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Gita Parihar

Tragedy

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Gita Parihar

Tragedy

आपके दोस्तों के साथ एक दिन

आपके दोस्तों के साथ एक दिन

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ये घटना स्कूल के दिनों की है। उन दिनों स्कूलों में शिक्षा अच्छी और अनुशासन बेहद सख़्त हुआ करता था। शरारती बच्चे फिर भी शैतानियां कर ही लिया करते थे।  मैं बेहद शैतान हुआ करती थी, इतनी की हर शिक्षक मुझे शैतान की नानी कहते। जब भी मैं शरारत करती, वे मेरी बड़ी बहन को बुलाकर मेरी शिकायत करते, जो उसी स्कूल में पढ़ती थी।

 मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी, इस कारण अध्यापक मेरी शैतानियों पर मुझे सजा नहीं देते थे, हां, मेरी बहन से तुलना करना नहीं भूलते थे। वे कहते, एक इसकी बहन है, बिल्कुल गाय‌ और एक यह है..।

एक बार की बात है पता चला कि विज्ञान के नये अध्यापक आये हैं, नाम तो नहीं मगर सरनेम मालूम पड़ी है, पेशवानी। मैंने कहा ठीक है, वे पेश हों हमारी क्लास में और सुने मेरी वाणी। अगल बगल बैठी सहेलियां खी खी कर के हंसने लगीं। पीछे बैठी लड़कियों ने कहा, हम दो तीन बार स्टाफ रूम के सामने से निकले तो देखा सर अपने माथे पर मनोज कुमार स्टाईल में हाथ रखे बैठे थे। (जिन्हें मनोज कुमार का वह सिग्नेचर स्टाईल याद हो)शायद पिछली क्लासेज ने सिर दर्द करा दिया है। मैने और भी शेखी से कहा, हमारे पास सर दर्द का भी अचूक इलाज मिलेगा।

 अब आया विज्ञान का पीरियड, सबने खड़े होकर सिंग सोंग वे में गु..ड मॉ..र्निं..ग, स..र अलापा। मैने मौका देखा और ज़ोर से कहा, ए एस पी आर ओ एसपरो, क्या सर में दर्द ? एसपरो लीजिए। और मुंह से म्यूजिक भी निकाला, टुन, टुन..न..टुन। अब तक सब बच्चे बैठ ही रहे थे, बेंचेस खिसकाने की आवाज़ में मैने सोचा था सर अंदाज़ा नहीं लगा पाएंगे कि आवाज़ कहां से आई। बस साथियों को हंसी आ जायेगी। मगर सर ने अंदाज़ा भी लगा लिया और सुन भी लिया । उन्होंने कहा, लड़के बैठ जायें, लड़कियां खड़ी रहें। फिर

बेहद शांत और गंभीर स्वर में पूछा, ..आपमें से कौन बोली थी ?अब मेरी सहेलियां तो मेरी तरफ रहती ही थीं, मजाल, कोई मेरा नाम ले ले !पार्टी सहेलियां थी।

सर घूम -घूम कर हर लड़की के पास पहुंचे और वही सवाल दोहराया। ...किसी लड़की ने मुंह नहीं खोला। सर भी हार कहां मानने वाले थे !बोले, सबकी सब पूरा पीरियड खड़ी रहो !सब फिर भी चुप। सर का पीरियड खत्म हुआ, जाते - जाते कह गए, जब तक बताओगी नहीं सब खड़ी रहोगी। अब हम सब खड़ी हैं मगर टस से मस नहीं हुई।

देखते -देखते रिसेस टाइम गुजर गया। सर ने तो मानो ठान रखा था कि पहले दिन ढील नहीं देना है, शायद पिछले अनुभव से सबक लिया हो कि अगर ढील दे दी तो फिर बच्चे शायद कभी काबू नहीं आयेंगे। खड़े खड़े आखिरी पीरियड आ गया। पूरा दिन बीत गया। पांव दुखने लगे, सिर चकराने लगा, लंच बॉक्स भी नहीं खोलने को मिला था, भूख से जान निकल रही थी।

 छुट्टी होने वाली थी सर क्लास में आये और आदेश दिया, कल अपने- अपने गार्जियन के साथ आयें, अथवा वापस भेजी जायेंगी।

अब कुछ लड़कियां रोने लगी, मुझे लगा मेरी सत्ता हिल रही है, वे विद्रोह कर देतीं या भांडा फोड़ देतीं, मैने अपनी गलती मान ली और सर से माफी मांगी।

कुछ दिन बाद जब सर ने पाया कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छी हूं तो उन्होंने मुझे अत्यन्त स्नेह से समझाया कि मुझे अगर शिक्षक चाहते हैं तो मुझे उसका अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए। न ही अपनी प्रतिभा का दुरुपयोग करना चाहिए।

उनकी बातों का मुझ पर उस समय तो कुछ खास असर नहीं हुआ किन्तु उस दिन के बाद मैंने अपनी सहेलियों का मोल जाना। उस पूरे दिन बेकसूर होते हुए भी उन्होंने मेरे कारण सजा भोगी थी।


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