STORYMIRROR

Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

3  

Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

अस्तित्व के टुकड़े

अस्तित्व के टुकड़े

2 mins
337

कई सालों पहले घर के आंगन में फूटे नीम के अंकुर ने एक हरे-भरे वृक्ष का रूप धारण कर लिया था, मेरे साथ-साथ पले-बढे इस वृक्ष में जैसे मेरी जान बसी थी। मैं रोज़ सवेरे उस पर जल का लोटा चढ़ाता, उसकी जड़ें भी मेरे घर में गहरी समा गयी थी। 

गाँव में कुछ वर्ष पूर्व जल-सरंक्षण के नाम पर कई कार्य किये गए, जिससे गाँव के मकानों तक धरती का जल पहुंचना कम हो गया था। मेरे नीम के वृक्ष को भी पूरा जल नहीं मिल पा रहा था। एक दिन उसकी छाँव तले मैं लेटा हुआ था, उसकी डालियों से गुजरती हवा की आवाज़ आज मद्धम थी, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ वृक्ष को हवा कह रही थी, "जानते हो, पीछे एक वृक्ष था, वो सूख गया, फिर उसे कुल्हाड़ी से काट कर कई टुकड़ों में चीर दिया गया।"

"मैं भी जल के बिना सूखता जा रहा हूँ, मेरा भी....."

हवा के साथ झूमती डालियों के पत्तों की सरसराहट ने मेरी आखें खोल दीं। मैं उठ कर कुँए की तरफ भागा और वहां से पाइप लाकर वृक्ष के नीचे रख दिया। मैं मोटर चलाने जा ही रहा था कि मेरी पत्नी दूर से चिल्लाई, "अरे क्या कर रहे हो, घर में पानी भर जाएगा। इतना पानी खराब कर दोगे ?"

मैं भी वहीं से चिल्लाया,"पानी इतना नहीं भरेगा, और खराब नहीं कर रहा हूँ, मैं तो सिर्फ मेरे अस्तित्व के टुकड़े होने से बचा रहा हूँ।"

कह तो मैं रहा था लेकिन आवाज़ शायद नीम में से आ रही थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational