बाबा बर्फ़ानी

बाबा बर्फ़ानी

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जिस दिन ये निश्चित हुआ कि अब टिकट हो गया है, सावन के पवित्र माह में हम जाने वाले है। जहाँ बाबा साक्षात निवास करते है। पत्नी कविता ने तैयारी शुरू कर दी, जिसमें मुहल्ले और जानने वालों को फ़ोन करना भी शामिल था। सोच कर ही मैं रोमांचित हो रहा था। कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा... क्या मुझसे हो पाएगा...? सच में बाबा बर्फानी के दर्शन कर पाऊंगा? अहोभाग्य मेरे जो देवों के देव ने मुझे बुलाया। कई सवाल मन में कुलबुला रहे थे!


आख़िर वो दिन आ गया सपत्नी हम कुछ रिश्तेदारों के संग दिल्ली से श्रीनगर पहुँच गए। दूसरे दिन बालटाल से प्रभु दर्शन के लिए हैलीकाप्टर से जाना था, मौसम अनुकूल न होने की वजह से हैलिकॉप्टर उड़ न सका। मन मसोस कर घोड़े पर यात्रा करना पड़ा। उबड़-खाबड़, दुर्गम संकरा पहाड़ी रास्ता। एक इंच भी पैर फिसले तो सीधे खाई में गिरने का अंदेशा। सर्द हवाओं के बीच चार घंटे निरंतर चढ़ाई उपर से आक्सीजन की कमी, साँसें फूल रही थी। आस्था के मारे कुछ खाया नहीं महादेव के दर्शन के बाद ही कुछ ग्रहण करूँगा। गलती कर दी थी हमने, खाने से कुछ एनर्जी मिलती!


खैर, जैसे ही पवित्र गुफा का दर्शन हुआ मानो बिजली सी कौंध गई सारे बदन में, ख़ुशी का पारावार न था। पालकी, कर ली हम लोगों ने गुफा तक जाने के लिए, क्योंकि शारीरिक शक्ति जवाब दे चुकी थी। पालकी सवारों को बिना लाइन में लगे दर्शन की अनुमति थी। पवित्र गुफा में बर्फ के शिवलिंग जो बहुत हद तक पिघल चुके थे, का हमने दर्शन किया, पूजा - अर्चना और कबूतर युगल को साक्षात् देखकर धन्य हुए हम!


लेकिन शायद बाबा के कठिन प्रश्नों के हल करना बाक़ी था। वापसी की यात्रा थकान भरी थी, लेकिन मन में एक राहत थी कि सोनमर्ग में होटल में जाकर तो रात भर आराम करना है। बालटाल पहुँचे तो टैक्सी वाले ने कहा - “श्रीनगर में माहौल ठीक नहीं है; पथराव, आगज़नी की वजह से कोई गाड़ी नहीं जाने दे रहे।”


भूख के मारे हालत ख़राब हो रही थी। आर्मी वालों ने रोटी सब्ज़ी खिलाई। गाड़ी में बैठे-बैठे शरीर अकड़ गया। कोई सूचना नहीं मिल पा रही थी, कब रवाना करेंगे। तीन दिनों से लोग तंबुओं में रह रहे थे। भोले ने गुहार सुन ली, बारह बजे आर्मी वालों ने अपने काफीले में सुरक्षा प्रदान कर सारे यात्रीयों को सुरक्षित निकाला। रात हमनें एयरपोर्ट के बाहर फुटपाथ पर गुज़ारी, हम सब बेहद चिंतित थे। हिम्मत से हमने डट कर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना किया। किसी तरह रात गुज़री। चिंता के बादल छट गए। रात तारों के छांव में बीती।


दूसरे दिन नौ बजे एयरपोर्ट का द्वार खुला तब हम अंदर दाखिल हो पाए। हमें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि, इन विषम परिस्थितियों में बाबा दर्शन देंगे। लेकिन हम सबने हार नहीं मानी! बड़े ही धैर्य पूर्वक अनचाहे परिस्थितियों का सामना किया। शायद प्रभु की अदृश्य शक्ति ने हमें वो मानसिक और शारीरिक बल प्रदान किया, जिस वजह से हमारी यादगार यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई!


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