अफरा तफरी
अफरा तफरी


प्रिय डायरी
अभी कुछ ही दिन हुए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने कोरोना के प्रति जन जागरण हेतु राष्ट्र को संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि देश में अब संपूर्ण लॉकआउट होगा। रात बारह बजे से अमल में लाए जाने का निर्देश दिया। मुझे कुछ दवाइयां लेनी थीं, सो मैं भी घर से निकल पड़ी। बाहर निकल कर देखा हर दुकान पर चाहे वह किराने की हो, ब्रेड-अंडे की हो, दवाई की हो या आइसक्रीम की- लोगों की बस रेलमपेल थी। वैसे भी हमारे इलाके के दुकानदारों ने पिछले हफ्ते से ही बोरियों और कनस्तरों की बाड़ लगाकर एक तरह से "नो ऍन्ट्री" की तख्ती लगा दी थी। अब एक इकलौता दुकानदार और एक अदद सहायक कितनी और किस तरह भीड़ संभालते!
प्रधानमंत्री जी ने घंटे भर के भाषण के बाद गला तक ठीक से तर न किया होगा और यहां लोगों ने उनके 'भीड़ भाड़ न करें' के आग्रह में से " न " को हटाने मे ही अपनी बुद्धिमत्ता समझी आनन-फानन में दुकानें खाली होने लगीं। टोकरियां भर कर सब्ज़यां और दर्जनों की तादात में कोला-पेप्सी , चिप्स खरीदे जा रहे थे। शायद नए फ्रिज का भी ऑर्डर दे आए थे। कितना खाएगा कोई!!
मोदी जी ने यह भी कहा कि जीवनावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति नि
यमित रहेगी। पर यहां देखिए महीनों की दवाइयां इकट्ठी की जाने लगीं। दूध, दही इतनी मात्रा में कि घरों में नदियां बहने लगें। डायपर्स, शिशु आहार, मास्क वगैरह फिर भी समझे जा सकते हैं यहां तो विटामिन की गोलियां भी थोक में ली जा रही थीं। लगभग हर 'ए टी ऍम' मशीन को उलीच गया था। अब तक करीब हर छोटे-बड़े दुकानदार ने कई वस्तुओं के ख़त्म होने की घोषणा कर दी थी। लोग दुकानदारों की ज़यादा सामान भर कर नहीं रखने, लोगों की समस्याओं के प्रति जागरुक न रहने आदि गहन विषयों पर चर्चा करते हुए घरों की तरफ़ हो लिए। एक क्षणांश को भी किसी ने नहीं सोचा उन दुकानदारों या उनके घरों के बारे में, उन हज़ारों लाखों बे घरों के बारे में ना ही झुग्गी झोपडियों में रहने वालों के बारे में। सब लगे हुए थे कोरोना की विभीषणता पर ज़ोर ज़ोर से बहस करने में। इसकी आक्रामकता पर, इस विलक्षण बीमारी पर (अधूरा) ज्ञान झाड़ते हुए, बार बार प्रधानमंत्रीजी के भाषण का अहवाल देते हुए लौट रहे थे अपने घरों को।
प्रधानमंत्री ने ये भी तो कहा था कि हमें एक दूसरे से दूरी रखनी है, भीड़ भाड़ को बढ़ावा नहीं देना है, हर हाल में मास्क पहने रहना है, अधूरी जानकारी नहीं बांटनी है !