Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Fantasy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय- पार्ट 13

अकाय- पार्ट 13

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अगली सुबह जब सत्यम राधा के घर पहुँचा तो वह सीधे घर के पिछवाड़े में बंधी गाय के पास गया। यमदूत की सूचना के अनुसार इस गाय के पेट मे पल रही बछिया ही उसके माँ की आत्मा का नया पार्थिव खोल है। इस रहस्योदघाटन के चलते उसके मन मे उस गाय के प्रति एक विशेष लगाव उतपन्न हो गया है। यह भूरे रंग की खूबसूरत स्वस्थ देसी नस्ल की गाय है। माथे पर लग रहा था किसी ने बड़ा सा सफेद तिलक लगा दिया हो । वह उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा है। गाय एकदम पहिलवंठ है इसके चलते उसकी खूबसूरती निखार पर है। गाय अभी गोबर पर बैठी और गोबर मुत में सनी पूँछ से खुद को पंखा झल रही थी। इससे उसका पीठ गंदा हो रहा था। सत्यम ने उसके चेहरे और पीठ को सहलाया। इतने में उसकी गाय नानी उठ खड़ी हो गयी। सत्यम ने तुरंत वहाँ से गोबर हटा दिया एक कपड़ा गिला करके उसके शरीर को साफ किया । उसके स्पर्श को गाय महसूस कर रही थी लेकिन उसको देख नहीं पा रही थी। इसके चलते वह चारो तरफ खोजी नजर घुमा रही थी। सत्यम भी लाचार था, अपनी गाय नानी को यह नहीं बता सकता था कि आत्मा के रिश्ते से आप मेरी सगी माँ की माँ बनने वाली हो।

तभी उसने देखा कि एक पंद्रह साल का लड़का आँख मलते गोशाला में आया और उसको देखते ही गाय बोलने लगी। उसने गाय के तरफ हाथ से इशारा किया और बोला "ठहरो आता हूँ " । गाय चुप हो गई , मानो वह समझ गयी कि उसने क्या कहा है। थोड़ी देर में वह लड़का एक बाल्टी पानी लेकर गाय के सामने रख दिया और गाय नानी ने एक दम में बाल्टी खाली कर दिया।

सत्यम ने कभी गाय को इतने करीब से नहीं देखा था क्योंकि उसके घर मे कभी गाय पाली ही नहीं गयी। वह तो इतना ही जनता था कि घर घर दूध पहुँचाने वाले यादव जी के बोलने से दूध गाय का या भैंस का हो जाता था। जब उनसे कोई पूछता की गाय का दूध मिलेगा वो तपाक से कहते गाय का ही है। जिसने नहीं पूछा उसके लिए कोई बात नहीं। किसी ने कहा कि मुझे भैंस का दूध चाहिए दही बनाना है। उसी डब्बे के दूध को भैंस का बता देते । खरीदने वाले के जेब और संतुष्टि में अंतर आ जाता लेकिन यादव जी की जुबान तय करती थी कि डब्बे से निकलने वाला दूध गाय का है कि भैंस का। वह कहते थे थोड़ा ज्यादा पानी मिला दो तो गाय का दूध और कम पानी मिलाने पर भैंस का दूध , बाकी सब तो एक ही है।

दरअसल राधा की माँ को बीपी और शुगर की बीमारी बढ़ गई थी। किसी ने सलाह दिया था कि रोज गाय के शरीर पर हाथ फेरने से और गाय का शुद्ध दूध एवं घी खाने से लाभ मिलेगा। इसके चलते राधा के घर यह गाय आयी थी । गाय का सानिध्य तो मिल रहा था थोड़े दिन बाद दूध-घी भी मिलने लगेगा।

गाय की देख रेख और घरेलू काम के लिए गाँव के ही एक गरीब के लड़के रामु को नौकर रख लिया था। यह उनके गाँव के पुश्तैनी बनिहार का लड़का था। इसके चलते बहुत जल्द इस परिवार में घुल मिल गया। रामु स्वभाव से कामचोर था ,जितना कम से कम काम करके काम चल जाए उतना ही करता था। रामु के दिनचार्य में गाय की देखभाल, झाड़ू पोछा और रात को दादी का हाथ पैर दबाना शामिल था। बाजार से कभी कभार कुछ सामान ला देना।

सत्यम रामु के शरीर मे प्रवेश कर गया और गाय नानी की सेवा करने लगा। वह सब काम फटाफट निबटा देता किसी प्रकार की आनाकानी नहीं करता । सोते वक्त सत्यम रामु के शरीर से बाहर निकल जाता । रामु के व्यवहार में आए इस बदलाव से घर मे सभी खुश थे।

