Kamal Purohit

Inspirational

4.3  

Kamal Purohit

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और मुझे बेटी मिल गयी

और मुझे बेटी मिल गयी

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छोटी सी किराना दुकान का मालिक है अजय। रविवार यूँ तो छुट्टी का दिन होता है। लेकिन अजय को उस दिन भी दुकान खोलनी रहती है। 

हमेशा की तरह उसने दुकान खोली और ग्राहक का इंतजार करने लगा।

थोड़ी देर पश्चात एक व्यक्ति उसकी दुकान पर आया।

अजय ने उनसे पूछा...कहिये क्या चाहिए?

व्यक्ति बोला... आपका थोड़ा सा समय।

अजय बोला...जी मै समझा नहीं!

व्यक्ति ने कहा आपने मुझे पहचाना नहीं मैं ऋतु का पिता हूँ। 

अजय.... कौन ऋतु ?

व्यक्ति.... वही जिसे आपने चार महीने पहले हस्पताल पहुँचाया था। 

अजय की दिमाग में चार महीने पहले की घटना घूमने लगी।

जून की दोपहर थी। वह बाज़ार जा रहा था और रास्ते में एक बच्ची की किसी गाड़ी से दुर्घटना हो गयी थी। आस पास कोई दिख नहीं रहा था। बच्ची के सर और पैर में बहुत चोट आई थी। अजय के पास अपनी दुकान का सामान था। उसने अपना सामान वही रास्ते में छोड़ा और बच्ची को गोद में उठाकर हस्पताल की ओर दौड़ा। हस्पताल में उसने बच्ची का इलाज करवाया। जब बच्ची को होश आया तो बच्ची से उसके घर का नम्बर लेकर उसने हस्पताल से बच्ची के घर फोन किया। 

फोन बच्ची की माँ ने उठाया अजय ने उन्हें जल्द हस्पताल आने के लिए कहा।

माँ दौड़ी दौड़ी हस्पताल पहुँची। अजय ने उन्हें सारी घटना बताई और बोला की मेरा सामान वही दुर्घटना स्थल पर पड़ा है।मैं वापस जा रहा हूँ।ऐसा कह कर अजय वहाँ से निकल गया। 

भाई साहब आप कहाँ खो गए ?

अजय जैसे नींद से जागा हो......उसने पूछा मैं तो भूल ही गया था कैसी है अब आपकी बेटी ? आपने तो मुझे देखा भी नहीं तो आपको कैसे पता चला कि मैंने ही आपकी बेटी को बचाया था ?

रोहित(ऋतु के पिता) ने कहा....दो दिन पहले मैं अपनी गाड़ी में इधर से गुजर रहा था। ऋतु और उसकी माँ भी साथ थी।उन दोनो ने आपको पहचान लिया और मुझे बताया।

कल ऋतु का आठवाँ जन्मदिन है। मैं और मेरी पत्नी चाहते है कि आप जरूर से ऋतु को आशीर्वाद देने आए। ऐसा कह कर रोहित ने अपना कार्ड अजय को पकड़ा दिया।

अजय ने कहा .... ठीक है, मैं जरूर आऊँगा।


रोहित के जाने के बाद अजय फिर ख्यालों में खो गया।

दो वर्ष पूर्व की घटना फिर से ताज़ा हो गयी। आज के दिन ही उसकी बेटी की दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। कल उसकी बेटी भी अपना आठवां जन्मदिन मना रही होती।

अचानक उसे लगा उसकी बेटी ने पुकारा हो।

अंकल एक दस रुपये वाली चॉकलेट देना.…..

दुकान पर एक छोटी बच्ची खड़ी थी। 

अजय ने अपनी भीगी पलकों को पौंछा और हँसते हुए बच्ची को चॉकलेट पकड़ा दी।


दूसरे दिन शाम अजय रोहित के घर गया। उसने ऋतु के लिए एक सुंदर गुड़िया खरीदी थी वह उसे दे दी। ऋतु गुड़िया पाकर बहुत खुश हो रही थी।

अजय उसे देख कर मुस्कुराते हुए सोचने लगा कभी कभी अनकहे रिश्तों में भी अपने रिश्ते जैसे मिल जाते हो...ऋतु में उसे अपनी बेटी नजर आने लगी थी।


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