Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Fantasy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय -पार्ट 01

अकाय -पार्ट 01

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सत्यम ने एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में आज अपना नाम दर्ज करा दिया ।उसके मन में एक संतोष का भाव उत्पन्न हुआ कि चलो कम से कम वह भी सरकार की नजरों में पंजीकृत बेरोजगार है। उसको काम देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। जबसे उसका ग्रेजुएशन कम्पलीट हुआ है और माँ की सेहत गिर रही है उसकी रोजगार की चिंता तीव्र होती जा रही है। घर का खर्च माँ के विधवा पेंशन से चल रहा है। पिता जी परिवहन विभाग में चपरासी के पद से रिटायर्ड हुए थे। अतः कोई बहुत जमा पूंजी तो थी नहीं रही सही कसर उनके कैंसर की बीमारी ने निकाल दिया। उनके इलाज में माँ के गहने भी बिक चुके थे। अब ले देकर अपनी छोटी सी खोली और माँ के पेंशन के भरोसे संघर्ष जारी था । माँ को लगता था कि उसका बेटा तो बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा है , बाप तो अंगूठा छाप ही था। इसको अच्छी नौकरी मिल जाएगी।


रोजगार समाचार का नया अंक हाथ मे लेते ही सत्यम की उम्मीदें नई करवट लेने लगती। वह रोजगार की प्रत्येक खबर में अपने को फिट करने की दिमागी कसरत करता । लेकिन अधिकतर में अपने को अनफिट पाता - कभी योग्यता की कमी,कभी अनुभव का अभाव, कभी उमर की सीमा,कभी जातिगत आरक्षण उसको अपात्र बना देते।

लौटते समय रास्ते मे उसने एक पान टपरी से सिगरेट लिया और अपने फिक्र को धुंआ में उड़ता रोड क्रॉस कर रहा था । उसका ध्यान पूरी तरह सड़क पर नहीं था । इतने में एक तेज रफ्तार कार ने उसको टक्कर मार दिया । वह लगभग दस फिट की दूरी पर डिवाइडर के दूसरी तरफ गिरा और दूसरी तरफ सामने सेआती ट्रक का अगला चक्का उसके सर के ऊपर से गुजर गया। देखते देखते उसका सर तरबूज की तरह फट कर बिखर गया। कार और ट्रक दोनो के चालक बिना रुके अपने रास्ते निकल गए।

थोड़ी देर में लोगों की भीड़ जुट गई पुलिस भी आ गयी। सड़क पर बिखरे उसके सर के चिथड़े को समेटा गया। उसके कंधे पर लटके बैग में पड़े डॉक्यूमेंट से उसका पता निकाल कर उसके घर पुलिस ने सूचना कर दिया। खबर मिलते ही उसकी माँ को सदमा लगा और वह भी चल बसी।

सत्यम अकाय अवस्था मे यह पुरा घटनाक्रम देख रहा था । उसने अपनी और अपनी माँ की अर्थी एक साथ घर से निकलने की तैयारी को देख रहा था। तभी उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी जो उसके मुहल्ले का नहीं था । मुहल्ले का क्या वह तो इस दुनिया का भी नहीं लग रहा था। अबतक सत्यम को यह अहसास हो गया था की वह मर चुका है और यह सब बातें उसकी आत्मा अनुभव कर रही है। वह कितने पहचान वालो को देखकर ,रोककर बताना चाहता था कि जो भी हुआ उसमे उसकी कोई गलती नहीं है।


वह लोगों को देख सकता है सुन सकता है लेकिन कोई भी जिंदा आदमी उसको देख नहीं सकता , उसके छुअन को महसूस नहीं कर सकता । सत्यम को अपनी माँ की अर्थी को देखकर बहुत रोना आया और वह खुद को अपनी माँ के मौत का जिम्मेदार समझ रहा था।

अब उसको कोई उपाय नही सूझ रहा था कि वह अपनी व्यथा कथा किसको सुनाए ,आगे उसका क्या होगा । क्योंकि यह मरने का पहला अनुभव था और किसी भी दूसरे आदमी से मरने के बाद कि आपबीती नहीं सुना था जिससे अनुमान लगा सके आगे क्या होगा या क्या करना पड़ेगा ! 


