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बोझ

बोझ

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रिसीवर नीचे रखते हुए धीरज ने पत्नी को आवाज़ लगायी- “रेखा जल्दी से तैयार हो जाओ।”

"कहा जाना है हमें इतनी तेज़ बारिश में" रेखा ने रसोईघर से बाहर आते हुए पूछा।

अरे तुम जल्दी तैयार हो जाओ, मैं रास्ते में सब बता दूंगा। 

रेखा ने जल्दी से चप्पल पैरों में पहनी, छतरी उठाई और बोली-  “चलो अगर इतनी जल्दी है तो मैं तैयार हूँ।” 

दोनों अब रास्ते पर छतरी के नीचे बारिश से बचने का प्रयास करते चल दिए। धीरज ने कहा- “रेखा करण का फ़ोन था, बहू बाथरूम में फिसल गयी है तो उसे चोट लग गयी है। हम उनके पास जा रहे है।”

“क्या?? पर आपने तो कहा था की अब हम उनके यहाँ नहीं जायेंगे कभी, क्योंकि उनके लिए हम मात्र बोझ है।”  रेखा ने पति को आश्चर्य से देखते हुए कहा।

“वो हमें बोझ समझते हैं लेकिन हम तो उन्हें अपने बच्चे ही समझते हैं। वो हमारी बीमारी में नहीं आते कोई बात नहीं, पर उन्हें आज हमारी जरुरत है इसलिए वहां जा रहा हूँ।”

पति के अहसास को समझ रेखा की ऑंखें भी बारिश का साथ देने लगी| और वो पति हाथ कस कर पकड़ सड़क पर तेज़ क़दमों से बढ़ चली।


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