अरेंज मैरिज

अरेंज मैरिज

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दो मित्र अचानक, सुबह की सैर करते समय मिल गये। दोनों ही समान संस्थान में, कार्यरत थे और नौकरी से दोनों ही सेवानिवृत्त हो चुके थे।

दोनों ही बहुत समय बाद, मिले थे तो स्वाभाविक था कि वे प्रसन्न होकर गले से लग गये। एक ने दूसरे का हाथ पकड़कर, सामने की बेंच में बैठ गये।

"हां यार सुस्मित, बता तेरा हाल क्या है। बहुत दिनों बाद मिले हो। "एक ने दूसरे से कहा " हमारा बड़ा लड़का अमेरिका में सेटल हो गया है। बहुत दिनों से पीछे पड़ा था कि, बाबूजी आप आते नहीं हो। माँ तो अब रही नहीं। आप तो हमारे साथ, कुछ समय रहो। वह यहां परिवार सहित आया था और मुझे अपने साथ अमेरिका ले गया। दो माह रहने के बाद, मैं कल ही यहां वापस आया हूँ "

"रजनीश तू तो अपनी सुना तेरा क्या चल रहा है आजकल।" सुस्मित ने कहा। रजनीश "यार वंदना (लड़की) के रिश्ते के लिए परेशान हूँ। हालांकि वह अच्छे जाॅब में है। परंतु उसके लायक कोई रिश्ता, नजर नहीं आ रहा है। कुछ लड़कों की फोटो उसे दिखाई भी है, किन्तु उसे कोई पसंद नहीं आया है। यार उसकी उम्र भी, होती जा रही है। मैंने उससे कहा भी है कि अगर कोई लड़का उसे पसंद हो तो हम उसकी शादी करवा देंगे। परंतु वह कहती है कि वह कभी भी लव मैरिज नहीं करेंगी। अरेंज मैरिज के पक्ष में है वो।"

सुस्मित ने उसे समझाया कि "अगर वह अरेंज मैरिज ही करना चाहती है तो उसके लिए वर की तलाश कर ना। पहले तो उससे पूछ कि लड़का कैसा चाहिए?परिवार कैसा चाहिए। यार सभी लड़कियों की अपनी-अपनी पसंद, नापसंद होती है। वह जैसा चाहती है, वैसे लड़के की तलाश कर। फिर आगे बात बढ़ा। कुछ तो तुझे सकारात्मक कदम उठाने होंगे। नहीं तो उसकी उम्र बढ़ती जायेगी। वैसे भी आजकल की लड़कियाँ कैरियर पर ज्यादा ही फोकस करती है। जीवन अपने हिसाब से जीना चाहती है। पहले की तरह आज की लड़की नहीं रही कि माता पिता जिस खूंटे से बांध देते थे वहां वह दुख सुख सहते हुए रह जाती थी, बिना अपनी तकलीफ़ दूसरों को बतायें। "

रजनीश ने कहा "ठीक है यार, मैं वंदना से बात करता हूँ कि वह क्या चाहती है। परंतु तू भी देख ना। लड़की के हिसाब का कोई लड़का मिले तो। तेरी जान पहचान का हो तो।"

सुस्मित ने कहा "ठीक है यार मैं देखता हूँ। अगर कोई उपयुक्त रिश्ता मिला तो, तुझे फोन करता हूँ।" दोनों एक दूसरे से विदा हो गये। पुनः मिलने के वादे के साथ।

कुछ दिनों बाद एकाएक फोन की घंटी बजी। सुस्मित ने कहा "यार हमारे पड़ोस में एक लड़का है। मेरे ख्याल से वंदना के लिए उपयुक्त रहेगा मैंने, उसके पिता से बात की है। वे 1-2 दिनों में, वंदना को देखने तुम्हारे घर आने वाले हैं। "

रजनीश "ठीक है। परंतु उन्हें शाम 7 बजे के बाद आने बोलना। सभी उस समय मिल जायेंगे और यार उनके साथ तू भी आयेगा, तो अच्छा रहेगा।"

सुस्मित ने कहा "ठीक है, मैं भी आऊंगा। आने के पहले फोन करूंगा। "तीन दिनों पश्चात सुस्मित का दोपहर को फोन आया कि वे सभी 7,30बजे शाम तक आ रहे हैं। रजनीश ने घर पर सभी को बता दिया। पत्नि, बहू, बेटा और वह स्वयं आवश्यक तैयारी में जुट गये। वंदना शाम को घर पहुँच गयी थी। उसे भी पता था कि आज उसे लड़के वाले देखने आने वाले हैं।

