अपनी खिचड़ी अलग पकाना
अपनी खिचड़ी अलग पकाना
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मंदिर के सामने बरगद के छाओं में चार पांच पण्डित इकठा बात कर रहे। आजकल पहले जैसा पूजा पाठ के लिये बुलावा तो नही आ रहा। और मंदिर पर भक्त भी कम आते है। घर कैसे चलेगा ? सोच कर सब परेशान थे।
इतने में सब ने देखा कि सदाशिव पंडित कुछ थैला लीये आ रहे है। नजदीक आने पर सब ने उनसे पूछा कैसे हो पंडित जी। कहाँ से आ रहे हो। मुस्कुराते हुए बोले ,आज बहुत दिनों बाद सब से मिलने का मौका मिला।
कुछ नये काम पर मन लग गया। इस संकट के समय एक संस्था लोगों को दिन मैं खाना देने का निर्णय लिया। मुझे उधर रोसैया का काम मिला। घर का गुजारा हो जाता है। सब सुन रहे थे उनको।
कुछ देर में सब को महसूस हुआ कि सदाशिव पंडित अपनी खिचड़ी कुछ अलग सा पकाए है।