Sangeeta Aggarwal

Tragedy Inspirational

3.0  

Sangeeta Aggarwal

Tragedy Inspirational

अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता

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" तुमने ऐसा क्यों किया अभिनव आखिर क्यों हमारी हंसती खेलती जिंदगी को एक पल में वीरान कर तुम तो चले गए पर मेरा क्या मैं तो तुम्हारी तरह कायर भी नही जो अपनी जिम्मेदारी से भाग आत्महत्या का रास्ता अपना लूं!" कनिका बस में बैठी सोच रही थी उसकी आंख में आंसू आ गए।

" आप ठीक तो है ना !" उसकी आंख में आंसू देख बराबर की सीट पर बैठे एक किन्नर ने बहुत प्यार से उससे पूछा।

जाने उस किन्नर की आवाज में ऐसी क्या कशिश थी कि कनिका उसकी तरफ देखने को मजबूर हो गई।

" मैं ठीक हूं !" नम आंखों से वो बोली इतने ही उसका स्टॉप आ गया और वो उतर गई।

कहानी को आगे बढ़ाने से पहले आपको कनिका की जिंदगी के बारे में कुछ बताती हूं। कनिका एक अनाथ लड़की जो अनाथाश्रम में पली बढ़ी। फिर उसे अभिनव मिला पहले दोस्ती फिर प्यार हुआ और अनाथ कनिका का भी परिवार शुरू हुआ। लेकिन रुकिए रुकिए जिंदगी इतनी जल्दी सही हो जाए ये तो फेरी टेल में ही होता है हकीकत में कहां । अनाथ लड़की को अपनाने से अभिनव के माता पिता ने इंकार कर दिया। दोनो ने अपनी गृहस्थी अलग बसा ली। कहने को सब ठीक ही चल रहा था दोनो नौकरी करते थे तो कमी कुछ थी नही। पर असली परीक्षा शुरू हुई तब जब कनिका के पैर भारी हुए। डॉक्टर ने बेड रेस्ट बताया तो मजबूरी में उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। फिर भी शायद सब सही चलता रहता अगर ये कोरोना ना आता। लॉकडाउन में अभिनव की नौकरी चली गई। इधर वो एक बच्चे का पिता भी बन गया तो जिम्मेदारियां बढ़ गई। पहले जमा पूंजी, फिर उधार लेकर काम चलता रहा। 

पर कब तक ...एक दिन उधार मिलना भी बंद हो गया। अभिनव जैसा नौजवान जो प्यार की लंबी लंबी बातें करता था ऐसी परिस्थिति को झेल ना पाया और नींद की गोली खा आत्महत्या कर ली। कनिका के लिए ये आघात बहुत बड़ा था। गोद में दो महीने का बच्चा और पति बीच राह में साथ छोड़ गया। वो मासूम कैसे झेलती ये सब वो अवसाद में जाने लगी। तब उसकी सहेली ने उसे नौकरी करने की सलाह दी क्योंकि जीवन को आगे बढ़ाने को पैसे तो चाहिए ना। बच्चे को दिन में उसकी सहेली ने रखने का आश्वासन दिया।

आज कनिका इंटरव्यू देकर आ रही है तभी बस में बैठे वो अभिनव के बारे में सोच दुखी हो गई।

कनिका रोज उस बस से आती जाती तो अक्सर उसकी उस किन्नर रीमा से मुलाकात होने लगी मुलाकात दोस्ती में बदली तो दोनो के दिल की बातें एक दूसरे को पता लग गई। 

" देखो कनिका जीवन बहुत बड़ा है तुम्हे अपने बारे में कोई तो फैसला करना पड़ेगा !" रीमा अक्सर उसे समझाती।

" रीमा मैं सिर्फ अपने बच्चे के लिए जी रही हूं बाकी मुझे खुद के लिए किसी चीज की चाह नही !" कनिका दुखी हो बोलती।

वक्त का पहिया अपनी गति से चलने लगा जैसे जैसे कनिका का बच्चा बड़ा हो रहा था उसकी और रीमा की दोस्ती मजबूत हो रही थी क्योंकि कनिका का ऑफिस में भी कोई दोस्त नहीं था पुरुष सहकर्मी उसमे एक औरत तलाशते थे और महिला सहकर्मी उसको पसंद नही करती थी। 

