अधूरा रिश्ता
अधूरा रिश्ता
गुंजन जल्दी में थीं। सेमिनार शुरू होने वाला था और वह दस मिनट से ट्रैफिक जाम में फंसी हुई थी। वह परेशान होकर इधर-उधर देख ही रही थी कि उसे अपने पास की कार में कोई दिखाई दिया। उसे देखते ही गुंजन बेचैन हो गई। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, तभी पीछे से उसे हॉर्न की आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान दिया कि ट्रैफिक जाम खुल चुका था और वह अभी तक बीच रास्ते में ही रुकी हुई थी।
उसने तुरंत ही अपनी कार स्टार्ट की। कार चलाते वक्त वह एक अजीब सी बेचैनी महसूस कर रही थी। जल्द ही वह उस ऑडिटोरियम पहुंच चुकी थी जहां पर उसका सेमिनार था। कुछ देर बाद सेमिनार शुरू हो गया था।
एक औपचारिक परिचय देने के बाद सेमिनार के मुख्य अतिथि को मंच पर बुलाया गया। मुख्य अतिथि को देखते ही गुंजन हैरान रह गई। वह जय मल्होत्रा था, जिसे गुंजन ने अपने पास वाली कार में देखा था। जय को देखते ही गुंजन ने अपना चेहरा ढक लिया और बड़ी सावधानी से पीछे की सीट पर आ कर बैठ गई ताकि जय उसे देख न सके।
जब सेमिनार खत्म हुआ तो आयोजकों ने गुंजन से जय को मिलवाने की कोशिश की लेकिन गुंजन तबियत खराब होने का बहाना बनाकर वहाँ से निकल आई। वह सीधे अपने होटल पहुंची और बिस्तर पर निढाल होकर पड़ गई। थकान होने की वजह से उसे जल्दी ही नींद आ गई और वह अपने जीवन के उसी दौर में फिर चली गई जहां पर जय ने उसकी जिंदगी में पहला कदम रखा था।
आज से करीब 16 साल पहले जब गुंजन मेडिकल कालेज में अपना सेकेंड ईयर शुरू करने जा रही थी तो उसके दोस्तों ने उसका हौसला बढ़ाने के लिए एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था, जिसमें उसने पहली बार जय को देखा था। यह पार्टी उसकी सबसे करीबी दोस्त कृतिका की ओर से आयोजित की गई थी। जय कृतिका का चचेरा भाई था और बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा था।
उस पार्टी के बाद जय और गुंजन की अच्छी दोस्ती हो गई थी। वे दोनों अक्सर किसी कॉफी शॉप में मिलने लगे थे। धीरे धीरे यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई, दोनों को कुछ अंदाजा ही नही था। उस जमाने मे मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसी चीजें आम इंसान की जिंदगी का हिस्सा नही थी और घर के लैंडलाइन फोन पर घर के बुजुर्ग का पहरा रहता था इसलिए जय औऱ गुंजन के प्यार ने पंख फैलाने के लिए कागज पर उतरे शब्दों का सहारा लिया। कभी जय अपना प्यार कागज के पन्नों में समेटता और गुंजन पर बिखेर देता तो कभी गुंजन उसी प्यार की गर्माहट को कागज पर उकेरती और जय पर अपनी खुशबू बिखेर देती। उनके इसी प्यार को मजबूत बनाने में लगी थी कृतिका जो इनकी हमराज भी थीं और इन दोनों की डाकिया भी।
एक दिन जय घर पर बैठ कर आने वाले इम्तिहान की कुछ तैयारी कर रहा था कि तभी लैंडलाइन फोन की घन्टी बजी। जय ने फोन उठाया तो उधर से कृतिका की आवाज आई-
“हैलो जय मैं कृतिका बोल रही हूं।”
“ हाँ कृतिका।”
“जय तुम जल्दी से कॉलेज के पीछे वाले कॉफी शॉप में मिलो।”
“यह सब बातें मैं तुम्हें फोन पर नहीं बता सकती। बस तुम जल्दी से यहां आओ फिर मिलकर बात करते हैं।”
“ठीक है। मैं पंहुचता हूँ।”
जय जल्दी ही कॉफी शॉप पहुंचा जहां गुंजन और कृतिका उसका इंतजार कर रहे थे। जय को देखते ही गुंजन रोने लगी। जय को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से ऐसा क्या हुआ जो कृतिका ने उसे यू बुलाया और अब गुंजन की यह हालत है ?
“क्या हुआ कृतिका ? मुझे इस तरह जल्दी में क्यों बुलाया और गुंजन रो क्यो रही है ?
