आराम
आराम
“अरे ! क्या हुआ, चेहरा इतना उतरा हुआ है? ऐसे कैसे आंखें चढ़ी सी दिख रही हैं ?” सुबह उठने के बाद महेश ने पत्नी नीलम को उदास, क्लांत सोफे पर बैठे देखकर पूछा।
“कुछ खास नहीं, बुखार है थोड़ा। तुम मुंह हाथ धो लो चाय बनाती हूँ।”
“बुखार है तो पहले दवाई खा लेती? घर में पारासिटामोल और एंटीबायोटिक्स हैं ही खा लेना।”
“अभी एक सौ एक बुखार है। आज पहला ही दिन है। एंटीबायोटिक्स नहीं लूंगी।” कहकर नीलम किचन में चाय बनाने चली गई।
“एंटीबायोटिक्स नहीं खाओगी? पता था। पत्नी अगर पति की बात ही मान ले तो पत्नी काहे की। चाय हो गई? अच्छा तुम बैठो मैं चाय छानकर ला देता हूं।”
“अच्छा सुनो! बुखार है तो तुम नाश्ते की चकल्लस छोड़ दो मैं ऑफिस में ही खा लूंगा और लंच के लिए भी परेशान मत होना। आफिस के सामने जो नया रेस्टोरेंट खुला है न वहीं आज टेस्ट करूंगा।”
दो बिस्किट के साथ दवा लेने से बुखार उतरा तो नीलम को भूख लगी। पर घर में कुछ बना ही नहीं था। कुछ बनाना वो भी खुद के लिए, एक दुरूह कार्य था। उसने फिर से एक बिस्किट खा ली और लेट गई। नींद खुली तो आंखों के साथ ही शरीर जल रहा था। टेम्परेचर चेक किया तो एक सौ दो। उसने याद करने की कोशिश की घर में ब्रेड है ?
याद आया, नहीं है। क्या खाऊं? बनेगा तो नहीं मुझसे कुछ भी। उसने घड़ी पर नजर डाली- सवा दो। पता नहीं महेश ने खाया या नहीं?
उसने फोन लगाया- “खाना खाए तुम ?”
“हां, सुबह राज कचौरी और मिक्स चाट खाई थी। सामने जो रेस्टोरेंट हैं न। अभी- अभी वहीं से खाना खा कर आ रहा हूं। बहुत सुंदर इंटीरियर है उसका। खाने में स्वाद भी बहुत था। पनीर दिल बहार और नान ऑर्डर किया था। वेटर कहने लगा, काजू करी बहुत अच्छी बनती है तो वो भी एक प्लेट मंगवा ली। तुम्हारी पसंद का मिक्स फ्रुट रायता भी खाई। अच्छी थी। बादाम शेक उसके यहां एकदम बैग्लोर जैसा था। मजा आ गया, खाना खाकर। तुम क्या कर रही थी ? खाना खाई ?”
“नहीं! अभी मन नहीं था।”
“दवा खाई थी ? बुखार उतर गया ?”
“सुबह ली थी। नहीं उतरा। अभी एक सौ दो है।”
“हद है। तो फिर से दवा खाओ न। खाना क्यों नहीं खाती हो? तुम परेशान नहीं हो इसलिए तो मैं बाहर खा लिया हूं। तुम अकेली थी, आराम से कुछ बनाकर खा लेती। अब भी खा लो।”
“हां, खाती हूं।”
“ठीक है।”
फोन रखते हुए महेश ने कहा, “हद है यार इन महिलाओं का भी। तबीयत खराब है इसलिए मैंने नाश्ता- खाना बाहर ही खा लिया। अब घर में बैठी हैं तो खुद बना खा भी नहीं सकतीं। और कितना आराम दें हम इनको।”
