आत्म संतुष्टि
आत्म संतुष्टि
बहुत सालों बाद आज स्कूल के प्रिंसिपल की याद आ गई उनकी आवाज, उनके आते ही उनके चिल्लाते ही पिन ड्रॉप साइलेंस. उनकी तेज आवाज बिना माइक के, अनायास आज ठीक वैसी ही आवाज बहुत सालों बाद कानों पर पड़ी, और वो आवाज थी एक आत्मनिर्भर स्वालम्बी स्वाभिमानी नारी चंदा जी की...
आगनबाड़ी में शिक्षिका हैं जो बेहद ईमानदार कर्मठ हैं जितनी सरल उतनी ही ज्ञानी है उतनी सेवा की भावना से ओतप्रोत ,क्योंकि उन्हें ना प्रसिद्धि की इच्छा ,न दिखावा है.वास्तव में यही सच्ची सेवा होती है। जो हमें आत्म संतुष्टि दे।
जीवन का प्रारंभ एक सामान्य परिवार के बच्चों की तरह है पिता एक प्राइवेट बस डाईवर व मां कुशल गृहिणी जो सिलाई भी करती थी । जैसे-जैसे परिवार बढ़ता गया जगह की कमी , वैचारिक मतभेदो के कारण परिवार को अलग होना पड़ा।
उनके परिवार में दादी, मा ,पापा,चार बहने व दो भाई हैं। घर मे मां गृहणी होने के नाते शिक्षा व खाने को महत्व देती मगर मनोरंजन की बात हो तो मां कहती आज सिलाई करो,कभी माला बनाते हैं,कभी किसी के काम में मदद करते हैं जो आमदनी होती उसे हम अपना मनोरंजन करते हैं पिता ने शिक्षा को महत्व दिया इसलिए मैंने दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त की, जो मेरे लिए वरदान साबित हुई।
उस समय लड़कियों का खाना बनाना ,सिलाई सिखाना ज्यादा मायने रखता था। सिलाई सीखने के लिए मैंने भी शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया कई सालों तक घर में काम करती रहती इस बीच भाई बहनों की शादी हो गई घर के सभी कामों में मे निपूर्ण होती गई दादी अक्सर कहती हूंनर होना चाहिए, जरूरत के समय काम आता है। और सही भी है इन्ही संस्कारों के कारण हम जीवन मे सफल हो पाते है।
हमे हमेशा बचत व मेहनत का पाठ पढ़ाया गया मैंने उस समय सिलाई में डिप्लोमा किया फिर पार्लर मे मगर फिर भी लगा शिक्षा का अपना एक अलग ही महत्व है और फिर मैंने एक दशक के बाद अपने शिक्षा प्रारंभ की बारहवीं की शिक्षा प्राप्त की प्राइवेट परीक्षा दी एम .ए किया ,शिक्षा जारी रही । जो मुझे अंदर से सशक्त करती गई।
एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती मात्र 300 मिलते थे कोई लाभ नहीं मगर आत्म संतुष्टि मिलती थी इस बीच परिवार को मेरी जगह जरूरत थी मैंने कुछ दिनों के लिए छुट्टी मांगी तो मुझे नहीं मिली मैंने नौकरी छोड़ दी मैं घर में ही सिलाई सिखाती ,ट्यूशन पढ़ाती हूं मैंने कभी बच्चों से फीस नहीं मांगी जब जो सक्षम होता मुझे देता , कुछ बच्चों को निशुल्क भी पढ़ाती , हमेशा से ही आत्म संतुष्टि को महत्व दिया। आज भी उसी पर कायम हूँ।