तभी उसने देखा कि वह विचित्र सा दिखने वाला व्यक्ति उसको देखकर मुस्कुरा रहा है। उसे लगा कि शायद वह मुझे देख पा रहा है। वह तुरंत उस अजनबी व्यक्ति के पास गया और बोला " श्रीमान , यदि आप मुझे देख और सुन पा रहे हैं तो मुझे अपना परिचय दीजिए और मेरी कुछ शंका का निवारण कीजिए।"

इतना सुनते ही उस अजनबी व्यक्ति ने उसे अपने नजदीक बुलाया और भीड़ से दूर एकांत में ले जाकर बोला "मैं यमदूत हूँ और तुम्हारी माँ का प्राण ले जाने के लिए यहाँ आया हूँ ।"

सत्यम ने उस अजीब से दिखनेवाले प्राणी को ऊपर से नीचे तक देखा। कद लगभग दस फिट खली जैसा डील-डॉल चेहरा लगभग आदमी और बंदर के बीच का। उसके सिर के ऊपर सिंग जैसी दो आकृति थी जिसे एकदम सिंग भी कहना अनुचित ही होगा । स्किन टाइट कपड़ा पहना था ।यह समझना मुश्किल था कि उसका बदन कपड़े से ढका है या उसके शरीर की बनावट ही ऐसी है। उसके शरीर में जगह जगह डिस्प्ले स्क्रीन लगे हुए थे , विशेषकर हाथ और पैर के ऊपरी भाग पर । वह पहली नजर में मानवनुमा रोबोट लग रहा था। 

सत्यम ने कहा कि जब आप मेरी माँ की आत्मा को ले जाने आए हो तो मेरी आत्मा को भी ले जावोगे ना। उसने ना में सिर हिलाया। सत्यम ने आश्चर्यचकित होकर पूछा ऐसा क्यों?


यमदूत -" तुम्हारी माँ की आत्मा का इस पृथ्वी लोक से प्रस्थान करने का समय हो गया है लेकिन तुमको अभी कुछ और समय इस लोक में बिताना पड़ेगा।" 

सत्यम- "यह कैसे , मेरी माँ की मृत्यु तो मेरी मौत की खबर सुनकर अचानक हार्ट अटैक से हुआ है। यदि मेरा एक्सीडेंट नहीं होता तो ना मैं मरता ना ही मेरी माँ ।"

यमदूत -" यह सत्य नहीं है । हमारे अभिलेख के हिसाब से इसी समय पर उनकी मृत्यु निर्धारित थी और उसका कारण हृदयाघात है। हमारा अभिलेख एकदम त्रुटिरहित होता है। हाँ तुम्हारी मृत्यु एकदम आकास्मिक है । जबतक इसके कारण परिणाम की विवेचना नहीं हो जाती तुमको इसी मृत्युलोक में विचरण करना पड़ेगा।"


सत्यम - "आपके अतिरिक्त कोई मुझे देख नहीं सकता और नहीं कोई मुझे सुन सकता है तो मैं यह अनिश्चितता भरी जिंदगी कैसे गुजारूँगा । यह तो बहुत अन्याय है। मेरी क्या गलती है ? 

किसी दूसरे की गलती से मेरी मृत्यु हो गयी और अब कष्ट मेरी आत्मा को झेलना पड़ेगा। यह कहाँ से उचित है।"


यमदूत - "देखो , मेरी सहानुभूति तुम्हारे साथ है , लेकिन मैं मजबूर हूँ और तुम्हारी आत्मा को देवलोक में नहीं भेज सकता ।"

सत्यम - "नहीं भेज सकता से आपका क्या मतलब है ? क्या आप देवलोक नहीं जाते हो ? फिर यह सब आत्मा जो एकत्र करते हो उसको कैसे भेजते हो ।"

यमदूत - "हमारे यहाँ की कार्यप्रणाली उच्चतकनिक से संचालित होती है। मेरे जैसे रेजिडेंट यमदूत को एक खास क्षेत्र की जिम्मेदारी होती है। जरूरत के हिसाब से मैं अपने क्लोन को मल्टीप्लाय कर सकता हूँ और संकुचित कर सकता हूँ। जबतक पार्थिव शरीर नष्ट नहीं हो जाता मैं उसकी आत्मा को ट्रांसमिट नहीं कर सकता हूँ। तुम मुझे देख पा रहे हो क्योंकि मैं तुमको दिखाना चाहता हूँ । मुझे मालूम है तुम निर्दोष हो अकारण तुम्हारी मृत्यु हो गयी है। अभी तक तुम एक पवित्र आत्मा हो।

चलो तुम्हारी माँ और तुम्हारे पार्थिव शरीर के पंचतत्व में विलीन हो जाने के बाद तुमको मैं बताउँगा की अकाय रूप में इस लोक में कैसे रहना । लेकिन उसके पहले तेरी माँ की आत्मा को ट्रांसमिट कर दूँगा ।"

यमदूत के साथ में खड़ा होकर सत्यम ने स्वयं के और माँ के शरीर को शमसान में जलकर भस्मीभूत होते देखा ।



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