अभ्यर्थी -मेरी जीवनी
अभ्यर्थी -मेरी जीवनी
प्रस्तावना
यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग )द्वारा प्रतिवर्ष भारत की ही नहीं विश्व की प्रतिष्ठित सिविल सेवा एग्जाम (CSE ) का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है। यह परीक्षा तीन चरणों में होती है। प्रथम चरण प्रारम्भिकी परीक्षा अभ्यर्थियों के मध्य प्री नाम से जानी जाती है। यह परीक्षा केवल क्वालीफाई करनी होती है, क्यूंकि इसमें प्राप्त होने वाले मार्क्स फाइनल परिणाम में नहीं जुड़ते। 2011 से पहले प्री में 2 ऑब्जेक्टिव पेपर होते थे, पहल पेपर ऑप्शनल विषय का और दूसरा सामान्य अध्ययन का।
2011 में प्री में से ऑप्शनल विषय का ऑब्जेक्टिव पेपर हटा दिया गया और उसकी जगह सी -सैट का पेपर जोड़ दिया गया था। हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की माँग को देखते हुए 2015 में सी - सैट पेपर को क्वालीफाइंग पेपर घोषित कर दिया गया था। प्री क्वालीफाई करने के लिए सी -सैट क्वालीफाई करना जरूरी था, लेकिन प्री की कट ऑफ डिसाइड करने में सी -सैट के नंबर नहीं जुड़ने थे। सामान्य अध्ययन के पेपर से ही कट -ऑफ डिसाइड होनी थी।
प्री में चुने गए अभ्यर्थियों का मैन्स का एग्जाम होता है। मैन्स में 300 -300 नंबर के 9 पेपर होते थे। दो ऑप्शनल विषयों के 4 पेपर ,1 निबंध का पेपर ,2 सामान्य अध्ययन के पेपर, इन 7 पेपर के नंबर फाइनल रिजल्ट में जुड़ते थे। 2 पेपर ,1 इंग्लिश का और 1 संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा का होता था, इन पेपर को क्वालीफाई करना जरूरी था, इनके मार्क्स फाइनल रिजल्ट में नहीं जुड़ते थे।
2013 से मैन्स में 2 ऑप्शनल की जगह 1 ही ऑप्शनल कर दिया गया। अब 1 ऑप्शनल विषय के 2 ,सामान्य अध्ययन के 4 और निबंध का एक पेपर होता है। इंग्लिश और संवैधानिक भाषा के क्वालीफाइंग पेपर अभी भी होते हैं।
2014 में हिंदी अभ्यर्थियों की माँग पर यूपीएससी ने अभ्यर्थियों को 2 अतिरिक्त प्रयास दे दिए थे।
(1)
अच्छा है, यू पी एस सी ने परीक्षा देने के अवसर सीमित दे रखे हैं, नहीं तो पूरी ज़िन्दगी इस परीक्षा की तैयारी में ही निकल जाती। यह यू पी एस सी की परीक्षा भी साली, किसी लत से कम थोड़े न है, जो एक बार लग जाए तो जब तक आपके अवसर समाप्त नहीं होते, तब तक छूटती ही नहीं। इसीलिए तो अरुणा शादी के बाद भी यूपीएससी द्वारा लिए जाने वाले इस सिविल सर्विसेज के एग्जाम के पीछे पड़ी हुई थी।
शादी से पहले से ही अरुणा परीक्षा की तैयारी कर रही थी। पहले प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सकी थी। अरुणा प्रारम्भ से ही एक मेधावी विद्यार्थी रही थी। हमेशा स्कूल -कॉलेज टॉप करती आ रही थी। लेकिन इस असफलता ने उसके आत्मविश्वास को चकनाचूर कर दिया था। अरुणा फिर दूसरा प्रयास देने की हिम्मत ही नहीं जुटा पायी थी। अरुणा ने फिर राज्य सेवा की परीक्षा दी। राज्य सेवा के लिए अरुणा अपने पहले ही प्रयास में चुन ली गयी थी। वह अलग बात है कि राज्य सेवा की भर्ती पूर्ण होने में ही 2-3 वर्ष का समय ले लेती है।
राज्य सेवा में चुन लिए जाने के बाद अरुणा को अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त हो गया था। अरुणा अपने इस दूसरे प्रयास में साक्षात्कार तक पहुंच भी गयी थी। साक्षात्कार तक पहुँचने के कारण ही, अरुणा की खुद से उम्मीदें बढ़ गयी थी। साक्षात्कार में लाखों में से कुछ हज़ार कैंडिडेट ही पहुँच पाते हैं। अरुणा अब सही में अपने मम्मी -पापा की लाखों में एक बेटी और पति आनंद की लाखों में एक पत्नी थी।
साक्षात्कार तक पहुंचना भी तो अपने आप में कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी। लेकिन अंतिम रूप से चयनित कैंडिडेट की सूची में से उसका नाम नदारद ही रहा था। सफलता का लड्डू मुँह तक आते -आते उसके हाथों से छूट गया था। यह कुछ ऐसा ही था, जब दाराशिकोह से ताज छिनकर औरंगजेब ने पहन लिया था। अरुणा का दर्द वही समझ सकता था, जिसके हाथों से उसकी प्रिय वस्तु एकदम अंतिम समय पर ले ली जाए। खैर अरुणा एक प्रतिभाशाली लड़की थी, सिविल सर्विसेज की लिखित परीक्षा पास करने से यह साबित भी हो ही गया था। अरुणा राज्य सेवा में चयनित हो चुकी थी और उसे सौभाग्य से नियुक्ति भी मिल गयी थी।
अपनी प्रतिभा से पूरी तरह वाकिफ अरुणा ने सोच लिया था कि ,"यू पी एस सी तो निकालकर ही दम लेगी।" इसी ज़िद की बदौलत अरुणा सिविल सर्विसेज एग्जाम के पैटर्न में एक के बाद एक किये गए सभी परिवर्तनों की भुक्तभोगी रही है। वह सिविल सर्विस एग्जाम की एक तरीके स गिन्नीपिग ही बन गयी थी।
उसकी तैयारी के दौरान ही सी-सेट आया। बाद में 2 की जगह केवल एक ही वैकल्पिक विषय रह गया। सामान्य अध्ययन के 2 पेपर की जग़ह 4 पेपर हो गए थे। एथिक्स का अलग से एक पेपर जोड़ा गया। यह सभी परिवर्तन हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के सिविल सेवक बनने के सपनों पर कुठाराघात थे। यूपीएससी के अनुसार वह सिविल सेवा परीक्षा को समयानुकूल बना रही थी ताकि आज की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए मानसिक तौर से तैयार नौकरशाही मिले, लेकिन यह परिवर्तन ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले ठेठ हिंदी माध्यम में पढ़े विद्यार्थियों के चयन का प्रतिशत लगातार कम कर रहे हैं।
अरुणा तो 2 वर्ष पहले ही यू पी एस सी से मुक्त हो गयी थी, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। हिंदी माध्यम के छात्रों द्वारा किये जा रहे आंदोलनों के परिणामस्वरूप यूपीएससी ने २ अतिरिक्त प्रयास और दे दिए थे। और जब यूपीएससी खुद अरुणा से एक बार दोबारा टकराने के लिए तैयार थी तो फिर यूपीएससी से 2-2 हाथ करने का मौका प्रतिभा की धनी अरुणा थोड़े न गँवा सकती थी।
जैसे पानीपत के द्वितीय युद्ध में इब्राहीम लोदी के सेनापति हेमू की आँख में लगे तीर ने भारत और अकबर की तकदीर को बदल कर रख दिया था एवं अकबर को भारत का बादशाह बना दिया था, वैसे ही इन आंदोलनों ने अरुणा की किस्मत को बदलने की भूमि तैयार कर दी थी।
किस्मत से मिले अवसरों को हाथ से न निकलने देने वाली अरुणा का आज सिविल सर्विसेज मैन्स लिखित परीक्षा का अंतिम पेपर था। पेपर खत्म करते ही अरुणा को ऐसे लगा कि उसके सिर से बहुत बड़ा बोझ हट गया। वह परीक्षा केंद्र से बाहर आते हुए मुस्कुरा रही थी।
जैसे ही उसकी नज़र अपने पति आनंद पर पड़ी, उसके मुँह से निकल ही गया ,"आज मुक्त हो गयी हूँ। अब पढ़ाई करूंगी तो अपने आनंद के लिए ,किसी भी परीक्षा के लिए तो अब नहीं पढ़ना पड़ेगा। "
आनंद ने हँसते हुए कहा ,"यार, तुम तो हमेशा से ही मुक्त हो। तुम्हें बाँध कौन सकता है ?वैसे भी मैं पति -पत्नी के रिश्ते को पतंग और डोर जैसा बंधन मानता हूँ। डोर बांधती तो है, लेकिन पतंग को ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए। "
अरुणा ने आनंद की बात पर ठहाका लगाया और बोली ," यू पी एस सी से मुक्त हो गयी। यू पी एस सी का एग्जाम देना है, इस दबाव से मुक्त हो गयी। पढ़ाई करनी है, इस वीक का टारगेट पूरा करना है, इस चिंता से मुक्त हो गयी। "
आनंद ने प्रश्न वाचक आँखों से अरुणा की तरफ देखा, मानो पूछ रहा हो कि ,"मुझे तो तुम कभी चिंतित दिखी नहीं। "
अरुणा ने कहा कि," तुम्हारे साथ ज़िन्दगी के सभी पलों का खुल के आनंद नहीं लेती थी। तुम्हारे साथ जब भी कहीं बाहर जाती थी तो, न चाहते हुए भी यू पी एस सी मेरे साथ चलती थी। मूवी देखते हुए भी दिमाग में कहीं न कहीं यह रहता था कि अभी प्री होने वाला है या अभी कुछ दिनों में मैन्स है या अभी इंटरव्यू शुरू होने वाले हैं। "
आनंद ने सिर हिलाते हुए कहा ," ये बात तो सही है। "
"इतना ही नहीं, कितने फॅमिली फंक्शन्स इस एग्जाम के चक्कर में ही तो अटेंड नहीं किये। पैटर्न चेंज होने के बाद यू पी एस सी का कैलेंडर चेंज हुआ, नहीं तो 2 बार तो मैन्स के पेपर दीवाली की टाइम पर हुए थे। 2 दिवाली भी काली हुई थी। न तो पढ़ ही पाती थी और न ही त्यौहार का पूरा मजा ले पाती थी। " अरुणा ने ठंडी आह भरते हुए कहा।
"मैं सोचता था कि तुम्हे पढ़ने का इतना शौक है, इसलिए सारा -सारा दिन पढ़ती रहती हो। "आनंद ने कहा।
" पढ़ने का शौक तो है ही, लेकिन एग्जाम के लिए पढ़ना और खुद के लिए पढ़ना दो अलग -अलग बातें हैं। वैसे मैंने अपनी तैयारी को पूरा एन्जॉय करने की कोशिश की थी और फिर पहले से ही ग्रुप बी अफसर की नौकरी तो पास में थी ही, इसलिए इतना दबाव नहीं था, लेकिन चाहो न चाहो एग्जाम का दबाव तो रहता ही है। "अरुणा ने बताया।
"चलो अच्छा ही है, बिना किसी डीएडीक्शन सेंटर पर गए तुम्हारी लत तो छूट ही गयी। "आनंद ने हँसते हुए कहा।
"चलो, आज हम मेरी मुक्ति सेलिब्रेट करते हैं। पहले मूवी देखेंगे और उसके बाद डिनर। "अरुणा ने कहा।
(२)
"बेटा, बड़ी होकर क्या बनेगी ?",एक बार चाचू ने अरुणा से पूछा था।
"कलेक्टर। "8 वर्ष की अरूणा ने बताया था।
तब चाचू ने मज़ाक में कहा, "कंडक्टर ??"
"नहीं, कलेक्टर।" छोटी सी अरुणा ने ज़ोर से दोबारा बोला।
बचपन में जब बच्चे यह तक नहीं जानते कि करियर का मतलब क्या होता है ?तब से ही अरुणा ने सिविल सेवा में जाने का निर्णय ले लिया था। उत्तर भारत में जब कोई अपनी बात मनवाने की कोशिश करता है या ज्यादा हेकड़ी मारता है तो अक्सर सुनने को मिल जाता है कि ,"ज्यादा कलेक्टर मत बन या तू कलेक्टर थोड़े न है जो तेरी बात मानेंगे। "
शायद अरुणा ने भी कभी बचपन में यह सुना होगा और वहीँ से उसने कलेक्टर बनने का ख़्वाब संजो लिया होगा।
अरुणा के मम्मी -पापा ने भी उसे प्रोत्साहित किया। जब अरुणा पाँचवी कक्षा की विद्यार्थी थी ,तभी से वह ' मासिक प्रतियोगी पत्रिका' की नियमित पाठिका थी। बालहंस ,चम्पक जैसी पत्रिकाओं के साथ -साथ उनके घर पर मासिक प्रतियोगी पत्रिका नियमित रूप से आती थी।
अरुणा एक बहुत धनी परिवार की बेटी नहीं थी। उसके पापा सरकारी नौकरी में थे ,इसीलिए घर पर थोड़ा पढ़ाई -लिखाई का माहौल था। गांव के एक सरकारी स्कूल में अरुणा और उसकी बहिन पढ़ने जाते थे। सरकारी स्कूल की फीस नाममात्र की थी ,इसीलिए पापा पत्र -पत्रिकाएं मँगवा देते थे। अरुणा एक अच्छी विद्यार्थी थी ,अच्छे विद्यार्थी सभी को प्रिय होते हैं। सरकारी स्कूल की टीचर्स अरुणा को विशेष स्नेह देते थे और सहयोग भी करते थे।
पढ़ने की आदत बनी रहे ,इसीलिए अरुणा ने साइंस और मैथ्स विषय लिया, क्यूंकि तब यही माना जाता था कि अच्छे विद्यार्थी साइंस -मैथ्स लेते हैं। सीनियर के साथ ही इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा भी दी थी ,मैकेनिकल ब्रांच में फ्री सीट पर प्रवेश मिल रहा था, फीस कम होना और इंजीनियरिंग में प्रवेश मिलना, सोने पर सुहागा था तो प्रवेश ले लिया था। उस दौर में निजी कॉलेजों में दो प्रकार से प्रवेश होता था, एक फ्री सीट और एक पेमेंट सीट। N R I कोटा अलग होता था। फ्री सीट पर फीस काफी कम लगती थी, लगभग सरकारी कॉलेज के बराबर ही होती थी।
अरुणा के परिवार से आज तक किसी भी व्यक्ति ने सिविल सेवा में चयनित होना तो दूर की बात है ,तैयारी करने के लिए सोचा तक नहीं था। अपने खानदान में इतनी पढ़ाई -लिखाई करने वाली भी अरुणा पहली ही लड़की थी। अरुणा को याद भी नहीं कि ,"उसकी आँखों ने कब से सिविल सेवा में जाने का ख़्वाब देखना शुरू कर दिया था। लेकिन उसका यह ख़्वाब था जरूर। "
अरुणा अपनी एक पहचान बनाना चाहती थी। वह केवल घर के कामकाज में अपनी प्रतिभा जाया नहीं करना चाहती थी। उसकी मम्मी ने उसे हमेशा यह याद दिलाया था कि "बेटा, अपने पैरों पर खड़े होना बहुत जरूरी है। लड़की को आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक होता है, भविष्य का कुछ पता नहीं। "
अरुणा का इंजीनियरिंग कम्पलीट हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति देखते हुए उसने पहले कुछ दिन नौकरी करने का निर्णय किया। नौकरी करके वह कुछ पैसे जमा करके दिल्ली जाकर तैयारी करना चाहती थी। मासिक प्रतियोगी पत्रिका पढ़ते हुए उसे यह समझ आ गया था कि दिल्ली सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए मक्का -मदीना है। अगर उसे अपने सपने को पूरा करना है तो दिल्ली जाना ही होगा।
आज तो इंटरनेट पर तैयारी के लिए बहुत सारा कंटेंट उपलब्ध है, लेकिन पहले इंटरनेट पर खास कुछ नहीं मिलता था।मासिक प्रतियोगी पत्रिका में विभिन्न सफल उम्मीदवारों के साक्षात्कार पढ़कर उसे एग्जाम के पैटर्न को समझने में मदद मिली थी। यह परीक्षा तीन चरणों में होती थी। प्रथम चरण में प्रारम्भिकी परीक्षा होती थी। जिसमें 2 पेपर होते थे। प्रथम पेपर सामान्य अध्ययन का और दूसरा एक वैकल्पिक विषय का होता था। वैकल्पिक विषय प्रत्येक अभ्यर्थी द्वारा स्वयं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा दिए गए विकल्पों में से चुनना होता था। प्रारम्भिकी में क्वालीफाई हुए अभ्यर्थी को मुख्य परीक्षा में बैठने का मौका मिलता था। उस समय मुख्य परीक्षा में दो वैकल्पिक विषय चुनने होते थे।
ज्यादातर सफल अभ्यर्थियों ने अपने साक्षात्कार में यही कहा था कि ,"वैकल्पिक विषयों का चुनाव अच्छे से करें। सही विषय का चुनाव आपको संघ लोक सेवा आयोग से जंग में आधी जंग उसी प्रकार जितवा देता है, जिस प्रकार सही सेनापति का चुनाव किसी बह युद्ध को। "
