अभी इसकी शादी की उम्र नहीं है
अभी इसकी शादी की उम्र नहीं है
"अरे, शांता आज सुबह-सुबह कहाँ गयी थी ?" मैंने अपनी घरेलू सहायिका के हाथ में मिठाई का डब्बा देखकर पूछा।
"अरे दीदी! वह आपकी बेटी रत्ना की शादी तय कर दिए हैं। उसी ख़ुशी में आपके लिए मिठाई लाये हैं।" शांता ने बड़ा खुश होते हुए बताया।
शांता की बेटी रत्ना अभी केवल 14 वर्ष की थी और उससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। इतनी विपरित परिस्थितियों के बावज़ूद भी उसके 8th कक्षा में 80 %अंक आये थे। मेरी बेटी नेहा, जो कि अभी मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही थी अक्सर रत्ना की तारीफ करते हुए कहती थी कि, "मम्मी इतनी होशियार और प्रतिभाशाली है यह लड़की, अगर अवसर मिला तो ज़िन्दगी में कुछ बड़ा और बेहतर करेगी।"
अभी शान्ता से बात कर रही थी कि मेरी बेटी नेहा अपने कमरे से तैयार होकर, कॉलेज जाने के लिए बाहर आ गयी थी और उसने शायद हमारी बातें भी सुन ली थी। उसने सीधे ही शांता को बोला, " आंटी, आपको पता भी है कि, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की शादी कराना कानूनन अपराध है। आपको जेल भी हो सकती है। मैं रत्ना को समझाऊंगी कि बाल विवाह एक अपराध है और वह खुद ही आप लोगों की शिकायत कर देगी।"
मेरी बेटी की बातें सुनकर शांता रुँआसी सी हो गयी। फिर मैंने बात सम्हालने के लिए कहा, " नेहा तुम अपना नाश्ता ख़त्म करो और कॉलेज के लिए निकलो। तुम्हें देर हो जायेगी। रत्ना के बारे में शाम को बात करेंगे।"
नेहा जल्दी में थी, इसलिए यह कहकर निकल गयी कि, " मम्मी आप शांता आंटी को समझाओ, रत्ना को पढ़ने दे, शादी -वादी का ख्याल अभी के लिए तो दिमाग से निकाल दें। "
नेहा को तो मैंने नाश्ता ख़त्म करके भेज दिया था। लेकिन मेरा खुद का मन कहाँ यह गवारा कर रहा था कि रत्ना की शादी इतनी जल्दी की जाए। इसीलिए मैंने शांता को समझाने की कोशिश की।
"रत्ना पढ़ने में अच्छी है, पढ़ -लिख जायेगी तो नौकरी लग जायेगी। अच्छा लड़का मिल जाएगा। ",मैंने कहा।
" भाभी नौकरियां रखी कहाँ हैं ?हमारे गांव के कितने ही लड़के कॉलेज की पढ़ाई के बाद बिना नौकरी के ही घूमते हैं। पढ़-लिख के तो और कोई काम भी नहीं करते हैं। लड़कियों के लिए तो वैसे ही नौकरी नहीं है। ज्यादा पढ़ गयी तो अच्छे लड़के के लिए दहेज़ कहाँ से लाएंगे। फिर भाभी हमारी बिरादरी में तो लड़कियों की शादी और भी जल्दी कर देते हैं। बिरादरी का भी बड़ा दबाव है। ", शांता ने बताया।
"अरे ! तुम तो यहाँ रहती हो, बिरादरी से क्या मतलब। ",मैंने पूछा.
