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Saroj Verma

Romance

4  

Saroj Verma

Romance

अर्पण--भाग (९)

अर्पण--भाग (९)

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खाना ख़त्म करके सब अपने अपने बिस्तर पर जा लेटे,सुलक्षणा को भी विचारों ने आ घेरा था,अब सुलक्षणा को श्रीधर के चेहरे से साफ पता चलने लगा था कि शायद वो राज को पसंद करने लगा है,वो अच्छी तरह से अपने भाई के मन की बात समझ रही थी और मन ही मन में सोचकर खुश हो रही थी कि चलो अब श्रीधर की गृहस्थी भी बस जाएगी,उसकी जिम्मेदारी से वो मुक्त हो जाएगी लेकिन मन ही मन वो डर भी रही थी कि राज इतने बड़े घर की लड़की है ,क्या वो श्रीधर से ब्याह करने को राज़ी होगी?

सुलक्षणा इसी कश्मकश में थी लेकिन जब उसके सामने राज का चेहरा आता तो उसकी मासूमियत देखकर वो सोचती कि नहीं राज ऐसा कभी नहीं कर सकती,वो मेरे भाई का दिल कभी नहीं तोड़ेगी और ना ही कभी उसका साथ छोड़ेगी लेकिन अब मुझे ये पता करना होगा कि राज के दिल में क्या है? वो भी श्री को इतना ही पसंद करती है जितना कि श्री उसे पसंद करता है।

श्री और राज के रजामंद होने के बावजूद अगर राज की बड़ी बहन को इस शादी से कोई एतराज़ हुआ तो ,इतने सारे सवालों और जवाबों के बीच सुलक्षणा उलझकर रह गई थी,उसे सबसे ज्यादा अपने भाई की खुशी प्यारी थी, उसने और उसके भाई ने बहुत दुःख झेले थे और वो अब नहीं चाहती थी कि उसके भाई की खुशियों को कोई भी ग्रहण लगें,उसे लग रहा था कि इतने दिनों बाद तो उसके भाई को तकलीफ़ो से निज़ात मिली है,अब उसका संसार हमेशा खुशियों से भरा रहे।

श्रीधर के चेहरे पर जो मुस्कुराहट आई है उसका कारण कभी भी उससे दूर नहीं होना चाहिए और फिर मेरे भाई का हृदय इतना विशाल है वो हमेशा सबकी भलाई में बारें में सोचता है तो भगवान भला क्यों उसके साथ कुछ भी ग़लत होने देगा,इसी भंवर में उलझी सुलक्षणा को कब नींद ने घेर लिया उसे पता ही नहीं चला।

इधर श्रीधर भी बिस्तर पर लेटे लेटे राज़ के बारें में ही सोच रहा था,कितनी भोली और अल्हड़ है राज,कितना बचपना,कितनी मासूमियत है उसके भीतर और दिल तो शीशे सा पारदर्शी,इतने खूबसूरत नैन-नक्श दिए हैं ईश्वर ने लेकिन श्रृंगार का नामोनिशान नहीं, वैसे उसे श्रृंगार की जरूरत ही नहीं,उसकी सादगी ही उसका सबसे बड़ा श्रृंगार है,श्रीधर को राज की यादों की हवा से झपकी आने लगी और आंखें मूंदकर वो राज की यादों में समा गया।

इधर दोनों बहनें भी रात का भोजन करके लेट गई,राज के मन को भी कई बार ख्यालों ने आ घेरा था,श्रीधर के सेवाभाव और आत्मियता ने उसके हृदय में एक उच्च स्थान बना लिया था और वो कभी नहीं चाहती थी कि अब श्री उस स्थान को त्यागें?श्रीधर के व्यक्तित्व में एक अजीब सा आकर्षण था जिससे राज ना चाहते हुए भी उसकी ओर झुकी जा रही थीं,श्रीधर के आगे वो अपने भावों को काबू में नहीं रख पा रही थी,अब उसे ऐसा लगने था कि श्रीधर ही वो व्यक्ति है जो सदैव उसे खुश रख सकता है लेकिन अपनी बात किस तरह उससे कहे ये उसे समझ नहीं आ रहा था यही सोचते सोचते राज भी सपनों की दुनिया में खो गई।

इधर नन्दिनी के मन में कुछ हलचल सी मची हुई थी,उसे लग रहा था कि कितने सालों बाद वो अब खुलकर हंस रही और जी रही है,श्रीधर के आने से उसके पतझड़ से जीवन में कुछ तो बहार आई, वर्षों से प्यासी धरती पर कुछ तो प्रेम की बारिश हुई, क्योंकि उसने तो अपने जीवन को मिल और व्यापार के दायरे में ही समेटकर रख लिया था,अब उसे श्रीधर के माध्यम से प्रेम का अर्थ समझ में आने लगा था, उसे खुद से खिजाहट नहीं हो रही थी,अब जिन्दगी जीने में उसे आनन्द आने लगा था,जिस आनन्द की उसे तलाश थी,शायद वो अब उसे श्रीधर के रूप में मिल गया था,श्रीधर के ख्यालों में खोई हुई देवनन्दिनी को कब नींद ने आकर उसे सुला दिया उसे पता ही नहीं चला।

