हमारे सपने

हमारे सपने

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सपने भी क्या बेनामी और बेवक्त होते है। खेत की मेड पर बैठ कर बारिश का ख़्वाब देखने वाला पिता बेटे के अफ़सर बनने का सपना भी साथ देख रहा होता है।

रसोई में चावल से कंकर चुनती माँ बेटी के अच्छे ससुराल का सपना देख रही है और भावी दामाद के मंगल की कामना भी कर रही होती है। स्कूल की बेंच पर ख़्वाब देखता बच्चा सोच रहा है। " कि सिमरन इतनी हँसती क्यों है।"

आँगन में चिड़िया सी फुदकती लड़की अचानक खामोश हो कर सपना देखने लगती है। ये ससुराल ही ना हो तो कितना अच्छा रहे "मैं मेरे बाबूजी को छोड़ कर कभी भी कहीं नहीं जाऊँ।

मस्जिद में नमाज़ पढ़ता नमाजी सर झुका कर सपना देखता है कि "इस ईद पर बेग़म के लिए पान ज़रूर ले कर आऊँगा।"

मंदिर की आरती में पंडित का सपना

"इस बार के दान पात्र से निकले पैसों से अमरनाथ जा ही आऊँगा।"

किसी का मंदिर में शादी करने का सपना तो किसी का मंदिर में चोरी करने का

मधुशाला में भरे किसी जाम का छलक जाने का सपना ।

तो किसी को एक बार देखने, एक बार छूने और एक बार चूम लेने का सपना।

सरहद की बर्फ को मुट्ठी में भींच कर घर लौटने का सपना देखता फ़ौजी 

झुग्गी झोपड़ी की गंदी दीवार पर टंगी आँखो का सपना की काश छत से आज रात पानी ना टपके

नदी में पैर डाले बैठी लड़की की पायल को घुरती मछली और पेड़ की टहनी पर तिनका तिनका जोड़ कर अपना घर बसाती चिड़िया का सपना।

आखिर मैंने पूछा

और कितने सपने,?

वो बाहें फैला कर बोली

इतने सारे सपने!

इनमें कुछ मेरे, कुछ अब्बा के और कुछ अम्मीजान के है।

कुछ अधूरे, तो कुछ ज़रा से पूरे है।

बहुत से अच्छे पर ज़रा से बुरे है।

पर क्या सपने तो सपने है।

आपके और मेरे सपने, दूर खड़ी लड़की के सपने, और पास बैठे भिखारी के सपने।

कितने अच्छे है सपने

"सही ही कहा है किसी ने सबसे बड़ा दुर्भाग्य सपनों का मर जाना"



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