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अकेलापन

अकेलापन

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अकेलापन कितना कचोटता है रमेश जी को अब समझ आ रहा था, जब सुषमा अपनी हर जिम्मेदारी पूरी कर, खुद को हर बंधन से आज़ाद कर गयी। उनकी आँखों में पूरा जीवन चलचित्र सा गुजरने लगा।

 

सुषमा और वो जब शादी के गठबंधन में बंधे, उस वक़्त सुषमा ने 12 वीं पास की थी और उन्होंने स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी। शादी तो हुई, पर वो अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहे और अल्हड़ उम्र की सुषमा को गृहस्थी का पाठ सिखाया जाने लगा। स्नातक की परीक्षा पास कर वो अब अपने कॅरिअर बनाने में जुट गए और सुषमा, रोहित की माँ बन गयी। वो सीढ़ी दर सीढ़ी कॅरिअर की ऊंचाई पर पहुँचने में व्यस्त थे और उधर सुषमा रमेश जी और अपनी गृहस्थी को संभालने में व्यस्त थी। फिर प्रबंधक की नौकरी की व्यस्त दिनचर्या ने उन्हें इतना व्यस्त कर दिया कि सुषमा की तरफ से उन्हें लगता था, वो घर में व्यस्त और खुश है। पर सुषमा को अंदर की अंदर उस दिन का इंतज़ार था, जब गृहस्थी के अलावा भी रमेश जी, दो पल सिर्फ उसकी खुशी के लिए उसके साथ रहें। लेकिन वो दिन आये, उसके पहले ही दिल में कसक लिए सुषमा अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चली गयी।

 

जब सुषमा को जलाया गया, तब चिता की लपटों को देख रमेश जी को अहसास हुआ उनकी दुनिय तो आग की लपटों में घिरी हुई है। उन्हें उसी पल से अकेलापन काटने को आने लगा, चिता की आग ठंडी होने पर वो घर आये और आँखे बंद कर लेट गए, लगातार अंदर से यही आवाज़ आ रही थी मैं यहाँ सबके साथ भी अकेला हूँ, तो वहां वो कितनी अकेली होगी? तभी सामने से बादलों की बनी दीवार के साइड से, सुषमा उन्हें मुस्कुराती हुई नज़र आई। वो जल्दी से उठे और झांक कर सुषमा की ओर देखने लगे। उन्हें अपनी और ताकता देख, सुषमा के चेहरे पर बाल सुलभ गुलाबी रंगत आकर बस गयी। उन्होंने सुषमा से कहा, " मैं समझ गया हूँ, तुमने कितना अकेलापन झेला है, मेरी व्यस्तताओं के कारण। अब मैं इस मुस्कान के साथ ही रहूँगा सदा, कहीं नही जाऊंगा। बस मैं और तुम और कोई जिम्मेदारी नहीं।"


सुषमा ने कहा, "मुझसे इतना प्यार था, तो कभी बताया क्यों नहीं, बता देते तो इस तरह मेरे पीछे तो नहीं आना पड़ता। और तुम्हारे प्यार का अहसास मुझे कुछ साल और वहीं रहने देता तुम्हारे साथ।" सुबह सबने देखा पत्नी के पीछे पीछे रमेश जी ने भी दुनियां से विदा ले ली थी।

 


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