" कनिका क्या हुआ ?" आज कनिका जैसे ही बस में बैठी उसका गुस्से में तमतमाया चेहरा देख रीमा ने पूछा।

" कुछ नही !" कनिका ने टालना चाहा।

" देखो कनिका तुम्हारी मेरी दोस्ती अलग है तुम मुझसे हर बात कह सकती हो और यकीन मानो मेरी दोस्ती तुम्हे कभी निराश नहीं करेगी।" रीमा ने उसके हाथ पर हाथ रख बोला।

" रीमा एक अकेली औरत समाज के ठेकेदारों के लिए अपनी संपत्ति क्यों होती है क्यों एक औरत सम्मान से अपना और अपने बच्चे का पेट नही भर सकती?" कनिका ने गुस्से और दुख से कहा।।

" हम्म यानी ऑफिस में तुम्हारे साथ किसी ने बदतमीजी की है। तुम्हारा स्टॉप आने वाला है पास में एक होटल है क्या मेरे साथ वहां चलोगी तुमसे कुछ बात करनी है !" रीमा कुछ सोच कर बोली।

" हम्म!" कनिका ने सिर हिला दिया।

" देखो कनिका तुम जिस परिस्थिति में हो मैं समझ रही हूं अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं या तो सब बर्दाश्त करो या दूसरा घर बसा लो !" होटल की एक कोने की टेबल पर बैठी रीमा बोली।

" रीमा मुझे दोनो रास्ते मंजूर नही सब बर्दाश्त कर मैं अपने अंदर की औरत को पल पल जख्मी नही कर सकती। रही दूसरी शादी की बात तो जिससे प्यार किया वो ही कायर बन मुझे बीच रास्ते छोड़ गया तो किसी और पर क्या भरोसा करूं मैं!" कनिका बोली।

" मुझसे शादी करोगी ?" अचानक रीमा बोली।

" क्या बोल रहे हो तुम पागल हो क्या भला ऐसा भी होता है तुम मेरी मार्गदर्शक हो मेरी वेलविशर!" कनिका हैरानी से बोली।

" देखो कनिका अब यही मार्ग है इज्जत से जीने का। क्योंकि तुम्हे परिवार मिल सकता है पर तुम चाहती नही दूसरी शादी करना। मैं चाहती हूं पर मिल नही सकता। घर, परिवार ,बच्चे ये हमारा सपना होते जो कभी पूरा नहीं होते हैं। तुम्हारा मेरा रिश्ता कोई जिस्म की जरूरत का सौदा तो होगा नही बस दुनिया को दिखाने को हम शादी करेंगे वैसे तुम मुझे परिवार का सुख दोगी मैं तुम्हे सुरक्षा दूंगी।" रीमा ने समझाया ।

" पर ये समाज क्या स्वीकार करेगा इस रिश्ते को ?" कनिका असमंजस में बोली।

" निश्चय ही नही....हम इस समाज से दूर चले जायेंगे जहां हमे कोई नही जानता। मेरे पास काफी रुपए जेवर है मैं पुरुष बनकर रहूंगा वहां कुछ छोटा मोटा काम भी कर लूंगा तुम भी नौकरी करना तुम्हारी मांग में भरा मेरे नाम का सिंदूर तुम्हारा सुरक्षा चक्र होगा ....सोच लो तुम कोई जल्दी नहीं है मैं तुम्हारे फैसले का इंतजार करूंगी ये कोई जबरदस्ती का सौदा नहीं इसलिए सोच कर बताना !" रीमा वहां से उठते हुए बोली क्योंकि बहुत सी आंखे उनको देख रही थी इसलिए रीमा ने वहां से निकलने में भलाई समझी।

कनिका ने घर आकर बहुत सोचा । रीमा उसके लिए उसकी दोस्ती के लिए इतना कुछ कर रही बदले में चाह तो कुछ नही रही तो उसका भी कुछ फर्ज है रीमा का परिवार का सपना पूरा कर दे।

दो दिन वो सवालों जवाबों से जूझती रही तीसरे दिन उसने रीमा को फोन मिलाया।।

रात के अंधेरे में भगवान को साक्षी मान कनिका ने रीमा के नाम का सिंदूर भर लिया अपनी मांग में और अपना सब समेट अपने बच्चे को ले रीमा के साथ चल दी किसी अनजान छोटे शहर की तरफ एक अनोखा रिश्ता निभाने।


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