अंकुर

अंकुर

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दिनेश और गायत्री बहुत खुश थे। आज उनकी सोच वास्तविकता में बदल चुकी थी। अंकुर विशेष बच्चों के लिए एक ऐसा स्कूल था जहाँ वह स्वयं को इस समाज में स्थापित करने का हुनर सीख सकते थे। पर पति पत्नी के लिए उससे भी गर्व की बात थी कि इस स्कूल का उद्घाटन उनकी बेटी दिव्या करने वाली थी।


बीस साल पहले जब गायत्री ने दिनेश को खुशखबरी सुनाई कि वह माँ बनने वाली है तब वह खुशी से पागल हो उठा था। दोनों पति पत्नी ने आने वाली संतान को लेकर सपने बुनने शुरू कर दिए थे। दिनेश को लड़की की चाह थी। उसने पहले से ही दिव्या नाम सोंच लिया था। गायत्री चाहती थी कि जो भी हो स्वस्थ हो। दोनों पति पत्नी आने वाली संतान को दुनिया भर की खुशी देना चाहते थे। उनकी यह पहली संतान थी। इसलिए वह और अधिक उत्साहित थे।


गायत्री बैंक में अधिकारी थी। दिनेश सचिवालय में अधिकारी था। दोनों अपनी संतान की अच्छी परवरिश कर सकते थे।


इंतज़ार समाप्त हुआ। दिनेश की इच्छा पूरी हुई। दोनों ने खुशी खुशी दिव्या का स्वागत किया। लेकिन यह खुशी उन्हें अधिक दिनों तक रास नहीं आई। दिव्या में उन्हें कुछ असामान्य लक्षण दिखे। उन्होंने डॉक्टर को दिखाया। जो सच्चाई सामने आई उसकी कठोरता ने कई स्वप्न चकनाचूर कर दिए।


एक अंजाना शब्द डाउन सिंड्रोम उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। दिव्या सामान्य बच्चों की तरह नहीं थी। जिन चीज़ों को और बच्चे आसानी से सीख लेते थे। उसके लिए दिव्या को संघर्ष करना पड़ता था।


आरंभिक कुछ साल तो दोनों पति पत्नी के लिए सिर्फ यही सोचते हुए बीते की उन्होंने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया। फिर ईश्वर ने उनकी संतान के साथ ऐसा क्यों किया। आसपास के लोगों की अनावश्यक सहानुभूति उनकी पीड़ा को और बढ़ा देती थी।


पर फिर दोनों अपने इस दुख से बाहर निकले। उन्होंने इस बात की कोशिश करनी शुरू की कि दिव्या को जीवन संघर्ष के लिए तैयार किया जाए। इसी कोशिश में उनकी मुलाकात अंकुर अस्थाना से हुई। अंकुर डाउन सिंड्रोम तथा अन्य प्रकार की अक्षमताओं से ग्रसित विशेष बच्चों की शिक्षा का ही काम करता था। उसके कहने पर दिनेश और गायत्री ने दिव्या को उसके स्कूल भेजना शुरू कर दिया।


दिव्या ने जब से स्कूल जाना शुरू किया उसके भीतर कई बदलाव आए। वहाँ उसने बहुत कुछ सीखा। पति पत्नी जो अपनी बेटी की सीखने की क्षमता को लेकर दुखी थे उसकी वह प्रगति देख कर फूले नहीं समाते थे। दोनों धन्यवाद देने अंकुर के पास गए तो उसने समझाया।


"ये सही है कि दिव्या जैसे बच्चों को औरों की अपेक्षा सीखने में अधिक समय लगता है। पर यदि इन्हें विशेष प्रशिक्षक मिलें तो यह भी बहुत कुछ सीख सकते है। हमारे देश में इस विषय में जानकारी का आभाव होने के कारण माता पिता बच्चों को लेकर चिंतित रहते हैं। निराश हो जाते हैं।"


अंकुर ने उन्हें बताया कि दिव्या संगीत बजने पर एक लय में अपने शरीर को लहराती है। यदि उसे कोई अच्छा डांस टीचर मिले तो वह इस कला में अच्छी प्रगति कर सकती है। अंकुर के सुझाव पर दिव्या नीलांजना रे की डांसिंग अकादमी में जाने लगी। नीलांजना के सही प्रशिक्षण के कारण दिव्या भरतनाट्यम में पारंगत हो गई।


अपने पहले ही स्टेज शो में दिव्या ने ना सिर्फ लोगों का दिल जीता बल्कि उन अभिभावकों को भी आशा की किरण दिखाई जिनके बच्चे किसी भी प्रकार की अक्षमता से ग्रसित थे।


दिव्या के जीवन में जो सकारात्मक बदलाव आया था उसके लिए दिनेश और गायत्री अंकुर के प्रति कृतज्ञ थे। अंकुर ने उन्हें अपने सपने के बारे में बताया था। वह विशेष बच्चों के लिए विशेष स्कूल खोलने की चाह रखता था। उन लोगों ने उस सपने को सच करने में उसकी सहायता करने का वादा किया। किंतु अंकुर की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। तब दोनों ने तय किया कि वो उसके सपने को सच करेंगे।


उन्होंने स्कूल खोलने की जो भी प्रक्रियाएं ज़रूरी थीं पूरी कर लीं। स्कूल का नाम उन्होंने उस शख्स के नाम पर रखा जिसने उनकी बेटी के जीवन में आशा के बीज अंकुरित किए थे।


आज स्कूल का उद्घाटन था। उन लोगों ने बहुत से मेंहमानों को बुलाया था। अधिकांश वो अभिभावक थे जिनके बच्चे डाउन सिंड्रोम से ग्रसित थे।


जब दिव्या ने स्कूल का उद्घाटन किया तो तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल गूंज उठा।


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