अफसाना
अफसाना


कारवां पर ऊमा देवी(टुनटुन) का गाना चल रहा था "अफसाना लिख रही हूँ" ।
बेहद पसन्द है यह गीत मुझे। घर की सफाई में व्यस्त थी। बाहरी आँगन धोया, दिमाग में कितने ही ख्याल कौंध गए। बहुत वर्षों बाद अपने घर का काम स्वयं कर रही थी। नीचे बैठना तकलीफ़देह था। नज़रों के सामने घूम गईं दादी- नानी की तस्वीरें। कितने प्रेम से वह गृहस्थी का हर काम स्वयं निपटाती थीं। अन्त तक (105, 100 साल)तक, सीधा तना शरीर, पूर्ण चैतना। कितने निर्भर हो गए हम हर काम के लिए ?
अपना घर, अपने बच्चे, अनजान लोगों के पास छोड़, हम भाग रहे, न जाने कहाँ। शायद यह नाद हमें जगाने को है, हमारी जड़ों को पहचानने को है, सोच जगाने को है। वैसे भी, काम करवाकर क्या शुक्रगुजार हैं उनके जिनकी वजह से स्वतंत्रता से विचरण करते हैं ?
पैसे दे अहसान जतलाते हैं। आज मुझे ज़्यादा पानी उड़ेलने पर कोई रोक नहीं हुई, मैं कामवाली नहीं न! झाड़ू पोचा किया तो कुछ छूट भी गया पर थकान की वजह से अनदेखा कर गई। किसी ने टोका टाकी नहीं की। मैं कामवाली नहीं न! अलबत्ता, कई कोने, जो छुपे हुए थे, साफ हुए तो मन उल्लास से भर गया। आज मेरा घर मेरे हिसाब से साफ हुआ! मेरा घर! पुराने वक्त में हर गृहिणी घर में कूड़ा नहीं इकट्ठा होने देती थी। शायद इसीलिए शान्ति और सौहार्द बसते थे । आपाधापी में अशांति को वास मिला। शायद अब सोच बदले, रिश्तों को अहमियत मिले, बन्धन दृढ़ हों…..अफसाना न रहकर प्रेम की विजय हो, सहानुभूति उजागर हो और धरती से जुड़े रहने की सत्बुद्धी हो !