*अनपढ़*

*अनपढ़*

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बबन‌ जानता था कि उसकी माँ अनपढ़ अंगुठा छाप है। वह जो भी समझा देता है उसी को सही मान लेती है। माँ की बस एक ही मनोकामना थी कि वह अनपढ़ न रहे। बबन ने माँ की इस मनोकामना को पूरी करने की जी-जान से कोशिश भी की। आज बबन पढ़-लिख कर वाकायदा एक सफल डाक्टर बन गया था।

पिता तो बचपन में ही काल के मुख में चले गये थे, अतः माँ ही उसकी सबकुछ थी। अब उसके रिस्ते की बातें भी होने लगी। लेकिन माँ की सहमति से उसने अपनी पसंद की लड़की से शादी की। सब ठीक-ठाक चल रहा था पर, कभी-कभी उसकी पत्नी उसकी मांँ के अनपढ़ होने पर ताने कस देती या उपहास करती तो वह ऐंठकर रह जाता।

बबन की माँ भी उसके तकलीफ़ को समझती थी पर,इतने उम्र में पढ़ाई भी क्या करती। एक दिन वह मंदिर गई थी तभी वहाँ बुजुर्गों को पढा़ने के लिए एक लड़की आई और प्रतिदिन एक घंटा पढ़ने का वायदा लेकर चली गई। अब बबन की माँ रोज मंदिर आकर पढ़ने लगी। बबन की सात साल की बिटिया से वह अंग्रेजी भी सीखती। धीरे-धीरे अपनी लगन और मेहनत से वह धड़ल्ले से हिंदी अंग्रेजी पढ़ने लगी। जो समझ। में नहीं आता उसे अपनी पोती से समझ लेती।

एक दिन उसकी बहू ने एक कागज लाकर उसके सामने रखा और अंगुठा लगाने को कहा उसने पूछा,'ये क्या है बहू?'। बहू ने कहा,'कुछ नहीं माजी आपके बेटे एक किलिनिक आपके नाम पर लेना चाहते हैं उसी का पेपर है। आप पढ़ी-लिखी होतीं तो खुद समझतीं'।

  बबन किसी काम से बाहर गया था उसे मंदिर में पढ़ाने बाली बिटिया की बात याद आगई कि किसी को भी किसी कागज़ पर बिना पढ़े न हस्ताक्षर करना चाहिए और न अगुंठा ही लगाना चाहिए। बबन की माँ ने बहू से कहा ,'बहू यहीं रखदो नहा-धोकर पूजा करने के बाद अंगुठा लगा दुँगी। 'बहू जब चली गई तो बबन की माँ ने कागज़ पढ़ा और बहू की चालाकी से हत्प्रभ रह गयीं उसमें लिखा था- मैं बबन की माँ अपनी मर्जी से इस घर को बहू के नाम कर रही हूं। आज के बाद इस घर पर मेरा कोई अधिकार नहीं होगा। और मैं स्वेच्छा से वृद्धाश्रम चली जाउंगी।

बबन की माँ ने देखा कि बबन घर आ गया है तो उसने बहू -बेटे को बुलाया और बबन को दूसरे घर की सलाह दी जहाँ वह अपनी पत्नी, बेटी के साथ रह सके। बबन कुछ समझ नहीं पा रहा था कि माँ ऐसा क्यों कह रही है तभी माँ ने बबन की ओर कागज बढ़ा दिया। अब बबन को समझ में सारी बात आगई वह पत्नी पर गुस्सा होने लगा। बबन की पत्नी सोंच में थी कि उसका भेद खूला कैसे?

  तभी बबन की माँ ने कहा,' बहू मैं इसी घर को वृद्धाश्रम पाठशाला में तब्दील कर दुँगी जहां पढ़-लिख कर वृद्ध अपने हक को समझेंगे।

तुम लोग अपना ठिकाना कहीं और बना लो।


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