Madhu Vashishta

Inspirational

4.6  

Madhu Vashishta

Inspirational

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास

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ऑफिस में इतने साल बाद अचानक गिन्नी को देखकर मैं हैरान रह गई। "आप! नहीं तुम! गिन्नी??"

"हां जी, गिन्नी!" कह कर वह खिलखिला कर हंस दी।

शायद हम 20 साल बाद मिल रहे थे। एक समय हम दोनों की ही नई नौकरी लगी थी, 3 साल बाद दोनों का तबादला अलग-अलग विभाग में हो गया था और इतने समय बाद हम दोनों मिल रहे थे। लंबे घुंघराले बालों वाली चुप सी रहने वाली शर्माती सी गिन्नी, अक्सर अपने काम से काम रखती थी। उसके गोरे गोरे माथे पर लाल सी बिंदी अलग ही लगती थी।

आज छोटे-छोटे बॉय कट हेयर और बेहद मोटी और सूना माथा लिए गिन्नी को पहचानना भी मुश्किल हो रहा था। वह हमारे ऑफिस में एक मीटिंग के सिलसिले में आई थी। मीटिंग खत्म होने के बाद मेरी हैरानी को भांपते हुए वह बोली "समय बदल जाता है, हम भी बदल जाते हैं 20 साल में तुम भी तो कितना बदल गई। अब मैं दिल्ली नहीं रहती , फरीदाबाद में ही मैंने अपना फ्लैट ले लिया है। मैं अपनी गाड़ी से ही अब ऑफिस आती जाती हूं चल दोनों साथ ही चलते हैं।"

रास्ते में चलते चलते उसने अपनी कहानी सुनाई कि "4 साल पहले एक एक्सीडेंट में उसके पति की मृत्यु हो गई थी। तब उसका बेटा विदेश में स्कॉलरशिप लेके पढ़ने के लिए गया हुआ था। पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर वह घर आया था। पति की मृत्यु के बाद वह डिप्रेशन में थी। उसने सोच लिया था कि अब वह भी वॉलंटरी रिटायरमेंट ले लेगी। उसको घर की किसी भी चीज की जानकारी ना थी। इंश्योरेंस ,घर के कागज, लोन वगैरा उसे कुछ नहीं पता था। बिट्टू को अमेरिका में पढ़ाने के लिए उसके पति ने बहुत लोन भी लिया था। एक डेढ़ महीना तो बिट्टू ने उसे नार्मल करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह खुद ही संभल नहीं पा रही थी। आखिर में जब बिट्टू ने कहा कि मम्मी अगर आप नहीं समझती हो तो मैं वापस नहीं जा सकूंगा और अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सकूंगा। पापा जो मुझे बेस्ट इंजीनियर बनाने का सपना देख रहे थे वह कभी भी पूरा ना हो सकेगा। तब मुझे ऐसा लगा अचानक मैं सोते से जगी हूं। केवल बिट्टू के भविष्य के लिए ही नहीं बल्कि वर्मा जी का सपना पूरा करने के लिए मुझे नॉर्मल होना ही पड़ेगा।

बिट्टू को मैंने वहां पर विदेश जाने के लिए कहा तो उसने साफ मना कर दिया उसने कहा जब तक आप नॉर्मल नहीं आ जाओगी तब तक मैं नहीं जाऊंगा और 3 महीने तक मैं यहां रह सकता हूं। अगर मुझे आपके ठीक रहने का विश्वास हुआ तो ही जाऊंगा। बस फिर मैंने हिम्मत करके तीसरे दिन अपना दफ्तर ज्वाइन किया। घर आकर बिट्टू के साथ सारे बैंकों का और इंश्योरेंस क्लेम आदि का काम पूरा किया।

उससे अगले सप्ताह मैंने गाड़ी चलाना सीखा ताकि बिट्टू को विश्वास हो जाए कि मैं अपने आप सारा काम चला सकती हूं। हालांकि मैंने 6 महीने तक गाड़ी खुद भी चलाई लेकिन ड्राइवर को साथ में ही बिठाती थी। दिल्ली में ही अपना डीडीए का मकान बेचकर मैंने फरीदाबाद की एक सोसाइटी में ही फ्लैट ले लिया था। यहां 2 तीन बिट्टू के दोस्त भी रहते थे। सोसाइटी का फ्लैट होने के कारण यह जगह सेफ भी थी।

मैंने अपनी ट्रांसफर भी बॉर्डर पर ही करा ली थी और अपनी गाड़ी लेकर आने जाने लगी थी। बिट्टू अमेरिका में ही एक एमएनसी में काम कर रहा है। एक बार तो मैं भी अकेली ही उसके पास घूम कर आ चुकी हूं। प्रोजेक्ट के सिलसिले में बेटा कई बार इंडिया आ भी जाता है और 4 साल बाद तो शायद परमानेंट भी आ जाए। मेरे घर के अंदर लगे कैमरे से मेरा बेटा दूर रहकर भी मेरी निगरानी करता है। वहां से वह मेरे बहुत से बिल भी पे कर देता है। इस सोसाइटी में लगभग मुझे सभी जानते हैं और मेरा ख्याल भी करते हैं। मुझसे भी जितना बन पड़ता है सबकी सहायता करती हूं और अब निडर होकर अपना सब काम मैं खुद ही करने लगी हूं।" इतने में ही उसकी सोसाइटी आ गई और उसने मुझसे अंदर आकर चाय पीने का आग्रह किया।

वह जब चाय बनाने अंदर गई तो उसका फोन बजा। फोन उसके बेटे का था वह गिन्नी से मेरे बारे में पूछ रहा था। उसने अमेरिका में अपने कैमरे में से मुझे देख लिया था। तभी गिन्नी ने उससे पूछा "तू सो क्यों नहीं रहा है ?" तो उसने हंसते हुए कहा "आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था।" चाय पी कर गिन्नी ने अपनी गाड़ी में मुझे घर तक छोड़ा। जाते हुए उसने मुझसे कहा कि चाहे कितनी भी बड़ी मुसीबत हो लेकिन अगर हम अपना आत्मविश्वास और परमात्मा पर विश्वास नहीं खोते तो हम बड़ी से बड़ी मुश्किल को आसानी से पार कर सकते हैं।



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