 सब अपने अपने ख्यालों में खोए हुए जिन्दगी में खुशियां तलाश करने का प्रयास कर रहे थें,अब ये देखना था कि किसका प्रयास सबसे ज्यादा सफल होता है, लेकिन जिन्दगी कभी हमारे अनुसार कहां चलती है,वो तो अपनी मनमानी करके ही मानती है और उसकी मनमानी के आगे जो अपना सन्तुलन नहीं खोता शायद वो ही सफलता की ऊंचाईयों को छूता है और यही जिन्दगी का फ़लसफ़ा है।

ऐसे ही कई दिन बीत गए,श्रीधर का ज्यादातर समय अस्पताल में राज के ही साथ गुजरता और सुलक्षणा रोजाना ही कुछ अच्छा अच्छा अपने हाथों से बनाकर खाने को राज के लिए भेजती रहती,अब राज की हालत में सुधार हो चुका था और डाक्टर ने उसकी रिपोर्ट्स देखकर कहा कि वो अब बिल्कुल स्वस्थ है उसे आप लोग अब घर ले जा सकते हैं,ये सुनकर राज खुश भी थी और दुखी भी,राज का उदास चेहरा देखकर श्रीधर ने राज से पूछा____

"शहजादी साहिबा! अब तो आपको इस बोरिंग से अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली है, फिर इस उदासी का क्या कारण हो सकता है भला,क्या मैं इसका कारण जान सकता हूं?"

"कुछ नही, शहजादे'",राज बोली।

"क्या मुझे आप इस काब़िल ही नहीं समझतीं कि अपने मन की बात मुझे बता सकें?"श्रीधर ने नन्दिनी से कहा।

"जी नहीं, शहजादे!" ऐसी कोई बात नहीं है,राज बोली।

"तो फ़िर,आपकी परेशानी की वज़ह मुझे ना बताएंगीं,क्या मैं इतना बेगाना हूं?" श्रीधर बोला।

"नहीं,आप ग़लत समझ रहे हैं,आप मेरे लिए क्या अहमियत रखते हैं,ये मैं आपसे बयां नहीं कर सकती",राज बोली।

"बेगाना भी नहीं हूं और बेगानो जैसा बर्ताव भी कर रहीं हैं",श्रीधर बोला।

" ऐसा कुछ नहीं शहजादे!आप मेरी बातों का ग़लत मतलब निकाल रहें हैं",राज बोली।

" तो फिर आपको अपनी उदासी का कारण मुझे बताना ही होगा",श्रीधर बोला।

" मैं सोच रही थी कि मैं अब घर पहुंच जाऊंगी तो अब मेरी और आपकी मुलाक़ात नहीं हो पाया करेगी",राज दुखी होकर बोली।

"बस,इतनी सी बात, ये शहजादा कभी भी अपनी शहजादी से दूर नहीं होगा",श्रीधर बोला।

" क्या कहा आपने?" राज ने चौंककर पूछा।

"मेरे कहने का मतलब है कि मैं आपसे मिलने आया करूंगा",श्रीधर ने झेंपते हुए कहा।

"अच्छा तो वादा रहा कि आप मुझसे मिलने आया करेंगें",राज बोली।

"जी शहजादी साहिबा! आप जैसा हुक्म करेंगी ,वैसा ही होगा",श्रीधर बोला।

"हुक्म नहीं दे रही हूं शहजादे, मिन्नतें कर रही हूं",राज बोली।

"ठीक है तो आप जरा यहां ठहरें और आप समान बांध लें, मैं जरा देवनन्दिनी जी को खुशखबरी टेलीफोन पर सुना कर आता हूं",श्रीधर बोला।

"जी,ठीक है! मैं भी चलने की तैयारी करती हूं",राज बोली।

खबर पाते ही देवनन्दिनी अपनी मोटर में ड्राइवर के साथ आ पहुंची और अस्पताल का बिल अदा करके राज से बोली___"चलो मोटर में बैठो और ड्राइवर से बोलो कि यहां आकर सारा सामान ले जाए"।

"जी दीदी!" और इतना कहकर राज मोटर में जा बैठी, लेकिन आते समय वो श्रीधर से और भी बहुत कुछ कहना चाहती थी जो कि नन्दिनी के रहते वो ना कह सकी।

इधर नन्दिनी ने श्रीधर का शुक्रिया अदा किया और बोली___"घर भी आते रहिएगा,हम सबको अच्छा लगेगा।"

