Dr Sanjay Saxena

Inspirational

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Dr Sanjay Saxena

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अधूरा प्रेम

अधूरा प्रेम

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      राम ....वीरां को बहुत चाहता था और वीरां भी राम को उतना ही चाहती थी। कुछ महीनों पहले ही दोनों की एक दूसरे से मुलाकात हुई थी। मुलाकात होने के बाद जब वे दोनों एक दूसरे से मिलते तो सोचते शायद ईश्वर ने उन्हें एक दूसरे के लिए ही बनाया है।

     वीरां क्रोधी स्वभाव की लड़की थी, तो राम बहुत नम्र। दोनों का धर्म और जाति  अलग अलग थी। राम ...वीरां को जब भी मिलता जीवन के फल सफा सिखाता । जीवन में समस्याओं का सामना कैसे किया जाए यह बताता और वीरा उन्हें इतने ध्यान से सुनती मानो उसकी बातों में खो गई हो, उनको आत्मसात कर रही हो।

    वक्त यूं ही गुजरने लगा। जीवन की खट्टी मीठी यादें जुड़ने लगी। एक दिन राम... वीरां से मिलने पहुंचा तो उसे कुछ देरी हो गई । वीरां का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा।

  गुड मॉर्निंग ...वीरां ........राम ने कहा

  अब हुई है तुम्हारी गुड मॉर्निंग ? कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रही थी ?? अगर नहीं आना था तो मना कर देते क्यों मेरा समय बर्बाद कराते हो? ...... वीरां बोली

      लेकिन ...वीरां ....सुनो.. तो ! ओहो ! लगता है तुम्हें गुस्सा ज्यादा आ गया ? अरे अब छोड़ो भी.... दरअसल रास्ते में कुछ जाम मिल गया....... तो समय ज्यादा लग गया! मैं क्या करता भला !.......राम ने उसका गुस्सा शांत कराने के उद्देश्य से कहा।

हां ....हां जाम तुम्हारे लिए ही लगता है , मेरे लिए नहीं! जब देखो तब झूठा बहाना बनाते रहते हो !! अरे अगर मुझसे दिल भर गया है तो बहाना बनाने की क्या जरूरत है, सीधे-सीधे कह दो अब नहीं मिलना ! ...वीरा ने तल्ख स्वर में कहा

   देखो वीरां अभी तुम गुस्से में हो..... प्लीज ऐसी कोई बात ना कहो जिससे मेरे दिल को चोट पहुंचे ...और हां .....मैंने कोई झूठ नहीं बोला ! तुम अच्छे से जानती हो... मैं कभी झूठ नहीं बोलता।

हां... हां जानती हूं... तुम जैसे लड़कों को !! तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती ? तुम्हारे बिना नहीं चल सकती ? तुम हमेशा गलतियां करते हो और ..मुझे अपनी चिकनी चुपड़ी बातें सुना कर मना लेते हो !!

मैं चिकनी चुपड़ी बातें करता हूं ...अरे... प्रेम करता हूं वीरां तुमसे ...प्रेम ...! प्रेम त्याग, सम्मान, ईमानदारी सिखाता है। मैंने कभी तुम्हारे साथ गलत नहीं किया। हमेशा तुम्हारा भला चाहा ! तुम्हें जीवन जीने का तरीका सिखाया, समस्याओं से लड़ना सिखाया ,...और तुम........

      हां .....तो तुम्हें क्या लगता है ....यह सब बातें मैं नहीं जानती ? मैंने भी तुमसे प्रेम किया! कभी तुमसे कुछ नहीं मांगा ? अगर वक्त और प्यार नहीं दे सकते तो फिर क्या दोगे ? मैं समझ चुकी हूं... तुम सिर्फ समय काटते हो ..कितने बदल गए हो राम......तुम कितने बदल गए ??

