अतिसुन्दरी
अतिसुन्दरी
बिहार के शाहाबाद के एक गांव में करीब पंद्रह सौ अलग अलग सामाजिक वर्ग के परिवार निवास करते थे, उसी गांव के दक्षिण दिशा में लालजी सिंह का भी परिवार निवास करता था। वे तीन भाई थे और उनका नंबर अपने भाइयों में पहला था। सभी भाईयों के विवाह अलग अलग वर्ष में सम्पन्न हुआ। समय बीतता गया, लालजी समेत सभी भाई एक एक कर पिता बने। लालजी सिंह के भी तीन संतान हुआ, दो लड़का एवं एक लड़की सभी का नामकरण भी हुआ। समय गुजरता देर नही लगता, इसी बीच लालजी सिंह से छोटे अर्थात मंझले भाई के लड़के का विवाह होना सुनिश्चित हुआ। अलग अलग दिन विवाह के अलग अलग रस्म का आयोजन हो रहा था और रस्में पूरा किया जा रहा था।
लालजी के मंझले भाई के ससुराल से भी रिश्तेदार आये हुए थे, इसी क्रम में एक रस्म के लिए लालजी के पुत्री को बुलाया गया, अतिसुन्दरी ओ अतिसुन्दरी जरा इधर आना ये रस्म है इसमें बहन की जरूरत है जरा जल्दी आओ पहले से ही काफी लेट हो चुका है, ससुराल वाले सभी रिश्तेदार पहली बार उनके यहाँ आये थे सो वो अतिसुन्दरी नाम सुन कर काफी अचंभे हुए की जिसका नाम ही अतिसुन्दरी हो तो वह असल देखने मे भी काफी सुंदर होगी, ऐसी मंशा पाले उनके ससुराल के रिश्तेदार अतिसुन्दरी के आने का इंतेजार करने लगे, तभी उधर से वह आयी। जैसे ही वो रिश्तेदार उसको देखी कानाफूसी शुरू हो गया। सिर्फ नाम ही है देखने मे तो एकदम से ठीक नही लगती है। इसी बीच रिश्तेदारों को बात करते हुए लालजी सिंह ने सुन लिया वो आये और बताने लगे कि मैंने अपनी बच्ची का नाम अतिसुन्दरी क्यों रखा था।