अशोक, मेरा मित्र
अशोक, मेरा मित्र
मैं अशोक का अंगरक्षक हूँ तब से जब से वह राजा नहीं बना था और केवल एक साधारण सा राजकुमार था, अंगरक्षक तो मैं अपनी इच्छा से ही बना था, अपितु हम सबसे अच्छे मित्र थे, हमारा बचपन साथ ही बीता, सब कुछ साथ- साथ ही किया, गुरुकुल भी साथ ही गए, छुटपन में खूब सारी शैतानियाँ भी मिलकर करते थे।
किन्तु अभी समय के साथ सब कुछ बदल गया है, अशोक अब केवल मेरा मित्र नहीं सम्राट अशोक बन गया है अब तो हमारे पास बातचीत करने का भी समय नहीं होता है। उसके उपर राज़ काज की इतनी अधिक जिम्मेदारी है कि वह आराम और शांति से भोजन भी नहीं कर पाता है।
अब समय आ गया है कि मैं अंगरक्षक वाली भूमिका त्यागकर अपने मित्र वाली भूमिका मैं पुनः आ जाऊँ और मेरे मित्र को पुनर्जीवित करने का कार्य करूँ, वह विजयी बनने के चक्कर में जीवन जीना ही भूलता जा रहा है।
मुझे अपने मित्र होने का दायित्व निभाना ही होगा।