मुझे जिस दिन ट्रेनिंग के लिए जाना था उसी दिन चाची जी चल बसी मैं नहीं जाना चाहती थी मगर मेरी सहयोगी ने बताया अगर तुम नहीं जाओगी जी नौकरी किसी और को मिल जाएगी मुझे जाना था उस दिन कई परेशानियों का सामना करना पड़ा एक नहीं कई ऐसे मुकाम होते थे जहां में एक कदम आगे बढ़ती और परिस्थितियां मुझे 10 कदम पीछे खींचते थे मगर फिर भी मैं हौसला नहीं हारी मैं मिट्टी के पश्चात वहां गई और अपने अटेंडेंस देकर आई,और कारण भी बताया जिसकी वजह से मुझे बाकी लोगों ने भी साथ दिया मेरी सरकारी नौकरी लग गई आंगनबाड़ी में नौकरी लगते ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं मैं काफी खुश थी घर में पहली सरकारी नौकरी वाली लड़की थी।
बड़े भैया सिविल इंजीनियर जो कोरबा में थे। मैं एक बार उनके यहां गई थी और मैंने देखा कि वहां काम करने वाली है। बहुत ही मोटी ग्रामीण महिला जो अनपढ़ भी थी साइकिल में आती है और मैं साइकिल चलाने में भी डरती थी उसे देख कर मुझे बहुत प्रेरणा मिली मैंने धीरे-धीरे साइकिल चलाना सीखा और कुछ समय बाद मैंने अपनी गाड़ी भी ली मुझे गाड़ी चलानी नहीं आती थी मगर मुझे परिवार ने साथ दिया 1 महीने तक तो बस में गाड़ी को देखती रही फिर धीरे-धीरे हिम्मत करके मैंने गाड़ी चलाई मां की तबीयत अक्सर खराब रहती थी जिसके कारण परिवार की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी मैंने अपनी जिम्मेदारियों के चलते शादी नहीं की और मां के चले जाने के बाद अपनी छोटी बहन को एक मां की तरह पाला और कुछ समय बाद उसकी शादी की ,भाई जो छोटा था उसकी शादी हुई मगर वह ज्यादा दिन न चल सकी, मां दादी दोनों नहीं अब परिवार के लिए मैंने सोचा पिता की सेवा से बढ़कर कुछ नहीं उनकी सेवा को मैंने बहुत महत्त्व दिया मां के जाने के बाद पिता अकेलापन ज्यादा महसूस करते थे अब मैं नहीं चाहती थी कि पिता को अकेलापन लगे।
परिवार में सब गुरु को मानते थे , पापा को मैं अक्सर सत्संग ले जाती तो कभी कहीं ताकि उनका मन लगा रहे। वो कहते तो नहीं थी मगर मन ही मन बहुत गर्व करते थे ,मैं केवल घर का ही नहीं आसपास के लोगों की काम भी करती थी।मुझे बहुत खुशी मिलती जब कोई मुझे किसी काम के लायक समझता कभी कोई किसी स्कूल में एडमिशन कराने की बात कहता तो कोई दवाई लाने की तो कोई किसी शादी से संबंधित काम यथासंभव लोगों की मदद करती ।
हमेशा ही सोचा कि हर महिला को सक्षम साहसी होना चाहिए तभी समाज व देश आगे बढ़ सकता है कभी कभी लगता है जीवन में इतनी आपाधापी है। लेकिन हम अपने कर्म ही जाएंगे जिसके लिए किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं भी सेवा करनी चाहिए । यही वजह थी , कि समाज से जुड़ती चली गई, जहाँ पर मुझे बहुत आत्मसंतुष्टि मिलती है, मेरा एक बेहद का परिवार है, ऐसी अनुभूति होती है।
जिस तरह एक पक्षी डाल में बैठता है और डाल हिलती है तो डरता नहीं क्योंकि वह डाल मे नहीं अपने पंखों पर विश्वास रखता है उसी तरह मे हमे खुद पर और गुरु पर भरोसा रखना चाहिए।
आज भाई और मैं साथ रहते हैं। हम दोनों बहुत खुश हैं। जो समय मिलता है अपनी जिम्मेदारियों के अलावा हम समाज को देते हैं सत्संग को देते हैं।