कहती हो ना कभी कभी कि ‘मेरा भी एक भाई होता!’"
उनकी इस बात ने मुझे प्रसन्न कर दिया तब भी मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाई, मैंने कहा - "इसके पहले मैं एक बात पूछूँ, आपसे!"
मम्मी ने जिज्ञासु होकर कहा - "हाँ हाँ, पूछो।"
मैंने कहा - "मम्मी पिछले कुछ महीनों से मुझे लग रहा है है कि आप अनमनी सी रहती हैं। कुछ ऐसा लगता है कि जैसे कोई बात आपको निरंतर चिढ़ा रही है। क्या मैं गलत हूँ?"
मम्मी ने गंभीर होकर कहा - "मेधा तुम गलत नहीं कह रही हो। मगर जो बात है उसे समझने के लिए अभी तुम छोटी हो। उचित समय पर, मैं अभी की परेशानी भी तुमसे शेयर करुँगी, ठीक है?"
मैंने पूछ लिया - "मम्मी कोई बड़ी समस्या है?"
उन्होंने कहा - "समस्या तो बड़ी नहीं रह गई है। बस जब तब मानसिक रूप से व्यथित करती रहती है। कोई नहीं मैं इस पर काबू पा जाऊंगी, तुम चिंता नहीं करो।"
मैंने सहमति से सिर हिलाया। तब उन्होंने बताना आरंभ किया -
"अब मैं आज तुम्हें बताने की सोच रखी बात पर आती हूँ। मेधा तुम जानती हो न तुम्हारे कोई मामा नहीं हैं। एक मौसी ही हैं। अर्थात ना कोई मेरा भाई है और ना ही तुम्हारा कोई भाई है।"
मुझे आगे होने वाली बात रुचिकर प्रतीत हुई। मैंने कहा - "जी, मम्मी।"
मम्मी ने कहा - "तुम यह तो जानती ही हो की मौसी मुझसे बड़ी एवं मैं तुम्हारे नाना नानी की छोटी बेटी हूँ।"
मैंने कहा -" जी मम्मी।"
मम्मी ने आगे कहना आरंभ किया - "यह मुझे बाद में पता चला था कि ‘जब मेरा जन्म होने वाला था तब घर में एक बेटी होने से सब यह चाहते थे कि तुम्हारी नानी का अब बेटा पैदा हो’।"
मैंने कहा - "हाँ, मम्मी सब ऐसा चाहते थे तो इसमें गलत क्या था। मुझे भी लगता है कि यदि हमारे यहाँ भी मुझसे छोटा कोई आता तो उसका भाई होना ही मुझे भी पसंद आता।"
मम्मी ने कहा - "अपनी छोटी समझ और तुम्हारी अपनी इच्छा में ऐसा होना कोई गलत बात नहीं है। मगर तुम मेरी सोचो कि जब सब चाहते थे बेटा हो ऐसे में मेरा बेटी जन्मना यह बात सबके लिए कितनी कटु हुई थी। बड़े होने पर जिस दिन मुझे यह सब पता चला तो मैं बहुत रोई थी कि मैं अपने दादा, दादी, पापा और मम्मी की अवाँछित बेटी हूँ।"
मैंने कहा - "ओह्ह, आई सी! फिर तो सबसे जितना लाड़ दुलार, मुझे मिलता है उतना आपको नहीं मिला होगा।"
मम्मी ने बताया - "मेधा ऐसा भी नहीं था। अपने बच्चे तो मम्मी पापा को प्रिय होते हैं। मुझे भी प्यार मिलने लगा था। बस मुझे यह बात बुरी लगती थी कि घर के बड़ों की लड़के की मन्नत होने पर, मैंने आकर उसे अधूरी रहने दिया था। दादा-दादी ने तब मेरी मम्मी, तुम्हारी नानी से यह चाहा था कि वे तीसरी संतान, बेटा पैदा करें। "
मैंने कहा - "मम्मी, फिर यह क्यों नहीं हो पाया। आपके कोई भाई तो हैं, नहीं।"
मम्मी ने बताया -
"मेरे पापा प्रगतिशील आधुनिक विचार के थे। उन्होंने तीसरा बच्चा करना, जनसंख्या की दृष्टि से मातृ भूमि से अन्याय करने का अपराध जैसा माना था। तब मेरी दादी ने उनसे कहा था, ‘तुम्हारा एक बेटा हो जाए तो मैं शांति से परलोक जा सकूँ’। इस पर उन्हें पापा ने कह दिया था, बेटा ही हो इसकी संभावना 50% की है ऐसे में तीसरी भी बेटी हुई तब?
इस पर उनकी माँ (मेरी दादी) ने कहा था मैं तीर्थ धाम की यात्रा कर आती हूँ तब लड़का ही होगा। पापा ने यह ककर मना कर दिया था कि -
माँ इस बात के लिए तीर्थ धाम की यात्रा से कुछ नहीं होगा। विज्ञान के अनुसार इसमें अपने होने वाले शिशु के, माँ-पिता भी कुछ नहीं कर सकते हैं।" (क्रमशः)