नियत समय में सभी रजनीश के घर पहुँच गये। सुस्मित ने सभी का आपस में परिचय करवाया। नाश्ता चाय के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। लड़के ने, लड़की से कुछ सवाल किये। जवाब पाकर वह संतुष्ट हो गया। लग रहा था कि वह लड़की को पसंद कर चुका है।

लड़के के पिता ने कहा "भई हमें गृह लक्ष्मी चाहिए। अगर लड़की जाॅब छोड़ दे तो बात बन सकती है। क्योंकि हमारे पास सभी कुछ है। लड़की को नौकरी करने की आवश्यकता ही नहीं है।"

रजनीश ने कहा " हम चाहते हैं कि हमारी बिटिया आर्थिक रूप से सुरक्षित रहे। ऐसा सभी माँ बाप चाहते हैं। क्योंकि हम भविष्य में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। इस तरह की घटनाएँ, आजकल बढ़ रही है कि लड़की को दहेज या अन्य कारणों से परेशान व प्रताड़ित किया जाता है और फिर लड़की का जीवन परेशानी झेलते हुए बीतता है। फिर भी हम घर के लोग इस बात पर सलाह मशवरा करते हैं और आपको बताते है। आप चाय नाश्ता कीजिए। हम अभी हाज़िर होते हैं। "

घर के लोग अंदर कमरे में गये। वंदना और परिवार के सदस्य आपस में सलाह करने लगे। बेटा, बेटी,पत्नि और बहू। कोई भी इस शर्त को मानने तैयार नहीं था। वंदना ने कहा "पिताजी मैं किसी भी सूरत में अपनी नौकरी, शादी करने के लिए नहीं छोडूंगी। मेरे सामने बहुत से उदाहरण हैं कि जिसमें पति के कहने पर सहेली ने जाॅब छोड़ दिया और पति ने उसे तलाक दे दिया। वह अपने मायके आकर बोझ बन गयी । माँ बाप के साथ ही भैया भाभी भी उसे ताने मारते हैं और बोझ समझते हैं। ना बाबा ना। मैं ऐसा नहीं कर सकती।"

अन्ततः सभी के सामने, वंदना ने बाहर आकर लड़के वालों को, स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह अपना जाॅब नहीं छोड़ेगी। आगे आपका जो भी निर्णय हो। सभी चले गये। सुस्मित ने भी जाते जाते रजनीश को कहा कि वे भी इस निर्णय से सहमत हैं। आखिर लड़की के भविष्य का सवाल है। वह भी अपने घर चला गया। बात आयी गयी हो गयी।

वंदना प्रतिदिन की तरह आँफिस जाने के लिए फटाफट तैयार होकर निकली। चौराहे पर उसकी स्कूटर के सामने कुछ लफंगो ने गलत तरीके से, अपनी बाइक से टक्कर मार दी। वंदना संभलते हुए भी स्कूटर से ज़मीन पर गिर पड़ी बेशर्मों की तरह लड़के उस पर हँसते हुए, अभद्र टिप्पणी कर रहे थे।

वंदना अंदर ही अंदर क्रोधित हो रही थी और दर्शक बने लोग, मुफ्त का मज़ा ले रहे थे। जैसा कि आमतौर पर होता है। भीड़ में से एक लड़का सामने आया और वंदना की मदद करने लगा। वंदना खुद सीधे रूप से, खड़ी नहीं हो पा रही थी। उसके पैर में चोट लगी थी। एक व्यक्ति ने वंदना की स्कूटर खड़ी कर दी थी। लड़के ने सहारा देकर वंदना को खड़े किया और वंदना से कहा "आपको हॉस्पिटल ले जाने की जरूरत है। खून भी बह रहा है। आपको कोई गंभीर चोट ना लगी हो।"

