आवाज
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आज महाविद्यालय में एक विशाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन था। साहित्य के प्रोफेसरों के साथ रिसर्च कर रहे कई छात्रों ने इसमें आयोजित कहानी प्रतिस्पर्धा में अपनी मौलिक रचनाये भेजी थी।
आज उसी का पुरस्कार वितरण होना था। विश्विद्यालय के कुलपति ,प्राचार्य के साथ ही कई नामचीन लेखक और कवि ज्यूरी के सदस्य थे।
सभागार खचाखच भरा हुआ था। साहित्य के प्राध्यापक द्विवेदीजी सूटबूट पहने मंच पर ऐसे खड़े थे।मानो पुरस्कार उन्ही के हाथों में जाने वाला हो।
सभी अतिथियों के उदबोधन हुए फिर कुलपति जी ने विजेता का नाम घोषित किया।
नाम घोषित करते हुए उन्होंने कहा, मुझे अत्यंत गर्व हो रहा है कि इस बार का पुरस्कार किसी प्राध्यापक को नही बल्कि इस कॉलेज की प्रतिभाशाली छात्रा स्नेहल सुगंधा की कहानी "आत्मा की आवाज" को दिया जा रहा है।तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा था। हर किसी की निगाह स्नेहल को ढूंढ रही थी। उधर एक कोने में बैठी स्नेहल अपने आँसूओं को रोक नही पा रही थी।
तभी प्राचार्य महोदय ने स्नेहल को मंच पर आमंत्रित किया। स्नेहल ने अपनी भीगी पलके लेकर मंच पर गई।वहाँ जाकर सबका अभिवादन किया ।
प्राचार्य महोदय ने कहा स्नेहल की कहानी उन तंग और बदनाम बस्तियों का दर्द बयां करती है, जहाँ शरीर का व्यापार होता है। उन अँधेरी गलियों के दर्द, तकलीफों और उत्पीड़न को स्नेहल ने भावना की स्याही में डूबोकर आत्मा के कागज पर उकेरकर जीवंत कर दिया है।
आइये अब हम स्नेहल से इस कहानी के कुछ अंश सुनते हैं।स्नेहल ने कहा यह कहानी मेरी माँ की कहानी है, यह उनकी आत्मा की आवाज है। इन शब्दों के साथ ही सभागृह में सन्नाटा छा जाता है। स्नेहल सुगंधा हाँ यही नाम है मेरा। इस कहानी की पात्र सुगंधा देवी , मेरी माँ है ।स्नेहल ने कहा यह कहानी मेरी माँ की कहानी है, यह उनकी आत्मा की आवाज है। इन शब्दों के साथ ही सभागृह में सन्नाटा छा जाता है। स्नेहल सुगंधा हाँ यही नाम है मेरा। इस कहानी की पात्र सुगंधा देवी , मेरी माँ है ।
सुगंधा देवी इन अँधेरी गलियों की कभी रौनक़ हुआ करती थी। वह एक बेहद खूबसूरत तवायफ थी।
महज 12 साल की थी तभी उन्हें सितारा देवी के कोठे पर कोई बेच गया। बस तभी से .....स्नेहल ने लंबी साँस लेते हुए रुक गई।
एक महिला लेखिका ने उठकर स्नेहल की पीठ थपथपाई और कहा, नही बोल पा रही हो तो रहने दो। मगर स्नेहल ने अपने आप को संभालते हुए कहा, इट्स ओके मेम।एक महिला लेखिका ने उठकर स्नेहल की पीठ थपथपाई और कहा, नही बोल पा रही हो तो रहने दो। मगर स्नेहल ने अपने आप को संभालते हुए कहा, इट्स ओके मेम।
उसी कोठे पर मुझे भी बेचा गया मात्र 9 वर्ष की उम्र में । मेरी उम्र और मासूमियत को देखते हुए मुझे सुगंधा देवी के पास रख दिया गया ताकि मैं कोठे के नियम कायदे सीख सकूँ।सुगंधा देवी के पास जाकर मुझे सुरक्षा और प्रेम का अहसास हुआ। वह मुझे बड़े प्यार से रखती। एक दिन उन्होंने मुझे कागज और कलम देकर कहा। बेटा दुनिया मे सबसे बड़ा हथियार ,सबसे बड़ी शक्ति है। तुम पढ़ो ,खूब पढ़ो। बस मैं किताबो में खो गई।समय कब चला गया पता ही नही चला। देखते देखते मैं 12 बरस की हो गई। मेरा जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाया गया। मैं बहुत खुश थी।
तभी सितारा देवी ने कहा - सुगंधा कल इसकी बोली लागवाऊंगी। मेरी समझ से सब परे था। लेकिन माँ के चेहरे का रंग उड़ गया।आधी रात को उन्होंने मुझे उठाया और कोठे के मुलाजिम गणपत काका की मदद से हम मुम्बई से बहुत दूर जबलपुर आ गए। दर- बदर की ठोकरे खाई। लेकिन कहते है ना दुनिया मे अच्छे लोगो की कमी नही है। एक डॉक्टर आंटी ने माँ को अपने नर्सिंग होम में आया का काम दे दिया।माँ में मेरा स्कूल में एडमिशन करवाया। बस फिर हमारे सपनों की दिशा बदल गई।
माँ हमेशा मुझे यह कहती है, मैं केवल तुझे ही उस दलदल से निकाल पाई, लेकिन तुझे तेरे जैसी अनेक स्नेहल को ना केवल वहाँ से बचाना होगा, बल्कि उन्हें आने से रोकना होगा।
इस कहानी का शीर्षक मैंने आत्मा की आवाज इसलिए रखा क्योंकि मेरी माँ हमेशा कहती थी एक बार चीरहरण होने के बाद शरीर तो मृत हो जाता है, बच जाती है आत्मा, जो बिस्तर पर पड़े शरीर से अलग होकर देखती है दुनिया का वीभत्स रूप,वहशी दरिंदों और भूखे भेड़ियों के रूप में।
यह आत्मा की आवाज हर शुद्ध आत्मा को छू सके यही मेरी कहानी का उद्देश्य है। धन्यवाद।
इतना कहते ही मंच पर उपस्थित सभी महानुभाव और श्रोता खड़े होकर स्नेहल के लिए तालियाँ बजा रहे थे।