अनु भाभी
अनु भाभी
"अनु, हमेशा के लिए अरुण का घर छोड़कर चली गई। "श्रेया जैसे ही अपने ऑफिस से लौटी, उसकी मम्मी ने उसे बताया।
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"अच्छा हुआ, आखिर भाभी को उस नारकीय जीवन से मुक्ति मिलेगी । मम्मी ज़रा एक कप चाय तो बना दो। " श्रेया ने सोफे पर बैठते हुए कहा।
श्रेया आनन्दिता भाभी अर्थात अनु भाभी के बारे में सोचने लगी। अरुण भैया उसकी बुआ जी के बेटे और अनु भाभी उनकी पत्नी। जब अरुण भैया की शादी तय हुई थी, तब श्रेया को बड़ा आश्चर्य हुआ था। अरुण भैया की दिमागी हालत ऐसी नहीं थी कि वो शादी की ज़िम्मेदारी को उठा सकें।
उसने अपनी बुआ से पूछा भी था कि, "क्या लड़की वालों को पता है भैया की दिमागी हालत ठीक नहीं है ?"
तब बुआजी ने उसकी तरफ जलती आँखों से देखते हुए बोला था, " सब बता दिया है। लेकिन उनका कहना है डॉक्टर तो ऐसे ही बोलते हैं। बचपना है अभी, शादी होते ही जब जिम्मेदारी बढ़ेगी तब सब ठीक हो जाएगा। "
श्रेया कुछ और बोलती, उसकी मम्मी ने उसे आँखों ही आँखों में चुप रहने का इशारा कर दिया।श्रेया भी न चाहते हुए भी चुप हो गयी। क्यूंकि वह जानती है उसके कुछ भी कहने पर बुआ उसकी मम्मी को ही ताना देगी," भाभी ने बेटी को कैसे संस्कार दिए हैं ?कैंची की तरह जुबान चलाने वाली लड़की से कौन शादी करेगा ?"
श्रेया कई बार सोचती है, संस्कार का तो अर्थ ही है समझ बूझकर कार्य करना। लेकिन जब भी लड़की अपनी समझ का उपयोग कर कोई बात कहना चाहती है तो, उसे चुप क्यों करा दिया जाता है। ज्ञान के लिए सरस्वती की पूजा करने वाले लोग बुद्धि का इस्तेमाल करने वाली लड़कियों को क्यों अस्वीकार करते हैं।
खैर अरुण भैया की शादी बड़ी धूमधाम से हुई। श्रेया ने शादी में पहली बार अनु भाभी को देखा था। भाभी के चेहरे से नज़र ही नहीं हटा पायी थी। शादी के बाद बुआ के घर आने जाने से श्रेया ने जाना कि अनु भाभी खूबसूरत चेहरे के साथ ही खूबसूरत दिल की भी मालकिन है। भाभी ने उसे अपने कई सर्टिफिकेट्स भी दिखाए, जिससे उसने जाना की भाभी पढ़ाई के साथ साथ दूसरी कई गतिविधियों में भी अव्वल रही हैं।
धीरे धीरे श्रेया और अनु भाभी दांत काटी रोटी जैसे हो गए। मुस्कान के साथ दोनों एक दूसरे के दर्द के भी साझेदार हो गए। अरुण भैया सही मायने में कभी भाभी के जीवन साथी नहीं बन पाए। एक केवल बिस्तर ही था जो उन्होंने भाभी के साथ साझा किया था। दिमागी हालत सही नहीं होने पर भी भैया जैसे मर्ज़ी चाहे वैसे भाभी को नोंचते थे।
तब ही श्रेया ने अनु भाभी से पूछा था कि वो अरुण भैया से शादी के लिए क्यों तैयार हो गई ? अनु भाभी ने उसे बताया था कि शादी से पहले उन्हें तथा उनके घरवालों को अरुण भैया की दिमागी हालत के बारे में नहीं बताया गया था। वैसे भी इतने बड़े घर से रिश्ते की बात सोचकर उनके घरवालों ने ज्यादा खोजबीन भी नहीं की थी। भाभी को कई बार खटका भी उनके घर तथा बुआ के घर की स्थितियों में जमीन आसमान का अंतर है। तब उनके मम्मी पापा का मानना था कि उनकी अच्छी किस्मत के कारण इतना अच्छा घर वर मिला है। उड़ती उड़ती भैया की दिमागी हालत के बारे में भी खबरें सुनी थी। लेकिन तब लगा था कि उनका अच्छे घर में रिश्ता न हो पाए। इसलिए लोग ऐसी अफवाहें फैला रहे हैं।
हम इंसान कई बार कबूतर के जैसे अपनी आँखें बंद करके मान लेते हैं कि बिल्ली जैसा खतरा सामने नहीं है। आँखें बंद करने से खतरा दिखना भले ही बंद हो जाए, लेकिन टलता नहीं है। ऐसा ही कुछ अनु भाभी के साथ हुआ।