लेकिन वैकल्पिक विषयों का चुनाव कैसे करें? इसके कोई निर्धारित ,पूर्व परीक्षित मानक नहीं थे। जितने मुँह उतनी ही बातें थी। कोई कहता कि जिसका सिलेबस छोटा हो, वह विषय चुनो। कोई कहता कि जिसमें रूचि हो, वह विषय चुनो। कोई कहता कि जिसमें अच्छे टीचर उपलब्ध हो, वह विषय चुनो। कोई कहता कि जिसमें स्टडी मैटेरियल पर्याप्त हो वह विषय चुनो। कोई कहता कि एक विषय तो साहित्य यथा हिंदी या संस्कृत आदि लो। पाठ्यक्रम होता है और चयन भी काफी होते हैं।
अरुणा ने पाठ्यक्रम के आकार और अपनी रूचि के अनुसार प्रथम विषय के रूप में समाजशास्त्र चुनने का निर्णय लिया। उसने चयनित अभ्यर्थियों के साक्षात्कार को पढ़कर २-3 समाजशास्त्र की किताबें भी ख़रीद ली थी। दूसरे विषय के रूप में उसने संस्कृत विषय चुनने का निर्णय लिया था। उसने संस्कृत विषय 10th के बाद कभी नहीं पढ़ा था, उसके बावजूद भी उसे आज तक भी धातु रूप और शब्द रूप याद थे।
विषयों का चयन करके अरुणा बड़ी ही उत्साहित थी, उसने सिविल सर्विसेज परीक्षा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा जो पार कर ली थी। लेकिन मासूम अरुणा की अभी तो बस शुरुआत थी, आगे -आगे क्या होने वाला था ,यह तो भविष्य के गर्भ में ही लिखा था।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और छोटे शहर की वजह से अरुणा की एक मात्र मार्गदर्शक मासिक पत्रिकाएं थीं। टोपर के साक्षात्कार पढ़-पढ़ कर उसने डी डी बसु की भारतीय संविधान, खुल्लर की भारतीय भूगोल, यशपाल और ग्रोवर की आधुनिक भारत जैसी पुस्तकें भी खरीद डाली थी।
अब जब उसने डी डी बसु पढ़ना शुरू किया तो किताब उसके ऊपर से जाती थी। दसियों बार उसने वह किताब पढ़ डाली थी ,लेकिन सब सिफ़र। उसे समझ आने लगा था कि पनघट की राह कठिन है। अब तक नौकरी करते हुए उसे 1 साल होने को आया था। इस एक साल में उसने कई किताबें ले डाली। समाजशास्त्र जब समझ से बाहर लगा तो उसने लोक प्रशासन विषय लेने का निर्णय लिया। मजे की बात यह थी कि उसको इतिहास विषय पसंद था। लेकिन सिलेबस ज्यादा होने के कारण वह विषय नहीं चुन रही थी।
उसे समझ आ गया था कि संघ लोक सेवा आयोग के मक्का अर्थात दिल्ली जाए बिना उसकी नैया पार नहीं होने वाली। वैसे भी उसने इतने पैसे तो जमा कर लिए थे कि दिल्ली में एक साल तक रह सके और कोचिंग कर सके।
छोटे शहरों और बिना किसी मार्गदर्शन के आने वाले बच्चों के लिए कोचिंग तलाशना भी एक बड़ी समस्या है। यहाँ पर भी अरुणा जी ने अपनी मासिक प्रतियोगी पत्रिका पर ही आँख मूंदकर विश्वास किया। पत्रिका में आने वाले विज्ञापनों से प्रभावित होकर उसने भी अन्य सभी विद्यार्थियों के जैसे राजनीती के प्रख्यात ज्ञाता एवं 'अर्थशास्त्र' पुस्तक के रचियता और हाल ही फेसबुक पर छाये रहने वाले प्राचीन भारत के विद्वान पुरुष के नाम वाली कोचिंग में प्रवेश लेने का निश्चय किया।
जो दिखता है, वही बिकता है और दिखाकर बेचने के लिए ही तो इतनी बड़ी विज्ञापनों की दुनिया चलती है। बड़े -बड़े खिलाड़ी से लेकर अभिनेता तक सब ही लोग तो कुछ न कुछ बेचने में लगे हुए हैं। अरुणा ने सोचा था कि वह लोकशास्त्र विषय की कोचिंग वहाँ से करेगी। दूसरे विषय की तैयारी वह थोड़े दिनों बाद दिल्ली में रहते हुए ,कोई अच्छी कोचिंग ढूंढकर वहाँ से करेगी। सामान्य अध्ययन की तैयारी किस कोचिंग से करेगी, इस के लिए उसने जाने से पहले कुछ तय नहीं किया था।किनारे पर बैठकर समंदर की गहराई के बारे में कुछ पता नहीं चलता, इसके लिए किनारे छोड़कर बीच मँझधार में उतरना पड़ता है। अरुणा भी मँझधार में उतरने के लिए तैयार हो गयी थी।
(3 )
आखिर अरुणा अपने मम्मी-पापा को साथ लेकर ,अपने कलेक्टर बनने के सपने को पूरा करने के लिए, सिविल सेवा एग्जाम की तैयारी के लिए ,सिविल सेवकों के मक्का -मदीना दिल्ली आ ही गयी थी। दिल्ली भी शेष हिन्दुस्तान से अलग कहाँ था ? यहाँ भी सम्पूर्ण हिन्दुस्तान की तरह भारत और इंडिया का स्पष्ट रूप से विभाजन देखा जा सकता था। कॉन्वेंट शिक्षित, इंग्लिश में गिटपिट करने वाले अभ्यर्थी सपनों के देश इंडिया का प्रतिनिधित्व करते थे और उनके लिए ओल्ड राजेंदर नगर तीर्थस्थल था।ओल्ड राजिंदर नगर में रहने -खाने का खर्चा मुखर्जी नगर से दो -तीन गुना अधिक होता है।
वहीँ हमारी अरुणा जैसी सरकारी स्कूलों से पढ़े हुए हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी, इंडिया से कई मायनों में पीछे रह गए ,भारत का प्रतिनिधित्व करते थे। उनके लिए मुखर्जी नगर तीर्थस्थल था। उस समय तक लगभग 30 से 40 प्रतिशत विद्यार्थी हिंदी माध्यम से चयनित होते थे। सी -सैट आने के बाद ही हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के बुरे दिनों की शुरुआत हुई थी।
आज तो GTB मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलते ही कई कोचिंग संस्थानों के बोर्ड दिख जाते हैं, लेकिन उस दौर में सबसे पहले यही जीत के गुरूजी की कोचिंग का बोर्ड चमकता हुआ दिखता था। अरूणा भी मुखर्जी नगर में जीत के गुरूजी की कौटिल्य के नाम की कोचिंग के आगे जाकर ही रुकी थी। इस कोचिंग का दिनोंदिन बढ़ता साम्राज्य इस बात का साक्षात प्रमाण है कि जो विज्ञापनों में जितना ज़्यादा दिखता है, वह उतना ही अधिक बिकता है। शिक्षा भी एक व्यापार है, यहाँ भी सेल्स और मार्केटिंग के गूढ़ रहस्य उतने ही सफल हैं, जितने किसी और व्यापार में। मार्केटिंग की दुनिया के खिलाड़ी आम आदमी की दुखती रग से वाकिफ होते हैं, इसीलिए वहीँ पर चोट करते हैं। आज सभी लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहे हैं तो आजकल ज्यादातर उत्पाद स्वास्थ्य को केंद्र में रखकर अपना विज्ञापन करते हैं, चाहे उत्पाद सीधे तौर पर सेहत से संबंधित हो या न हो।
अरुणा ने कोचिंग में प्रवेश किया। जैसे किसी शोरूम में प्रवेश करते ही आपको मार्केटिंग और बिज़नेस एग्जीक्यूटिव घेर लेते हैं और आपकी आवश्यकता जानकर अपने उत्पाद आपको दुनिया के सबसे बेहतरीन उत्पाद बताते हुए बेचने लग जाते हैं, वैसा ही कुछ सीन यहाँ था। यहाँ पर MBA की हुई कई लड़कियाँ अभ्यर्थियों को आकर्षित करने के लिए उपस्थित थी। बातें बनाने की कला में माहिर इन लड़कियों से अगर आप एक बार बात कर लें तो मज़ाल है किसी और कोचिंग में जाएँ, इन्हें इस कार्य यानि की अच्छे से बातचीत करके विद्यार्थी को खोमचे में लेने के लिए ही वेतन मिलता था और प्रत्येक एडमिशन पर कमीशन अलग। कमीशन वाली बात अरुणा को बाद में पता चली थी।
"आप विषय क्या लेंगी ?", उन्हीं में से किसी एक मोहतरमा ने अरुणा से पूछा।
"जी, लोक प्रशासन" अरुणा ने कहा।
"बहुत ही अच्छा विषय है। सामान्य अध्ययन के प्रथम पेपर में आपको बहुत मदद करेगा। निबंध के पेपर में भी मदद करेगा। पाठ्यक्रम भी छोटा है। अभी नया बैच प्रारम्भ किया है। "मुस्कुराते हुए उन मोहतरमा ने कहा।
"आपके यहाँ पढ़ाई कैसी होती है ?"अरुणा के पापा ने पूछा।
"अंकल जी ,हम बच्चों की नियमित रूप से परीक्षा लेते हैं। आपको दिल्ली के माहौल का तो पता ही है, सीधे -साधे बच्चे ग़लत संगत में पड़ जाते हैं। हम बच्चों पर कोचिंग के बाद भी नज़र रखते हैं।" सेल्स एग्जीक्यूटिव अपना काम बहुत अच्छे से कर रही थी।
बच्चे कितने ही बड़े हो जाएँ ,मम्मी -पापा उनके लिए फिक्रमंद रहते हैं और जब बच्चे बाहर रहने जाएँ तो एक सवाल ," कहीं बच्चा बिगड़ गया तो।" मम्मी -पापा की नींदें उड़ाये रहता है। इस सवाल का मोहतरमा ने बहुत ही संतोषप्रद ज़वाब दे दिया था।
"अच्छा।" अरुणा की मम्मी ने कहा।
"आंटी जी, हम तो प्रतिदिन बच्चों की अटेंडेन्स भी लेते हैं और कोई बच्चा अनुपस्थित होता है तो उसके घरवालों को सूचित करते हैं। हर बच्चे के लिए एक कॉउन्सलर होता है, जो बच्चे की पढाई से जुड़ी समस्याओं के साथ -साथ अन्य सभी समस्याओं का भी समाधान उपलब्ध करवाता है।" अरुणा के मम्मी-पापा को शीशे में उतारे जाने के प्रयास जारी थे।
"अरुणा ,आप सामान्य अध्ययन के लिए भी प्रवेश ले लो। जितना देर से प्रवेश लोगी ,उतना ही पीछे रह जाओगी। वैसे भी जनरल केटेगरी में 4 ही प्रयास मिलते हैं। अभी से एकदम अच्छे स तैयारी करो। कहा भी तो गया है ,काल करे सो आज ही कर।" मोहतरमा ने अपना जाल फेंकना शुरू कर दिया था।
"हाँ बेटा ,तुम यहीं प्रवेश ले लो।" मम्मी -पापा पूर्ण रूपेण उसकी बातों के चक्रव्यूह में फँस चुके थे। मम्मी -पापा की छोड़ो ,अरुणा खुद भी कहाँ उसकी मिश्री घुली बातों के जादू से बच पायी थी।
तब तक वहाँ एक और एग्जीक्यूटिव आ गयी थी।
"अरे , मीनल, तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी। तुम अब अरुणा को दूसरा विषय लेने में मदद कर सकती हो।" वहाँ मौजूद लड़की ने अभी -अभी आयी एक दूसरी लड़की को देखते हुए कहा।
"अरुणा ,पता है जो इस बार के हिंदी माध्यम के टॉपर हैं ,उन्हें भी दूसरा विषय चुनने में बड़ी दिक्कत आ रही थी। फिर उन्होंने मीनल से सलाह लेकर दूसरे विषय के रूप में भूगोल लिया।" मीनल और अरुणा की तरफ देखते हुए मोहतरमा ने कहा।
"अरुणा एजुकेशन बैकग्राउंड क्या है आपका ?",मीनल ने पूछा।
"इंजीनियरिंग किया है।" अरुणा के बोलने से पहले ही उसके पापा ने ज़वाब दे दिया था।
"साइंस बैकग्राउंड है और हिंदी माध्यम है। फिर तो भूगोल बेस्ट है। रटना कुछ नहीं है, समझना है, साइंस बैकग्राउंड के ज़्यादातर बच्चे लेते हैं। आजकल भूगोल चल भी बहुत रहा है, भूगोल से काफ़ी चयन हो रहे हैं।" मीनल ने समझाते हुए कहा।
अरुणा दूसरे विषय के रूप में संस्कृत साहित्य ही लेना चाहती थी, अतः वह मीनल की बातों से प्रभावित नहीं हो रही थी।
"अभी मुझे थोड़ा और सोचना है।" अरुणा ने कहा।
दोनों लड़कियाँ रोज़ सैंकड़ों बच्चों और उनके माता -पिता से मिलती थी। लोगों के व्यवहार और उनकी सोच को बहुत अच्छे से समझ सकती थी। अतः उन्होंने अब अपना फ़ोकस प्रथम विषय और सामान्य अध्ययन के पेपर पर कर लिया था।
"ठीक है ,अरुणा। हम तो हमेशा ही यहाँ हैं, तुम कभी भी सलाह लेने के लिए आ सकती हो। अभी तो लोक प्रशासन और सामान्य अध्ययन की तैयारी शुरू कर दो। लंच के बाद बैच प्रारम्भ हो जाएगा।" मोहतरमा ने कहा।
"लेकिन बेटा अभी तो अरुणा के रहने -खाने की व्यवस्था भी करनी है।" अरुणा की मम्मी ने चिंतित स्वर में कहा।
"आंटी जी ,आप बिलकुल चिंता मत करिये। अभी सब व्यवस्था हो जायेगी। आप को हमारा आदमी यहाँ पर उपलब्ध किराए के लिए कमरे दिखा देगा और हम टिफ़िन वाले के भी नंबर दे देंगे। सब कुछ अभी हो जाएगा। अरुणा आज से ही क्लास ज्वाइन कर सकती है।" मीनल ने कहा।
"हाँ-हाँ आंटी जी।" पहले वाली लड़की ने कहा।
"अंकल जी फीस कैसे जमा करवायेंगे ? कैश या चेक से ?",अब पहले वाली लड़की सीधे मुद्दे पर आ गयी थी
"बेटा ,चेक से ही जमा करवाएंगे। किसके नाम चेक बना दे ?",अरुणा के पापा ने कहा।
लड़की ने नाम बता दिया था। अरुणा के पापा ने चेक लिख दिया था। फिजूलखर्ची न हो पाए, इसीलिए अरुणा अपना वेतन अपने पापा के खाते में ट्रांसफर कर दिया करती थी। अरुणा ने भी आखिर 'नाम बड़े और दर्शन छोटे ' कोचिंग में दो विषयों की तैयारी के लिए प्रवेश ले ही लिया था।
(4)
कोचिंग सेंटर वालों का बिज़नेस बहुत अच्छे से फल -फूल रहा था। पेइंग गेस्ट वालों से लेकर के, टिफ़िन सेण्टर आदि सभी से इन लोगों का कमीशन बँधा हुआ होता है। नयी जगह पर बच्चे और उनके माँ -बाप बेचारे ज़्यादा भागदौड़ तो कर नहीं पाते, इसीलिए कोचिंग वालों की सलाह अनुसार ही सभी चीज़ों का प्रबंध किया जाता है।
अरुणा को रूम में सेट करके ,खैर सेट तो क्या ही करना था ?अरुणा के पास एक ही बैग था, उसमें ही उस के सारे कपड़े और किताबें आदि सामान आ गया था। उसे पेइंग गेस्ट के जैसे रहना था, इसीलिए पलंग,बिस्तर आदि सब वहीँ पर मिल ही गया था। उस पेइंग गेस्ट हाउस के हर कमरे में अपना अलग सब -मीटर लगा हुआ था। किराए के अनुसार रूम की भी केटेगरी थी। अरुणा का बजट कम था, इसीलिए उसने थोड़ा सस्ता रूम लिया था। इस रूम में अटैच लेटबाथ नहीं थे। 6 लड़कियों के बीच एक कॉमन वाशरूम था।
अरुणा को तो वैसे भी जल्द से जल्द पाठ्यक्रम पूरा कर अपने शहर लौटना था।ज्यादा दिन वह दिल्ली में रुक नहीं सकती थी। अरुणा ने अपनी खाली नोटबुक और पैन अपने एक बैग में डाला और चप्पल पहनकर,अपनी पहली क्लास अटेंड करने चल पड़ी। कोचिंग के पास ही पेइंग गेस्ट में रह रही थी, इसीलिए पैदल आना-जाना संभव था। इससे दो फायदे थे, एक तो किराए के पैसे बच जाते और दूसरा आने -जाने में लगने वाला समय। सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वालों के लिए १-१ मिनट क़ीमती होता है।
अरुणा क्लास रूम में क्लास शुरू होने से 10 मिनट पहले ही आकर बैठ गयी थी। क्लास रूम में लगभग 100 विद्यार्थियों के बैठने की जगह थी। चेयर्स लगी हुई थी, जिनके हैंडल पर ही नोटबुक रखकर लिखने की व्यवस्था थी। धीरे-धीरे विद्यार्थी आने लगे, कुछ देर में टीचर भी आ गए। पहली क्लास सामान्य अध्ययन के विषय पॉलिटी की थी। सर ने मूलाधिकार पढ़ाने शुरू किये। डी डी बासु से अरुणा को यह तो पता चल गया था कि मूलाधिकार से पहले 12 अनुच्छेद और हैं। उसने सर से पूछा कि ,"सर ,बाकी के अनुच्छेद ?"