वंदना सहमत हो गयी। वंदना की स्कूटर से लड़का उसे किसी तरह हॉस्पिटल ले गया। वंदना की चिकित्सा प्रारंभ हुई। उसके पैर में चोट लगी थी। वंदना ने आँफिस और घर पर फोन पे अपनी दुर्घटना की सूचना दे दी थी। वह लड़का हॉस्पिटल में ही रहा जब तक वंदना के घर वाले हॉस्पिटल नहीं पहुंच गये थे। घरवालों ने उस लड़के को हृदय से धन्यवाद दिया। वंदना हॉस्पिटल में 4 दिन रही। प्रतिदिन वह लड़का हॉस्पिटल आकर वंदना और उसके परिवार से मिलता था और दवाइयाँ व अन्य सामग्री लाकर सहयोग करता था। वह भी निस्वार्थ भाव से। सामान्य तौर पर अब ऐसा नहीं होता है।

लड़का ख़ूबसूरत, जहीन और संस्कारी लगा सभी को। वंदना भी उस लड़के पर ध्यान देने लगी थी। वह लड़का औरों से भिन्न लगा उसे। बातचीत में उस लड़के ने बताया कि उसका नाम समीर है। पास ही वह रहता है। माँ बाप का इकलौता है। मध्यवर्ग परिवार से है और स्नातक होने के बाद वह प्रतियोगी परीक्षा में बैठा है।

रजनीश ने समीर से कहा "बेटा नौकरी के चान्स दिखते हैं क्या?" समीर "बाबूजी मेरा विश्वास है कि मुझे सिविल सर्विस में नौकरी मिल जायेगी। मेरी तैयारी बहुत अच्छी थी। कभी भी अच्छी खबर आ सकती है। "

वंदना को 5 वें दिन हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। वह घर पर आ गयी। तभी उसे समीर का फोन आया कि "हेलो वंदना। अब कैसी हो। तुम्हारी तबियत कैसी है। " वंदना "हां समीर, अभी तो ठीक है। पांच दिनों बाद पैर का प्लास्टर निकाला जायेगा।"

समीर ने कहा "ठीक है, अपना ध्यान रखना और जब हॉस्पिटल जाना होगा, मुझे फोन करना। "वंदना "हां समीर, क्योंकि भैया तो आँफिस के कुछ काम से बाहर गये हैं, तुम आ जाना। मुझे जरूरत होगी तुम्हारी।"

कुछ दिनों बाद, वंदना को लेकर समीर बाबूजी के साथ, हॉस्पिटल गया। वंदना का प्लास्टर निकाला गया, उसे अब कोई विशेष तकलीफ़ नहीं हो रही थी। दवाइयाँ लेकर सभी वंदना के घर पहुँचे। समीर ने रजनीश से कहा "बाबूजी, एक अच्छी खबर है। आज मेरा नायब तहसीलदार पद पर चयन हो गया है। मुझे लगा, यह बात आप लोगों को भी बताऊँ।"

सभी प्रसन्न हो गये।समाचार ही ऐसा था। रजनीश ने सभी का मुंह मीठा करवाया । उसे सभी ने बधाई दी।

रजनीश ने कहा "बेटा अब आगे क्या विचार है। "समीर बोला"बाबूजी अभी तो मुझे प्रशिक्षण के लिए जाना होगा। कुछ महीनों के लिए। फिर देखिये, कहाँ पोस्टिंग होती है। रजनीश ने कहा "ठीक है, कब निकल रहे हो। "समीर "बस कल ही प्रशिक्षण के लिए, मुझे निकल जाना है। "रजनीश "समीर, तुम भोजन करके जाना। ना जाने अब कब मुलाकात हो।"

कभी कभी समीर का फोन रजनीश और वंदना को हाय हेलो का आता रहा। लगता था कि समीर इन लोगों को भूला नहीं था।

लगभग 6 माह बाद एकाएक समीर शाम को, वंदना के घर आया। हाथों में मिठाई का डिब्बा, होठों पे मुस्कान जैसे किसी अपने को , एक अर्से के बाद मिलने पर होती है। समीर का लुक्स पूरी तरह से बदला हुआ था। शरीर थोड़ा निखर आया था पहने हुए लकदक सूट में वह स्मार्ट और गुड लुकिंग दिख रहा था। समीर को देखकर सभी के होठों पर, मुस्कान आ गयी। समीर ने रजनीश के चरण स्पर्श किये। कहा "बाबूजी मैं नायब तहसीलदार बन गया हूँ। खुशी की बात है कि मेरी पोस्टिंग भी यहीं हो गयी है। मैंने कल ज्वाइन कर लिया है।"

