अतीत के साये
अतीत के साये
वो रोज स्कूल के गेट से झांकती थी लौहे की छड़ो के उस पार। जहाँ बच्चे बैठते है पंक्तिबद्ध कतारों में, जहाँ से आती है गिनती और बारहखड़ी की अंगुनजी आवाजें। मन बहुत मचला था उसका स्कूल जाने को लेकर; लेकिन रह-रह पाँव उठते और रुक जाते थे।
अब भी याद था उसे पुराने मारसाब का वो गुस्से भरा चेहरा जो उसको दुत्कार कर कक्षा से निकाल देते थे बाहर या बिठाते थे आखिरी वाली पंक्ति में जहाँ कोई नही होता था उसके साथ। हंसते थे एक साथ सारे बच्चे उस पर। उसे पता था की उसे क्यों अलग बिठाया जाता है?? क्यों इतना गुस्सा रहते है मारसाब उस पर ?? नासमझ थी वो पर समझती सब थी। गाँव से भी बाहर है उनका घर , सब से अलग-थलग। लोग बाबा से भी नही मिलाते है हाथ। वो भी बैठते है दुबककर ओरों की खटिया के पास। उसे पता था वो छोटी जाति के लोग है। इसलिए नही बनते है उसके भी कोई दोस्त!
लेकिन सुना है कुछ दिनों पहले स्कूल में आये है कोई नए मारसाब ! जो बच्चों में नही करते भेदभाव। एक दूसरे के बनाते है दोस्त। साथ खेलने और खाने की सीख देते है। नही आता कुछ भी तो पहले बताते है, समझाते है। पीटते तो वो कभी है ही नही। कल दूर गली की पिंकी बता रही थी कि वो लाये है ढेर सारे बिस्कुट के पैकेट और कल बालसभा में बाँटगे सब बच्चों को एक-एक। कही बांट न दिए हो?? एक मुझे भी दे देंगे?? कितने दिन हो गए बिस्कुट खाये हुए?? बीते साल बाबा लाये थे जब बाल कटाने ले गए थे नाइ के पास। अब चलकर जाऊ के नही ? पता नही मारसाब क्या सोचेंगे?
उसने गेट की दरार से खुद को अंदर धक्का दिया और दबे पांव पहुंची school के प्रांगण में। नए आये sir ने देखते ही उसे अपने पास बुलाया। नाम पूछा। फिर हंसते हुए कहा ' अब रोज school आओ। एक भी दिन न रुकना। पिंकी के पास बैठो आज से तुम दोनों दोस्त हो'
फिर सारे बच्चों को बुलाकर बताई यह बात की आज से यह दोनों पक्के दोस्त है। कोई इस पर नही हंसेगा।
सालों बीत गए इन बातों को आज भी वो और पिंकी पक्के दोस्त है। साथ school पढ़ा फिर साथ ही कॉलेज गए शहर। वो बनी फ़लाने स्कूल की मैडम और पिंकी बनी गांव की सरपंच। आज भी बच्चों को पढ़ाते हुए उसे भरम होता है कि कोई लड़की है जो झांकती है स्कूल के गेट से इस पार। किसी का मन मचलता है स्कूल आने को। वो आज भी महसूस करती है उस मचलन को।
