बाढ़
बाढ़
आज फिर से पटना में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया था। निरंतर चार दिनों से मुसलाधार बारिश हो रही थी, स्कूल,काॅलेज,आफिस एहतियातन बंद कर दिये गये थे यहाँ तक की टी०वी, लाइट सब बंद थे।हाथ का मोबाइल फोन कोने में बिसुर रहा था। चार्जिंग न होने से उसकी धड़कन ही बंद थी। नीचे बाले सारे किरायेदार शरण लेने उपर पहुँच गये थे मना भी नहीं किया जा सकता था। बच्चे जो अकेले रहने के आदि हो गये थे, सुख-सुविधाओं के गुलाम थे उन्हें अपनी समझ में उन अनपढ़ और जाहिल लोगों का साथ रुचिकर नहीं लग रहा था पर, क्या करते रहना तो था ही बाढ़ के समाप्त होने तक। महीने का अंतिम सप्ताह था अतः घर में राशन-पानी भी कम ही थे। जो शरण लेने पहुंचे थे वे तो अपनी जान बचाकर भागे थे अब सवाल था इतने लोगों का खाना कैसे हो?न जाने बाढ़ की विभीषिका कब तक रहे। तकरीबन पचास-साठ लोग थे।
मेरी शुरू से आदत रही है ज्यादा सामान लेकर रखना, मैंने चावल के सस्ते होते ही पचास किलो चावल, बीस किलो दाल और चालिस किलो आलू लेकर रखा था। बिटिया की शादी तय हो गई थी इसलिए अचार आदि भी बनाकर रखा था, पति से डाँट भी पड़ी थी पर, अपनी आदत से लाचार थी मैं।
कोयला, लकड़ी सब का बंदोबस्त किया था मैंने क्योंकि भरे-पूरे किसान घर की लड़की थी अतः मांँ-दादी को यह सब करते देखा था। लेकिन ईश्वर ने तो कुछ और कारण से मुझसे यह सब रखवाया था।
मैंने हिसाब लगाया तो तकरीबन दस दिन यह सब चल सकता था।
मैंने घोषणा कर दी कि दस दिन हम सब खिचड़ी खाकर निकाल सकते हैं। लेकिन, काम में सभी को मदद करनी होगी। फिर क्या था लड़कों ने ईट का चूल्हा बनाया और लड़कियों ने आग जलाई उसपर बड़े कुकर में दाल -चावल धोकर चढ़ा दिया गया।दस बार कुकर में खिचड़ी बनी और एक थाली में पांच-पांच लोगों ने खाना खाया। सबके काम बंट गये लड़के बरसते पानी को जमा करेंगे। बच्चे हेलिकॉप्टर से फेंके गये खाने को कैच करेंगे। लड़कियां चूल्हे जलायेंगी और और बर्तन धोयेंगी। और महिलाओं को खाना बनाना होगा और पुरुष खाना परोसेंगे।
एक साझा चूल्हा और सबका साझा मन एक विशाल परिवार जैसा लग रहा था।
आश्चर्य तो मुझे अपने बच्चों पर हो रहा था कि कैसे वो इतना एडजस्ट कर रहे थे वह भी प्रसन्नता के साथ। सबसे बातें करना, काम में हाथ बंटाना खाने के पैकेट को सहेज कर रखना और खाली समय में सबके साथ अंताक्षरी खेलना। लड़कियों का भी अपना गुट था, अपनी बातें थीं।
मुझे एक और बाढ़ की याद आ गई जब इन्हीं परिस्थितियों में हम पडे़ थे, और एक नौजवान लड़का मुझे चुपचाप देखा करता था एक दिन सामने पड़ गया तो मैंने उससे पूछा तुम मुझे क्यों देखते रहते हो? उसने कहा-तुम हो ही इतनी प्यारी। मैं भी उसे जीभ चिढ़ाकर भाग आयी।पर, उसके बाद आईना देखने का शौक लग गया।
आज अपनी तेरह साल की लडा़कू बिटिया को शरमाते देख मुझे वह सब याद आ गया। खैर बाढ़ ने पांचवें दिन से अपना रौद्ररूप कम किया सातवें दिन सब अपने -अपने घर वापस लौट गये। जिंदगी फिर पुराने ढर्रे पर आने लगी।
पर इस बाढ़ ने दिलों को जोड़ने का काम बखूबी किया। मेरी लड़की की शादी में पूरा बाढ़ परिवार बढ़-चढ़ कर हम लोगों का साथ दे रहा था।
तो हर घटना में कुछ अच्छी बातें जरूर होती हैं।