"आज तो मेरी पाँचवी क्लास है। वह तो पहले की क्लासेज में पढ़ा दिये गए हैं। तुम अगले बैच के साथ, जो क्लासेज छूट गयी हैं कर लेना।" सर ने जवाब दिया।
अरुणा की सिलेबस छूट जाने की समस्या का एक बार तो समाधान हो ही गया था।
दो दिन बाद स्वयं को जीत के गुरूजी घोषित कर चुके पाण्डे सर की क्लास थी। आज कल तो सर छोटे -छोटे शहरों में भी 'जीत आपकी' टाइप के सेमीनार लेते हैं। वहाँ सेमीनार में बैठे -बैठे ही आपको आईएएस बना डालते हैं। जीत के गुरूजी अपनी खुद की एक मासिक मैगज़ीन भी निकालते हैं। इनकी मैगज़ीन और सेमीनार का ही जादू है कि कोचिंग में पढ़ाई का स्तर कितना ही गिर जाए, लेकिन इनकी कोचिंग में विद्यार्थियों की संख्या में कभी कोई कमी नहीं आती। दुःख तब होता है जब अपनी जमीन -जायदाद बेचकर कोचिंग करने आने वाले विद्यार्थी अपने आपको ठगा सा महसूस करते हैं। उन चयनित प्रतिभागियों से भी शिकायत है, जो कुछ उपहारों की खातिर ऐसे घाघ कोचिंग वालों को अपना नाम इस्तेमाल करने देते हैं।
अरुणा दो दिन बाद अपनी जीत पक्की करने के लिए ,मतलब चयनित होने के गूढ़ रहस्य जानने के लिए, ' जीत के गुरूजी' की क्लास में बैठी हुई थी। जीत के गुरूजी ने तो परीक्षा को बहुत आसान साबित कर दिया और अपनी गणित के द्वारा जता दिया कि असली प्रतियोगिता तो बस कुछ हज़ार लोगों के बीच ही होती है।
"प्रत्येक वर्ष कितने लोग सिविल सेवा एग्जाम का फॉर्म भरते हैं ?", गुरूजी ने पूछा। गुरूजी सेमीनार लेते -लेते ऑडियंस की नस -नस से वाकिफ हो गए थे। अपने साथ ऑडियंस को कैसे इन्वॉल्व करना है, बखूबी जानते थे।
"सर ,यहीं कोई 5 लाख।" किसी एक जागरूक विद्यार्थी ने कहा। उस समय तक लगभग इतने ही फॉर्म भरे जाते थे।
"उसमें से लगभग आधे अभ्यर्थी ही प्री की परीक्षा देने आते हैं। उनमें से आधे अभ्यर्थी ही तैयारी के लिए गंभीर होते हैं। गंभीर अभ्यर्थियों में भी लगभग आधे अभ्यर्थियों को ही सही मार्गदर्शन मिल पाता है।" गुरूजी ने कहा और पानी पीने के लिए रुक गए।
"इनमें से किसी रिक्ति के लगभग 16 से 18 गुना विद्यार्थी मैन्स एग्जाम में बैठने के लिए यूपीएससी द्वारा क्वालीफाई किये जाते हैं। जो कि लगभग 12000 -13000 होते हैं। इनमें से एक तिहाई अभ्यर्थियों का किस्मत से प्री क्वालीफाई हो जाता है। इन्हें खुद को यकीन नहीं होता कि इनका प्री क्वालीफाई हो गया है। इनकी मैन्स की कोई तैयारी नहीं होती। ये प्री के रिजल्ट के बाद मैन्स की तैयारी शुरू करते हैं। तुम्हारा वाकई में कम्पटीशन कुछ 10000 गंभीर विद्यार्थियों से है।" गुरूजी ने कहा।
उसक बाद गुरूजी ने बाज का उदाहरण दिया कि ,"बारिश में सभी पक्षी आश्रय ढूंढते हैं, वहीं बाज अपन पंखों पर भरोसा करते हुए बादलों को चीरकर उनसे ऊपर पहुँच जाता है और खुद को बारिश से बचाता है। हम यहाँ आपक पंखों को उतना ही मजबूत बना देंगे कि आप यूपीएससी द्वारा लिए जाने वाले ,इस सिविल सेवा एग्जाम को चीरकर सिविल सेवक बन जाओगे। पूरा क्लास रूम तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था।
तब जीत के गुरूजी की बात सुनकर अरुणा को भी लगा था कि ,"कितना सरल एग्जाम है।लोग बेकार ही एग्जाम को मदर ऑफ़ आल एक्साम्स कहते हैं। "
लेकिन धीरे -धीरे अरुणा को समझ आ गया था कि वह कोचिंग के मकड़जाल में फंस गयी है। कोचिंग वालों ने प्री एग्जाम के बाद से एक बैच शुरू किया था। हर बार विज्ञापन देते हैं कि हम नया बैच प्रारम्भ कर रहे हैं। लिमिटेड सीट्स हैं, अपनी सीट सुनिश्चित कर लेवें। पुराने बच्चे कोचिंग की असलियत जानकर ,कोचिंग छोड़ते जाते हैं और नए बच्चे प्रवेश लेते रहते हैं, कोचिंग का धंधा दिन-दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करता रहता है।
मुखर्जी नगर के ज़्यादातर सभी कोचिंग संस्थानों की यही कहानी है। उन्हें बच्चों के सपनों से कोई लेना-देना नहीं है। कहते हैं कि यदि किसी परिवार में कोई एक सदस्य आईएएस बन जाए तो सातों पीढ़ियाँ तर जाती हैं। लेकिन यह कोई नहीं कहता कि अपनी जमा-पूँजी लगाकर बच्चे को तैयारी करवाने पर यदि बच्चा सिविल सेवा में चयनित नहीं हो तो पूरा परिवार दुःख ,गरीबी और निराशा के भँवर में डूब जाता है। इस भौतिकवादी युग में जहाँ हर व्यक्ति ,हर रिश्ते यहाँ तक कि जज़्बातों का भी मूल्याङ्कन पैसे के बल पर होता है, वहाँ कोचिंग संस्थानों से नैतिकता की उम्मीद रखना बेमानी है।
अरुणा जान चुकी थी कि जीत के गुरूजी खुद तो कभी प्री तक क्वालीफाई नहीं कर पाए थे, वह क्या सफ़लता के गुर रहस्य बताएँगे। लेकिन अब अरुणा किसी और कोचिंग में भी नहीं जा सकती थी। अब तो लोक प्रशासन विषय के चयन पर भी उसे संदेह होने लगा था। उसके पेइंग गेस्ट में रहने वाली लड़कियों का कहना भी था कि ,"हिंदी माध्यम के लिए लोक प्रशासन सही विषय नहीं है। "
अरुणा को यह विषय पढ़ते हुए लगभग 2 महीने हो गए थे, इसीलिए वह लोक प्रशासन को ही प्रथम वैकल्पिक विषय के रूप में रखना चाहती थी। उसने दूसरे विषय के रूप में दर्शनशास्त्र लेने का निर्णय ले लिया था। उसने सोचा था कि एक बार प्रारम्भिकी परीक्षा हो जाए, फिर दूसरे विषय की कोचिंग लेगी।
अरुणा ने दिल्ली आने के बाद ही हिन्दू अखबार लगवा लिया था। अखबार ठीक से पढ़ने में 2 से 3 घण्टे लग जाते थे। अगर हिन्दू पढ़ती तो बाकी की चीज़ें छूट जाती। सभी विषयों की ncert पढ़नी थी। इतिहास ,भूगोल ,पॉलिटी ,इकोनॉमिक्स ,आर्ट एंड कल्चर, पारिस्थितिकी ,सरकारी योजनाएँ ,बजट, हर माह आने वाली पत्रिकाएं योजना ,कुरुक्षेत्र ,करंट अफेयर्स, इतना कुछ पढ़ने के लिए था। इतना सब तो सिर्फ सामान्य अध्ययन के लिए पढ़ना था।
उसके बाद लोक प्रशासन विषय पढ़ो। लोक प्रशासन के थिंकर्स उसे समझ ही नहीं आते थे। लोक प्रशासन की tmh की एम लक्ष्मीकान्त द्वारा लिखी हुई गाइड भी ले ली थी। अरुणा को लग रहा था कि सब कुछ फैलता जा रहा है। कुछ अनुभवी लोगों ने ,मतलब जो कि एक -दो बार मैन्स लिख चुके थे, अरुणा को सलाह भी दी कि उसे पढ़ने के साथ -साथ पिछले सालों के प्री के पेपर सॉल्व करने चाहिए। ऑब्जेक्टिव टाइप परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए ,विकल्पों को चुनने से ज़्यादा विकल्पों को हटाना आना चाहिये, लेकिन अरुणा को पहले सिलेबस फिनिश करना था, उसके बाद ही तो वह पुराने पेपर सॉल्व कर सकती थी।
फिर अरुणा को इंडिया ईयर बुक के बारे में पता चला। १०००-१५०० पृष्ठों वाली भारत सरकार द्वारा प्रकाशित होने वाली यह किताब, हिंदी माध्यम के विधार्थियों में भारत नाम से प्रसिद्ध थी। अपने आसपास के लोगों की सलाह पर अरुणा ने यह पुस्तक भी ख़रीद ली थी। अरुणा के पास स्टडी मटेरियल बढ़ता ही जा रहा था। उस पर यह सब पढ़ने का दबाव भी बढ़ता जा रहा था। सिलेबस फ़िनिश होने का नाम नहीं ले रहा था। लेकिन अरुणा को कभी किसी ने यह सुझाव नहीं दिया कि ,"इस परीक्षा का सिलेबस कभी पूरा नहीं होता, तुम्हें हर टॉपिक पूरा करने के बाद उससे संबंधित लास्ट ईयर के प्रश्न सॉल्व करने चाहिए। इससे एक तो पता चलेगा कि यूपीएससी में किस तरीके के प्रश्न पूछे जाते हैं और साथ ही विकल्पों को हटाना भी आसान हो जाएगा। "
अरुणा ने यूपीएससी का फॉर्म भर दिया था। वह अपनी तैयारी से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी, फिर भी वह प्री अर्थात प्रारम्भिकी परीक्षा में सम्मिलित हुई। जैसा होना था, अरुणा अपने पहले प्रयास में प्री परीक्षा भी क्वालीफाई नहीं कर पायी थी। अरुणा के मम्मी -पापा ने किसी भी रिश्तेदार को यह नहीं बताया था कि अरुणा दिल्ली में सिविल सर्विस की तैयारी कर रही है। लेकिन रिश्तेदारों को भनक तो लग ही जाती है। कई बार न चाहते हुए भी मम्मी -पापा के मुँह से भी निकल ही जाता था। परिणाम वाले दिन रिश्तेदार पूछ -पूछकरऔर दिमाग़ खराब कर देते हैं।
दूसरों के बच्चों के परिणाम जानने में न जाने उन्हें इतनी रूचि क्यों होती है। अगर परिणाम सकारात्मक होगा तो ,अपने आप ही सामने वाला बता देगा। लेकिन जब तक जले पर भर -भर कर नमक न छिड़क लें ,उन्हें चैन कहाँ मिलता है।
अरुणा का आत्मविश्वास तो पूरी तरह बिखर ही चुका था। वह तो पहले भी तैयारी के चक्कर में कहीं आ-जा नहीं पाती थी। अब नकारात्मक परिणाम के कारण उसने रिश्तेदारों से बिल्कुल ही मिलना -जुलना छोड़ दिया था।
(5)
मूर्ख इंसान अपनी असफलता के कारण बाहर की दुनिया में तलाशते हैं ,वहीँ समझदार इंसान आत्मावलोकन करते हैं। अरुणा निराश थी ,वह जान गयी थी कि यूपीएससी की तैयारी, तलवार पर चलने के समान है। वह लोक प्रशासन में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी थी।
वह पछता रही थी कि उसे ४ महीने पहले ही विषय बदल देना चाहिए था। अब उसे कौनसा विषय लेना चाहिए, उसे समझ नहीं आ रहा था। खैर उसने दूसरे विषय दर्शनशास्त्र की तैयारी के लिए कोचिंग में प्रवेश ले लिया था। ज़्यादातर अभ्यर्थी दर्शनशास्त्र ,संस्कृत साहित्य ,मानवशास्त्र ,हिंदी साहित्य जैसे विषय दूसरे वैकल्पिक विषय के रूप में लेते हैं, इनका सिलेबस छोटा होता है और प्री परीक्षा के बाद तैयारी कर सकते हैं।
कोचिंग का क्लासरूम ,रूम नहीं था ,बल्कि बड़ा सा हॉल था। हॉल की क्षमता लगभग 200 -250 विद्यार्थियों की थी। क्लास ठसाठस भरी हुई थी। इतने बड़े हॉल में सर की आवाज़ कैसे बच्चों तक पहुँचेगी ?अरुणा मन ही मन सोच रही थी। थोड़ी देर में सर भी आ गए थे। सर ने कॉलर माइक से पढ़ाना शुरू किया। सर ने दर्शनशास्त्र विषय के फायदे बताए। साथ ही सर से पढ़े हुए एवं चयनित 2-4 अभ्यर्थियों के नामों का जिक्र किया।
"आप लोगों को चयनित अभ्यर्थियों से मिलवाया जाएगा। चयनित लोग आप जैसे ही होते हैं। अगर सही दिशा में मेहनत की जाए तो सफ़लता अवश्य ही मिलती है। मैं यहाँ आपको सही दिशा देने के लिए ही हूँ।" सर ने कहा।
यह सर यूपीएससी परीक्षा के इंटरव्यू तक पहुँचे थे। लेकिन अंतिम रूप से चयनित नहीं हो पाए थे। मुखर्जी नगर में ज्यादातर कोचिंगों का संचालन सिविल सेवा की परीक्षा में असफ़ल रहे लोगों द्वारा ही किया जा रहा था। कुछ एक कोचिंग्स, चयन के बाद नौकरी से इस्तीफा दे चुके लोगों द्वारा भी चलाई जा रही थी, लेकिन अरुणा को इसका पता बत्रा सिनेमा के आसपास नोट्स और किताबें खरीदते हुए चला था।
बत्रा पर ही मेरठ वाला और अग्रवाल स्वीट्स की प्रसिद्ध दुकानें थीं। अरुणा कभी से अग्रवाल स्वीट्स पर समोसा खा लेती थी। मेरठ वाला अपनी रेट लिस्ट के कारण उसके बजट से बाहर होता था। अग्रवाल स्वीट्स के समोसे के साथ एक रोचक किस्सा भी जुड़ा हुआ था।
बिहार -बंगाल की तरफ़ समोसे को सिंघाड़ा कहा जाता है। अरुणा के पास वाले कमरे में रहने वाली लड़की बिहार की थी।अरुणा को उस दिन शाम को कुछ किताबें लेने के लिए बत्रा जा रही थी। जब भी कोई लड़की बत्रा जाती थी तो आसपास वाली लड़कियों से पूछ लेती थी कि ,"किसी को कुछ चाहिये क्या ?"
अरुणा भी अपनी पड़ौसी लड़कियों से पूछकर आयी थी। तो सबको पता चल गया था कि अरुणा बत्रा जा रही है। अरुणा सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ गयी थी। तब ही बिहार वाली लड़की ने ऊपर से आवाज़ लगाई और कहा कि ,"मेरे लिए सिंघाड़े ले आना। "
अरुणा ने कहा ,"ठीक है। "
"लेकिन इस सीजन में सिंघाड़े कहाँ से मिलेंगे ?",अरुणा ने अपने मन में सोचा। अरुणा केवल सिंघाड़े नामक फल स ह परिचित थी। इस फल को सुखाकर ,इसका आटा बनाते हैं और व्रत-उपवास के दौरान जो लोग फलाहार करते हैं ,वे इस आटे का हलवा ,पूरी ,पकौड़ी आदि बनाते हैं।
अपनी किताबें लेने के बाद अरुणा न इधर-उधर बहुत ढूँढा ,लेकिन उसे सिंघाड़े कहीं नहीं मिले। आज अरुणा थोड़ी लेट हो गयी थी, इसीलिए अग्रवाल के पास स्थित छोले-भटूरे वाला भी अपना सारा सामान निपटाकर दुकान बंद करके चलता बना था। इसकी दुकान थी और बिठाकर खिलाने के लिए अलग से एक छोटी दुकान और थी। यही कारण था कि इसके छोले -भटुरे ठेलेवालों के छोले -भटूरों से महँगे होते थे। लेकिन फि भी अरुणा के टिफिन के खाने से स्वाद में बढ़िया और सस्ते ही होते थे। अरुणा को जब भी बत्रा आना होता था, वह अपने टिफ़िन वाले को मना कर देती थी। यहाँ पर टिफ़िन ऑफ करवाने की सुविधा थी और जिस दिन आप टिफ़िन नहीं मँगवायेंगे ,उस दिन के पैसे भी नहीं देने होंगे।
अरुणा को सिंघाड़े पूरे बाज़ार में कहीं नहीं दिखे। वापस आने पर बिहार वाली लड़की ने पूछा ,"आप सिंघाड़े नहीं लाये। "
"इस सीजन में सिघाड़े नहीं मिलते हैं।" अरुणा ने उसकी बुद्धि पर तरस खाते हुए कहा।
"अरे ,अग्रवाल की दुकान से लाने थे। उसके तो गर्म -गर्म बनते ही रहते हैं।" अब उस लड़की ने अरुणा की बुद्धिमानी पर शक करते हुए कहा।
"अग्रवाल पर ?",अरुणा ने आश्चर्य से कहा।
तब तक शायद बिहार वाली कन्या को समझ आ गया था ,उसने कहा ,"अरे ,हम ही भूल गए थे। आपके यहाँ समोसे कहते हैं और हमारे यहाँ बिहार में सिंघाड़े। "
अरुणा ने कहा ,"ओह्ह ,आपको समोसे चाहिए थे। अगली बार ध्यान रखूँगी। "
अरुणा का पेइंग गेस्ट हाउस अपने आप में एक छोटा भारत था। वह राजस्थान से थी, पड़ौस के कमरे में रहने वाली एक लड़की बिहार से और दूसरी हरियाणा से थी। उसी फ्लोर पर एक लड़की उत्तरप्रदेश की और एक मध्यप्रदेश की थी। अरुणा की रूममेट दिल्ली की थी। हरियाणा वाली लड़की विवाहित थी और शादी के बाद उसके ससुराल वाले उस तैयारी ही नहीं करवा रहे थे, बल्कि उसका सारा खर्च भी वहन कर रहे थे। बहुत कम लड़कियाँ इतनी खुशकिस्मत होती हैं कि उनके पंखों को ससुराल वाले उड़ान दे। हरियाणा में तो सभी कुछ एक्सट्रीम है शायद, बाल लिंगानुपात इतना कम है, लेकिन भारत की कई बेहतरीन महिला खिलाड़ी हरियाणा से हैं।
अरुणा अपनी तैयारी में लगी हुई थी। वह अपना पाठ्यक्रम समाप्त कर जल्दी से जल्दी अपन घर वापस लौटना चाहती थी। जीत के गुरूजी की कोचिंग ने तो उसे ठग लिया था और अब तो वह बस दर्शनशास्त्र का पाठ्यक्रम पूरा कर ,अपने घर लौटना चाहती थी।
दर्शनशास्त्र के अध्यापक भी कम खिलाड़ी नहीं थे। उन्होंने सबसे पहले भारतीय दर्शन पढ़ाया, जो कि काफी सरल होता है। क्यूंकि एक बार अध्यापकजी ने खुद ही क्लास में कहा था कि ,"मेरे विरोधी मुझ पर आरोप लगाते हैं कि,मुझे समकालीन पाश्चात्य दर्शन पढ़ाना नहीं आता। लेकिन मैं वह भी अच्छे से पढ़ाता हूँ। "
अध्यापक जी पर लगाए गए आरोप बिलकुल सही थे। वह सबस पहले भारतीय दर्शन पढ़ाते थे, उसमें 2 से ढाई महीने लगा देते थे। मैन्स की परीक्षा में बैठ रहे विद्यार्थी ,उन पर पाठ्यक्रम जल्द से जल्द पूरा करवाने के लिए दबाव बनाने लग जाते थे और फिर वे पाश्चात्य,समकालीन और सामाजिक -राजनीतिक दर्शन पढ़ाने में घास ही काटने लग जाते थे।
यह सब अरुणा को उस समय समझ नहीं आया था, बाद में दर-दर की ठोकरें खाने के बाद समझ आया था। यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली आने वाले अधिकांश विद्यार्थी यहाँ के थपेड़ों से बहुत कुछ सीख कर जाते हैं।
अरुणा की रूममेट तो दिल्ली की होकर भी जीत के गुरूजी की कोचिंग के झाँसे में आ गयी थी। उसी ने बताया था कि ,"मेरे मम्मी -पापा ने तो समझाया था कि 1 -2 दिन यहाँ घूमकर माहौल का जायजा ले लेते हैं। फिर जो कोचिंग सही लगेगा उसमें एडमिशन दिला देंगे। "
लेकिन तब उसने कहा कि ,"यही कोचिंग बेस्ट है। सभी टॉपर लोग यहीं से पढ़कर निकलते हैं।मैं भी इसी में एडमिशन लूँगी। "
अब वह बेस्ट कोचिंग में फंस गयी थी। अरुणा ने तो फिर भी एक ही वैकल्पिक विषय में प्रवेश लिया था, उसने तो दोनों ही वैकल्पिक विषयों के लिए फीस जमा करवा दी थी।
यहाँ आने वाले कुछ ही खुशकिस्मत विद्यार्थी होते हैं, जो एक ही बार में सही वैकल्पिक विषय और मार्गदर्शक का चुनाव कर लेते हैं। सही मिल जाए, वही बहुत बड़ी बात है, बेस्ट तो कुछ होता ही नहीं।
(6)
दर्शनशास्त्र की कोचिंग में उसकी बातचीत आरोही से होने लगी। आरोही सामान्य अध्ययन के लिए अपने कॉलेज के किसी सीनियर से गाइडेंस ले रही थी। आरोही दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक कर चुकी थी।वह स्नातक के प्रथम वर्ष से ही कॉलेज के साथ -साथ सिविल सेवा परीक्षा की भी तैयारी कर रही थी। उसका कहना था कि ,"इतनी अच्छी तैयारी रखनी है कि पहले प्रयास में ही चयनित हो जाऊँ। पंचवर्षीय योजना कार्यक्रम थोड़े न चलाना है। "
उस समय तक योजना आयोग को नीति आयोग से प्रस्थापित नहीं किया गया था। जब योजना आयोग भंग किया गया था ,तब अरुणा बड़ी प्रसन्न हुई थी ,"चलो ,अब पंचवर्षीय योजनाएँ तो नहीं पढ़नी पड़ेगी। "
आरोही की बातें सुनकर अरुणा कभी -कभी मायूस भी हो जाती थी कि ,"वह तो स्नातक पूर्ण करके तैयारी करने लगी है। उसका कम्पीटीशन कितने होशियार लोगों से है।"
रांझणा मूवी में जीशन मोहम्मद का एक डायलाग ,जबकि वह धनुष से कहता है कि ,"तुम्हारा प्यार है कि यूपीएससी का पेपर, 5 साल से निकल ही नहीं रहा। " ,यूपीएससी एग्जाम की प्रकृति और उसके अभ्यर्थियों की मनोदशा का एकदम सही चित्रण करता है।
धीरे-धीरे अरुणा ऐसे -ऐसे महारथियों के बारे में सुनती थी जो कि 10th क्लास से ही तैयारी कर रहे थे। उन्होंने स्कूल और कॉलेज में ऑप्शनल विषय भी सिविल सर्विसेज की तैयारी के अनुरूप ही लिए थे। परिवार और आसपास का माहौल बच्चे की शिक्षा-दीक्षा को बहुत प्रभावित करता है।
आजकल तो 6th क्लास से ही बच्चों को iit -jee की तैयारी करवाने लग जाते हैं। मासूम बच्चों पर इतना बोझ डालना सही है या गलत ? यह तो बहस का विषय है ही, लेकिन कम्पीटीशन ही इतना बढ़ गया है। सभी एक अंतहीन दौड़ का हिस्सा बने हुए हैं। अरुणा को कई बार लगता था कि ,"अगर वह भी जागरूक होती तो 10th क्लास से ही तैयारी करने लग जाती। "
अरुणा और आरोही पास -पास ही बैठते थे और फिर दोनों साथ -साथ ही कोचिंग आने -जाने लग गए थे। एक दिन आरोही नहीं आयी थी, उस दिन अरुणा जब अपने रूम पर लौट रही थी तो रास्ते में चलते हुए एक लड़के से बातचीत होने लगी। अरुणा ने इस लड़के को कोचिंग में कई बार देखा था। वैसे भी आजकल लौटते हुए 8 या 8 :30 बज जाते थे। अरुणा को अकेले जाते हुए डर भी लगता था। उस लड़के ने अपना नाम अमन बताया था।
अब तो अमन ,अरुणा और आरोही तीनों ही अक्सर साथ -साथ कोचिंग से लौटते थे। आरोही का रूम सबसे पहले आ जाता था। अमन अरुणा को उसके रूम के नीचे तक छोड़कर अपने रूम पर जाता था। अरुणा को केवल इतनी जानकारी थी कि अमन पंजाब से है और उसका पहला वैकल्पिक विषय इतिहास है। अमन ने न कभी अरुणा का फ़ोन नंबर माँगा और न कभी अरुणा ने दिया। अरुणा को अमन के साथ रूम तक लौटना सुरक्षा का एहसास मात्र दिलाता था।
आरोही के वह सीनियर बहुत होशियार थे, जैसा कि आरोही ने जिक्र किया था। वह 2 बार यूपीएससी का इंटरव्यू दे चुके थे। उनके नोट्स लेकर पढ़ने वाले अभ्यर्थी अंतिम रूप से यूपीएससी की सेलेक्शन लिस्ट में स्थान बना चुके थे। आरोही अपने सीनियर से बहुत प्रभावित थी और अक्सर उनके बारे में बताती थी।
"सर के साथ तो अभिमान वाली कहानी भी हो चुकी है।" आरोही ने एक बार बताया था।
" क्या मतलब ?", अरुणा ने पूछा।
"अरे यार अमिताभ और जया बच्चन की मूवी थी न, जिसमें जया बच्चन अपने पति अमिताभ बच्चन से ज़्यादा सफल गायिका बन जाती है।" आरोही ने बताया।
"हाँ -हाँ। अपनी पत्नी की सफ़लता से अमिताभ के मेल ईगो को धक्का लगा था।" अरुणा के अंदर की फेमिनिस्ट ने कहा।
"उमेश सर और मेरी ही एक सीनियर दिव्या मैडम साथ में तैयारी कर रहे थे। सर उन्हें पढ़ाते थे, नोट्स बनाकर देते थे। दोनों सीरियस रिलेशनशिप में थे। सुना है कि शादी तक करने वाले थे। मैडम तो सलेक्ट हो गयी, आईएएस बन गयी।" आरोही का बोलना ज़ारी था।
"फिर ,दिव्या मैडम ने तुम्हारे उमेश सर से रिश्ता तोड़ लिया?" अरुणा ने कहा।
"हाँ -हाँ ,वही।" आरोही ने कहा।
"या तुम्हारे उमेश सर ने दिव्या मैडम से रिश्ता तोड़ लिया। शादी में एक मर्द और एक औरत होनी चाहिए, अगर दोनों मर्द हों तो भारत में शादी भला कैसे चल सकती है ?",अरुणा ने कहा।
"क्या बोल रही हो ?",आरोही ने कहा।
"स्त्री ही पुरुष की कामयाबी का जश्न मना सकती है। पुरुष कहाँ कभी स्त्री की कामयाबी को पचा पाता है।" अरुणा ने कहा।
"अब यह या तो उमेश सर जाने या दिव्या मैडम। लेकिन अब दोनों साथ में नहीं है। वैसे ऐसी बहुत सी कहानियाँ मुख़र्जी नगर में घटती रहती हैं।" आरोही ने कहा।
फिर आरोही ने अरुणा से कहा ," अपना पहला ऑप्शनल अभी से अच्छे से तैयार कर लो। उमेश सर कहते है कि प्री से पहले ही पहला ऑप्शनलस तैयार हो जाना चाहिए। वाकई में, वह कहते हैं कि प्री और मैन्स की तैयारी साथ -साथ होनी चाहिए। "
"यार ,पहला ऑप्शनल लोक प्रशासन ले तो लिया ,लेकिन थोड़ा कन्फ्यूजन है। लोक प्रशासन से तो प्री भी qualify नहीं कर पायी। ऐसा सुना है कि हिंदी माध्यम के लिए लोक प्रशासन एक अच्छा ऑप्शनल नहीं है।समझ नहीं आ रहा कि इसे ही रखूँ या बदल लूँ।" अरुणा ने कहा।
"आज क्लास के बाद मेरे साथ चलकर उमेश सर से मिल लो। शायद तुम किसी निर्णय पर पहुँच सको।" आरोही ने कहा।
"ठीक है। कल दोपहर ,मैं तुम्हें अग्रवाल स्वीट्स पर मिल जाऊँगी" अरुणा ने यह सोचकर हाँ कह दिया था कि एक बार मिलने में तो कोई बुराई नहीं है।
"ok,done . " आरोही ने कहा।
(7)
अगले दिन अरुणा अग्रवाल स्वीट्स पर पहुँच गयी थी। आरोही 5 मिनट बाद ही वहाँ आ गयी थी। दोनों ने पहले से तय कार्यक्रमानुसार कार्नर वाली दुकान से छोले -भटूरे खाये। पेट -पूजा करके दोनों उमेश सर के कमरे की तरफ चली।
उमेश सर अकेले ही रहते थे। अब सर तैयारी करने के साथ -साथ छोटी कोचिंग में २ घंटे पढ़ा भी रहे थे। सर का jrf क्लियर हो गया था तो उसकी छात्रवृत्ति भी मिल जाती थी। कुल मिलाकर सर एक अच्छी जीवन शैली अफोर्ड कर सकते थे। आरोही और अरुणा दोनों सर के रूम पर पहुँच गयी थी। सर का कमरा दूसरे फ्लोर पर था।
सर का रूम अच्छे से व्यवस्थित था। सर के कमरे की दीवारों पर भारत और विश्व के भौगोलिक और राजनीतिक मानचित्र चिपके हुए थे। यह मानचित्र कमोबेश हर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी के रूम पर चिपके हुए मिल जाएंगे। सर के कमरे में एक कोने पर बुक शेल्फ रखा हुआ था। एक कोने पर एक टेबल और चेयर रखी हुई थी। टेबल पर टेबल लैंप रखा हुआ था। बुक शेल्फ में ही नीचे कुछ कपड़े भी रखे हुए थे। सर के पास कूलर भी था और सर के रूम से ही अटैच वाशरूम था। सर के बिस्तर पर कुछ न्यूज़ पेपर जैसे हिन्दू ,हिन्दुस्तान ,जनसत्ता आदि रखे हुए थे। सर के रूम में एक छोटा सा टीवी भी रखा हुआ था।
अरुणा अभी उमेश सर के रूम का मुआयना ही कर रही थी कि सर बिस्तर से उठ कर उन लोगों का स्वागत करते हुए बोले ,"आओ आरोही ,तैयारी कैसी चल रही है ?"