रामु के रूप में सत्यम राधा का छोटा मोटा टहल बजा देता था। इस प्रकार अब अकाय की दिनचर्या एकदम बदल गयी थी।वह राधा के करीब भी था और अपनी माँ की माँ का भी सेवा कर रहा था।

घर मे राधा की शादी की चर्चा शुरू हो गयी थी। अलग अलग संपर्कों से आए रिश्ते पर विचार विमर्श चल रहा था लेकिन उसमे राधा कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही थी। उसकी दादी ने उसको प्यार से पूछा बेटी कोई लड़का तुमको पसंद आया हो तो मुझे बता देना मैं उससे ही तेरी शादी करा दूँगी। उसने उदास स्वर में कहा "दादी मुझे जो पसंद था वो तो दुनिया से चला गया ।अब मनभावन शादी तो होने से रहा , शरीर की शादी किसी से भी हो क्या अंतर पड़ने वाला है!"

दादी ने प्यार से उसका माथा सहलाते हुए कहा किसी के चले जाने से जिंदा लोगों की जिंदगी ठहरती तो नहीं है। तुमको उदास देखकर सत्यम की आत्मा भी उदास हो जाती होगी। आखिर तुमको एक निर्णय तो लेना ही पड़ेगा।

राधा - दादी, आपलोग जिससे चाहो मेरी शादी कर देना लेकिन उसके पहले मुझे अपने पैर पर खड़ा हो जाने दो। भाई का इंजीनिरिंग का पढ़ाई अभी दो साल रह गया है, मेरा भी अब बीकॉम का एग्जाम खत्म हो जाएगा। उसके बाद बैंक में नौकरी लग जाएगी ऐसा मुझे यकीन है। लेकिन उसके लिए आपलोग को मुझे दो साल का समय देना पड़ेगा। फिर आप जहाँ बोलोगी जिससे बोलोगी शादी कर लूँगी।फिलहाल यह कार्यक्रम रोकवा दो।

दादी ने कहा ठीक है मैं तेरे बाप- मतारी से बात कर लूँगी । तुम इसका बोझ अपने दिल पर मत रख । फिर वहीं पर दादी से चिपक कर वह सो गई।

सत्यम को अपने मरने का दुःख उस दिन उतना नहीं हुआ था जितना आज राधा की बात सुनकर हुआ। यह भी क्या दुविधा है जब वह जिंदा था तो इतना बेझिझक उसके प्यार को उसके सामने भी नहीं स्वीकारती थी जितना बेधड़क आज वह अपनी दादी के सामने स्वीकार कर रही है। उसको यदि यह ज्ञात हो जाए कि मैं उसकी बात सुन रहा हूँ तो वह शर्म से लाल हो जाएगी।

घर में गाय के आने से राधा की माँ की तबियत में हल्का सुधार हो रहा था। रामु ने सभी घरेलू काम का बोझ उठा लिया था। वह अब हमेशा खुश रहता और सबका कहना मानता और सबलोग उसको प्यार करने लगे। अब वह मात्र घरेलू नौकर नहीं बल्की पुरे घर की जरूरत बन गया था।

अब सत्यम यथासम्भव गाय की सेवा करता और बड़ी उत्सुकता से अपनी माँ के जन्म का इंतजार कर रहा था।दादी माँ रामु को बताती की गाभिन गाय के देखरेख में कैसी सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उम्मीद से रहने वाली बहु और गाय का एकसमान ख्याल रखना चाहिए। दोनो को पौष्टिक और रुचिकर आहार मिलना चाहिए। फिर वो जो भी बताती उस चीज का जुगाड़ रामु तत्परता से करता । गाय भी एकदम सीधी सादी थी। घर के सभी लोगों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार था जब गाय बच्चा देगी। "गर्भ में पलता बच्चा और खेत में पक रहा फसल जबतक आँगन में नहीं दिखे तबतक अंदेशा बना रहता है।" यह बात दादी बराबर कहती और यह भी कहती कि कभी कभी अपनी नजर भी लग जाती है। वो रामु को तब डांट देती जब वह गाय की खूबसूरती का बखान करने लगता।

वक्त अपनी गति से चलायमान था लेकिन सत्यम की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। बाकी लोगों के लिए तो बस गाय बच्चा देगी और लोगों को घर का दूध मिलने लगेगा । लेकिन सत्यम को तो अपनी माँ से मिलने का इंतजार था। दूसरी तरफ घरेलू नौकर के रूप में उसको राधा के करीब रहने का भी मौका मिल रहा था। उससे वह प्रेमालाप तो नहीं कर सकता था लेकिन उसके करीब रहकर, उसकी मदद करके उसको अच्छा लगता था। अब तो वह चाय भी बनाकर पिला देता था ।

इसी बीच चारदीवारी से सटा एक खाली प्लाट था उसको राधा के पापा ने हाल फिलहाल में खरीदकर अपने बॉउंड्री में मिला लिया था। जबसे यह जमीन उन्होंने खरीदा उनके घर की शुख शांति पर जैसे ग्रहण लगने लगा। राधा की माँ की सेहत तेजी से गिरने लगी। पापा के कारोबार में भी घटा होने लगा। डॉक्टर ने बहुत सारा जाँच कराया लेकिन रिपोर्ट एकदम नार्मल निकला। इसके चलते परिवार की चिंता और बढ़ गई।

राधा की माँ को रात में झन झन की आवाज सुनाई देती। जब उस जगह पर वो पहुँचती तो वो आवाज कहीं और से आने लगती। यह आवाज केवल उनको ही सुनाई पड़ती। ऐसा लगता जैसे पीतल का घड़ा लुढ़क रहा हो । यह बात उन्होंने केवल अपने पति को बताया क्योंकि कोई दूसरा आदमी उनको पागल कह देता ।

राधा के पाप ने इस बात की चर्चा अपने मित्रों से किया। उनके किसी मित्र ने सलाह दिया कि आप पीर मकदूम गाजी से मिलो वह कुछ उपाय कर देंगे । मकदूम गाजी का स्थान बहुत दूर था और राधा की माँ लंबी यात्रा करने की स्थिति में नहीं थी। उनका ब्लाउज़ लेकर वो गाजी पीर के पास गए। उसने बताया कि उस औरत पर शैतान का साया है। उसने एक ताबीज बनाकर दिया। लेकिन वो एकदम बेअसर निकला।उनकी हालत और खराब होने लगी।

सत्यम को इन सब बातों का संज्ञान नहीं हुआ क्योंकि वह खुद को अपनी गाय नानी और दादी की सेवा में समर्पित कर चुका था। वह जब कभी राधा की माँ से तबियत के बारे में पूछता तो बात को वो टाल जाती थी।

दिन बीतता गया और राधा की माँ की सेहत गिरती गयी। जब दावा का असर नहीं होता है तो दुआ पर भरोसा बढ़ना स्वभाविक है। एक रोज किसी ने राधा के पापा को सलाह दिया कि कभी कभी जगह भी अशुद्ध होता है उसका भी असर वहाँ रहने वालों पर पड़ता है। तुम रामपुर के चिमटा बाबा को मिलो। संभवतः वहाँ तुम्हारी समस्या का समाधान मिल जाए। उनके पास तुम अपने घर की मिट्टी लेकर जाना। वो मिट्टी से ही देखते हैं। जब आदमी को परेशानी होती है तो हर उपाय अजमाता है। यहाँ तक की थाली गुम हो जाए तो घड़े में भी हाथ डालकर तस्सली करता है।

दुष्यंत बाबू यानी राधा के पापा नियत समय पर अपने मित्र के साथ चिमटा बाबा के आश्रम में पहुँच गए । वहाँ पा अच्छी खासी भीड़ थी ।जब उनकी बारी आई तो चिमटा बाबा ने मिट्टी हाथ मे लेते ही कहा तुमने हाल फिलहाल में कोई जमीन खरीदा है। भारी समस्या उसी वक्त से शुरू हुई है। उस जमीन के अंदर बहुत कुछ है। तुम्हारी पत्नी को रात में झन झन की आवाज सुनाई पड़ती है। उसको सपने में पांच फन का सांप दिखाई देता है !

दुष्यंत बाबू - सब बात सत्य है । लेकिन हमलोगों को कुछ समझ मे नहीं आ रहा है क्या करें, कहाँ जाएं । डॉक्टरी जाँच में कोई बीमारी नहीं निकल रहा है और उसका स्वास्थ गिरता जा रहा है।

चिमटा बाबा - आपलोग फिलहाल बाहर जाकर आश्रम में आराम कीजिए जब यह बैठक खत्म हो जाएगी तो आपसे इत्मीनान से मिलूँगा । समस्या तो है लेकिन समाधान निकल जाएगा । यह कोई साधारण झाड़ फूंक और दुआ ताबीज से शांत होने वाली चीज नहीं है।

दुष्यंत बाबू और उनके मित्र आश्रम के प्रांगण में एक बरगद के पेड़ नीचे चबूतरे पर बैठकर इंतजार करने लगे।

क्रमशः ----------------


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