सभी ने उसकी सफलता के लिए बधाई दिया। पारिवारिक माहौल देखकर समीर की आँखों में आँसू आ गए। ये आँसू खुशी के थे।

चाय नाश्ते के बाद समीर ने रजनीश से कहा "बाबूजी बुरा ना मानें, तो एक बात कहना चाहता हूँ। " रजनीश "हां हां बेटा, जो बोलना हो ,बोलो। इसमें बुरा मानने की क्या बात है। " समीर के चेहरे के भाव बयां कर रहे थे कि, वो बात कैसे शुरू करे। उसे असमंजस में देख ,रजनीश को उस पर दया आ गयी। कहा "बेटा समीर, मैं तुम्हारे पिताजी जैसा हूँ। तुम बिना संकोच के, मुझसे कह सकते हो,जो तुम्हे कहना है।"

सुनकर समीर की हिम्मत बढ़ी और कहा "बाबूजी अगर आप बुरा ना मानें तो मैं वंदना का हाथ, आपसे मांगता हूँ। मैं उनसे विवाह करना चाहता हूँ। अगर आप अनुमति दें तो। "

एकाएक यह बात सुनकर रजनीश सोच विचार में पड़ गये। क्या जवाब दें। उन्हें कुछ सुझ नहीं रहा था। कुछ समय बाद वे बोले "बेटा समीर, मुझसे पहले तुम्हें वंदना से यह बात कहनी चाहिए। आखिर निर्णय उसे ही करना है। " समीर " नहीं बाबूजी, हम लोग पारंपरिक परिवार से हैं। पहले लड़की के माता-पिता हां कहेंगे, तभी मैं वंदना जी से बात करूँगा। उससे पहले कतई नहीं। "

रजनीश ने कहा "ठीक है बेटा, मैं विचार करके तुम्हें बताऊंगा। मामला संवेदनशील है।"

समीर चला गया। रजनीश ने परिवार के सामने समीर द्वारा कही बात का जिक्र किया। चूंकि समीर कुछ दिनों से,परिवार के साथ घुल मिल गया था और उनके हृदय में उसने अपनी जगह बना ली थी।

तो सभी ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी। परंतु वंदना ने अपने पिता से कहा" माँ बाबूजी आप समीर के परिवार से मिल आईये । उसके बाद आपको सभी ठीक लगे तो, मैं समीर से बात करना चाहूँगी उसके बाद ही मैं, कोई निर्णय तक पहुंच पाऊंगी "

रजनीश ने कहा " ठीक है वंदना, जैसा तुम चाहती हो ,वैसा ही होगा।"

रजनीश अपनी पत्नी के साथ समीर के घर गया। समीर के परिवार से मिला आचार विचार जाने। समीर के बारे में जानकारी एकत्र की। संतुष्ट होकर वंदना को, रिश्ते के लिए हामी भर दी।

वंदना ने अपने सहकर्मी और मित्र प्रकाश को लेकर तहसीलदार से मिली। समीर के व्यक्तित्व, व्यवहार,चरित्र के बारे में जानकारी ली।

संतुष्ट होकर अपने पिता से कहा " बाबूजी कल शाम को समीर को मुझसे मिलने कहिए मैं उससे बात करना चाहूँगी। " रजनीश ने समीर को फोन कर कहा "बेटा समीर, हम माता पिता की रिश्ते के लिए सहमति है। परंतु तुम कल शाम को आकर वंदना से मिलो।"

दूसरे दिन शाम को समीर आया। परिवार ने उसका स्वागत किया। वंदना ने अपने पिता से कहा "बाबूजी मैं समीर के साथ डिनर पर जा रही हूँ। आप इजाजत देंगे तभी। वहां डिनर के साथ ही, हम एक दूसरे को जानने समझने की कोशिश करेंगे।"

रजनीश ने कहा " हां बेटा,जाओ। एक दूसरे को जानने की कोशिश करो ताकि बाद में, किसी को भी रिश्ते के लिए अफसोस ना रह जाये। "

दूसरे दिन वंदना और समीर की अरेंज मैरिज का सकारात्मक परिणाम आ गया। वंदना सोचने लगी कि उस दिन दुर्घटना नहीं होती तो समीर क्या उसे मिल पाता? और क्या वह समीर की जीवनसाथी बन पाती?



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