"ठीक ही चल रही है। बाकी तो असली तैयारी का पता एग्जाम के समय ही चलता है। यह मेरी दोस्त अरुणा है, आपको बताया था न। अपन पहले ऑप्शनल को लेकर बहुत परेशान है। "
"आओ तुम दोनों यहाँ बैठो। मैं अभी सामने थड़ी वाले को ३ चाय के लिए बोल देता हूँ।" उमेश सर ने बिस्तर पर बिखरे हुए पेपर एक तरफ करते हुए कहा।
आरोही और अरुणा दोनों बिस्तर पर बैठ गए थे। अरुणा की नज़र बिस्तर पर पड़ी हुई कुछ उत्तर पुस्तिकाओं पर पड़ी। वह उन्हें उलट -पुलट कर देखने लगी। तब तक उमेश सर वापिस आ गए थे। सर ने टेबल के नीचे रखी हुई कुर्सी खींच ली थी और उस पर बैठ गए थे।
"आराम से बैठो।" सर ने अरुणा को कम्फर्टेबल करने के लिए कहा।
"कुछ नहीं ,बच्चों की कॉपी चेक कर रहा था। जिस कोचिंग में पढ़ाता हूँ ,वहाँ के बच्चों की है।" उमेश सर ने उत्तर पुस्तिकायें उलट -पुलट कर रही अरुणा की तरफ देखते हुए कहा।
"सर ,इससे आपकी पढ़ाई में बाधा नहीं पड़ती। " ,अरुणा ने पूछा।
"नहीं ,इस बहाने से मेरा खुद का विषय तैयार हो जाता है। इस बार का प्रयास अंतिम प्रयास है, अगर चयन नहीं हुआ तो अन्य करियर विकल्प भी होना चाहिए। खुद चाहे आईएएस न बने, लेकिन दूसरों को तो बना ही सकता हूँ।" उमेश सर ने कहा।
"देखना सर ,इस बार आपका हो जाएगा।" आरोही ने कहा।
"उम्मीद तो है।इस बार तो विषय भी बदल लिया है।" उमेश सर ने कहा।
"क्यों सर ?अंतिम प्रयास में विषय बदलना आत्महत्या करने जैसा नहीं है क्या ?",अरुणा ने आश्चर्य से कहा।
"लेकिन अंतिम प्रयास में वही पुरानी गल्तियों को दोहराना भी तो सही नहीं है।" उमेश सर ने कहा।
"आप वह विषय तैयार कर चुके हो। आपने अपनी इतनी ऊर्जा उसमें निवेश की है।" अरुणा ने कहा।
"इसी चक्कर में तो मैं उस विषय को नहीं छोड़ पा रहा था। पिछले तीनों प्रयासों में मेरा चयन इसी इतिहास विषय के कारण नहीं हो पाया है। सब कुछ करके देख लिया ,लेकिन कोई भी रणनीति काम ही नहीं कर रही। अब दर्शनशास्त्र के साथ संस्कृत ले रहा हूँ। संस्कृत का पाठ्यक्रम छोटा है, आधे से ज़्यादा तो मेरा तैयार भी हो गया है।" उमेश सर ने कहा।
"सर ,तीन -तीन विषय।" अरूणा ने आश्चर्य से कहा।
"हाँ ,बस मुझे अपना चयन करवाना है। प्री में इतिहास था और अब मैन्स में संस्कृत साहित्य और दर्शनशास्त्र ले रहा हूँ।" उमेश सर ने कहा।
"लेकिन सर ,सब लोग कहते हैं ऐसा विषय लो जो कि मैन्स के दूसरे पेपर जैसे निबंध ,सामान्य अध्ययन आदि में भी मदद करे।" अरुणा ने कहा।
"अरुणा ,जरूरी नहीं है कि जो मेरी रणनीति है, वह तुम्हारे लिए भी काम करे। सबकी क्षमताएँ अलग -अलग होती हैं ,पढ़ने का तरीका अलग -अलग होता है। सबको वह रणनीति बनानी चाहिए जो खुद के लिए सर्वश्रेष्ठ हो। वैसे ही विषयों का चयन अपने अनुसार करना चाहिये। आरोही बता रही थी कि तुम्हें कुछ ऑप्शनल विषय को लेकर ही संशय है।" उमेश सर ने कहा।
"हाँ -हाँ।" आरोही ने कहा।
"अरे ,चाय वाला अभी तक चाय देकर नहीं गया। उसे दोबारा बोलकर आता हूँ।" उमेश सर ने आरोही की बात ख़त्म होने से पहले ही कहा।
"हाँ ,आरोही ,तो हम कहाँ थे ?",उमेश सर ने अंदर आकर कुर्सी पर बैठ हुए कहा।
"सर ,मैंने इस बार का प्री लोक प्रशासन से दिया था। प्री भी नहीं निकाल सकी। लोक प्रशासन में रूचि भी नहीं है। हिन्दी माध्यम से इस विषय में ज्यादा चयन भी नहीं होते हैं।" आरोही ने कहा।
"तुम्हें इंट्रेस्ट किस विषय में है ?",उमेश सर ने कहा।
"मुझे तो इतिहास में रूचि है। लेकिन पाठ्यक्रम देखा था, बहुत बड़ा था, इसीलिए नहीं लिया।" आरोही ने कहा।
"अच्छा ,महात्मा गाँधी ने कभी कांग्रेस के किसी अधिवेशन की अध्यक्षता की थी ?",उमेश सर ने एकदम से पूछा।
"जी सर ,बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। पहली और आख़िरी बार इसी अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।" ये सर भी अजीब ही हैं ,हम ऑप्शनल डिस्कस कर रहे हैं और इन्हें कांग्रेस अधिवेशन की पड़ी है, ऐसा सोचते हुए अरुणा ने जवाब दिया।
"सही बताया। बाद के वर्षों में सुरिंदरनाथ बनर्जी कांग्रेस केबी बहुत महत्वपूर्ण नेता बन गए थे, लेकिन कांग्रेस के पहले बम्बई अधिवेशन में वह उपस्थित नहीं थे। इसके पीछे क्या कारण थे ?",उमेश सर ने पूछा।
"बीमार हो गए होंगे।" आरोही ने कहा।
"नहीं ,वह उस समय इण्डियन एसोसिएशन के अधिवेशन में व्यस्त थे।" अरुणा ने आरोही को करेक्ट करते हुए कहा।
"बिल्कुल सही।" उमेश सर ने कहा। तभी चायवाला चाय लेकर आ गया था।
"क्या ,राजू आज तो तुम बीरबल की खिचड़ी बनाने में लगे हुए थे।" उमेश सर ने आरोही और अरुणा को चाय पकड़ाते हुए कहा।
"अरे भैया ,आज दुकान पर भीड़ बहुत थी।" राजू ने कहा।
"अरे राजू ,यह दीदी सिविल सेवा में अपने ऑप्शनल को लेकर बहुत चिंतित है। तुम क्या कहते हो?",उमेश सर ने राजू से पूछा।
मुखर्जी नगर के अगर ईंट -पत्थरों से पूछोगे तो, वे भी आपको सिविल सर्विसेज की तैयारी कैसे करनी है? यह ज्ञान दे ही देंगे।
फोटोकॉपी वाले, चाय की थड़ी वाले,चाट वाले सभी आपको बता देंगे कि कौनसे नोट्स अच्छे हैं ?कौनसी कोचिंग अच्छी है ?कौनसी किताबें लेनी है ?
"अरे दीदी, जिस विषय को पढ़ने में मज़ा आये, जिसे पढ़ते हुए आप बोर न हों, वह विषय ले लो।" राजू ने कहा।
"राजू ,यह दीदी ,जीत के गुरूजी की कोचिंग में पढ़ती है।" उमेश सर ने कहा।
सर की बात सुनते ही राजू ज़ोर -ज़ोर से हँसने लगा और फिर गंभीरतापूर्वक बोला ,"कोई बात नहीं दीदी, इंसान अपनी गलतियों से ही सीखता है। "
"अच्छा भैया ,अब जाता हूँ। चाय के पैसे आपके हिसाब में जोड़ लूँगा।" राजू वहाँ से चला गया था।
"भारत में शीशे के सिक्के किसने चलाये थे ?",उमेश सर ने पूछा।
"सातवाहनों ने।" अरुणा ने जवाब दिया।
"किस राजा के सिक्कों पर पानी के जहाज़ बने हुए थे ?",उमेश सर का प्रश्न पूछना जारी था।
"सातवाहन नरेश यज्ञ श्री शातकर्णी ने चलाये थे।" अरुणा एक के बाद एक सभी सवालों के सही जवाब दिए जा रही थी।
"अरुणा ,महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा ,असहयोग ,विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे साधन क्यों उपयोग लिए ?",उमेश सर ने पूछा।
"क्यूँकि ,आम जनता ऐसे अहिंसक आन्दोलनों से आसानी से जुड़ सकती थी। अपने रोज़मर्रा के कार्यों के साथ भी जनता स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी कर सकती थी।",अरुणा ज़वाब दे रही थी कि तब ही आरोही बीच में बोल पड़ी ,"उमेश सर ,आप क्या अरुणा का यूपीएससी का इंटरव्यू लेने लग गए। पहले उस बेचारी की समस्या का समाधान तो कर दो।" अब आरोही धैर्य खोने लगी थी।
"अरुणा की समस्या का ही तो समाधान कर रहा हूँ। उसे हिस्ट्री में इंट्रेस्ट भी है और इसके जवाबों से लग रहा है कि जब यह सामान्य अध्ययन के लिए हिस्ट्री इतना अच्छा पढ़ सकती है तो ऑप्शनल के लिए भी पढ़ ही लेगी।" उमेश सर ने अधीर हो रही आरोही की तरफ देखते हुए कहा।
"लेकिन सर ,अब मैं हिस्ट्री की कोचिंग नहीं कर सकती। क्या मैं खुद से तैयारी कर पाऊँगी ?",अरुणा ने पूछा।
"तुम्हें विषय की अच्छी समझ है। खुद से पढ़ लोगी और मैन्स के लिए आंसर राइटिंग की प्रैक्टिस के लिए कोई अच्छी सी टेस्ट सीरीज ज्वाइन कर लेना। मेरी तो यही राय है।" उमेश सर ने कहा।
"सर ,हमारे स्टेट में राज्य सेवा की रिक्तियाँ निकलने वाली हैं। तब तक क्या तैयार कर पाऊँगी ?",अरुणा ने कहा।
"तुम स्टेट सर्विसेज का एग्जाम दोगी ?",उमेश सर ने आश्चर्य से कहा।
"जी सर, यूपीएससी से मिले एक रिजेक्शन ने मेरे कॉन्फिडेंस की बैंड बजा दी है। स्टेट सर्विस में अगर एक बार चयनित हो गयी तो मेरा आत्मविश्वास वापस आ जाएगा।" अरुणा ने कहा।
"हाँ ,तुम्हारे राज्य में तो महिलाओं को 33 % आरक्षण भी है।" उमेश सर ने आरक्षण शब्द पर विशेष ज़ोर देते हुए कहा।
"सर ,लड़कियों के मार्ग में बहुत बाधाएँ होती हैं, इसीलिए आरक्षण देना जरूरी है। घरवालों को २५-२६ वर्ष का होते -होते उनक विवाह की चिंता होने लग जाती है। शायद कुछ लड़कियाँ तो अपने चारों अटेम्प्ट भी नहीं दे पाती।" अरुणा ने कहा।
"अरे ,तुम ख़ामख़ा इतनी इमोशनल हो रही हो। मुखर्जी नगर में आने वाली लड़की या तो ख़ुद सिविल सर्वेंट बन जाती है या सिविल सर्वेंट की बीवी। परेशानी तो लड़कों की है, घरवाले अलग जान खाते हैं और जब अपने साथ के लड़कों को परिवार के साथ सेटल देखते हैं तो खुद पर पर दया और गुस्सा दोनों ही आने लग जाता है। ख़ैर वह सब छोड़ो, अंतहीन बहस के विषय हैं। मुझे लगता है, अब तो तुम्हारी समस्या का समाधान हो ही गया होगा।" उमेश सर ने कहा।
अरुणा को उमेश सर की सिविल सर्वेंट वाली बात अच्छी नहीं लगी थी। लड़के भी तो सिविल सर्वेंट क पति बन सकते हैं, लेकिन उनका खुद का ईगो ही आड़े आ जाता है। लेकिन वह उमेश सर से बेकार की बहस नहीं करना चाहती थी, इसीलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।
"सर ,सामान्य अध्ययन का पाठयक्रम इतना बड़ा है न कि सब चीज़ें हो ही नहीं पाती। कुछ विषय तो मुझे ज़रा भी समझ नहीं आते।" अरुणा ने पूछा।
"सामान्य अध्ययन का पाठयक्रम तो टॉपर भी पूरा नहीं कर पाते। तुम कुछ विषयों पर अपनी पकड़ बनाओ, जिनमें तुम्हारी विशेष रूचि है। जिनमें तुम्हारी अच्छी तैयारी है, उन्हें अच्छे से तैयार करो। जिनमें तुम कम्फर्टेबल नहीं हो, उन पर अपनी एनर्जी जाया मत करो। जैसे मैंने हिस्ट्री ,पॉलिटी,जियोग्राफी ,पारिस्थितकी ,सामाजिक मुद्दों को अच्छे से तैयार किया है, बाकी अन्य विषयों को सरसरी तौर पर। वैसे भी नेगेटिव मार्किंग होती है तो तुम सारे प्रश्न हल नहीं कर सकती हो। वाकई में कोई भी हल नहीं कर सकता। यूपीएससी का अपना कोई स्टैण्डर्ड भी है।" उमेश सर ने समझाते हुए कहा।
"थैंक यू सर ,आपने मेरी बहुत सी उलझनों को सुलझा दिया।" अरुणा ने कहा।
"तुम लोगों का थोड़ा सा टाइम और लूँगा। तुमने शिवाजी और बूढ़ी औरत की खिचड़ी वाली कहानी तो सुनी ही होगी।" उमेश सर ने पूछा।
"कौनसी कहानी ?",आरोही और अरुणा ने एक साथ पूछा।
"मुगलों से हारने के बाद शिवाजी इधर -उधर भटक रहे थे। एक रात किसी बूढ़ी औरत के घर रुके। उन्होंने शिवाजी के लिए खिचड़ी बनाई और गरमागरम खिचड़ी शिवाजी को थाली में परोसकर दी। शिवाजी थाली के बीच से उठाकर खिचड़ी खाने लगे तो उनका हाथ और मुँह दोनों ही जल गए।" उमेश सर ने कहा।
"फिर ?",आरोही ने पूछा।
"फिर क्या, बूढ़ी अम्मा न कहा कि बेटा तू भी हमारे शिवाजी महाराज की गलती दोहरा रहा है। थाली के किनारों की खिचड़ी पहले ठंडी होती है तो पहले किनारों से खिचड़ी खा और उसके बाद बीच से। ऐसे ही शिवाजी महाराज को पहले वह किले जीतने चाहिए जहाँ की सुरक्षा कमजोर है और उसके बाद दूसरे। तो तुम क्या समझी ?",उमेश सर ने पूछा।
"यही कि सामान्य अध्ययन के पहले वह विषय तैयार करें जो कि मुझे आसान और रुचिकर लगते हैं।" अरुणा ने कहा।
"बिलकुल सही समझी तुम।" उमेश सर ने मुस्कुराते हुए कहा।
अरुणा और आरोही उमेश सर से विदा लेकर अपने -अपने कमरे पर चले गए थे। किसी भी लड़ाई को जीतने के लिए योजना और तैयारी अच्छी होनी चाहिये, नहीं तो बड़े से बड़े योद्धा भी हार जाते हैं। 1857 की क्रांति भी इसीलिए असफ़ल हुई थी, क्यूँकि इसके पीछे कोई सुनियोजित योजना नहीं थी। अच्छी योजना, सफ़लता की इमारत की नींव का प्रथम पत्थर है, अरुणा को आज यह अच्छे से समझ आ गया था।
(8)
