अनाम रिश्ता !
अनाम रिश्ता !


वह ख़त अभी भी बंद लिफ़ाफ़े में अपनी आखि़री सांसें ले रहा है। लिफ़ाफे को मैं बार बार खोलता हूं, पत्र को एक सांस में पढ़ता हूं और...और..फिर उसे उसी तरह सहेज कर रख देता हूं क्योंकि वह पत्र किसी की अमानत है। किसी उस व्यक्ति की अमानत जो अब इस दुनियां में नहीं है।
उस दिन पत्नी के बहुत ज़िद करने पर मैनें उसे उस पत्र का राज़ बता ही दिया। पत्नी को उम्मीद नहीं थी जो राज़ मैनें उनसे शेयर किया था।
"कैसे साधिकार आप कह सकते हैं कि ..कि वह पत्र अतुल के लिए ही लिखा गया है?....आख़िर अतुल मेरी कोख से पैदा हुआ था। वह मुझसे हर बात शेयर करता रहता था। फिर अपने प्यार के बारे में वह क्यों नहीं बताया ?"पत्नी बोल उठीं। उनकी बात में संशय था और कदाचित उत्कंठा भी कि अतुल अपने साथ यह रहस्य भी समेट ले गया था ।
इंटर करने के लिए अतुल लखनऊ आया था। छोटे शहर से यकायक बड़े शहर में आना उसके लिए एक आश्चर्य और संघर्ष का हेतुक बन गया था। स्कूल में सब के सब 90प्रतिशत या उससे ऊपर लाने वाले सहपाठियों के बीच वह अपने को हीनभावना में पाता था। लेकिन एक्स्ट्रा कैरिकुलर एक्टीविटीज़ में उसकी मेधा तेज थी और वह शुरुआती दिनों में ही छा गया था। उस दिन डिबेट चलने वाला ही था जब वह उसके निकट आकर उसकी क्लासमेट मानसी बोली -
"डियर अतुल,क्या तुम कुछ टिप्स मुझे भी दे सकोगे ?"
अतुल इस अवसर के लिए तैयार नहीं था। हड़बडाहट में बोला -"श्योर...व्हाई नाट मानसी !इट इज़ माई प्लेज़र। "
और उसने यथासंभव मानसी की मदद कर दी। मानसी और अतुल की यह पहली अंतरंगता थी जो आगे के दिनों में बढ़ती चली गई।
मानसी के पिता पुलिस उपाधीक्षक थे और उसी शहर के दबंग पुलिस अधिकारी माने जाते थे। उसे छोड़ने रोज़ पुलिस की लालबत्ती गाड़ी आया करती थी। मानसी से दोस्ती करने को सभी लालायित रहते थे। लेकिन इन दोनों ने एक दूसरे में जाने क्या खूबी देखी कि इनकी निकटता बढ़ती चली जा रही थी।
एक दिन स्कूल के प्रेयर में बताया गया कि स्कूल की एक टीम श्रीलंका भेजी जानेवाली है जो वहां इंटरनेशनल डिबेट में हिस्सा लेगी। स्क्रीनिंग में मानसी और अतुल सहित चार और युवाओं का चयन हुआ। मानसी अकेली युवती थी। कोलकाता से फ्लाइट द्वारा वे श्रीलंका जब पहुंचे तो वहां की प्राकृतिक सुंदरता ने उन्हें मोह लिया। साथ गई शिक्षिका
अपना सारा ध्यान उस अकेली यु्वती पार्सिटिपेन्ट पर रखे हुए थीं जिस पर टीम के सभी युवाओं का ध्यान था। घूमने ,टहलने के क्रम में मानसी और अतुल के बीच निकटता बढ़ती चली गई। डिबेट वाले आयोजन ने स्कूल को तो विजय नहीं दिलाई लेकिन इन दो युवा हृदयों को मेड फ़ार ईच अदर बनने की नींव डाल दी थी।
भारत वापसी के कुछ ही महीनो बाद बोर्ड की परीक्षा सम्पन्न हुई और मानसी और अतुल दोनों को 98प्रतिशत अंक पाने में सफलता मिल गई। मानसी ने मेडिकल और अतुल ने डिफेंस को अपने कैरियर का फील्ड बनाया और उन्हें अपनी आगे की शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए अलग अलग शहरों में जाना पड़ा। एक सुंदर फूल जो अभी खिलने को था कि उसको विकसित होने में समय की बंदिशें लग गई।
चार साल तक उनको दूर दूर रहना पड़ा। अब मानसी को डाक्टर की उपाधि मिल चुकी थी और उधर अतुल सेना में कमीशन पि चुका था। अतुल की पहली पोस्टिंग लेह के दुर्गम इलाक़े में हुई। मानसी को अभी और पढ़ना था इसलिए वह उच्च शिक्षा लेने मुम्बई चली गई। दोनों का ज्यादातर फोन पर ही अब सम्पर्क हुआ करता था। दोनों ने अपनी निकटता और भावी योजनाओं को घरवालों को भनक तक नहीं लगने दी थी।
एक दिन अचानक एक ख़बर ने अतुल के परिजनों पर पहाड़ जैसा दुख दे दिया। लेह के सीमावर्ती इलाके में पाकिस्तान की ओर से हुई ताबड़तोड़ फायरिंग में लेफ्टिनेंट अतुल शहीद हो गये थे। मानसी इस दुर्घटना से अनभिज्ञ बनी रही। कौन उसको ख़बर देनेवाला था?
तिरंगे लिपटे शव पर दहाड़ मारकर अतुल की मां गिर पड़ीं। सिर्फ़ 22साल का ही तो था उनका लाडला। अब तो उसके अच्छे दिन आनेवाले थे। अब तो उसके सारे सपने पूरे होनेवाले थे। लोकल अख़बार उसकी शहादत के क़िस्से से भरे पड़े थे।
लगभग एक महीने बाद मिलट्री से अतुल के सामान में आया था एक लोहे का बाक्स। उसी बाक्स में सहेज कर रखा था यह लिफ़ाफा । लिफ़ाफा जो शायद अतुल ने खोला अवश्य होगा लेकिन उस पत्र का उत्तर दे नहीं सका था।
उस लिफ़ाफ़े को खोलकर आख़िर आज अतुल के उस अनाम रिश्ते को घरवालों की मुहर लग सकी जो अभी तक रहस्य बना हुआ था। बहू तो नहीं हां बिटिया बनाकर अतुल के परिजनों ने मानसी को अपना लिया है। मानसी कोशिश कर रही है कि अतुल का अक्स वह उसके परिजनों के बीच ढूंढ़ सके। एक अनाम रिश्ते को सुनाम दे सके।
क्या वह सफल हो पायेगी ?