अपनी ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए day-6 smile
अपनी ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए day-6 smile
"मम्मा आपका नाम अख़बार में आया है। कोरोना के कारण अपने माँ-बाप को खो चुके बच्चों के लिए काम करने वाली प्रसिद्द संस्था ने आपके योगदान के लिए बधाई दी है।" लिपिका ने अपनी मम्मी प्रतिभा को फ़ोन पर कहा।
"हाँ बेटा तुम्हारा बहुत -बहुत शुक्रिया। पेंटिंग्स से यहीं कुछ 10 लाख रूपये मिले थे मैंने सारे के सारे संस्था को दान कर दिए।वैसे भी सभी पेंटिंग्स मैंने कोरोना के दौरान ही बनाई थी। लॉक डाउन के दौरान ज़िन्दगी नीरस सी हो गयी थी।" प्रतिभा ने कहा।
"हाँ मम्मा अच्छे से जानती हूँ। आप प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुई थी। सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ अपने कार्यक्षेत्र में काम करती रही थी मैंने कभी आपको खाली बैठे हुए देखा ही नहीं था।"कर्म ही पूजा है इसको आपने चरितार्थ कर रखा था।" लिपिका ने कहा।
"हाँ बेटा एकदम से ज़िन्दगी जैसे ठहर सी गयी थी। लगता था कि अब करने को कुछ है ही नहीं। सही कहती हूँ इतना ऊब गयी थी कि कभी-कभी तो आत्महत्या का ख़्याल तक मन में आ जाता था। वह तो तुमने मुझे पेंटिंग्स करने का सुझाव दिया और आज उसका इतना सुखद परिणाम निकला।" प्रतिभा ने अपनी बेटी को शुक्रिया करते हुए कहा।
"मम्मा मैंने तो बस आपको आपके भूले -बिसरे हुनर के बारे में याद मात्र दिलाया था। बाकी आप तो आपके नाम के अनुरूप ही प्रतिभा की धनी हो।" लिपिका ने कहा।
"शरारती कहीं की।" प्रतिभा ने कहा।
"चलो मम्मा अब फ़ोन रखती हूँ। आप भी अपनी इस सफलता का आनंद लो।" लिपिका ने फ़ोन रख दिया था।
फ़ोन रखने के बाद प्रतिभा अखबार में छपी खबर देखने लगी। अखबार में प्रतिभा की फोटो भी थी और उनका नाम भी। प्रतिभा बार-बार स्वयं के बारे में छपी खबर पढ़ रही थी और मुस्कुरा रही थी। उनका मन अत्यंत प्रफुल्लित था। प्रतिभा के फ़ोन पर भी बधाई सन्देश आ रहे थे।
तब ही दरवाज़े की घंटी बजी। प्रतिभा दरवाज़ा खोलने जा ही रही थी कि उनके पति संयम ने कहा कि "अरे तुम यही आराम से बैठो।आज इतने दिनों बाद तुम्हें इतना खुश देखा है। तुम्हारी पेंटिंग प्रदर्शनी की सफलता की ख़ुशी में जलेबी और समोसे आर्डर किये थे डिलीवरी ब्वॉय आया होगा।"
संयम दरवाज़े की तरफ बढ़ गए और प्रतिभा अपने यादों के सफर पर निकल गयी। यादें हम इंसानों का साथ कभी नहीं छोड़ती चाहे अच्छी हो या बुरी। प्रतिभा जी प्रिंसिपल के रूप में एक यादगार कार्यकाल पूरा करके सेवानिवृत्त हुई थी।अपनी कर्मठता के कारण वह सभी की चहेती रही थी। अपने विद्यार्थियों के हितों की पूर्ति के लिए प्रतिभाजी बड़े से बड़े लक्ष्य अपने हाथ में ले लेती थीं और उन्हें पूरा भी करती थी। सेवानिवृत्ति के दिन तक प्रतिभा अत्यंत व्यस्त रहती थी। वह एक -एक मिनट का भरपूर इस्तेमाल करती थीं।
सेवानिवृत्ति के कुछ समय बाद ही उपजे कोरोना संकट ने प्रतिभा की ज़िन्दगी एकदम बदलकर रख दी। इकलौती बेटी लिपिका दूसरे शहर में थी लिपिका स्वयं भी एक बैंक में अधिकारी थी। लॉक डाउन के कारण सभ प्रकार की सामाजिक गतिविधियाँ समाप्त हो गयी थी। प्रतिभा के पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। उसकी बोरियत हद दर्जे तक बढ़ रही थी। वह धीरे -धीरे अवसाद की तरफ जाने लगी।
तब लिपिका ने एक दिन प्रतिभा को फ़ोन पर कहा कि "मम्मा आपको पेंटिंग करना पसंद था न।"
"हाँ बेटा लेकिन नौकरी और घर सम्हालते हुए कभी अपनी अभिरुचि -रूचि को वक़्त ही नहीं दे पायी।" प्रतिभा ने ठन्डे शब्दों में कहा।
"मम्मा अब तो आपके पास वक़्त ही वक़्त है। आप इस वक़्त का उपयोग पेंटिंग्स करने में क्यों नहीं करते ?" लिपिका ने कहा।
"अब बेटा इस उम्र में क्या पेंटिंग करूँगी। केनवास और रंगों को खरीदने में बेकार ही पैसे खर्च होंगे।" प्रतिभा ने कहा।
"मम्मा पैसे की चिंता क्यों करते हो ?आपको तो पेंशन मिल रही है। खुद का पैसा खुद की ख़्वाहिशों के लिए तो खर्च कर ही सकते हो।अपनी आत्मा की ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए। मैं आज ही आपके लिए केनवास और रंग आर्डर कर रही हूँ।" लिपिका ने कहा।
"नहीं बेटा रहने दे।" प्रतिभा ने कहा।
"नहीं अब आपकी एक नहीं सुनूँगी। चलो अब फ़ोन रखती हूँ। बॉस मुझे बुला रहे हैं।" लिपिका ने फ़ोन काट दिया था। फ़ोन काटने के बाद लिपिका ने तुरंत ही केनवास और रंग आर्डर कर दिए थे।
तीन दिन बाद जब रंग और केनवास प्रतिभा के घर पर पहुँचे तब उन्हें देखते ही प्रतिभा छोटे बच्चे जैसे ख़ुशी से उछल पड़ी। प्रतिभा ने उस दिन जो पेंटब्रश अपने हाथ में थामा वह फिर नहीं रुका।
लिपिका ने प्रतिभा की पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी आयोजित करवाई। प्रदर्शनी के उद्घाटन पर प्रतिभा ने घोषणा की कि "इन पेंटिंग्स से होने वाली आय वह दान करेगी।" उद्घाटन के बाद लिपिका वापस अपने शहर चली गयी थी।
कल प्रदर्शनी के समापन तक प्रतिभा की कई पेंटिंग्स बिक गयी थी और लगभग 10 लाख रूपये पेंटिग्स की बिक्री से प्रतिभा को मिले थे।
"प्रतिभा ज़रा डाइनिंग टेबल की तरफ आ जाओ। समोसे अउ जलेबी तुम्हें बुला रहे हैं।" संयम न आवाज़ लगाई। संयम की आवाज़ से प्रतिभा अपने अतीत से सलोने वर्तमान में लौट आयी थी।
"आ रही हूँ।" मुस्कुराती हुई प्रतिभा डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ चली थी।