अनमोल रिश्ते
अनमोल रिश्ते
पूरे घर में आज धमाचौकड़ी मची थी भला हो भी क्यों न सबकी प्यारी सुनिधी की शादी जो थी।पुरे घर में हलचल आज थी जो घर कभी मायुसी में डुबा रहता था आज बड़े दिनों बाद खुशियों ने दस्तक दी थी।सुनिधी कमरें में बैठी थी यादों में खोई।
दुल्हे की सालियों .....जरा हमारी भी कुछ खातिरदारी करो।
अच्छा जनाब को खातिरदारी चाहिए.. सुनिधी ने अपनी सखियों के साथ रोहित की खिचाई कर रही थी।रोहित कब से उससे और उसकी सखियों को चिढ़ा रहा था ।
जब से बारात आई थी सुनिधी ने ध्यान दिया था रोहित उसके पीछे पीछे था।
चलो दी जयमाला डालो पहले आप... सुनिधी ने जयमाल अपनी चचेरी बहन जिसकी शादी थी उसके हाँथों में पकड़ा कर कहा।
अच्छा ...भाई जयमाला नहीं डालने देना देखता हूँ कैसे पहनाती है...रोहित की आवाज आई।
अरे भाई शादी करने आया हुँ..जयमाला क्यों न पहनुँ ...तू न पहनियों बेटा अपनी शादी में मुझे पहने दे.. मुहूर्त निकल जाएगी।सब ठहाका लगाकर हँस पड़े थे।
शादी के सारे रस्मों के बीच सुनिधी और रोहित कब एक अलग रिश्ते में बँध गयें उन्हें भी नहीं पता चला।आज वो रिश्ता शादी के बंधन में बधने को तैयार था।
सुनिधी... चल बेटा हल्दी की रस्म के लिए...माँ ने आवाज दी तो जैसे पुरानी यादों से बाहर निकली।
हाँ माँ ....माँ मुझे बहुत डर लग रहा पता नहीं मैं कैसे कर पाऊंगी सब...।
डरने की क्या बात बेटा शादी तो हर लड़की का सपना होता है कितने मनभावन रिश्ते जुड़ते हैं ।कुछ खट्टे कुछ मीठे बस हमें सभांल कर सजो कर चलना है।बेटा सास,ननद, देवर सब को तुम बस अपने प्यार की डोर से कसकर बाँध लेना।ननद तुम्हें प्यार देगी तुम्हें उसका दस गुना उसे देना पर अगर अपशब्द कहे तो मौन रहना। मुझे विश्वास से तुम हमेशा रिश्तों को संभाल कर रखोगी बेटा।
ये रस्में, रिवाज जो शादी के हैं वो हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं।हल्दी जब सबको लगाओ तो उनके रंग जल्दी नहीं उतरता रिश्तों को भी प्यार की हल्दी से रंगोगी तो जल्दी नहीं उतरेगी।जयमाल एक दुसरे आपस में बाँधना है एक नये डोर से।सिंदूर हमेशा के लिए रोहित तुम्हारा हो जाएगा।उसका परिवार अब तेरा परिवार होगा बेटा रिश्ते बहुत नाजुक होते है बिलकुल काँच की तरह।
ससुराल में तेरे जाने के बाद कयी बातें होगीं,कयी रस्में होगी बहुत से रिश्तेदार होगें बेटा ।जितनी मुँह उतनी बातें पर अच्छी बातें सुनना बस बाकी पर ध्यान न देना।
शादी के रस्मों को इन्जाय करो बेटा ससुराल में पहले कदम के बाद भी बहुत से रिवाज होगें जो तुम्हे निभाने होगें डर मत.. बस हँसी खुशी से हर रिश्तों को पकड़कर गाँठ बाँध लेना हमेशा के लिए न छोड़ने की।
माँ सब सामान या गहनों पर कुछ कहेंगे तो मैं कैसे सुन पाउंगी माँ.... आप ने पापा ने कितनी मुशकिल से सब जुटाया है सुनिधी की आँखे भरी थी..
कहने देना बेटा.....
सब कहते हैं...बस शांत रहना!धीरे धीरे सब चुप हो जाएगें।रिश्ते अगर संभालकर चलना है तो सबसे पहले अपने बात,व्यवहार पर हमें कंट्रोल रखना होता है बेटा ये मुँह से निकले शब्द ही हमें लोक व्यवहार से रहना सिखाते हैं।अगर अच्छे और मिठे शब्द हो तो लोग जुड़ते हैं अगर कड़वे और कटु हो तो लोग दुर हो जाते है।इसलिए लोक .व्यवहार के लिए बस अपने शब्दो को सोच समझ कर बोलना सब तुम्हे पसंद करेगें! है... न।
अरे माँ बेटी की बातें खत्म हो गई तो हल्दी की रस्में कर लें ..हाँ दीदी आई.....सुनिधी की माँ आँखें पोछते बोली।
चल बेटा...हल्दी कर लें।शाम को और भी रस्में करनी होगी फिर तुझे तैयार भी होना है।
शाम को दुल्हन के जोड़े में सुनिधी चाँद सी लग रही थी।माँ ने नजर उतारी एक और रस्म कन्यादान ...उसके बाद बेटी परायी हमेशा के लिए पर क्या बेटी कहने भर से परायी हो जाती है आसूं रूक नहीं पाये आज....
धीरे धीरे सारे रस्में निपट गई ....अब विदाई की बेला सुनिधी माँ को छोड़ ही नहीं रही थी ...माँ मैं अकेले कैसे करूंगी।
रस्में हैं निभानी तो पड़ती है बेटा ...आज से नयी जिंदगी की शुरुआत है । रिश्तों को गाँठ में हमेशा बाँध कर रखना।
सुनिधी गाड़ी में बैठे सोच रही थी हमारी संस्कृति में रस्में ,रिवाज,नेग से कितने रिश्ते अनमोल जुड़ते जाते हैं।कुछ खट्टी,कुछ मिठी यादों के साथ वो हमेशा साथ रहती है हमारे।
सचमुच इन्हीं रस्मों ने तो मुझे रोहित से मिलाया और फिर आज इनके परिवार के अनमोल बहुत सारे रिश्तों से जुड़ गयी मैं।वो तैयार थी ससुराल के रस्मों, रिवाजों और नेग पर उठते सवालों के लिए ।माँ की दी सिख से वो हर रिश्तों को मजबूती से गाँठ में बाँधने को तैयार थी अब।मायके के हर रिश्तों की महक,रस्मों में उसके साथ थी।आज भले ही वो पराई हो गई हो भला पराई दिल से हो सकती क्या नहीं बस ये तो एक रस्म है हमारी संस्कृति,संस्कार हैं।बेटीयाँ तो बसती हैं सदा उनके, रोम रोम में।