आसमां की उड़ान ( भाग- 2)
आसमां की उड़ान ( भाग- 2)
समय बीतता है ,अब वह काॅलेज की भी होनहार छात्रा बन जाती है ।उम्र करीब उन्नीस- बीस वर्ष जिसकी सुंदरता उसके प्रतिभा में उतनी ही रूप निराला उसका साक्षात् सौंदर्य की प्रतिमूर्त !
वह समाज की बंदिशों के परवाह किये बिना अपने सपने जिये जा रही थी । बेखौफ, निडर मन से अपनी पंखों को फैलाव कर लंबी उड़ान भर रही थी ।
मगर अफसोस! उस होनहार पंछी को कहाँ पता था कि उसके उड़ान को रोकने के लिए शिकारी शातिर दिमाग से जाल बिछा रहा था । यह शिकारी कोई और नहीं बल्कि उसके पिता ही थे जो अपने ही बेटी के उड़ान को रोकना चाहते हैं ।
अचानक वही शिकारी पिता शादी का कार्ड लिये उसके मार्गदर्शक गुरू के पास जाते हैं ,जिन्होंने उसे आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित किया था । वे उनके हाथ में शादी का कार्ड देखकर अंदेशा मन -ही -मन लगा लेते हैं , हो न हो ये आसमां की ही शादी का कार्ड है ।चूँकि इसके अलावे उनका केवल एक छोटा लगभग दस साल का बेटा था । औपचारिक समाचार के बाद जब आसमां के पिताजी ने कार्ड गुरूजी के हाथ में थमाई तो ये अंदेशा कि आसमां की शादी कार्ड है हकीकत में बदल जाती है। वे हतप्रभ होकर लड़खड़ाते हुए ये बोलते हैं कि " ये क्या कर दिये आपने; आपने तो उसकी उड़ान के पंख काट दिये ? उम्मीद के सपने को अपनी निजी स्वार्थ के आगे समाप्त कर दिये !उसका आपने सर्वनाश कर दिया ।
इसपर वे लाचारी व्यक्त करते हुए कहते हैं " कि देखिए मास्टर साहब! बुढ़ापे का शरीर है । घर - परिवार अच्छा मिला । उसे किसी चीज की कमी नहीं होगी ,वहाँ । ऊपर से लड़का नौकरी में है ! और तो और मात्र कुछ दहेज ही माँग रहे हैं । लड़केवाले को बस परिवार की जरूरत है । अब आप ही बताइए इससे अच्छा रिश्ता और कोई संभव हो सकता है ? क्या हो सकता है ,बढ़िया इससे??,?