आपकी ही बदौलत अपना मुकाम पाया है पापा
आपकी ही बदौलत अपना मुकाम पाया है पापा
मेरे पापा की सरकारी नौकरी थी ,अब तो पापा सेवानिवृत हो गए हैं। पापा घर के सबसे बड़े बेटे थे। तो घर की सब जिम्मेदारियां भी पापा को ही निभानी होती थी। वैसे भी कहते ही हैं कि समझदार का ही मरण है तो।मेरे बुआओं के भात ,मायरे,त्यौहार आदि सभी पापा को ही भेजने होते थे। दादा -दादी की हारी -बीमारी की भी पूरी जिम्मेदारी मम्मी -पापा की ही थी।
सरकारी नौकरी में गिनती के ही रूपये मिलते थे। मम्मी को उस थोड़ी सी तनख्वाह में ही पूरा घर चलाना होता था। मम्मी हर काम अपने हाथों से ही करती थी।हमारी ड्रेसेस भी खुद ही सिलती थी। कुल मिलाकर मम्मी -पापा दोनों ही खूब मेहनत करते थे। घर में पैसे की तंगी हमेशा ही रहती थी। मम्मी -पापा हमें कुछ कहते तो नहीं थे।लेकिन हम सब समझते थे। हम भी कभी कोई फरमाइश नहीं करते थे।जितना मिलता था उसमें खुश रहते थे।
मम्मी -पापा हमें हमेशा अच्छे से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करते रहते थे। मैं 10th क्लास में अपने जिले में टॉप आयी थी।पापा के वरिष्ठों ने सुझाव दिया कि आपकी बेटी पढ़ने में इतनी होशियार है।उसे साइंस सब्जेक्ट ही दिलाइये। वैसे भी हम निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों के पास बड़े ही सीमित करियर विकल्प होते हैं जैसे डॉक्टर ,इंजीनियर आदि। हमारे गांव के स्कूल में साइंस सब्जेक्ट उपलब्ध नहीं था।इसलिए पापा ने मुझे शहर के एक अच्छे से स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया।
निजी स्कूलों की फीस उस समय भी आज की तरह बहुत ज्यादा होती थी। मैंने 10th तक की पूरी पढ़ाई सरकारी स्कूल में ही की थी।तो वैसे भी यह फीस मेरे पापा के लिए अतिरिक्त बोझ थी। लेकिन पापा अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए कैसे भी मैनेज करने का मन बना चुके थे। स्कूल फीस इतनी ज्यादा थी कि मैंने पापा से कहा कि ," मुझे हॉस्टल में मत डालो।मैं बुआ के घर रह लूंगी। " पापा का मन तो नहीं था मुझे किसी रिश्तेदार के यहाँ रखने का।लेकिन मजबूरी इंसान से वह सब कुछ भी करा लेती है ,जो वह कभी करना नहीं चाहता है।
बुआ के घर रहने का अनुभव अच्छा नहीं था। एक सप्ताह में ही मुझे यह पता चल गया था कि यहाँ रहते हुए मेरी पढ़ाई नहीं हो सकती। स्कूल बुआ के घर से दूर था।बस में आने जाने में ही २-३ घंटे लग जाते थे। उसके बाद घर पर जब भी पढ़ने बैठो ,बुआ कोई न कोई काम बता देती थी। मैं सब सहन कर लेती।लेकिन जब बुआ के देवर ने मुझसे बदतमीज़ी की तो उसके बाद मैं बहुत डर गयी थी। ऐसे में। उसी दिन जब पापा मुझसे मिलने आये तो पापा को देखते ही मेरी रुलाई फूट पड़ी। पापा ने मेरे बिना कुछ कहे ही न जाने कैसे मेरी तकलीफ को समझ लिया था। और पापा ने मुझसे सिर्फ इतना कहा कि अपना सामान पैक कर लो।तुम्हे अब यहाँ रहने की ज़रुरत नहीं है।पापा ने एक बार भी उस मोटी रकम के बारे में नहीं सोचा जो हमने स्कूल में जमा करा दी थी . जबकि उस समय एक -एक पाई हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण थी .
पापा ने मेरा एडमिशन गांव के स्कूल में करा दिया था। एक साल मैंने गांव के स्कूल में पढ़ाई की और उसके बाद हम सब शहर में शिफ्ट हो गए।
जब मैं और मेरी बहिन पैदा हुए थे।तब पापा ने २ जमीनें खरीदी थी ताकि हमारी शादी के लिए उन जमीनों को बेचकर पैसा जुटा सके। लेकिन पापा ने हमारी पढ़ाई और करियर को महत्त्व देते हुए वे दोनों जमीनें बेचकर शहर में एक छोटा सा घर खरीद दिया। सभी रिश्तेदारों ने पापा को मना किया कि अब बेटियों की शादी कैसे करेगा ?बिना खर्च किये तो अच्छा लड़का मिलने से रहा और कौनसा तेरी बेटी शहर में पढ़कर कलेक्टर बन जायेगी। लेकिन मेरे पापा ने किसी की नहीं सुनी। आज सही में हम दोनों बहनें एक अच्छे मुकाम पर हैं तो अपने पापा की वजह से।आज पापा की एक बेटी सिविल सर्विसेज में है तो दूसरी बेटी डॉक्टर .मुझे अपने पापा पर गर्व है कि उन्होंने दुनिया कि परवाह किये बिना अपनी बेटियों को उड़ना ही नहीं सिखाया। उड़ने के लिए आसमान भी दिया . मेरे पापा मेरा अभिमान हैं।