Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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अज्ञानता का डर और लाभ

अज्ञानता का डर और लाभ

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आज आनलाइन कक्षा में वाद -विवाद हेतु अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए विद्यार्थियों ने 'अज्ञानता के लाभ ' विषय को चुना था। बहुत सारे विद्यार्थियों का कहना था कि ज्ञान तो सद्गुण है। इस संसार में चाहे जितना ज्ञान हो जाए पर वह कम ही माना जाता है।कहा जाता है कि ज्ञान एक अथाह समुद्र है और उच्च कोटि के ज्ञानी के पास इस अथाह समुद्र की मुश्किल से कुछ बूंदें भी होंगी। ऐसे में अज्ञानता को किस प्रकार लाभदायक माना जा सकता है।


इस विषय को सुझाने वाले विद्यार्थी रीतू का कहना था-"गोस्वामी तुलसीदास जी ने ज्ञान से रहित मूर्ख व्यक्तियों की प्रशंसा करते हुए कहा है ' सबसे भले वे मूढ़,जिनहिं न ब्यापै जगत गति '। ऐसे लोगों की किसी समस्या के प्रति अज्ञानता उन्हें समस्या से मुक्त रखती है और इस मामले को लेकर किसी भी प्रकार के भय या भय की परछाई भी उनके पास से होकर नहीं गुजरती।"


आकांक्षा ने इसी विचार का समर्थन करते हुए अपनी बात रखी-"साथियों जब मैं इस विद्यालय में सबसे पहले दिन आई थी तो मुझे यह जानकारी नहीं थी कि विद्यालय के निर्धारित गणवेश के दिशा-निर्देश के अनुसार हर लड़की को दो चोटियां बनाकर विद्यालय आना है तो इस जानकारी के न होने का मुझे लाभ मिला था।अभी भी विद्यालय में पहले दिन आने वाले विद्यार्थियों को गणवेश से संबंधित जानकारी न होने की स्थिति में उन्हें एक दिन की छूट दी जाती है।"


श्रवण का कहना था-" कुछ लोग जानबूझकर गलती करते हैं और पकड़े जाने पर अनजान होने का नाटक करते हैं। हमें सही जानकारी तो होनी ही चाहिए । यदि किसी व्यक्ति को रेलगाड़ी के स्टेशन से छूटने के सही समय का ज्ञान नहीं है और अज्ञानता के कारण वह रेलगाड़ी छूटने के बाद स्टेशन पहुंचता है तो इसके कारण होने वाला दुष्परिणाम उसे ही भोगना होगा।"


ओमप्रकाश ने जानकारी से उपजे डर के दुष्परिणामों के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-" यदि किसी व्यक्ति को कोई संक्रमण है लेकिन उसे अपने संक्रमित होने की जानकारी नहीं है तो वह निश्चिंत और प्रसन्न चित्त रहता है लेकिन जांच करवाने या अन्य किसी प्रकार से पता चलता है कि वह संक्रमित है तो उसकी सारी निश्चिंतता घबराहट में बदल जाती है।यह घबराहट उसके मन-मस्तिष्क पर छाने लगती है और उसके कार्य - व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।अभी इस वैश्विक महामारी कोरोना में किए गए अध्ययनों में भी यह सामने आया है कि जितने लोग काल - कवलित हुए उनमें से बहुसंख्य ऐसे थे कि उनकी घबराहट ही उनकी मृत्यु के लिए ज्यादा जिम्मेदार रही। संक्रमण की पुष्टि से पूर्व उनके परिजन और प्रियजन उनके साथ रहकर उनका उत्साह बढ़ा रहे थे। संक्रमण की पुष्टि के बाद उनका व्यवहार ही बदल गया। हमने समाचारों में सुना और पढ़ा कि बहुत सारे कोरोना संक्रमितों के परिजनों ने घर पर उनकी देखभाल करने की बजाय उन्हें अस्पताल भेज दिया ।कई ऐसे यही समाचार मिले कि परिजनों के द्वारा उनके मृत शरीर को लेने से मना कर दिया और कोरोना वॉरियर्स को उनका अंतिम संस्कार कराना पड़ा।हमारे मन में घर कर गया भय हमारी और हमारे अपनों की वेदना को बढ़ा देता है।"


प्रीति का कहना था-"हमारा आत्मविश्वास यदि दृढ़ रहता है तो हम जीवन का हर युद्ध जीत सकते हैं। हमने 'ओ हेनरी' की कहानी 'द लास्ट लीफ' में भी पढ़ा था कि आर्टिस्ट बहरमान द्वारा बनाए गए पत्ती के चित्र जिसे बीमार जोन्सी सचमुच की पत्ती समझकर प्रेरित होती है और अपनी जीवन के प्रति निराशा की भावना पर विजय प्राप्त करती है ।इसका सुखद परिणाम सामने आता है कि वह स्वस्थ हो जाती है।वह कहती है कि जब ये अकेली पत्ती अकेले भीषण तूफान का सामना करते हुए बची रह सकती है तो मैं क्यों नहीं? किसी व्यक्ति की मानसिकता की उसकी सफलता- असफलता में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।तभी तो कहा गया है कि मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत।"


रीतू ने अपनी बात सबके सामने रखते हुए कहा-" हमारा काम ठीक प्रकार और ठीक समय पर हो जाए इसके लिए एक निश्चित सीमा तक थोड़ा सा तनाव भी ठीक है।कभी -कभी आलस से उपजी या किसी अन्य कारण से आई लापरवाही हमें अपेक्षित सफलता से वंचित कर देती है। लेकिन अभी ऐसी समस्याएं जो आईं ही नहीं और इनकी संभावना हमें उद्वेलित करती रहती है और हमारी कार्यक्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती रहती है। ज्ञान का यह भय कभी-कभी हमारी सफलता के मार्ग में बाधक बन जाता है। जानकारी न रहने पर हमारा आत्मविश्वास अनजाने में ही सही ऊंचा बना रहता है।"


प्रीति ने अपने विचारों को पूरी दृढ़ता से रखते हुए कहा-" हमें यथासंभव अधिक से अधिक जानकारी होनी चाहिए। योजना को कार्य रूप देते समय संभावित बाधाओं और उनके निराकरण का भी ज्ञान होना आवश्यक है। हमें किसी क्रियाकलाप का कार्यान्वयन करते समय नियोजन और साहस के साथ पूरी तरह धैर्यवान और आशावान रहना चाहिए। इसमें समयानुसार बदलाव और सहायता और मार्गदर्शन प्राप्त करने के विकल्प को सदैव खुला रखना चाहिए।तो इस बात पर दृढ़ रहते हुए कि हम अधिकाधिक जानकारी और पूरे आत्मविश्वास के साथ करेंगे।इस चर्चा को यहीं विराम देते हैं।"


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