अभिमन्यु कुमार

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अभिमन्यु कुमार

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धरती न्यारी

धरती न्यारी

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अरे ओ धरती न्यारी जहाँ प्रकृति है प्यारी चले

हम सैर करने जिसकी महत्ता न्यारी।।

प्रकृति के पूजक चले समूह में देवभूमि हम।

इसके आगोश में आ के यही के हो चले हम।।

बात हो रही उत्तराखंड गंगोत्री यमुना उद्गम भूमि की।

इस श्रेया धरा की निर्मल जल एवं मौसम सुहानी की।

यहाँ के पगडण्डी तो जैसे जन्नत ए सीढ़ी खास है।

फिर भी अन्टो आदि का साहस जबाब दे देता है।

यहाँ पेड़ो के झुरमुट से जब हवा टकराती है सने-सने।

ऐसा लगता है मानों शादी की शहनाई बजती हो।।

रात पहाड़ों की वाव क्या गजब निराली होती है।

आसमान खत्म होता नहीं सितारे टिमटिमाते है।।

श्रेयांस है वह व्यक्ति जो गौरांगीभूमि के बेटे के रूप जन्मा।

जो सम्पूर्ण भारत के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती।।

यहाँ के रास्ते कदम कदम पे अहसास कराती फिरती है।

जयिता के प्रतीक स्वरूप नायकों के यही मानचित्र है।।

कभी शान्त तो कभी चट्टानें बहा लाने वाली आपकी नदियाँ। 

वैसे ही जैसे कृतिका नक्षत्र में जन्मा बच्चों का स्वभाव हो।।

जिंदगी यादों का सफर है बेशक कुछ खट्टी कूछ मीठी।

शिव दिलीप का स्नेह हमे इस करवा में दिलाई है मीठी।।

हम भी है प्यारे भारत वासी आये है कोने कोने से।

कोई बिहार तमिलनाडु आंध्रा यूपी बंगाल उड़ीसा से।।

इस माटी के सपूतों ने जो प्यार दिया है हमे।

हमसब सदा ऋणी रहेंगे इनके जिंदादिली के।।

खाया भात के साथ राजमा दाल और सब्जी कुचमर तेरा।

और कोमल आवाज का रसपान और कहु तो रो दूंगा मै।

ओ पहाड़ मेरे पहाड़ आप सुन लो निहार की पुकार।

कभी कमी न होगी आपकी श्रद्धापूर्वक आव-भगत में।।

उत्तराखंड के धर्मानुरागी धरा को मेरा सतत नमन।। 


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