     इस समय तुमसे कुछ भी कहने से बात बढ़ेगी ही वीरां.. क्योंकि तुम गुस्से में हो और क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है। मेरी हर बात तुम्हें कड़वी लगेगी ? चलो तुमने कहा... सारी गलतियां मेरी है ..….मान लिया सारी गलतियां मैंने ही की... और सचमुच गलती तो मुझसे हुई है ना..... तो मुझे उसका पश्चाताप करना ही होगा !!

   कहते हैं पश्चाताप से सारे पाप धुल जाते हैं... तो मैं अभी ईश्वर को साक्षी मानकर यह प्रण करता हूं कि.... आज से मैं.. तुमसे उतने समय तक दूर रहूंगा जितना समय मैंने तुम्हारे साथ बिताया है। ना तुमसे मिलूंगा... ना बात करूंगा ..!अपनी भूल के लिए ईश्वर से क्षमा मांगूंगा और प्रार्थना करूंगा वह तुम्हें मेरे बिना भी खुश रखे...... हमेशा खुश।।

     हां.... हां मैं खुश रहूंगी।.... तुम्हें लगता है तुम मुझे इन इमोशनल बातों से विचलित कर दोगे तो गलत है ! तुम्हें मुझसे दूर जाना है तो जाओ ! इसमें ईश्वर को क्यों घसीटते हो ? ......मैं तो पहले ही जानती थी सभी मर्द एक जैसे ही होते हैं । भला मैंने तुम पर क्यों भरोसा किया ? तुम मेरे भरोसे लायक ही नहीं थे ? तुमने मेरा भरोसा तोड़ दिया राम।

    वीरां की बातें राम के दिल में तीर जैसी लगे जा रही थी! अब उससे और बर्दाश्त न हो रहा था लेकिन वह कुछ कहना नहीं चाहता था ...अतः वह वहां से उठा और अपने घर चल दिया । रास्ते भर सोचता रहा... क्या हुआ आज इसे ? सारा दोष मेरा ही है ? चलो ठीक है मेरा ही सही !

    मुझे लगता था कि मैं इसके जीवन को बदल सकता हूं... लेकिन आज पता चला किसी को बदलना कितना मुश्किल है अरे व्यक्ति खुद को नहीं बदल सकता तो दूसरों को क्या बदलेगा । ठीक है.... आज के बाद मैं इससे कभी नहीं मिलूंगा..... कभी नहीं ! अगर वह मेरे बिना खुश है तो इससे अच्छा और क्या है .... मैं भी तो यही चाहता था !!सोचते-सोचते राम का घर कब आ गया उसे पता ही ना चला।

अब राम बिल्कुल शांत रहने लगा। उसे समझ आ गया था कि ईश्वर की आज्ञा के बिना कुछ भी करना संभव नहीं है। अतः अपनी भूल के लिए ईश्वर से क्षमा याचना करता है और अपना समय कर्तव्य पालन में लगाता।

    वक्त बीतता गया और अचानक एक दिन.... जब वीरां को राम की याद आई तो उसने राम का मोबाइल नंबर मिलाया। दूसरी ओर से किसी महिला की आवाज सुनकर वह चौक पड़ी ... फिर अपने को संभालते हुए उसने कहा... आप कौन बोल रही हो ?? मुझे राम से बात करनी है?

उधर से आवाज आई ...बेटी मैं राम की मां बोल रही हूं ।

   ओह मां जी प्रणाम... मैं राम की फ्रेंड वीरां बोल रही हूं । क्या आप राम से मेरी बात करा देंगी ??

    मां रोने लगी.... और शांत हो गई ...

वीरां बोली ....मां जी... क्या हुआ... कुछ तो कहिए... क्या राम आप से नाराज है??

   मां बोली ....बेटी ...मेरा राम ...राम को प्यारा हो गया और उसने यह कहते हुए फोन काट दिया.....।

    वीरां को लगा मानो उस पर वज्रपात हो गया। वह उठने का भी साहस न कर पा रही थी। पिछली सारी बातें उसके मन में तैरे जा रही थी । आज पहली बार उसे अपनी भूल का एहसास हुआ।

आज उसने अपने क्रोध को त्यागने का फैसला किया...... लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी...... बहुत देर ।।

                    


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