आरोही कुछ दिनों के लिए अपने घर गयी हुई थी। अरुणा और अमन साथ -साथ ही दर्शनशास्त्र की क्लास ख़त्म करके अपने -अपन कमरों पर जाते थे। आज क्लास भी कुछ लम्बी ही चल गयी थी, काफी अँधेरा हो गया था। अरुणा धीरे -धीरे चल रही थी ताकि अमन के साथ जा सके। अमन भी शायद आज आया नहीं था, अरुणा अकेले ही अपने कमरे की तरफ चल दी थी।
तब ही एक बाइक वाला अरुणा के पास से गुजरा और कुछ दूरी पर जाकर रुक गया।उसने पीछे मुड़कर देखा और उसे अरुणा शायद अकेले दिख गयी थी। वह अपनी बड़ी -बड़ी डरावनी आँखों से अरुणा को घूर रहा था। आज अरुणा को आरोही और अमन दोनों ही बहुत याद आ रहे थे।
अभी अरुणा का कमरा भी दूर था। वैसे भी कल की एक घटना से अरुणा का मन खिन्न था। अरुणा के पेइंग गेस्ट हाउस के सामने एक पार्क है। अरुणा कल बालकनी में खड़ी थी, रात हो गयी थी। पार्क में कोई नहीं था, तब ही वहाँ एक लड़का अपना हाथ ही जगन्नाथ की तर्ज पर अपने हाथ का इस्तेमाल करने लगा। अरुणा को बड़ी घिन्न आयी और वह बालकनी से अपने कमरे में चली गयी।
और आज अब यह लड़का। अरुणा ने मुख्य सड़क को छोड़ दिया था और अपने कमरे तक जाने के लिए गली में मुड़ गयी। वह लड़का भी उसी गली में मुड़ गया था। स्ट्रीट लाइट्स कुछ जल रही थी और कुछ खराब थी। गलियाँ सुनसान सी थी। अब तक अरुणा सोच रही थी कि उसे कोई ग़लतफ़हमी हो गयी है। लेकिन जैसे ही अरुणा ने मुख्य सड़क को छोड़ा और गली में मुड़ी, वैसे ही वह लड़का भी मुड़ गया।
वह लड़का तेज़ी से बाइक चलाकर अरुणा से आगे निकल गया था। अरुणा से थोड़ी आगे जाकर ,वह लड़का दुबारा रुक गया था। आगे बाइक रोककर ,वह पीछे मुड़कर देख रहा था। जैसे ही अरुणा ने उसे क्रॉस किया तो वह दुबारा आगे निकल गया और रुक गया। अब यह सुनिश्चित हो गया था कि वह अरुणा का पीछा कर रहा था।शायद इंतज़ार कर रहा था कि कहीं पर उसे एकदम अँधेरी गली मिले।
लड़कियों में एक छठी इंद्रिय होती है। अरुणा की छठी इंद्रिय ने भी उसे पहले ही बता दिया था कि उस लड़के के इरादे कुछ नेक नहीं हैं। उस अंधेरी रात में भी, अरुणा उसकी हवस को महसूस कर सकती थी। अरुणा को बहुत डर लग रहा था। उसे अपने जीवन में पहली बार पछतावा हो रहा था कि वह एक लड़की के रूप में क्यों पैदा हुई।
रात्रि के लगभग 8:30 बज रहे थे, लेकिन उसके बावजूद भी अरुणा खुद को बहुत ही असुरक्षित महसूस कर रही थी। व अपने आप को कोस रही थी कि उसने शाम की क्लास में एडमिशन ही क्यों लिया? उस लड़के ने अरुणा को छूआ नहीं था, लेकिन वह अपने शरीर के प्रत्येक हिस्से पर उसकी आँखें महसूस कर रही थी।उस दिन अरुणा सही में एक बलात्कार पीड़िता के दर्द को समझ सकी थी। अरुणा का डर वाज़िब था, यह 2012 में पता चल ही गया था।
अरुणा बहुत तेजी से अपने क़दम आगे बढ़ा रही थी। वह बस जल्द से जल्द अपने घर पहुँचना चाहती थी। अब वह 8 x9 का कमरा उसके लिए किसी ताज़महल से कम नहीं था। लेकिन आज का दिन शायद अरुणा का दिन था, आज किस्मत के तारे उसके पक्ष में थे। लड़के का आगे निकलना और फिर रूककर पीछे मुड़कर देखना अनवरत जारी था। लड़के ने थोड़ा आगे जाकर अपनी बाइक रोकी और वह अरुणा का इंतज़ार करने लगा। वह कभी -कभी पीछे मुड़कर देख रहा था। तब ही अरुणा के घर की गली आ गयी और अरुणा फ़टाफ़ट भागकर अपनी गली में घुस गयी। वह लड़का अरुणा को देख नहीं सका था। जब तक वह कुछ समझता ,उतनी देर में अरुणा अपने घर में घुस गयी थी। अपने कमरे में पहुँचकर ही अरुणा की साँस में साँस आयी।
आज अरुणा को अमन की बहुत याद आ रही थी। "अमन के साथ आने से कम से कम मुझे इस तरीके के बुरे अनुभव से तो नहीं गुजरना पड़ता था। वह साथ -साथ चलता था तो सुरक्षा का अनुभव होता था। "
अरुणा को होली पर अपने घर जाना था। कोचिंग क्लास ख़त्म होते -होते देर हो गयी थी। इसीलिए उसको मजबूरी वश रात की बस ही लेनी पड़ रही थी। वह पहली बार रात को अकेले सफर कर रही थी।टिकट लेकर बस में बैठ गयी ,थोड़ी देर में बस चलने लगी थी। पूरी बस में अरुणा समेत कुल जमा 10लोग थे। उन 10 लोगों में भी ,वह ही अकेली लड़की थी।
उसके जेहन में हाल ही उसके साथ हुई बाइक वाली घटना बार -बार आ रही थी। वैसे भी अखबार लड़कियों के साथ होने वाली ज्यादतियों से ही रंगे रहते थे। ऐसे में कितनी ही बहादुर लड़की हो ,घबराहट होना तो स्वाभाविक ही है। सफर के दौरान अक्सर ही अरुणा को नींद आ जाती थी,लेकिन आज वह आँखें खोलकर बैठी रही थी। वह फ़ोन से भी ज्यादा देर तक किसी से बात भी नहीं कर सकती थी,बैटरी डिस्चार्ज होने का डर जो था।
७घंटे बाद जब वह आधी रात को अपने शहर पहुँची ,तब जाकर जान में जान आयी। लड़कियों को पग -पग पर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अरुणा अपने घर पर भी अपना बुरा अनुभव नहीं बता सकती थी, मम्मी -पापा चिंता करेंगे और हो सकता है कि घर की इज़्ज़त की बात करते हुए उस घर वापस आने को कह दें। अरुणा कई बार सोचती थी कि ,"ये समाज और परिवार अपनी इज़्ज़त अपने घर की लड़कियों की योनि में क्यों रखता है ? लड़की योनि से इतर भी तो कुछ है। योनि के अलावा भी उसका अस्तित्व है। और शायद इस योनि तथा इज़्ज़त के घनिष्ठ संबंध के कारण ही लड़कियाँ बदला लेने ,सबक सिखाने आदि के नाम पर बलात्कार की शिकार होती रही हैं। "
स्त्री चाहे कोई भी हो, कुछ भी करती हो, उसक हमेशा ही एक शरीर के रूप में देखा जाता है, उसके शरीर पर पुरुष नज़र गड़ाए रखते हैं। इस घटिया मानसिकता का पढ़ाई -लिखाई ,बुद्धिजीविता से कोई संबंध नहीं है, तब ही तो एक सीनियर आईएएस ऑफिसर भी शोषण का शिकार हो जाती है। मी टू मूवमेंट ने तो सफेदपोश दुनिया के काले सच को उजागर करके रख ही दिया है।
निर्भया कांड के बाद सिविल सोसाइटी की मांग पर भारतीय दण्ड संहिता में नए संशोधन किए गए, तब अरुणा को बहुत ख़ुशी हुई। अरुणा बलात्कारी को मृत्यु दंड देने का समर्थन नहीं करती थी। उसका मानना था कि बलात्कारी को मृत्यु दंड देने से पीड़िता की जान पर बन आएगी। दूसरा बलात्कार यौनिक हिंसा है, बलात्कार को लड़की की इज़्ज़त -आबरू से जोड़ना ही गलत है। खैर संशोधन से लड़कियों को स्टाकिंग आदि भयावह अनुभवों से तो नहीं गुजरना पड़ेगा। अब लड़कियां ऐसे मुद्दों पर खुलकर बात कर सकेंगी और अपनी आवाज़ उठा सकेंगी। डर के साथ जीवन जीना मौत से भी बदतर है। मौत केवल एक बार मारती है ,जबकि आपका डर आपको हर दिन मारता है।
(9)
उस दिन की घटना के बाद अरुणा ने पूरा मन बना लिया था कि कोचिंग में पाठ्यक्रम पूरा होते ही वह अपन शहर वापस चली जायेगी। तैयारी वहीँ रहकर करेगी। वैसे भी उसके माता -पिता दिल्ली का खर्चा नहीं उठा सकते। उसका स्टेट सर्विस कमीशन भी वेकेंसी निकालने वाला है।
यूपीएससी तो एक जुआ है ,इसीलिए वह केवल यूपीएससी के भरोसे नहीं रह सकती। उसे अपने ख़्वाब पूरा करने के लिए आयोग द्वारा निर्धारित अधिकतम आयु तक का वक़्त भी पता नहीं मिलेगा भी या नहीं। वाकई में आयु तो दूर की बात है, पता नहीं यूपीएससी द्वारा दिए गए सभी प्रयास भी देने का अवसर मिलेगा या नहीं। उसकी कम्युनिटी में तो 22 -23 वर्ष की होते -होते लड़कियों की शादी कर दी जाती है। उसके रिश्तेदार तो अभी से ही उसकी उम्र की गणना करने लग गए हैं। मम्मी -पापा भी लम्बे समय तक समाज और रिश्तेदारों का दबाव सहन नहीं कर पायेंगे।
वैसे भी पहले प्रयास में प्री भी पास न होने के कारण मम्मी -पापा को उससे कुछ ख़ास उम्मीद भी नहीं है। वे तो शायद लड़का भी ढूँढ रहे हैं और लड़का मिलते ही उसकी शादी भी कर देंगे। हम कितनी ही लैंगिक समानता की बात करें ,अभी भी लड़कियों को अपने सपने पूरा करने के लिए कितनी ही लड़ाइयाँ लड़नी पड़ती हैं।
उमेश सर से चर्चा के बाद अरुणा ने इतिहास को अपने पहले वैकल्पिक विषय के रूप में लेने का निर्णय ले लिया था। इतिहास से वह प्री देगी। मैन्स में दर्शनशास्त्र और संस्कृत साहित्य रखेगी। उसे संस्कृत साहित्य के लिए पर्सनल कोचिंग देने वाले सर भी मिल गए थे। उनकी फीस भी काफ़ी कम थी, जीत के गुरूजी की कोचिंग में पढ़ने वाले एक लड़के ने ही उसे इन सर के विषय में बताया था। लड़के से अरुणा की अच्छी बातचीत होती थी, वह बेचारा भी लोक प्रशासन का ही मारा हुआ था।
कुछ लड़के ऐसे होते हैं, जिन्हें लेकर आप 100 % श्योर होते हो कि यह ब्वॉय फ्रेंड टाइप मटेरियल कभी नहीं बनेगा, वाकई में ऐसे लड़के जगत भैया टाइप मटेरियल होते हैं। यह लड़का विनय भी कुछ ऐसा ही था। इसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं थी। इसने ही काफी हाथ -पैर मारकर इन संस्कृत साहित्य के सर को ढूँढा था।
अरुणा वैसे भी संस्कृत साहित्य और दर्शन शास्त्र मैन्स में रखना चाहती थी। वह और विनय अब संस्कृत साहित्य पढ़ने जाने लग गए थे। संस्कृत साहित्य और दर्शन शास्त्र दोनों ही विषयों के सर को अरुणा अपने उत्तर लिखकर दिखाती थी। दोनों ही उसके उत्तर लेखन की तारीफ करते थे।
भारतीय दर्शन पूरा होने पर भारतीय दर्शन का यूपीएससी के पैटर्न पर टेस्ट भी हुआ था। जब अरुणा अपनी टेस्ट कॉपी लेकर सर के पास पहुँची तो सर ने पूछा था कि ,"इस बार मैन्स तो लिख ही रही होंगी। पहला ऑप्शनल क्या है ? "
"जी नहीं सर, मैन्स तो नहीं लिख रही। हिस्ट्री है।" अरुणा ने धीमे से कहा।
"कोई बात नहीं। इस बार लिख लोगी। हिस्ट्री हिंदी मीडियम के लिए सेफ सब्जेक्ट है।" सर ने कहा और फिर दूसरे स्टूडेंट्स से बात करने लग गए।
सेफ सब्जेक्ट का मतलब ऐसे सब्जेक्ट से है जो सेलेक्शन तो करवा देगा, लेकिन रैंक कौनसी बनेगी यह नहीं कह सकते।
ऐसे कुछ शब्द अरुणा के टूटे हुए मनोबल को जोड़ने में फेविकोल की तरह मदद करते थे।
लेकिन सिविल सेवा के लम्बे- चौड़े पाठ्यक्रम को देखकर अरुणा काफ़ी निराश हो जाती थी। वह अपने वीकली टार्गेट्स तय करती थी। ट्रेडिशनल जी. के. के साथ -साथ अखबार और मंथली मैगज़ीन उसके टाइम टेबल में शामिल होती थी। कभी अखबार छूट जाता, कभी मैगज़ीन, कभी ट्रेडिशनल जी . के . के टॉपिक। आंसर राइटिंग तो वह कर ही नहीं रही थी। कैसे करे, जब तक पाठ्यक्रम पूरा नहीं होगा, तब तक आंसर राइटिंग कैसे हो सकती है।
उसके कमरे में एक तरफ बिना पढ़े हुए अख़बारों के स्टैक का आकार लगातार बढ़ता ही जा रहा था। जिस भी टॉपर का इंटरव्यू पढ़ो या सेमीनार में जाओ, बस एक ही बात ,"सिलेक्शन के लिए आंसर राइटिंग की प्रैक्टिस बहुत जरूरी है। "लेकिन प्रैक्टिस कब करें ? कैसे करें ?यहाँ तो पाठ्यक्रम ही पूरा नहीं होता।
उधर मैन्स के एग्जाम के कारण दर्शनशास्त्र के सर ने सिलेबस जल्दी -जल्दी पूरा करवा दिया था। कंटेम्पररी फिलॉसोफी और सामाजिक -राजनीतिक दर्शन में तो घास ही काटी थी।
संस्कृत साहित्य के सर बीच में ही शादी करने चले गए। उनकी शादी के चक्कर में संस्कृत का पाठ्यक्रम बीच में ही लटका हुआ था। अरुणा को अब केवल संस्कृत साहित्य के कारण दिल्ली में रुकना पड़ रहा था।
संस्कृत साहित्य के सर जब -तब क्लास की छुट्टी कर देते थे। उनके रंग -ढंग देखकर तो लग रहा था कि ,"कोर्स 6 महीने में तो क्या 6 साल में भी पूरा नहीं हो पायेगा ?"
अरुणा ही नहीं, विनय भी सर की कछुआ गति से नाखुश था। यह जरूरी नहीं है कि हर बार धीमी गति से चलने वाला कछुआ ,खरगोश से जीत ही जाये। यह एग्जाम तो हार्ड वर्क के साथ -साथ स्मार्ट वर्क की डिमांड भी करता है। विनय प्री परीक्षा के 4 महीने पहले ही अपना मैन्स का एक विषय अच्छे से तैयार कर लेना चाहता था। लेकिन यहाँ तो अभी तक संस्कृत साहित्य का सिलेबस ही पूरा नहीं हुआ था, आंसर राइटिंग की प्रैक्टिस कब होती ? बिना प्रैक्टिस के अपने आंसर में सुधार कैसे लाते ?