“वो जय गुंजन की शादी तय हो गई है।” कृतिका हकलाते हुए बोली।
“क्या लेकिन ऐसे अचानक ? अभी तो इसकी पढ़ाई भी पूरी नही हुई और ….” जय पर जैसे बिजली गिरी थी।
“हाँ लेकिन गुंजन के दादाजी की इच्छा के आगे कोई कुछ नही कर सकता था।” कृतिका ने जय को समझाने की कोशिश की।
“और गुंजन ने हाँ कर दी इस रिश्ते के लिए ?” जय ने गुंजन की तरफ देखा जो अभी भी रो रही थी।
“उसे हाँ कहनी पड़ी लेकिन……..” कृतिका आगे कुछ बोल पाती इससे पहले ही जय बोल पड़ा- “रहने दो कृतिका। यह बात और यह रिश्ता यही खत्म होता है।” इतना कहकर जय गुस्से में वहाँ से चला जाता है। कृतिका और गुंजन वहीं रह जाती है।
इसके बाद जय और गुंजन कभी नहीं मिले। आज 16 साल बाद जय को देखकर गुंजन का दर्द लौट आया था। वह जय की शक्ल भी नही देखना चाहती थी। जय ने उसकी स्थिति को समझे बिना ही एक झटके में उनके बीच का प्यार खत्म कर दिया और फिर मुड़कर नहीं देखा।
गुंजन अभी नींद में ही थीं कि फोन बजा। उसने हड़बड़ा कर फोन उठाया। कोई अनजान नम्बर था।
“हैलो, कौन ?”
“हैलो गुंजन।”
“जी आप कौन बोल रहे है ?”
“गुंजन, मैं जय बोल रहा हूँ।”
कुछ पल की खामोशी के बाद फिर से आवाज आई- “ हैलो गुंजन।”
गुंजन जो अपने अतीत में खोयी हुई थी, चौक जाती है। वह बेरुखी से बोलती है-
“हाँ बोलो।”
“मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।”
“लेकिन मैं तुमसे मिलना नही चाहती।”
“बस एक बार मिल लो हमारी दोस्ती के लिए। फिर कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊंगा।”
“ठीक है।”
गुंजन जय से मिलने के लिए तैयार हो गई। शाम को जब जय गुंजन की बताई हुई जगह पहुंचा तो गुंजन वहाँ पर एक जगह पहले से ही बैठी थी। चेहरे पर हल्का मेकअप, हाथों में लेडीज वॉच, सिर पर सफेद रंग का स्कार्फ और आंखों पर काला चश्मा उसकी छवि को गम्भीर बना रहे थे।
जब वह गुंजन के सामने आया तो गुंजन के चेहरे पर कोई भाव नहीं आये। उसे चुप देख कर जय खुद ही कुर्सी पर बैठ गया और उसकी तरफ देखने लगा। जय को अपनी तरफ इस तरह देखते हुए पाकर गुंजन ने उससे सीधा सवाल किया-
“कहो मुझे यहां क्यो बुलाया ? आखिरी बार क्या बात करना चाहते थे मुझसे ?
“गुंजन, मैं तुमसे माफी मांगना चाहता था।” जय धीमें स्वर में बोला।
“किस बात की माफी।” गुंजन की आवाज में तंज था।
“ हमारे बीच 15 साल पहले जो कुछ भी हुआ था, मैंने जो कुछ भी तुम्हारे साथ किया उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। कृतिका ने मुझे बाद में बताया कि तुम शादी के लिए क्यो तैयार हो गई थी।”
“हाँ क्योंकि मेरा पूरा परिवार अपनी जान देने को तैयार हो गया। सिर्फ इस वजह से क्योंकि किसी ने उन्हें मुझे तुम्हारे साथ देख लिया था। अगर मैं उन्हें तुम्हारे बारे में सब सच बताती तो पता नहीं वे लोग किस हद तक जाते।”
“जानता हूँ गुंजन, लेकिन इस बात का एहसास जब तक मुझे हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। तुम शादी कर चुकी थी और मैं……
“काश कि तुमने उस दिन कृतिका की बात सुन ली होती। मेरे दर्द को, मेरे आंसुओ को पोछा होता तो शायद हमारा यह रिश्ता अधूरा न होता। खैर अब इन सब बातों का कोई फायदा नहीं। बेहतर होगा कि हम अपने अतीत को भुलाकर एक नई शुरुआत करें और अपनी जिंदगी में आगे बढ़े।”
जय सिर झुकाकर गुंजन की बातें सुन रहा था लेकिन जब उसने नजरे उठाकर देखा तो गुंजन वहां से जा चुकी थी।