Kanchan Singla

Abstract Inspirational Others classics drama

4.0  

Kanchan Singla

Abstract Inspirational Others classics drama

आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

5 mins
453


क्या तुम भूल सकते हो अपनी मां को। यह क्या बोले जा रही हो तुम, सौरभ लगभग चिल्लाते हुए बोला। अगर तुम नहीं भूल सकते तो मुझसे यह उम्मीद क्यों रखते हो की मै भूल जाऊं अपनी मां को।

शादी के बाद यही होता है जिम्मेदारियां बदल जाती है सौरभ, मिहिका को बोलता है।

सही कह रहे हो तुम शादी के बाद जिम्मेदारियां बदलती है इसके हिसाब से तुम्हारी पहली प्राथमिकता मुझे होना चाहिए ना कि तुम्हारे परिवार को। 


तुम्हें समझ आ रहा है तुम क्या बोल रही हो ? वो मेरा परिवार है उन्होंने पाला है मुझे, इतना बड़ा किया है और इस लायक बनाया है कि मैं अपनी जिंदगी में कुछ बेहतर कर पाऊं। तुम मेरी पहली प्राथमिकता कैसे हो सकती। तुम कभी नहीं ले पाओगी उनकी जगह। अच्छा होगा की तुम यह बात जितनी जल्दी समझ लो। यही ठीक होगा हमारे इस रिश्ते के लिए। वरना फिर लेकर फिरती रहना एक छोड़ी हुई औरत का तमगा। तुम्हारी जैसी औरतें ही घर नहीं बसा पाती।


सौरभ के यह कठोर शब्द मिहिका को अंदर तक चुभते हुए चले गए। क्या तुम्हारे लिए हमारे इस रिश्ते का इतना ही मोल है। तुम्हारे लिए मैं कभी भी तुम्हारे परिवार से पहले नहीं हो सकती तो तुम भी कभी नहीं हो सकते, मेरे लिए, मेरे परिवार से पहले। क्या यह बात मुझ पर लागू नहीं होती कि वो मेरा भी परिवार है उन्होंने जन्म दिया है मुझे, इतना बड़ा किया और काबिल भी बनाया की मैं अपने जीवन को चलाने के लिए कभी किसी की मोहताज नहीं रहूं। 


तुम तो फिर भी अपने परिवार के साथ रहते हो। मैं उन्हें कभी कभी मिलती हूं या कभी कभी उनसे बात करती हूं। तुम्हें यह क्यों नहीं समझ आता कि जिस मां ने अपने परिवार को इतने अच्छे से बड़ा किया वो मुझे कभी घर तोड़ने की शिक्षा कैसे दे सकती है। वो बस मेरा हाल चाल पूछती है, क्या इतना भी हक नहीं है उनका ? 


मैंने कब कहा कि उनका कोई हक नहीं है पर यह सब सीमा में होना चाहिए। 


वही तो मैं भी तुम्हें समझाने की कोशिश कर रही हूं कि तुम्हारे परिवार का हक है तुम पर, बस यह सब एक सीमा में होना चाहिए आखिर शादी हो गई है तुम्हारी अब। 


जिस तरह तुम नहीं छोड़ सकते अपने परिवार से प्यार करना, मैं कैसे छोड़ दूं उन्हें प्यार करना। आखिर भावनाएं तो एक सी ही है। 


तुम आखिर क्या चाहती हो ?