इसीलिए अरुणा और विनय दोनों ने ही तय किया कि ,"सर को कहेंगे कि जितना संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करना था, कर लिया। अब तक जितना पढ़ा दिया है, उसके अनुसार आप फीस ले लो और बाकी के पैसे लौटा दो। "
अरुणा और विनय दोनों जब संस्कृत क्लास के लिए पहुँचे ,उन्होंने सर से अपने पैसे लौटाने के लिए कहा।
"सर ,मुझे अपने घर जाना है। आपने 6 महीने में सिलेबस पूरा कराने के लिए कहा था, अभी तो आधा भी सिलेबस नहीं हुआ। आपने अब तक जितना पढ़ाया है, उतने पैसे रखकर बाकी के लौटा दीजिये।" अरुणा ने कहा।
"जी सर ,हमें नहीं पढ़ना।" विनय ने भी कहा।
"अरे ,एक महीने में पूरा करा देंगे सिलेबस।" सर ने कहा।
"सर ,जो 6 महीने में नहीं हुआ, एक महीने में कहाँ से होगा? वैसे भी अब आप अपनी क्रेडिटिबिलिटी खो चुके हैं। अब हमें न तो आप पर भरोसा है और न ही आपकी बातों पर।" अरुणा ने कहा।
"सर ,आपके तरीकों से एग्जाम की तैयारी तो नहीं हो सकती। आपके जैसे लक्षण हैं, उससे तो आप कोचिंग चला पाएंगे भूल ही जाएँ। पहले अपने काम करने के तरीके में प्रोफेशनलिज्म लेकर आइये।" विनय ने कहा।
विनय और अरुणा कहे जा रहे थे, लेकिन सर एकदम चुप थे। किसी न सही कहा कि सौ चुप हज़ारों को हरायें। वैसे भी किसी के पास एक बार गया पैसा, निकलवाना बड़ा ही मुश्किल होता है।
सर इतनी आसानी से पैसे थोड़े न लौटाते। "नहीं ,पैसे तो मैं नहीं लौटाऊँगा। तुम पढ़ने नहीं आना चाहते, मैं तो पढ़ाने के लिए तैयार हूँ।" सर ने कहा।
"सर ,पैसे तो आपको लौटाने ही पड़ेंगे।" विनय ने कहा और विनय तथा अरुणा दोनों वापस आ गए।
"अब हम क्या करेंगे ?",अरुणा ने पूछा।
"तुम फ़िक्र मत करो। थोड़ा तमाशा करना पड़ेगा।" विनय ने कहा।
अगले दिन विनय अपने साथ रहने वाले कुछ दादा टाइप लड़कों को साथ लेकर सर के घर पर गया। काफ़ी कहा सुनी के बाद आखिरकार सर ने आधे पैसे लौटा ही दिए थे।
संस्कृत का साथ छूट गया था और अब दिल्ली में अरुणा के लिए कुछ नहीं बचा था। अरुणा अब आगे की तैयारी अपने शहर जाकर कर सकती थी। अरुणा ने अपने बैग पैक करने शुरू कर दिए थे।
(10)
अरूणा अपने शहर लौट आयी थी। उसने अपने शहर की एक लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए जाना शुरू कर दिया था। उसे पता चला था कि वहाँ पर सिविल सेवा की तैयारी के लिए बहुत से अभ्यर्थी आते हैं।लाइब्रेरी की मेम्बरशिप एक ओपन मेम्बरशिप नहीं थी, बल्कि सिविल सेवकों के रेफेरेंस से आये लोगों के लिए ही थी। अतः यह तो तय था कि मेम्बरशिप सीरियस टाइप के अभ्यर्थी ही लेते थे क्यूँकि मेम्बरशिप लेने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़ते थे। अरुणा ने खुद भी तो अपने पापा के बॉस के रिफरेन्स से मेम्बरशिप ली थी।
अरुणा रोज़ सुबह ही लाइब्रेरी के खुलते ही वहाँ पहुँच जाती थी और जब तक लाइब्रेरी बंद होने का समय नहीं हो जाता था, वह वहीं बैठकर पढ़ती रहती थी। कुछ दिनों बाद अरुणा के ऱाज्य के राज्य सेवा आयोग ने स्टेट सर्विसेज के लिए रिक्तियाँ निकाली। राज्य में sdm ,dy sp आदि के पद इन्हीं सेवाओं के जरिये भरे जाते हैं। अरुणा ने भी फॉर्म भर दिया। उसने इस एग्जाम के लिए भी प्री में इतिहास विषय ही रखा और मैन्स के लिए इतिहास और दर्शनशास्त्र।
संस्कृत साहित्य लेने का उसने विचार त्याग दिया था। इस वर्ष उसने यूपीएससी का भी एग्जाम देने का निश्चय किया था, वैसे भी राज्य सेवा आयोग की भर्ती प्रक्रिया कभी भी समय पर पूर्ण नहीं होती है। ढाई से तीन वर्ष का समय तो लग ही जाता है, लेकिन अरुणा को कोई न कोई नौकरी तो चाहिए ही थी, इसीलिए उसने राज्य सेवा आयोग की परीक्षा देने का निश्चय किया था।
लाइब्रेरी में अरुणा को कई लोगों के संघर्ष की कहानियाँ सुनने को मिली थी। वहाँ पर आने वाले सभी लोग किसी न किसी युद्ध के हिस्सेदार थे, किसी पर शादी का दबाव था, किसी पर घरवालों की अपेक्षाओं का दबाव था, किसी पर अपने गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड का दबाव था।
वहाँ पर कोई सुरेश भैया आते थे। उनकी कहानी तो बहुत ही दुखद थी। भैया का राज्य की न्यायिक सेवा में चयन हो गया था, भैया के घरवालों ने उनके चयन के लिए सवामणी बोल रखी थी। जिस भर्ती में भैया का चयन हुआ था ,उस भर्ती के सम्पूर्ण परिणाम को कुछ लोगों न कोर्ट में चुनौती दे दी थी। कोर्ट ने परिणाम में कुछ संशोधन करके ,परिणाम पुनः जारी करने की अनुमति दे दी थी। जो संशोधन किये गए ,उनके कारण सुरेश भैया का चयन रद्द हो गया था। जिस दिन भैया के परिवार ने सवामणी का आयोजन किया था, उसी दिन यह संशोधित परिणाम जारी किया गया था।
उसके बाद भैया का दोबारा चयन नहीं हुआ था। अब तो भैया न्यायिक सेवा ,सिविल सेवा ,स्टाफ चयन बोर्ड ,बैंकिंग आदि सभी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। अब कैसे भी करके भैया कोई भी नौकरी हासिल करना चाहते थे।
उसी लाइब्रेरी में कोने में एक लड़की बैठती थी। लड़की के बाल बहुत ही लम्बे थे, उसकी चोटी उसके घुटनों पर गिरती थी। वह लड़की एक सेकंड के लिए भी अपनी नज़रें अपनी किताब से नहीं हटाती थी। हमेशा सलवार -कमीज पहनकर आती थी। एक दिन अरुणा जैसे ही वाशरूम यूज़ करके बाहर निकली ,वह लड़की बाहर ही खड़ी थी। अरुणा ने उसको देखकर स्माइल किया और उसने भी अरुणा की स्माइल का ज़वाब स्माइल से ही दिया। एक -दूसरे को स्माइल देते -देते ,अरुणा की उस लड़की श्यामा से बातचीत होने लगी थी।
"तुम कितनी सीरियसली पढ़ती हो। एक मिनट के लिए भी बुक से आँखें नहीं हटाती हो। मैंने तो जब भी तुम्हारी तरफ देखा है है,तुम्हें पढ़ते हुए ही पाया है। बहुत अच्छा कॉन्सेंट्रेशन है।" अरुणा ने श्यामा से कहा।
"पढ़ती नहीं हूँ, लोगों की नज़रों से बचती हूँ। अगर किसी की नज़र पड़ी और मुझसे कुछ पूछ लिया तो क्या बताऊँगी। किताब की एक लाइन भी मेरे दिमाग में नहीं घुसती। मम्मी की ज़िद के कारण मुझे यहाँ आना पड़ता है।" श्यामा ने मुस्कुराते हुए कहा।
श्यामा के पापा डिप्टी एसपी थे और उसकी मम्मी चाहती थी कि श्यामा भी पढ़े और राज्य सेवा में चयनित हो। श्यामा को उसकी मम्मी ने इस बार जबरदस्ती फॉर्म भी भरवा दिया था और लाइब्रेरी में पढ़ने भी भेजती थी।
श्यामा को डांस और एक्टिंग का शौक था। उसने कॉलेज के फर्स्ट ईयर में एक प्ले में हिस्सा भी लिया था, तब उसके डांस और एक्टिंग को देखकर वहाँ मौजूद किसी निर्देशक ने उसे अपने सीरियल में एक्टिंग करने का ऑफर भी दिया था। उस प्ले को देखने आये मुख्य अतिथि, जो कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश थे, उन्होंने भी श्यामा को प्ले के बाद इतनी अच्छी परफॉरमेंस के लिए शुभकामनाएँ दी थीं।
श्यामा के अनुसार ,"वह प्ले और उसके बाद लोगों से मिली प्रशंसा उसकी, ज़िन्दगी के सबसे अच्छे पलों में से थे। लेकिन मम्मी -पापा को एक्टिंग और डांसिंग करियर के रूप में अपनाना सही नहीं लगता, इसीलिए उनकी ख़ुशी के लिए पढ़ने आ जाती हूँ। "
सही में भारत में बच्चे अपनी मर्ज़ी से अपना करियर भी नहीं चुन सकते। लेकिन एक मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे के लिए आर्थिक सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है, जितना अपने सपनों को पूरा करना। डांसिंग ,एक्टिंग ,गेम्स में सफलता के अवसर बहुत ही कम होते हैं और हम मिडिल क्लास लोग इतना जोखिम नहीं उठा सकते। अरुणा को भी लिखने का शौक रहा है, लेकिन वह लेखन को अभी अपना प्रोफेशन नहीं बना सकती थी।
कुछ लोग कह सकते हैं कि आज के दौर में रियल्टी शोज बच्चों को अन्य क्षेत्रों में करियर बनाने का अच्छा अवसर प्रदान का रहे हैं। लेकिन अरुणा को लगता है कि ,"रियल्टी शोज एक पल में इंसान को फर्श से अर्श पर बैठा देते हैं और दूसरे ही पल पटखनी देकर ऐसा फर्श पर गिराते हैं कि कुछ लोग कभी उठ ही नहीं पाते। " सही में रियल्टी शोज झूठ को सच बनाकर ,नन्हीं आँखों को ऐसे ख़्वाब दिखा डालते हैं, जो कभी पूरे हो ही नहीं सकते।
अरुणा रोज़ 10 -12 घंटे पढ़ाई करती थी, लेकिन उसके बावजूद भी उसका पाठ्यक्रम पूरा नहीं हुआ था कि वह मैन्स के लिए आंसर लिख-लिख कर प्रैक्टिस कर सके। प्री के लिए भी वह पिछले सालों के 1 -2 पेपर ही बड़ी मुश्किल से देख पायी थी। कभी -कभी सिविल सेवक बनना अरुणा को दूर की कौड़ी लगता था। कहीं वह किसी तुगलकी सपने के पीछे तो नहीं भाग रही, कभी -कभी अरुणा सोचती थी। फिर उसे याद आ जाता कि ,"कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। बिना कुछ किये जय -जयकार नहीं होती। "
इसी बीच अरुणा ने राज्य सेवा के प्री एग्जाम में भाग लिया। अरुणा का एग्जाम अच्छा हुआ था, लेकिन जैसे -जैसे मार्किट में आ रही ,अलग -अलग आंसर की से वह अपना आंसर चेक कर रही थी, उसका स्कोर घटता जा रहा था। हिस्ट्री में उसका स्कोर 90% से घटकर 70 % ही रह गया था। वहीँ लाइब्रेरी में पढ़ने आने वाले कुछ नॉन सीरियस अभ्यर्थी जब अपना स्कोर 90 % बताते तो अरुणा का दिल बैठ ही जाता था। ये अभ्यर्थी लाइब्रेरी भी कभी -कभी ही आते थे।
श्यामा ने भी प्री दिया, लेकिन उसे पेपर में कुछ नहीं आता था। वह अच्छे से जानती थी कि ,"उसका सेलेक्शन नहीं होगा। "
फिर भी उसकी मम्मी उसका रिजल्ट जानने के लिए उसे अलग -अलग ज्योतिषियों के पास ले जा रही थी। वह जब भी किसी ज्योतिष के पास से जाकर आती तो उसके किस्से अरुणा को सुनाती। श्यामा की मम्मी एक दिन उसे शहर के एक जाने -माने ज्योतिष के पास ले गयी। अरुणा ने भी उन ज्योतिष के बारे में सुना था कि ,"उनके पास अमिताभ बच्चन तक आते हैं। "अब इन सब बातों में कितनी सच्चाई थी, यह तो अरुणा नहीं जानती थी।
लेकिन पता नहीं सेलिब्रिटी और सक्सेसफुल लोग ही ज्योतिष आदि के पास क्यों जाते रहते हैं, जबकि मजदूर ,किसान आदि इनके पास जाते नहीं। शायद मजदूरों के पास इनकी दक्षिणा देने के भी पैसे नहीं होते या शायद वे निडर होते हैं क्यूँकि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं होता। सक्सेसफुल लोगों के पास ही तो खोने को इतना कुछ होता है और जो उन्हें एक बार मिल गया, वह हमेशा उसे अपने पास ही रखना चाहते हैं, इसीलिए उस सफलता को बनाये रखने के लिए सारे संभव प्रयास करते रहते हैं।
श्यामा ने बताया कि ,"वह तो पहले से ही 100 % श्योर थी कि उसका प्री नहीं निकलेगा। पेपर तो उसी ने दिया था। लेकिन उन ज्योतिष महोदय ने बोला कि उसका पेपर ठीक ही हुआ है। अगर उसकी मम्मी कोई एक विशेष पूजा और उसे कोई रत्न पहना देगी तो उसका बुध और सूर्य मजबूत हो जाएगा और प्री 100 % निकल जाएगा। "
"यार ,मुझे कभी यह समझ नहीं आता कि इतने विशाल -विशाल ग्रह मंगल ,बुध आदि को हम अदने से इंसानों से क्या मतलब है ? जो जब देखो तब हमारे काम में रुकावट डालते रहते हैं।" अरुणा ने कहा। अरुणा की बात ख़त्म होते ही दोनों हँसने लग गयी थी। श्यामा अब अरुणा की अच्छी दोस्त बन गयी थी।
अरुणा को कई बार लगता कि ,"वह तैयारी छोड़ दे और कोई भी प्राइवेट नौकरी करके सेटल हो जाए।" लेकिन फिर उसे लाइब्रेरी में आने वाले सर्वेश सर की बातें याद आ जाती और वह दुगुने उत्साह से मेहनत करने लग जाती।
सर्वेश सर खुद यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे और वे स्कूल लेक्चरर थे। इस बार भी सर ने यूपीएससी मैन्स दिया था और इंटरव्यू कॉल की पूरी उम्मीद थी। सर की हाल ही में सगाई हुई थी। सर कहते थे कि ," यूपीएससी को छोड़ना नहीं ,जब तक अटैम्प्ट बचे, तब तक तैयारी करते रहना, यूपीएससी कुछ न कुछ ज़रूर देकर जायेगी। "
अरुणा ने एक दिन सर्वेश सर को पूछा कि ," सर ,जो लोग नियमित रूप से लाइब्रेरी नहीं आते, उतना अच्छा पढ़ते भी नहीं हैं, उनका स्कोर मुझसे बहुत अच्छा है, सबको पेपर आसान लगा ,जबकि मुझे उतना आसान भी नहीं लगा। मेरा राज्य लोक सेवा आयोग का प्री निकल तो जाएगा न। "
"देखो अरुणा, प्री के बाद कुछ समय तक यह माहौल रहता है। जो अभ्यर्थी तुम्हें पूरे साल भर पढ़ते हुए नज़र नहीं आते, वे भी ऐस माहौल बना देते हैं कि मानो पेपर बहुत ही आसान था और कट -ऑफ पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी।" सर्वेश सर ने समझाते हुए कहा।
"तो सर अब मैं क्या करूँ ?",अरुणा ने पूछा।
"तुम मैन्स की तैयारी जारी रखो। प्री क्लियर इस बार हो जाता है तो ,बहुत ही अच्छा है। अगर नहीं भी होता तो ,मैन्स की पढ़ाई तो फिर भी काम आएगी ही। ऐसे लोगों की बातों से प्रभावित मत हो।" सर्वेश सर ने समझाया।
अरुणा के बात समझ आ गयी थी, वह दुगुने उत्साह से तैयारी करने लगी थी।
इसी बीच यूपीएससी मैन्स का परिणाम आया, सर्वेश सर का इंटरव्यू कॉल हो गया था। सर्वेश सर का यूपीएससी में चयन हो गया था। चयन के कुछ दिन बाद ही सर्वेश सर ने अपनी शादी का कार्ड देते हुए ,अरुणा को भी आमंत्रित किया था।
सर के चयन के बाद अरुणा सोच रही थी कि सर शायद उस लड़की से शादी नहीं करेंगे, जिससे कि सर की सगाई हुई थी। सर अब सिविल सर्विसेज में आ चुके हैं तो दहेज़ के बाज़ार में उनकी कीमत भी बढ़ गयी है। लेकिन सर उसी लड़की से शादी कर रहे थे, यह सोचकर अरुणा के दिल में सर्वेश सर के लिए इज़्ज़त और बढ़ गयी थी।
यूपीएससी की तैयारी करने वाले लड़के अक्सर महिला सशक्तिकरण पर पन्ने के पन्ने काले कर डालते हैं ,लेकिन जब सिलेक्शन होने के बाद शादी की बात आती है तो दिल खोलकर दहेज़ लेते हैं। 1500 -2000 शब्दों में दहेज़ जैसी कुप्रथा की बुराई करने वाले लड़के ,अपने घरवालों के सामने 2 शब्द नहीं बोल पाते। खैर बिना मेहनत किये मिलने वाला पैसा किसे बुरा लगता है और वह भी ऐसे देश में जहाँ शारीरिक श्रम को हमेशा हेय दृष्टि से देखा जाता है। जहाँ माता -पिता का भी यही सपना होता है कि ,"रानी बेटी शादी के बाद राज करे। "
सर्वेश सर के साथ -साथ आरोही के उमेश सर का भी चयन हो गया था, आरोही ने बड़ा खुश होकर अरुणा को फ़ोन पर बताया था कि ,"अब वह और उमेश सर जल्द ही शादी कर लेंगे। "
उस दिन अरुणा को पता चला था कि आरोही और उमेश सर किसी रिलेशनशिप में थे। "अरे वाह ,बधाई हो। तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली। अब तो उमेश सर के साथ रहने से तुम्हारा भी चयन हो ही जाएगा। "
आरोही कितने सालों से तैयारी कर रही है। कॉलेज के फर्स्ट ईयर से ही उसकी तैयारी चालू हो गयी थी। अरुणा खुश थी कि उसको गाइड करने वाले उसके दोनों मेंटर्स चयनित हो गए हैं तो वह भी कहीं न कहीं तो चयनित हो ही जायेगी।
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अरुणा ने इतिहास विषय से इस बार यूपीएससी का प्री भी दे ही दिया था। विभिन्न कोचिंग संस्थानों द्वारा जारी की गयी आंसर कीज़ के अनुसार वह बाउंड्री पर ही थी, इतनी पढ़ाई के बाद भी वह एक सेफ स्कोर नहीं बना सकी थी। उसकी तैयारी अभी तक भी उस स्तर पर नहीं पहुँची थी, जहाँ वह कम से कम स्वयं को प्री में शत -प्रतिशत सफलता की गारंटी दे सके। खैर उसने बुझे मन से ही सही ,मैन्स के लिए पढ़ना शुरू कर दिया था।
इसी ऊहापोह के बीच ,अरुणा का राज्य सेवा का प्री एग्जाम का रिजल्ट भी आया और उसका एग्जाम क्लियर हो गया था। लाइब्रेरी में आकर ,अपना स्कोर 90 % बताने वाले लोगों का प्री तक क्लियर नहीं हुआ था। इस प्री एग्जाम में उसने कट ऑफ से काफी अधिक स्कोर किया था, अरुणा का आत्मविश्वास लौटने लगा था। कुछ दिन बाद यूपीएससी की भी प्री परीक्षा का रिजल्ट आ गया था। इस बार अरुणा का प्री निकल ही गया था।
अरुणा बहुत खुश थी, लेकिन साथ ही चिंतित भी थी। रिजल्ट की टेंशन में वह मैन्स की अच्छे से तैयारी नहीं कर पायी थी। अब ढाई से तीन महीने में ही उसे मैन्स लिखना था और राज्य सेवा के मैन्स की डेट भी कभी भी आ सकती थी।
आरोही का इस बार भी प्री में चयन नहीं हुआ था। आरोही बहुत ही निराश थी, वह तैयारी छोड़ने की सोचने लगी थी। सेलेक्शन न होने की वजह से वैसे ही आरोही निराश थी, वहीं उमेश सर द्वारा किसी और लड़की से सगाई करने की बात ने आरोही को निराशा के गहरे गर्त में डुबो दिया था। आदर्शवादिता की बड़ी -बड़ी बातें करने वाले उमेश सर अपने घरवालों की इच्छा अनुसार किसी बहुत प्रभावशाली पॉलिटिशियन की बेटी से विवाह कर रहे थे।
उमेश सर का वही बरसों पुराना बहाना था कि ,"घरवाले मान नहीं रहे। उन्हें दुःखी करके हम कभी खुश नहीं रह सकते। " ऐसे लोग प्यार ही क्यों करते हैं ? प्यारी -प्यारी बातें करते हुए उन्हें अपने घरवाले क्यों नहीं याद आते ?आरोही को उमेश सर से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह उसे बीच मँझधार में छोड़ देंगे।
"उमेश सर बहुत स्वार्थी हैं। जब तुम्हारी जरूरत थी, तुम्हें इस्तेमाल किया और छोड़ दिया। अब उन्हें इस शादी में अपना बेहतर भविष्य दिख रहा है। उनके जैसे कितने ही लोग अच्छे कैडर के लिए साथ वाले ऑफिसर से शादी करते हैं, अच्छी पोस्टिंग के लिए पॉलिटिशियन परिवार से रिश्ता जोड़ते हैं। उन्हें एक बुरे सपने की तरह भूल जाओ, अपनी आगे की ज़िन्दगी के बारे में सोचो।" अरुणा ने आरोही को समझाया।
