संस्कारों की आहुति
संस्कारों की आहुति
'देखो पूजा अगर हमें साथ रहना है तो हमें घर छोड़कर चुपचाप निकल जाना ही होगा, हमारे घर वाले हमारे इस रिश्ते को स्वीकर नहीं करेंगे।' समीर ने पूजा को समझाते हुए कहा।
'नहीं समीर,' पूजा ने समीर का हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा, 'अगर मैं तुम्हारे साथ भाग गई, तो सारा समाज कहेगा मेरी माँ ने मुझे कैसे संस्कार दिए, जो मैं अपने घरवालों के सम्मान को धूल में मिलाकर भाग गई। मैं मेरी माँ कि शिक्षा की आहुति देकर उस पर अपने सपनों का महल नहीं खड़ा करुंगी। मैं तुम्हें इतना यकीन दिलाती हूँ कि अपने प्यार को भी मैं समाज के द्वारा स्वीकृति अवश्य दिलाउंगी, सिर्फ तुम्हारे घर दुल्हन बन कर आउंगी। तुम्हारा हर कदम पर साथ दूँगी, लेकिन सबसे भागकर नहीं ,सबके साथ रहकर।'
'हमारे प्यार को स्वीकृति मिल पाना इतना आसान नहीं,' समीर ने एकबार फिर पूजा को समझाया। 'हमारे परिवारों के बीच में पूर्व और पश्चिम सा अंतर है।'
'जो आसानी से हासिल हो जाए, उसमें क्या मज़ा?' पूजा ने हँसते हुए कहा।
दोनों की आँखों में प्यार भरे सपने हिलोरे ले रहे थे।