"जी लेकिन मिल में तो मुलाकात हो जाया करेंगी",श्रीधर बोला।

"तो क्या हुआ? आपको घर आने में कोई एतराज़ है", नन्दिनी ने पूछा।

"ना देवी जी! ऐसी कोई बात नहीं है",श्रीधर बोला।

"तो चलिए फिर मोटर में बैठिए,अभी घर चलिए', नन्दिनी बोली।

"जी! अभी माफ़ कीजिए, फिर कभी आता हूं,आज आप दोनों बहनें अपना समय एक-दूसरे के संग बिताएं",श्रीधर बोला।

"ठीक है तो मैं अब चलती हूं ,मोटर में राज इन्तज़ार करती होगी", नन्दिनी बोली।

"जी बहुत अच्छा",श्रीधर बोला।

नन्दिनी अस्पताल से बाहर आई ,मोटर में बैठी और दोनों बहनें घर को रवाना हो गईं।घर के सामने मोटर रूकी और नन्दिनी ने राज से कहा___

"चलो भीतर चलो....".

राज ने जैसे ही दरवाजे पर कदम रखें घर की सजावट देखकर आत्मविभोर हो उठी और बोली..."दीदी! इतना सब आपने मेरे लिया किया...."

" हां!प्यारी बहना!आज खाने में सबकुछ तेरी ही पसंद बनवाया है", नन्दिनी बोली।

"तो दीदी! आज आप मुझे वो लोरी भी गाकर सुनाओगी जो आप मुझे तब सुनाती थी जब मुझे मां और बाबूजी की याद आया करती थी",राज बोली।

"हां! क्यों नहीं! आज तुम्हारी हर फरमाइश पूरी होगी", नन्दिनी बोली।

और उस रात दोनों बहनों ने एक-दूसरे के साथ समय बिताया, दोनों ने उस रात वो जिन्दगी जिई जो आज से पहले कभी नहीं जिई थी।

 दूसरे दिन सुबह के समय..... नन्दिनी ने आज बहुत ही खुशी मन से सभी नौकरों और राज को अपने सामने बुलाया और बोली.....

" आज मैं ये एलान करती हूं कि....."तभी बीच में राज बोल पड़ी....

" क्या एलान करने वाली हैं आप!"

" कि अब मुझे वो काम पूरा कर लेना चाहिए जो कबसे अधूरा पड़ा है", नन्दिनी बोली।

तभी रामू बोला...." दीदी! मैं बताऊं..."

"हां! बोल,जो बोलना चाहता है,आज सबको आज़ादी दी जाएगी", नन्दिनी बोली।

"यही कि कहीं आप ब्याह तो नहीं करने वाली हैं",रामू बोला।

" मैं सोच रही हूं कि अब अपना मनपसंद काम कर ही लूं", नन्दिनी बोली।

"सच, दीदी! आप शादी करने वाली हैं",रामू बोला।

"ना रे! अपनी सालगिरह मनाने की सोच रही थी,जो कि परसों हैं,सोच रही थी कि कुछ धूम धड़ाका हो जाए", नन्दिनी बोली।

"ये क्या? आपने तो हम सबके अरमानों पर पानी फेर दिया,हम सोच रहें कि आप ब्याह रचाने वालीं हैं",रधिया बोली।

"तुम लोग सब तैयार तो हो ना इस सबके लिए", नन्दिनी ने सबसे पूछा।

" हां, दीदी! क्यों नहीं",राज बोली।

"तो फिर सालगिरह की तैयारियां करना तुम्हारे हाथों में सौंपती हूं", नन्दिनी बोली।

"दीदी! मैं ही क्यों?" राज ने पूछा।

"वो इसलिए, कि तू अब जिम्मेदार बने", नन्दिनी बोली।

"तो ठीक है,तो आज ही मैं किशोर को बुलाकर,सारी तैयारियों में जुट जाती हूं, बहुत काम हैं, बहुत कुछ करना हैं",राज बोली।

" मैं चाहती हूं कि पार्टी के लिए तू एक बहुत ही शानदार गीत तैयार करें, लोगों को पता भी तो चले कि मेरी बहना कितना सुरीला गाती है, नन्दिनी बोली।

आप कुछ भी ना सोचें दीदी! अब मैं सब कर लूंगी,बस आप मेहमानों की लिस्ट दे दीजिए",राज बोली।

"हां.... हां...जुरूर", नन्दिनी बोली।

राज का चहकना देखकर और उसकी मुस्कान देखकर आज नन्दिनी को एक अज़ब सा सुकून मिल रहा था,उसने सोचा कि श्रीधर बाबू की बदौलत वो खुश रहना सीख पाई है,उनके आने से उसकी जिंदगी में कितने रंग भर गए और एक सबसे गहरा रंग भी तो भर गया और वो रंग हैं प्यार का रंग।

क्रमशः....

       



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