"हाँ ,तुम सही कह रही हो। उमेश को दिव्या मैडम ने छोड़ दिया था, इसीलिए मुझे उनसे सहानुभूति होने लगी थी। बहुत देर तक उनके साथ बैठकर पढ़ाई करती थी, धीरे -धीरे सहानुभूति प्यार में बदल गयी। प्यार एकतरफा नहीं था, दोनों तरफ से ही था। लेकिन उन्होंने अपने लिए बेस्ट चुनकर मुझे दूध में गिरी हुई मक्खी जैसे निकालकर फेंक दिया। उन्हें एक कन्धा चाहिए था और मैं वह कन्धा थी। काश पहले समझ जाती। लेकिन अब उनके बारे में सोचकर अपना वक़्त बर्बाद नहीं करूँगी। वह मेरा प्यार तो छोड़ो, नफरत के लायक भी नहीं है।" आरोही ने कहा।
"that 's like a good girl .",अरुणा ने मुस्कुराकर कहा।
आरोही शायद समझ गयी थी, उसने जो कहा वह किया भी और अपने लिए एक नयी राह चुन ही ली। कुछ दिन बाद अरुणा को पता चला कि आरोही का टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए सेलेक्शन हो गया है। टिस्स भारत ही नहीं विश्व का एक बेहतरीन संस्थान है, उसमें प्रवेश मिलना ही अपने आप में एक बड़ी बात है।
अरुणा की किस्मत इस बार उसका साथ दे रही थी। कुछ लोग राज्य सेवा प्री एग्जाम के रिजल्ट के विरूद्ध कोर्ट में चले गए थे। कोर्ट ने परिणाम में कुछ परिवर्तन किये, जिससे कुछ और लोग भी प्री के लिए क्वालीफाई घोषित किये गए। इस सब प्रक्रिया के कारण राज्य सेवा के मैन्स काफी आगे खिसक गए थे। अब अरुणा पूर्णरूपेण यूपीएससी मैन्स की तैयारी कर सकती थी।
अरुणा ने मैन्स की तैयारी में दिन -रात एक कर दिए थे। उसने जैसे -तैसे अपने दोनों वैकल्पिक विषय इतिहास और दर्शनशास्त्र का पाठ्यक्रम पूरा कर ही लिया था। सामान्य अध्ययन का पाठ्यक्रम खत्म होने का नाम ही नहीं लेता था। वैसे भी सब कहते थे कि ,"जहाँ तक सूरज की रोशनी है ,वहाँ तक सामान्य अध्ययन है। "
अरुणा ने एक भी प्रश्न का उत्तर लिखकर नहीं देखा था और न ही उसने एक भी निबंध लिखकर देखा था। लेखन अभ्यास के नाम पर उसकी स्थिति निल बट्टे सन्नाटा थी। अब तो जितना भी समय बचा था, उसका भरपूर इस्तेमाल करना था। अरुणा के मैन्स के पेपर ठीकठाक से हो गए थे, न तो बहुत ही अच्छे और न ही बहुत बुरे।
अब तक राज्य सेवा के मैन्स की भी डेट्स आ गयी थी। राज्य सेवा के मैन्स में एक पूरा पेपर राज्य विशेष के सामान्य अध्ययन का होता है। अरुणा को इस पेपर को तैयार करने का फ़ायदा यूपीएससी के इंटरव्यू में भी मिलता। इंटरव्यू में जिस राज्य से अभ्यर्थी संबंध रखता है, उससे संबंधित प्रश्न भी पूछे जाते हैं।
अरुणा के राज्य सेवा के मैन्स भी हो गए थे और मैन्स काफी अच्छे हुए थे। वह इंटरव्यू कॉल के लिए श्योर थी। इसी बीच पता चला कि यूपीएससी ने प्री एग्जाम का पैटर्न बदल दिया है। वैकल्पिक विषय हटा दिया है और उसकी जगह सी -सैट का पेपर जोड़ दिया है।
अरुणा का यूपीएससी मैन्स का रिजल्ट आ गया था। अरुणा ने रिजल्ट का पीडीएफ डाउनलोड किया। वह चाहती तो ctrl + f बटन प्रेस करके अपना रिजल्ट चेक कर सकती थी, लेकिन उससे तो तुरंत ही स्क्रीन पर लिखा हुआ आ जाता है कि ,"This number is not found . " और अभ्यर्थी का दिल टूट जाता है। इसीलिए अरुणा हमेशा एक -एक लाइन स्क्रॉल करके अपना रिजल्ट देखती है। आज भी उसने ऐसे ही अपना रिजल्ट पीडीएफ में चेक किया और उसका रोल नंबर पीडीएफ में था, उसका इंटरव्यू कॉल हो गया था।
अरुणा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था, उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसने कई बार रिजल्ट चेक किया, कभी ctrl + f करके और कभी स्क्रॉल करके। वहाँ उसका रोल नंबर था। अरुणा का खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया था, उसे अपने आप पर भरोसा हो चला था और शायद उसका कॉन्फिडेंस ओवर कॉन्फिडेंस में बदल गया था।
इंटरव्यू सिविल सेवा एग्जाम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव है। अरुणा को कुछ लोगों ने सजेस्ट भी किया कि ,"वह कुछ दिन दिल्ली चली जाए और इंटरव्यू की तैयारी करे। "लेकिन अरुणा ने किसी की नहीं सुनी।
अरुणा का इंटरव्यू एक औसत इंटरव्यू था। उसका बहुत अच्छा इंटरव्यू नहीं हुआ था। यूपीएससी का फाइनल रिजल्ट घोषित हुआ। अरुणा ने पीडीएफ को स्क्रॉल करके देख लिया, उसने ctrl + f करके भी देख लिया, लेकिन उसका रोल नंबर लिस्ट में नहीं था। उसका अति आत्मविश्वास उसको ले डूबा था।
लेकिन इंटरव्यू कॉल के बाद उसकी अपने आप से अपेक्षा बढ़ गयी थी। राज्य सेवा के मैन्स का भी रिजल्ट आया और अरुणा का इंटरव्यू कॉल हो गया था। यूपीएससी में अंतिम रूप से चयनित न हो पाने का दुःख कुछ कम हो गया था।
राज्य सेवा का इंटरव्यू अरुणा का बढ़िया रहा और अरुणा का अंतिम रूप से राज्य की एक प्रतिष्ठित सेवा में चयन हो गया था। अरुणा ने सी -सैट की प्रकृति समझने के लिए एक वर्ष का एग्जाम से ब्रेक लिया। अब वैसे भी उसके पास दो ही एटेम्पट बचे थे।
राज्य सेवा में चयन के बाद मम्मी -पापा खुश तो बहुत थे, लेकिन साथ ही वह अरुणा पर शादी के लिए दबाव बनाने लगे थे। तब ही आनंद का रिश्ता आया, अरुणा के दिल को आनंद भा गया था क्यूँकि आनंद भी चाहता था कि अरुणा यूपीएससी की तैयारी जारी रखे। अरुणा की शादी आनंद से हो गयी थी और उसने राज्य सेवा ज्वाइन भी कर ली थी। राज्य सेवा में अरुणा की ट्रेनिंग शुरू हो गयी थी।
ट्रेनिंग के दौरान उनकी कोर्स डायरेक्टर मैम कहती थी कि ,"आजकल के बच्चे कितने करियर ओरिएंटेड और जागरूक हैं। हमने तो एक बार एग्जाम दिया और जो भी सर्विस मिल गयी, उसी में संतुष्ट होकर बैठ गए। अब लगता है कि हमें भी थोड़ा सा महत्वाकांक्षी होना चाहिए था। "
ट्रैनिंग के दौरान अरुणा के कई नए दोस्त बने, जिनमें से कुछ यूपीएससी की तैयारी के लिए सीरियस थे। अरुणा का एक नया ग्रुप बन गया था।
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अरुणा अपने यूपीएससी के पिछले प्रयास में प्री में फेल होते -होते बची थी। अब अरुणा प्री में किसी प्रकार का कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थी। उसने ट्रेनिंग के साथ अपनी पढ़ाई शुरू कर दी थी। अब उसने पिछले सालों के प्री के पेपर भी सॉल्व करने शुरू कर दिए थे। अरुणा इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से थी, अतः सी -सैट उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन फिर भी अरुणा रोज़ 30 -40 मिनट सी -सैट की प्रैक्टिस को भी देती थी।
अरुणा की ट्रेनिंग के दौरान ही उसने यूपीएससी का प्री एग्जाम दिया और इस बार उसका स्कोर सेफ था। उसने मैन्स की तैयारी शुरू कर दी थी। उसके साथ उसके 2 और फ्रेंड्स ने मैन्स लिखा। इस बार विनय ने भी मैन्स लिखा और यह विनय का अंतिम प्रयास था। अरुणा का इस बार भी यूपीएससी से इंटरव्यू कॉल हो गया था। उसके साथ के दोनों फ्रेंड्स का भी इंटरव्यू कॉल हुआ था। विनय का इंटरव्यू कॉल नहीं हुआ था। फिर विनय ने कहीं से जुगाड़ करके एक निःशक्तता प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया था और अब उसे यूपीएससी की परीक्षा देने के और एटेम्पट मिल गए थे।
इस बार भी अरुणा ने अपनी पिछली गलती से सबक नहीं लिया।वह एक -दो बार दिल्ली गयी, उसने एक -दो कोचिंग में सेमीनार अटेंड किये और फिर वापस आ गयी। मॉक इंटरव्यू इस बार भी नहीं दिए। अरुणा को शायद डर लगता था कि ,"उसके मॉक इंटरव्यू अगर अच्छे नहीं हुए और उसे नेगेटिव फीडबैक मिला तो उसका आत्मविश्वास बिलकुल समाप्त हो जाएगा। "
अरुणा के मैन्स अच्छे हुए थे और इंटरव्यू के बाद उसे चयन की पूरी उम्मीद थी। लेकिन इंसान की उम्मीदों पर पानी फिरते समय नहीं लगता। यूपीएससी की इस बार की फाइनल लिस्ट में अरुणा का नाम नहीं था, लेकिन अरुणा के दोनों साथ अंतिम रूप से चयनित हो गए थे। अरुणा स्वयं का सेलेक्शन न होने से दुःखी थी, लेकिन जब उसके साथियों का चयन हो गया तो उसका दुःख और भी बढ़ गया था। 3 इडियट्स में बिल्कुल सही कहा गया है कि ,"दोस्त फेल हो जाए तो सिर्फ दुःख होता है ,लेकिन दोस्त टॉप कर जाए तो बहुत ही बहुत दुःख होता है। "
अरुणा और उसके दोस्तों ने एक साथ तैयारी की थी। अरुणा उन दोनों से ज्यादा मेहनत करती थी। वो दोनों मैन्स एक एग्जाम से जस्ट पहले मूवी तक देखने गए थे। एक सी तैयारी, लेकिन उनके सेलेक्शन ने अरुणा को दुःखी कर दिया था। लेकिन तब उसके पति आनंद ने समझाया कि ,"तुम्हारे पास तो पहले से ही इतनी अच्छी नौकरी है। अभी तो एक प्रयास और बचा है। "
अरुणा को वैसे भी अब तो असफलता को सम्हालने और उससे उबरने की आदत हो चुकी थी। अरुणा ने जब अपनी मार्कशीट देखी तो इंटरव्यू में उसके एवरेज मार्क्स थे, लेकिन मैन्स में कम नंबर थे। अरुणा को आंसर राइटिंग प्रैक्टिस का महत्त्व भी समझ आ रहा था। नॉलेज ही नहीं उसका प्रेजेंटेशन भी बहुत महत्वपूर्ण है। अभी अरुणा इस सदमे से उबर ही रही थी कि यूपीएससी ने एक और झटका दिया। यूपीएससी ने मैन्स एग्जाम का भी पैटर्न पूरी तरह से बदल दिया। अब केवल एक ही वैकल्पिक विषय को तैयार करना था। यूपीएससी ने मैन्स में २ की जगह सामान्य अध्ययन के 4 पेपर कर दिए थे और एक ही वैकल्पिक विषय। इंटरव्यू के मार्क्स भी 300 से घटाकर 275 कर दिए थे।
यूपीएससी की अरुणा से न जाने क्या दुश्मनी थी, जो हर दिन उसकी मुसीबत बढाती जा रही थी। अब अरुणा को केवल एक ही वैकल्पिक विषय रखना था। अरुणा के अब तक इतिहास और दर्शनशास्त्र में एक से ही मार्क्स आये थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौनसा विषय रखे। इतिहास से सामान्य अध्ययन के फर्स्ट पेपर में हेल्प मिलती, वहीं दर्शनशास्त्र से सामान्य अध्ययन के फोर्थ पेपर में। आखिर अरुणा ने पाठ्यक्रम छोटा होने और अंकदायी होने के कारण दर्शनशास्त्र को अपने एक विषय के रूप में चुन लिया था। पैटर्न बदलने के साथ ही यूपीएससी का एग्जाम का कैलेंडर भी बदल गया था।
अरुणा की राज्य सेवा की ट्रेनिंग भी समाप्त हो गयी थी और उसकी स्वतंत्र पोस्टिंग हो गयी थी। अब अरुणा को अपना घर ,नौकरी और तैयारी सभी कुछ एक साथ मैनेज करना था। अरुणा काफी समझदारी से चीज़ें हैंडल कर रही थी। अरुणा अपनी वौइस् में कुछ ऑडियो बना लेती थी और ऑफिस से घर आते -जाते उन्हें सुन लेती थी। ऑफिस में वह फुर्सत मिलते ही अपनी किताबें खोलकर बैठ जाती थी।
अरुणा ने शादी तो कर ली थी, लेकिन अब उसे समझ आ रहा था कि शादी के बाद लड़कियों के सपने और ख़्वाहिशें दम क्यों तोड़ देती हैं ?शादी के बाद लड़कियों की सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं। शादी से पहले जहाँ अरुणा किसी भी रिश्तेदारी के फंक्शन आदि में नहीं जाती थी, अब वहीं उसे कुछ रिश्तेदारों के यहाँ जाना ही पड़ता था।
शादी के बाद अरुणा और आनद ने कभी बच्चे के लिए सोचा ही नहीं था। दोनों अपनी ज़िन्दगी में बगैर बच्चे के भी खुश और संतुष्ट थे। बच्चा करना है या नहीं ,ये सबका अपना निजी फैसला होना चाहिए। क्यूंकि दोनों ही स्थिति के अपने अपने परिणाम होते हैं। निर्णय लेते समय व्यक्ति परिणामों को सोचकर ही निर्णय लेता है। अतः उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
लेकिन हम जिस समाज में रहते हैं ,उसने आपका जीवन कैसे चलना चाहिए, उसके कुछ मानक ,माइलस्टोन बना दिए हैं। उनमें ज़रा सा भी परिवर्तन लोगों को खटकने लगता है।
शादी के बाद एक निश्चित समय तक अगर आपके बच्चा नहीं है तो लोग आपको पहले तो बच्चा जल्दी से करने के लिए सलाह देने लग जाएंगे। समय पर बच्चा होने के फायदे या नहीं होने पर क्या नुकसान हो सकता है ,ये भी बताएँगे। लेकिन उन्होंने सही 'समय' कैसे तय किया है यह अरुणा को आज तक समझ नहीं आया।
जैसे जैसे अरुणा विवाहित ज़िन्दगी के वर्षों में वृद्धि हो रही थी ,वैसे वैसे बच्चे के लिए दबाव भी बढ़ रहा था। ऐसे में ही अरुणा के पति आनंद एक बार अपनी बुआजी के घर गए। बुआ जी ने मौका देखकर वही बच्चा पुराण शुरू कर दिया ," तेरी बीवी करियर के पीछे ऐसी क्या पागल है ?अब तो शादी के तीन साल हो गए ,अब तो बच्चा कर लो। मैं भी बैंक में अधिकारी बन जाती लेकिन मैंने अपने परिवार को महत्व दिया। बीएसएनएल में लिपिक की नौकरी तो कर ही रही हूँ। "
आनंद ने तो बुआजी को कुछ नहीं बोला। लेकिन बुआजी ने अरुणा जाने बिना एक तो उसे जज कर लिया। दूसरा उनकी जो प्राथमिकता रही हो ,वह सबके लिए समान हो जरूरी तो नहीं। क्या पता यह उनकी अरुणा के प्रति जलन थी या उनकी कुण्ठा कि वह बैंक अधिकारी क्यों नहीं बनी ? खैर उनकी लीला तो वही जाने। और अगर एक महिला की प्रथम प्राथमिकता करियर हो तो उसमें क्या बुराई है। अगर पुरुष महत्वाकांक्षी हो तो उसका बड़ा गुण माना जाता है ,वही महत्वाकांक्षी महिला को वैम्प बना दिया जाता है।
धीरे धीरे वक़्त के साथ लोगों ने आनंद और अरुणा को विभिन्न डॉक्टर्स के एड्रेस और फ़ोन नंबर भी देने शुरू कर दिए। अरुणा उन सबको कहना चाहती थी कि ," भई ,'give us a break ',हमें कोई मेडिकल प्रॉब्लम नहीं है।"
कुछ लोगों ने बाबा ,पूजा पाठ ,हवन आदि के बारे में बताना शुरू कर दिया। सबसे मजेदार बात अरुणा ने कभी किसी को बोला तक नहीं था कि ," हमारे बच्चा नहीं हो रहा। कोई उपाय बता दो। "अरुणा और आनंद ने बच्चे बारे में अभी सोचा नहीं था। अरुणा एग्जाम की तैयारी कर रही थी, इसलिए उन्हें बच्चा नहीं चाहिए था।
हम भारतीय लोगों को दूसरे की समस्याएं ढूंढ़ने ,चाहे वह हो या न हो ,का बहुत शौक होता है। समस्या ढूंढ़कर उसके समाधान के लिए ऐसे ऐसे आइडियाज देते हैं, पूछिए मत। एक दूसरा शौक और है ,लोगों की निजता में उनकी इच्छा के बिना प्रवेश करना।अरुणा ने इन सब बातों को इग्नोर करना सीख ही लिया था।
अरुणा अब प्री एग्जाम को लेकर काफी निश्चिंत सी हो गयी थी। प्री एग्जाम के बाद उसने आंसर राइटिंग की प्रैक्टिस शुरू की। फेसबुक पर उसे तैयारी करने वालों का एक ग्रुप मिल गया था। वह अपने आंसर लिखकर उस ग्रुप में डालती थी। ग्रुप के सभी लोग एक -दूसरे के आंसर चेक करके अपना फीडबैक देते थे। अरुणा ने कुछ एक निबंध भी लिखे। अरुणा इस बार पढ़ने से ज्यादा लिखने का अभ्यास कर रही थी।
अरुणा ने नए पैटर्न से मैन्स लिखे। लिखने के अभ्यास के कारण वह जैसे -तैसे अपने पेपर पूरे कर पायी थी। यूपीएससी ने सोचकर लिखने का तो पूरा स्कोप ही खत्म सा कर दिया था। इस बार तो निबंध भी दो थे, पहले जहाँ तीन घंटे सोचकर एक निबंध लिखना होता था, अब वहीं दो निबंध लिखने थे। यह अरुणा का अंतिम प्रयास था और अरुणा ने अपना सब कुछ झोंक दिया था।
अरुणा अपने मैन्स के एग्जाम के रिजल्ट का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। यह उसका अंतिम प्रयास था तो ,बेसब्री भी बहुत बढ़ गयी थी। यूपीएससी ने मैन्स का रिजल्ट घोषित किया। इस बार अरुणा का इंटरव्यू कॉल नहीं हुआ था, अरुणा के सारे सपने चूर -चूर हो गए थे। अरुणा को समझ नहीं आ रहा था कि गलती कहाँ हुई ? बाद में पता चला कि इस बार हिंदी माध्यम वालों का तो यूपीएससी से पत्ता ही साफ़ हो गया था। बदलते पैटर्न का हिंदी माध्यम के कैंडिडेट्स पर बड़ा बुरा असर पड़ा था।
हिंदी माध्यम के लिए खुले हुए कोचिंग पहले से ही माशाल्लाह थे और अब बदलते पैटर्न के साथ उन्होंने अपनी शैली में कोई परिवर्तन भी नहीं किया था। फेल होने के डर में जीते हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी दिन -रात मेहनत करते हैं, हर उपलब्ध स्टडी मटेरियल पढ़ डालते हैं, लेकिन फिर भी उनका चयन नहीं हो रहा है। कुछ लोगों ने तो अपना माध्यम तक बदल दिया था।
हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की पीड़ा को देखते हुए ,कुछ अभ्यर्थियों ने आंदोलन प्रारम्भ किया। इस आंदोलन की मांग थी कि एक तो प्री से सी -सैट को हटाया जाए क्यूँकि सी -सैट का लाभ इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से आने वाले अभ्यर्थियों को अधिक हो रहा था। दूसरा हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों को दो अतिरिक्त प्रयास दिए जाएँ। इस परीक्षा प्रणाली का मूल्याङ्कन किया जाए और कारण पता लगाये जाए कि पहले जहाँ हिंदी माध्यम के ४०% तक अभ्यर्थी चयनित हो रहे थे अब वे अंगुली पर गिनने लायक क्यों रह गए हैं।
अरुणा की किस्मत शायद उसके साथ थी या उसके सपनों में इतना दम था कि ,"सरकार ने 2 अतिरिक्त प्रयास देने की बात स्वीकार कर ली थी। "अरुणा को दो और अतिरिक्त प्रयास मिल गए थे। वैसे सी -सैट के पेपर को क्वालीफाइंग बना दिया गया था। प्री क्लियर करने के लिए अब केवल सामान्य अध्ययन के मार्क्स ही जुड़ने वाले थे, लेकिन अरुणा के लिए यह खबर उतनी महत्वपूर्ण नहीं थी क्यूंकि उसे सी -सैट के पेपर से ज्यादा समस्या नहीं थी। अरुणा फिर नयी ऊर्जा के साथ तैयारी में जुट गयी थी।
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पिछले प्रयास में अरुणा के दर्शनशास्त्र विषय में नंबर कम आये थे। अरुणा को अपने एक दोस्त से मुखर्जी नगर में दर्शनशास्त्र पढ़ाने वाले सर यशवर्धन सर के बारे में पता चला। यशवर्धन सर बहुत सीधे -साधे थे, मार्केटिंग के गुर नहीं जानने के कारण हिंदी माध्यम के कोचिंग की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में सर्वाइव नहीं कर पा रहे थे। प्री के परिणाम के बाद अरुणा सर की कोचिंग में दर्शनशास्त्र का क्रैश कोर्स करने गयी। सर ने उसके आंसर देखे और उनमें सुधार के कई सुझाव भी दिए।
10 दिन तक अरुणा पढ़ती रही ,लेकिन सर ने अरुणा से फीस नहीं माँगी। फिर अरुणा ने ही सर से जाकर पूछा ,"सर ,फीस कितनी देनी है ?"