मैं चाहती हूं कि तुम मुझे समझो, मैं तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की दुश्मन नहीं हूं। मेरी जिस मां को तुम्हारी मां सुबह शाम, सोते जागते ताने देती है यह सब तुम रोको उन्हें समझाओ आखिर अब वो तुम्हारी भी तो मां हुई ना। मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को अपना कैसे मान लूं जब तक वह सब मुझे अपना नहीं मानते। 


तुम सरल शब्दों में यह कहना चाहती हो की मेरा परिवार तुमसे माफी मांगे। 


मैं यह कभी नहीं चाहती। पर मैं उन्हें भी तभी सम्मान दे पाऊंगी जब वह मुझे सम्मान देंगे। इस घर में पूरे रीति रिवाजों से शादी करके आयी हूं ना की तुम मुझे कहीं से उठकर लाए हो। मैं कोई नौकरानी नहीं हूं इस घर में, सारी गलतियों की जिम्मेदारी मेरी नहीं है। तुम्हारी मां का भी तो यह ससुराल है और मेरा भी यही ससुराल है फिर इतना फर्क क्यों हममें। माना उन्होंने वक्त दिया है इस घर को पर क्या मुझे मौका भी नहीं मिलना चाहिए। 


तुम अब मेरी मां के खिलाफ बोलना बंद करो। दुश्मन नहीं है वो हमारी। तुम्हें इतने लाड़ से बहू बना कर लाई थी वो इस घर में। 


जब इतने ही लाड़ से लाई थी तो वो अक्सर हमें अलग करने की कोशिश क्यों करती है। अगर उन्हें तुम्हें हमेशा अपने पास ही रखना था तो क्यों करवाई उन्होंने तुम्हारी शादी। बिना शादी के उनके बेटे ही रहते तुम सही रहता । पर अब तो बंट चुके हो एक बेटे के साथ एक पति भी हो। तुम्हें भी इस बात को समझना होगा नहीं तो हमारे इस रिश्ते का अंजाम तुम पहले ही बता चुके हो बस अब फर्क इतना ही होगा मैं छोड़ी हुई औरत नहीं बल्कि तुम कहलाओगे एक छोड़े हुए आदमी।


सौरभ का अब गुस्से में हाथ उठ जाता है पर वक्त रहते मिहिका उसके हाथ को झटक देती है। 


जाकर अपना बैग पैक करने लगती है। सौरभ कहता है तो तुमने अपना जाने का मन बना लिया है इसका अंजाम पता है ना तुम्हें। मिहिका कहती है, हां पता है इसका अंजाम मुझे और सोच भी लिया है मुझे अब क्या करना है। मैं अपने इस होने वाले बच्चे को तुम्हारे और तुम्हारे इस परिवार के साए में नहीं पालना चाहती।


मिहिका तुम प्रेगनेंट हो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं। तुम्हें क्या लगता है आज इतना तैयार होकर इतनी सजावट करके मैं क्या करना चाहती थी। तुम आओ ऑफिस से और यह खुश खबरी तुम्हें मिले। सौरभ की नजर कमरे में पड़ती है जो अब उसके गुस्से के कारण बिखर चुका होता है। उसकी नजरों में अब पछतावा साफ दिखाई दे रहा होता है। पर अब बहुत देर हो चुकी थी। 


मिहिका अपना सामान पैक करके बाहर निकल जाती है।

सौरभ उसे रोकने उसके पीछे आता है। मिहिका उसे कहती है सौरभ मैंने इस रिश्ते को निभाने के लिए अब तक बहुत कुछ सहा है पर अब नहीं। मुझे आत्मसम्मान की जिंदगी जीनी है। मैं हमारे होने वाले बच्चे को आत्मसम्मान कर साथ जीते हुए देखना चाहती हूं , तुम्हारे परिवार के टुकड़ों पर पलते हुए नहीं। उसे मैं सिखाऊंगी की आत्मसम्मान कितना जरूरी है जो तुमने मुझसे यहां रहते हुए हर पल छिना है। 


एक बात और सौरभ जब तक एक औरत सहती रहती है उसके रिश्ते चलते रहते है। एक औरत आसानी से अपने रिश्तों को नहीं छोड़ती पर जिस दिन छोड़ देती है तब वह पलट कर कभी वापिस नहीं आती। इतना सब होते हुए भी मैंने तुम्हें कितने मौके दिए पर तुमने अपना यह आखिरी मौका भी गंवा दिया। अब तुम यह सोचना कि तुमने क्या खोया। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract