और अंगूठी गुम हो गई
और अंगूठी गुम हो गई
वह मोहतरमा नई-नई शादी हुई थी, अपने सास के साथ पहली बार अपनी नानी सास से मिलने जा रही थी। बड़े सज धज कर बहुत सारे गहने पहन रखे थे। और हाथ में छे अंगूठियां पहन रखी थी और बहुत बड़ी-बड़ी।
ट्रेन से जाना था 2 घंटे का सफर था जिस जगह वह बैठी थीं। पास में ही एक औरत बैठी थी। वह उनकी अंगूठियां देख करके बड़ी खुश हुई। और उनके बारे में बातें करने लगी ।
और वह भी बड़ी खुश हो और हो करके अपनी अंगूठियों को दिखा रही थी।
और उनके बारे में बता रही थी ।
ऐसे करते करते उनका गंतव्य स्थान आ गया जो दूसरी औरत बैठी थी।
वह जो अंगूठियां देख रही थी उसने एक दो अंगूठी पहन कर की भी देखी, उसको बहुत अच्छी लग रही थी ।
पता नहीं वापस उतारी वापस पहनी क्या करा। जब मोहतरमा अपनी नानी सास से मिलने पहुंचे।
वहां जाकर उनके हाथ जोड़े, पांव पकड़े।
और बड़ी शान से अपनी अंगूठियां दिखाने लगी। फिर एकदम से उनकी नजर अपनी सबसे बड़ी और खूबसूरत हीरे वाली अंगूठी गायब हो गई, उस पर गई।
बहुत ढूंढी बहुत ढूंढी सब जगह नहीं मिली और अंगूठी खो गई
उसके बाद में उन मोहतरमा ने कसम खाई कि रास्ते में इतनी सारी ज्वेलरी पहनकर हाथ में इतनी अंगूठियां पहन कर कभी नहीं निकलेंगे। अंगूठी खोई और अक्ल आई अंगूठी वापस नहीं मिली ।
अंगूठी गुम हो गई। यह एकदम सच्ची वाकया है।
स्वरचित सत्य