"तुम संदीप के रेफरन्स से आयी हो। फीस रहने दो।" सर ने कहा।
अरुणा तब तक जान चुकी थी कि यहाँ आने वाले बच्चे सर की भलमनसाहत का फायदा उठाकर बिना फीस दिए ही भाग जाते हैं। दूसरी कोचिंग में अपने पैसे लुटा देने के बाद यहाँ आने वाले बच्चे सर को अपनी दुःखभरी कहानी सुनाकर सर से अपनी फीस माफ़ करवा लेते हैं।
इसीलिए अरुणा ने कहा ,"सर ,मैं तो नौकरी में हूँ। आपकी फीस अफोर्ड कर सकती हूँ। आप प्लीज बता दीजिये। "
अरुणा ने सर को फीस दे दी थी। सर ने दर्शनशास्त्र में ही नहीं अपितु ,सामान्य अध्ययन के कुछ टॉपिक्स जैसे सामाजिक मुद्दे ,आंतरिक सुरक्षा ,आपदा प्रबंधन ,एथिक्स आदि में भी अरुणा को बहुत अच्छे से मार्गदर्शन दिया।
अरुणा के मैन्स हुए, उसके पेपर अच्छे हुए थे। अरुणा का इंटरव्यू कॉल भी हुआ। इस बार अरुणा ने अपनी पिछली गलतियों को नहीं दोहराया। अरुणा बार -बार दिल्ली मॉक इंटरव्यू देने आयी। उसने 15 -20 मॉक इंटरव्यू दे डाले। उसने अपने बायोडाटा पर आधारित कोई 500 प्रश्न तैयार किये। उसने एक नोटबुक बना ली थी, जिसमें वह हर संभावित प्रश्न और उसका बेहतर से बेहतर उत्तर लिख लेती थी। मॉक इंटरव्यू बोर्ड के नेगेटिव फीडबैक से वह ज्यादा प्रभावित नहीं हो रही थी।
अरुणा का इंटरव्यू बहुत ही शानदार हुआ ,उससे ज्यादातर प्रश्न वही पूछे गए जो उसने तैयार कर रखे थे। उन प्रश्नों को वह बहुत अच्छे से हैंडल कर पायी। बोर्ड की एक मेंबर तो पूरे इंटरव्यू के दौरान उसे सपोर्ट करती रही। अरुणा अपने सिलेक्शन को लेकर बहुत निश्चिंत थी।
हर बार की तरह यूपीएससी का रिजल्ट आया और अरुणा ने बड़े अरमानों से रिजल्ट का पीडीएफ डाउनलोड किया। स्क्रॉल किया, ctrl + f किया, लेकिन अरुणा का नाम और रोल नंबर लिस्ट से नदारद थे। इस बार न चाहते हुए भी अरुणा की रुलाई फूट गयी थी।
"सब कुछ करके देख लिया। मुझसे कम मेहनत करने वाले लोगों का भी सेलेक्शन हो रहा है। फिर मेरा ही क्यों नहीं हो रहा। अपनी ज़िन्दगी के सबसे उत्पादक साल यूपीएससी को दे दिए, लेकिन नतीजा सिफर।" अरुणा ने अपनी आँखों से ढुलक आये आँसुओं को पोंछते हुए अपने पति आनंद से कहा।
"अरे, हिम्मत मत हारो। अभी तुम्हारा एक प्रयास और बचा हुआ है। तुमने अपने साल खराब नहीं किया ,बल्कि तुमने कितना कुछ सीखा है, तुम तो अभी भी काफी अच्छी स्थिति में हो।" आनंद ने समझाते हुए कहा।
"आनंद ,मैं सब समझती हूँ। लेकिन जब मुँह तक आते -आते निवाला छीन जाए तो बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। खैर अब तो मुझे असफ़लता के साथ जीने की आदत हो गयी है।" अरुणा ने कहा।
"असफ़लता हमें सफलता के नज़दीक ले जाती है। अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति का चुनाव जितने से पहले न जाने कितने ही चुनाव हारे थे।" आनंद ने कहा।
"हाँ ,थॉमस एडिसन के सैंकड़ों प्रयोग असफल हुए थे, उसके बाद वह बल्ब बना सके थे।" अरुणा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ ,तो अब अगले प्रयास की तैयारी में जुट जाओ।" आनंद ने कहा।
लेकिन किस्मत कब पलट जाए, कुछ पता नहीं चलता। इस बार परिणाम घोषणा के कुछ दिनों के अंदर ही यूपीएससी ने अंतिम रूप से चयनित नहीं होने वाले अभ्यर्थियों की मार्कशीट भी अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी थी। अरुणा केवल 3 नंबर से चयनित होने से रह गयी थी। अरुणा को साक्षात्कार में अच्छे नंबर मिले थे। उसे साक्षात्कार में 66 % नंबर मिले थे। दर्शनशास्त्र में कम नंबर आने की वजह से उसका नाम फाइनल लिस्ट में नहीं आ सका था।
"अगर सिर्फ तीन नंबर और आ जाते तो मेरा नाम भी लिस्ट में होता।" अरुणा ने आरोही को मैसेज किया।
आरोही ने जवाब दिया कि ,"रिज़र्व लिस्ट में उसका चयन 100 % हो जाएगा।एक बात सोच अगर तुम्हारे तीन नंबर और कम आते तो ,शायद तुम रिज़र्व लिस्ट में भी नहीं आती। सबसे बड़ी बात तुम कम से कम एग्जाम तो दे पायी, नहीं तो तुम्हारे एटेम्पट तो ख़त्म हो ही गए थे न। किस्मत अच्छी है तुम्हारी। "
"ग़िलास आधा भरा हुआ है। सही है हम हमेशा यही कहते रहते हैं कि इस सब्जेक्ट में एक नंबर और आ जाता तो हमारी रैंक सुधर जाती, और भी अच्छी सर्विस मिलती। लेकिन यह भूल जाते हैं कि अगर एक नंबर भी कम हो जाता तो हमारा लिस्ट से नाम भी कट जाता।" अरुणा ने कहा।
"अरे ,तुम्हें अमन याद है?" आरोही ने पूछा।
"हाँ ,याद हैं न ?क्या हुआ ? उसका सेलेक्शन हो गया ?"अरुणा ने पूछा।
"नहीं, सेलेक्शन तो नहीं हुआ। लेकिन उसने पंजाब में अपना कोचिंग शुरू किया है। ठीक चल रहा है। मैं किसी काम से चंडीगढ़ गयी थी ,तब मिल गया था।" आरोही ने कहा।
"क्या उसके भी अटेम्प्ट ख़त्म हो गए थे ?"अरुणा ने पूछा।
"नहीं, कह रहा था घर में कोई फाइनेंसियल प्रॉब्लम थी। क्या थी, मैंने पूछा नहीं और उसने बताया नहीं। चलो ,तुम अपनी इस सफलता का आनंद उठाओ। फिर बात करते हैं।" आरोही ने कहा।
यूपीएससी कुल रिक्तियों का 1 -2 % रिज़र्व रख लेती है, ऐसा शायद आरक्षण, रोस्टर आदि के कारण होने वाले बदलावों से बचने के लिए करती है। यह रिज़र्व लिस्ट सामान्यतया फाइनल रिजल्ट के ७-8 महीने बाद तक आती है।
अरुणा की किस्मत से यूपीएससी ने इस बार रिज़र्व लिस्ट भी फाइनल रिजल्ट आने के दो महीने के अंदर ही जारी कर दी थी। रिज़र्व लिस्ट में अरुणा का नाम था। अरुणा फाइनली यूपीएससी के सिविल सेवा एग्जाम में चयनित हो गयी थी, मैन लिस्ट में न सही ,उसका नाम रिज़र्व लिस्ट में तो आ ही गया था। अभी उसके पास एक और एटेम्पट बचा हुआ था।
यशवर्धन सर ने अरुणा को फ़ोन पर समझाया कि ," इस बार तुम्हारा रिज़र्व लिस्ट में नाम आया है, देखना अगली बार पक्का मैन लिस्ट में आयेगा तुम्हारा नाम। तैयारी मत छोड़ना, यह लास्ट अटेम्प्ट तुम्हारा बेस्ट अटेम्प होना चाहिए। "
"जी सर ,कम से कम यूपीएससी ने इस बार तो मुझे चुन ही लिया है। अगली बार मैन लिस्ट में भी आ ही जाऊँगी। अब खुद पर विश्वास है, वाकई में मुझे आप सब के विश्वास पर खरा उतरना है।" अरुणा ने मुस्कुराकर कहा।
"दिल्ली का चक्कर लगाती रहना। आंसर राइटिंग प्रैक्टिस में कोई कसर मत छोड़ना।" यशवर्धन सर ने कहा।
अपनी मार्कशीट का विश्लेषण करने पर अरुणा को यह समझ आ गया था कि उसे वैकल्पिक विषय में एवरेज नंबर ही मिल रहे हैं। मैन लिस्ट में टॉप करने वाले अभ्यर्थियों ने वैकल्पिक विषय में काफी अच्छे नंबर प्राप्त किये थे। अरुणा अब अपने वैकल्पिक विषय को लेकर बहुत कंफ्यूज थी।
लेकिन लास्ट एटेम्पट में विषय बदलना ,उसे सुसाइड लग रहा था। अब तो उसे यशवर्धन सर का मार्गदर्शन भी मिल रहा था और उसे दर्शनशास्त्र पढ़ने में भी अच्छा लगता था। अगर अपने पुराने विषय में ही थोड़ी और मेहनत करेगी तो औसत से ऊपर नंबर आ ही जायेंगे।
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अरुणा अपना लास्ट अटेम्प्ट देने के बाद बहुत खुश थी। उसे यूपीएससी से और यूपीएससी को उस से मुक्ति मिल गयी थी। अरुणा के लिए यह मुक्ति महावीर स्वामी को मिले कैवल्य और महात्मा बुद्ध को मिले निर्वाण से भी बढ़कर थी।
"अरुणा तुम इतने बड़े एग्जाम को पास करके सिविल सर्विसेज में जा रही हो ? तुम्हें कैसा लगता है ?"आनंद ने बातों -बातों में अरुणा से पूछा था।
"आनंद ,यह आज भी एक सपने जैसा लगता है। आज मुझे सही में समझ आ गया है कि सफल लोग कुछ अलग नहीं होते, लेकिन उनके कार्य करने के तरीके अलग होते हैं। इस एग्जाम ने मुझे भी कुछ हद तक स्थितप्रज्ञ बना दिया है। अब सुख़ -दुःख बहुत ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करते।" अरुणा ने कहा।
"तुम तो फिलॉस्फर बन गयी।" आनंद ने मुस्कुराते हुए कहा।
"फिलॉस्फर तो हम सब ही होते हैं। मैंने तो एग्जाम की तैयारी के चक्कर में फिलोसॉफी को जिया है।" अरुणा ने मुस्कुराते हुए कहा।
अरुणा ने मैन्स एग्जाम के समाप्त होते ही राज्य सेवा छोड़कर केंद्रीय सेवा ज्वाइन कर ली थी।सरकार अपने सिपाहियों को समस्त हथियारों से लैस करके ही फिल्ड में भेजती है, इसीलिए जॉइनिंग के साथ ही सभी लोगों की ट्रेनिंग शुरू हो जाती है। अरुणा की ट्रेनिंग भी शुरू हो गयी थी। ट्रेनिंग में वह और भी कई चयनित लोगों से मिली।ट्रेनिंग ने अरुणा को कॉलेज लाइफ दोबारा जीने का मौका दिया और सबसे महत्वपूर्ण उसे हॉस्टल लाइफ जीने का पहली बार मौक़ा मिला, वह भी ऑफिसर - हॉस्टल में।
अरुणा को अकादमी में बहुत से नए लोगों से मिलने का मौका मिला। चयन से पहले अरुणा को लगता था कि चयनित होने वाले लोग बहुत ख़ास होते हैं। चयन के बाद लोग बड़ी तोप बन जाते हैं। लेकिन ट्रेनिंग में अपने जैसे इतने सारे लोगों से मिलने से चाहे कुछ समय के लिए ही सही यह भ्रम टूट जाता है। कम से कम ट्रेनिंग अकादमी में असली साहब नहीं बनते हैं। साहबियत के असली रंग तो फील्ड में जाकर ही दिखाते हैं।
ट्रेनिंग कर रहे कुछ लोगों के और भी एटेम्पट बचे हुए थे, वह और भी बेहतर सर्विसेज में जाना चाहते थे। IAS और IPS सबसे बेहतर सर्विसेज में गिनी जाती थी। जो लोग IAS और IPS में चयनित हो गए थे ,वे अपने कैडर से खुश नहीं थे। कुछ लोग अपना कैडर बदलने के लिए भी एग्जाम देना चाह रहे थे और तैयारी भी कर रहे थे।
अरुणा को समझ आ रहा था कि हम इंसानों की ख्वाहिशें कभी पूरी नहीं होती हैं, जब एक ख़्वाहिश पूरी हो जाती है तो दूसरी जन्म लेने लगती है। जब तक चयन नहीं होता, तब तक लगता है कोई भी सेवा मिल जाए, लेकिन कम से कम नौकरी तो लग जाए। चयन होने के बाद लगता है कि काश इससे बेहतर सेवा मिले। फिर सबसे बेहतर सेवा मिलने के बाद अपने मनपसंद कैडर को लेकर जोड़ -तोड़ शुरू हो जाते हैं।
अरुणा अपनी ट्रेनिंग को बहुत एन्जॉय कर रही थी। वह ही नहीं ,वहां उपस्थित लगभग सभी लोगों ने यूपीएससी का इस बार का मैन्स लिखा था और सभी परिणाम का इंतज़ार कर रहे थे।
यूपीएससी का हर बार की तरह परिणाम आया और अरुणा ने चेक किया और इस बार अरुणा का रोल नंबर लिस्ट में नहीं था। यूपीएससी के 5 मैन्स और 3 इंटरव्यू देने के बाद, आज अंतिम असफलता के साथ अरुणा का यूपीएससी का सफ़र ख़त्म हो गया था।
अरुणा सोच रही थी कि ,"दर्शनशास्त्र के कारण उसका इस बार इंटरव्यू कॉल नहीं हुआ। अंतिम प्रयास उसका बेस्ट प्रयास था, लेकिन क्या फायदा, इंटरव्यू कॉल तो नहीं हुआ। "
कुछ दिनों बाद यूपीएससी ने हमेशा की तरह चयन से वंचित रहे अभ्यर्थियों की मार्कशीट अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी थी। अरुणा ने जब अपनी मार्कशीट देखी तो यूपीएससी ने उसे फिर चौंका दिया था। अरुणा इंग्लिश लैंग्वेज के पेपर में फेल हो गयी थी। यूपीएससी दो पेपर भाषा के लेती है, पहले पेपर के लिए अभ्यर्थी संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित २२ भाषाओं में से कोई भी एक भाषा को चुन सकता है और दूसरा पेपर इंग्लिश भाषा का होता है। दोनों पेपर 10th स्टैंडर्ड के ही होते हैं। अगर दोनों में से किसी एक भी पेपर में क्वालीफाई मार्क्स नहीं आते हैं तो यूपीएससी द्वारा बाकी पेपर की कॉपी भी चेक नहीं की जाती हैं।
अरुणा ने अपने पाँचों मैन्स में कभी भी लैंग्वेज पेपर की कोई तैयारी नहीं की थी और हर बार वह आराम से दोनों पेपर में पास हो रही थी। लेकिन इस बार इंग्लिश लैंग्वेज पेपर के कारण उसका इंटरव्यू कॉल नहीं हुआ। किस्मत से ज़्यादा और वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।
अरुणा के बेस्ट अटेम्प्ट की कॉपी तो यूपीएससी द्वारा जाँची ही नहीं गयी थी। अरुणा अपनी इस यात्रा से इतना अवश्य समझ गयी थी कि ,"यूपीएससी एग्जाम ज़िन्दगी का एक हिस्सा मात्र है, पूरी ज़िन्दगी नहीं। अगर आप यूपीएससी में चयनित नहीं होते हैं तो दुःखी और निराश मत होइये, ज़िन्दगी ने आपके लिए बेहतर सोच रखा होगा। "
यूपीएससी की तैयारी आपको एक परिपक्व समझ का इंसान तो बना ही देती है। अब तो कुछ कम्पनीज यूपीएससी के साक्षात्कार तक पहुँचे व्यक्तियों को सीधे ही अपनी कंपनी में उच्च पदों पर ले रही हैं।
एक चयन आपकी ज़िन्दगी बहुत बदल देता है। रातोंरात लोगों का आपके प्रति नज़रिया बदल जाता है। किसी ने सही कहा है कि ,"असफलता अनाथ होती है और सफलता कभी अकेले नहीं रहती। "
अरुणा अपने परिवार और मिलने -जुलने वाले लोगों के लिए रोल मॉडल बन चुकी थी। कल तक उसकी सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के निर्णय पर प्रश्न लगाने वाले लोग ,आज उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे।
अरुणा को आज भी याद है, चाचाजी को पता चला था कि अरुणा सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही है, तब चाचाजी ने उसकी बुद्धिमत्ता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा था कि ,"आजकल के होशियार बच्चे प्राइवेट सेक्टर में ही जाते हैं। जो प्राइवेट सेक्टर में नहीं जा पाते, वे लोग सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं। "
अरुणा तब मन मसोस कर रह गयी थी। उसने कुछ नहीं बोला था। कई बार जवाब देना सही नहीं होता, वक़्त सबको सही से ज़वाब दे देता है।
अरुणा वैसे भी उस बहरे मेंढक की तरह हो गयी थी, जिसे लोगों की बातें सुनाई नहीं देती थी, उसे केवल अपनी मंज़िल दिखाई देती थी, इसीलिए वह बहरा मेंढक लोगों की नकारात्मक बातों से विचलित हुए बिना शिखर तक पहुंचा था।
अरुणा के साथ के सभी लोग कहीं न कहीं सेटल हो ही गए थे। आरोही एक बड़ी कंपनी में CSR की हेड बन गयी थी। विनय अंतिम रूप से एस्ट्रोलॉजी में चला गया था और आज उसके पास नाम और दाम दोनों ही पर्याप्त मात्रा में था। कुछ दोस्तों ने अपना कोचिंग शुरू कर दिया था और आज उनके कोचिंग बहुत अच्छे चल रहे थे। कुछ दोस्त प्रोफेसर बन गए थे।
आज जब अरुणा कहीं भी तैयारी करने वाले बच्चों के सेमिनार लेने जाती है तो सिर्फ यही कहती है कि ," रिवीजन और आंसर राइटिंग प्रैक्टिस ही एकमात्र जरिया है यूपीएससी क्लियर करने का।यह बात आप जितनी जल्दी समझ जाएंगे, उतनी जल्दी ही चयनित हो जाओगे। यूपीएससी का सिलेबस कभी भी पूरा नहीं होता, तो जो भी पढ़ते हैं, उससे संबंधित प्री और मैन्स के प्रश्न और उत्तर जरूर तैयार करें। एक और बात यूपीएससी आपकी ज़िन्दगी से बढ़कर नहीं है। "
"मैडम ,आप क्या किस्मत में यकीन करती हो ?",किसी तैयारी करने वाले एस्पिरैंट ने पूछा।
"हाँ ,95 % आपकी मेहनत और बाकी का 5 % आपकी किस्मत। किस्मत से मुझे 2 अतिरिक्त प्रयास मिले थे। किस्मत से रिज़र्व लिस्ट में चयनित हुई और किस्मत से ही इंग्लिश भाषा के पेपर में फेल भी हुई। लेकिन अगर आपकी मेहनत कम होगी तो किस्मत भी साथ नहीं देगी।" अरुणा ने मुस्कुराते हुए कहा।
इति सिद्धम
