यादें
यादें


आज कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है। आज 19 तारीख है और यह तारीख आते ही मन बहुत अशान्त सा हो जाता है। बहुत नज़दीक थी मेरे वो, उसका तो नहीं मालूम, पर मुझे हमेशा उसका सानिध्य ऐसा लगता था जैसे माँ मिल गई हो। वैसे तो मुझसे छोटी थी, पर बातें माँ जैसी ही थीं।
हर काम से पहले सलाह देना, सही दिशा दिखाना, मैं तो आँख बंद कर उसकी हर बात मान जाती थी। पर वह नहीं न मानी
छोटी सी उम्र में कैंसर। ईश्वर की उस खास बन्दी को। यकीन करना बहुत मुश्किल।
ढाई साल के घनघोर ज़ुल्म, कष्टों भरा हर पल।.जाने क्यों।
ईश्वर का कैसा न्याय, समझी नहीं। पर हर पल याद ऐसी जैसे मेरे सामने हो।
जो मीठे पलों में भी एक खालीपन छोड़ देती हैं, दुखभरी यादें।