"भाभी, यह तो परदेश है। गांव का घर बनवाने लायक पैसे इकट्ठे हो जाएँ तो हम वहीँ जाकर रहेंगे। बिरादरी की तो सुननी पड़ेगी, नहीं तो कैसे रहेंगे। देवर की बेटी की शादी हो रही है, रत्ना से छोटी है। फिर रत्ना की शादी होना मुश्किल हो जाएगा। अभी दोनों बहिनों की शादी एक साथ करेंगे तो खर्चा भी कम होगा। ",शांता ने जवाब दिया।
"कम उम्र में शादी से लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है। ",मैंने समझाया।
" जो भाभी, बेटी के साथ कोई अनहोनी हो गयी तो, आज का ज़माना कितना खराब है। फिर तो बेटी की ज़िन्दगी बर्बाद ही हो जानी है। चलो भाभी काम खत्म करूँ और भी घर जाना है। "शांता बर्तन धोने के लिए रसोई में चली गयी थी।
शांता अपना काम ख़त्म करके जाने लगी, तब मैंने एक बार फिर कहा, "शांता एक बार और सोच ले। बेटी की ज़िन्दगी से खिलवाड़ मत कर।"
"नहीं भाभी, २ महीने बाद शादी है। इस महीने और आऊँगी, फिर तो शादी की तैयारियों के लिए गांव जाना होगा। ",ऐसा कहकर शांता चली गयी थी।
शाम को नेहा जैसे ही घर में घुसी, उसका पहला सवाल था, "मम्मी, शांता आंटी आपकी बात समझी या मैं रत्ना से ही बात करूँ। "
"कपड़े तो बदल ले। जब तक मैं चाय बना लाती हूँ, फिर बैठकर बात करते हैं। ",मैंने नेहा से कहा।
नेहा कपड़े बदलकर आ गयी थी। चाय के घूँट लेते हुए, उसने सवालिया नज़रों से मुझे देखा।
"बेटा, देखो शांता आंटी अभी तो कुछ नहीं सुन रही। लेकिन तुम रत्ना को कुछ मत कहना। आदर्शों की बात करना और उनको जीवन में अपनाना दो अलग -अलग बातें हैं। आदर्शों पर चलने की कीमत चुकानी पड़ती है। मैं नहीं चाहती रत्ना भी वही क़ीमत चुकाए, जो मेरी छात्रा कुसुम ने चुकाई थी। ",मैंने कहा।
"आपकी छात्रा कुसुम ?उसके साथ क्या हुआ था मम्मी ?",नेहा ने पूछा।
"उसे आत्महत्या करनी पड़ी थी। उसकी आत्महत्या से मुझे इतनी ग्लानि हुई थी कि मैंने अपनी नौकरी ही छोड़ दी थी। ",मैंने बताया।
"मुझे तो लगा था कि आपने मेरी वजह से नौकरी छोड़ी थी। मुझे बेहतर परवरिश दे सको इसलिए। वैसे कुसुम ने आत्महत्या क्यों की थी ?",नेहा के सवाल बदस्तूर जारी थे।
"बेटा, आदर्शों पर चलने की कीमत चुकाई थी;उस मासूम ने। मेरे क्लास की सबसे होशियार लड़की थी। स्कूल में लड़कियों के मुद्दों पर बात करने और समझाने के लिए NGO आदि आते रहते थे। मैं खुद भी बच्चियों को बाल विवाह, घेरलू हिंसा, दहेज़ प्रथा जैसे मुद्दों के बारे में बताती थी।कुसुम को भी बाल विवाह के नुकसान के बारे में बताया गया था। साथ ही यह भी बताया गया कि अगर कोई बच्ची ऐसी समस्या में फंसती है तो मदद के लिए कहाँ जाए ?कुसुम के साथ की सभी लड़कियों ने ये सुना, लेकिन गुना केवल कुसुम ने। कुसुम ने अपनी शादी के बारे में मुझे बताया, साथ ही यह भी कहा कि वह यह शादी नहीं करना चाहती। ",मैं तो अपनी रौ में बोलती जा रही थी।
"फिर आपने क्या किया ?" तब नेहा ने पूछा।
"मैंने NGO, प्रशासन और पुलिस की मदद से कुसुम का विवाह रुकवा दिया। मुझ पर भी तो एक नाबालिग लड़की की ज़िन्दगी बचाने का फितूर था। कुसुम को मीडिया ने रातोंरात स्टार बना दिया। कुसुम की बहादुरी का फायदा सबने अपने -अपने तरीके से उठाकर, उसे भुला ही दिया था। कुसुम के घरवालों को समझाकर, यदि यह विवाह रुकता तो आज शायद कुसुम ज़िंदा होती। मैं भी एक बच्ची को बचाकर घमंड में अमचूर थी।" मैंने कहा।
"मम्मा, लेकिन कुसुम ने आत्महत्या क्यों की ?", नेहा ने अधीर होते हुए पूछा।