बिस्तर की साझेदारी ने भाभी को मां भी बना दिया। लेकिन भैया तो पिता बनने की जिम्मेदारी उठाने लायक थे ही नहीं। भाभी की ऐसी हालत में भी भैया को भाभी पर ज़रा भी प्यार और तरस नहीं आया, भैया को तो केवल अपनी भूख की ही पड़ी रहती थी और भाभी का एक दिन गर्भपात हो गया।लेकिन आज सोचती हूँ अच्छा ही हुआ, नहीं तो भाभी के पैर की बेड़ियाँ और भी मजबूत हो जाती। अपने बच्चे के कारण शायद भाभी कभी अरूण भैया को छोड़ने का फैसला नहीं ले पाती। हो सकता है लोग मुझे निर्दयी माने, लेकिन कई बार कुछ गलत होना भी हमारे भविष्य के लिए अच्छा ही होता है।
श्रेया ने कई बार भाभी को बोला कि भैया को तलाक दे दे। वैसे भी कानूनन इस शादी का कोई मतलब नहीं है। झूठ और फरेब से शुरू हुए इस रिश्ते के कोई मायने नहीं हैं। अपने पैरों पर खड़ा होकर फिर से एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत कर सकती हो। लेकिन भाभी को भी हर आम भारतीय लड़की जैसे यही सीख मिली थी, "पति का घर ही लड़की का असली घर है। लड़की पिता के घर से डोली में पति के घर जाती है तो, फिर अर्थी में ही लौटती है। "
अनु भाभी भी वापस अपने घर, मतलब अपने पिता के घर नहीं लौट सकती थी। अपना घर बनाने का वक़्त तो लड़कियों को मिलता ही कहाँ है ? श्रेया ने एक बार कहीं पढ़ा था कि बड़े आकार की मादा मकड़ी खुद अपना घर अर्थात जाल बनाती है। लेकिन मानवों में ही ऐसा नहीं होता है। अनु भाभी जैसी मेधावी लड़की को तिल तिल मरते देखना श्रेया के लिए कष्टकर था। वह भाभी के साथ थी, लेकिन भाभी कभी अपना निर्णय लेने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। लेकिन श्रेया की बुआ को न जाने कैसे भनक लग गयी, कि श्रेया अनु के लिए मजबूत ढाल बनकर खड़ी है। बुआ ने श्रेया की मम्मी को फ़ोन करके बोल दिया कि,"भाभी आपकी बेटे मेरे बेटे का घर तोडना चाहती है। "
श्रेया बुआ को बोलना चाहती थी कि "कौनसा घर" जो कभी बन ही नहीं सका। लेकिन श्रेया का बुआ के घर जाना बंद हो गया। अब तो मम्मी ही कभी कभी अनु भाभी के हालचाल बता देती थी या भाभी ही कभी चुपके से उसे फ़ोन कर लेती थी । भाभी अब और टूटते जा रही थी। अनु भाभी बोलती थी, श्रेया पहले तो तुम्हारे आ जाने से जीने की हिम्मत मिलती थी।
तब अनु भाभी ने ही एक बार उसे बताया कि बुआ फूफा अपनी वसीयत वरुण भैया के नाम कर रहे हैं, क्यूंकि अरुण भैया की दिमागी हालत सही नहीं है। भाभी ने अपने भविष्य के लिए नौकरी करने की इजाजत मांगी, लेकिन बुआ के अभिमान को इससे ठेस पहुँचती। भाभी ने अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बुआ से एक फ्लैट उनके नाम करने के लिए कहा। लेकिन बुआ ने भाभी को लालची और बेशरम न जाने क्या क्या कहा।
भाभी के दुखों का यही अंत नहीं था अपने पति का रोज़ वैवाहिक बलात्कार झेलने वाली भाभी से एक दिन अरुण भैया के चचेरे भाई ने जबरदस्ती करने की कोशिश की। भाभी की बात न सुनकर बुआ ने भाभी को ही चरित्रहीन बता दिया। भाभी के सब्र का बाँध टूट गया था।
भाभी ने तब श्रेया से मदद मांगी थी। भाभी अपने मम्मी पाप के घर जा नहीं सकती थी। श्रेया ने भाभी को नौकरी ढूंढ़ने में मदद की। श्रेया की एक दोस्त को अपने घर पेइंग गेस्ट रखना था। श्रेया ने भाभी के रहने का इंतज़ाम वहां करवा दिया। आज श्रेया खुद ही भाभी को वहां छोड़कर आयी है। कल श्रेया भाभी के साथ वकील के पास जाने वाली है ताकि भाभी भैया से तलाक लेकर आगे की ज़िन्दगी सुकून से जी सके।
