अर्धा
अर्धा
"राखी, तुने क्यूँ नहीं ज्वाइन किया, ये तो तेरा ड्रीम जॉब था। फिर भी अपने सपनों और ज़रूरतों को परे रखकर तुने मुझपर यह एहसान किया। अब मैं तेरे इस एहसान का बदला कैसे चुका पाऊँगी!"
अर्धा ने बेहद भावुक होकर अपनी प्रिय सहेली से पूछा।
राखी के चेहरे का भाव कुछ ऐसा था कि, इसमें एहसान कैसा? यह तो मेरा फर्ज़ था।
राखीऔर अर्धा ने केंद्रीय विद्यालय में टी. ज़ी. टी. टीचर के पार्ट टाइम पद के लिए आवेदन दिया था।
आवेदन के बाद ज़ब इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तभी अपनी बारी का इंतजार करते हुए दोनों की सहज़ औपचारिक बातचीत फेविकोल माँगने को लेकर शुरू हुई थी।हूआ यह कि ज़ब सभी आवेदक एक कमरे में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे तभी अंदर से आकर क्लर्क ने सबको एक फॉर्म देते हुए कहा कि इसे भरकर और इस पर अपना फोटो चिपकाकर अपनी बारी आने पर अंदर लेकर जाना है।
"क्या आप अपना काम हो जाने के बाद मुझे फेविकोल दे सकती हैं, मैं लाना भूल गई!"
अर्धा के कहने पर फॉर्म भरते हुए राखी ने अपना सर उठाया तो सामने एक संभ्रात सी दिखनेवाली लड़कियों विनीत भाव से पूछ रही थी।
उस दिन गोंद के आदान प्रदान से शुरू हुई दोस्ती आज बहुत प्रगाढ़ हो चुकी थी। तभी अर्धा ने अपनी ज़गह राखी का चयन हो जाने दिया था क्योंको राखी विधवा थी और आर्थिक रुप से कमज़ोर भी।
अगर यह बात राखी को उस वक़्त पता चल जाती तो वह कभी यह नौकरी न तो स्वीकार करती और न ही ज्वाइन नहीं करती। इसलिए अर्धा ने झूठ कहा था कि उसे इससे भी बेहतर नौकरी मिल गई है, इसलिए राखी चाहे तो ज्वाइन कर सकती है।
इस घटना के लगभग छः महीने बाद ज़ब राखी एक बार फिर इंटरव्यू के लिए इंतजार करते हुए अर्धा को देखती है तब उसको अर्धा के त्याग के बारे में पता चलता है तो वह उसके प्रति कृतज्ञता से भर जाती है।
ऐसे दोस्त आजकल कम मिलते हैं जो त्याग भी करें और एहसान भी न जताएं।