"कुसुम ने सोचा था कि बाल विवाह को इंकार कर उसने एक बड़ी लड़ाई जीत ली है। लेकिन उसकी असली लड़ाई तो अब शुरू हुई थी ; उसे अकेले ही रोज़ लड़ना पड़ रहा था ;अपने ख़्वाबों से, अपनी ज़िन्दगी से, अपनी सोच से ।उसे अपने घरवालों का साथ नहीं मिल रहा था। "मैंने बताया।
"फिर क्या हुआ ?",नेहा ने पूछा।
"उसके परिवार को जाति बिरादरी से बहिष्कृत कर दिया गया। उसके २ बड़े भाइयों का विवाह नहीं हो सका था । उसके गांव में 10th तक ही स्कूल था ;अतः 10th के बाद उसकी पढ़ाई भी रुक गयीथी । घर की आर्थिक हालत के कारण वह बाहर जाकर भी नहीं पड़ सकतीथी । किसी भी प्रकार की छात्रवृति के लिए वह eligibility criteria पूरा नहीं करतीथी। घरवालों के रोज़ -रोज़ के ताने वह सह नहीं सकी थी और एक दिन उसने अपने आपको ख़त्म कर लिया। ",बताते -बताते मेरी आँखों से पानी बह निकला था।
नेहा भागकर मेरे लिए पानी लेकर आयी। पानी पीकर मैंने फिर बताना शुरू किया, " बेटा ;उस दिन मुझे महसूस हुआ ;आदर्श पर चलना बहुत ही मुश्किल होता है। मैंने कहीं पढ़ा भी था कि बेमेल विवाह का विरोध करने वाले महादेव गोविन्द रानाडे भी अपने घरवालों के सामने झुक गए थे और अपने से छोटी उम्र की लड़की से शादी के लिए मजबूर हो गए थे। नेल्सन मंडेला आदर्शवादी थे ;अतः उनकी निजी ज़िन्दगी कभी खुशनुमा नहीं थी। उनकी पत्नी उनसे नाखुश थीं। कुसुम के अगर अपने उसके साथ होते ;हम उन्हें समझाते तो शायद आज कुसुम हमारे बीच होती। मैं रत्ना को दूसरी कुसुम बनने नहीं दे सकती। "
"आप शायद सही कह रही हो मम्मा। लेकिन हम शांता आंटी को समझाते रहेंगे। अभी तो वो एक महीने बाद गांव जाएंगी। ",नेहा ने मेरी बात समझते हुए कहा।
नेहा और मैं प्रतिदिन शांता को समझाते। बाल विवाह से होने वाले नुक्सान बताते। लेकिन शांता भी हमारी बात एक कान से सुनती और दूसरे से निकाल देती। फिर शांता रत्ना की शादी कराने के लिए उसे गांव ले गयी।
२ महीने बाद शांता दोबारा से काम पर आयी। शांता बहुत ही खुश नज़र आ रही थी। मैंने पूछा," और रत्ना की शादी बढ़िया से हो गयी ?शादी के लिए ज्यादा कर्ज़ा तो नहीं लिया ?"
"नहीं दीदी। रत्ना की शादी नहीं की हमने। ",शांता ने बड़ी शान्ति से कहा।
शांता की बात सुनकर नेहा और मैं दोनों ही बड़े खुश हुए और उसकी तरफ आश्चर्य से देखने लगे।
"दीदी, रत्ना तो बड़ी ही होशियार है। हमारे गांव में लड़कियों के लिए फ़ोन पर बात करने वाला एक ऑफिस खुला है। गांव की सभी 8 वी और उससे ज्यादा पढ़ी लड़कियों को उस ऑफिस में नौकरी दे रहे हैं। हमारी रत्ना को भी मिल गयी। पूरे 5000 /- मिलते हैं। उन्होंने कहा है कि रत्ना अगर और पढ़ लेगी तो उसे मैनेजर बना देंगे। जब गांव की गांव में नौकरी मिले तो सुरक्षा की भी चिंता नहीं। फिर आपकी बातें भी हमें याद थी तो हमने सोचा रत्ना एक बार मैनेजर बन जाए तब उसकी शादी करा देंगे। "शांता ने खुश होते हुए कहा।
रत्ना के गांव में कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिब्लिटी के तहत किसी कंपनी ने कॉल सेण्टर खोला था। गांव
की पढ़ी -लिखी लड़कियों को वहां नौकरी दी गयी थी। इसका उद्देश्य लड़कियों की विवाह योग्य आयु बढ़ाना और उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करना था।
"वाह आंटी, आपने बहुत ही अच्छा निर्णय लिया। काश हर रत्ना को ऐसी सुविधा मिले। ",नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा।