आप तो बिल्कुल ही बदल गई
आप तो बिल्कुल ही बदल गई
"अरे मम्मी तो बाद में आने वाली थी , आज ही कैसे आ गईं?" इससे पहले कि प्रिया कुछ और बोलती, मम्मी घर में घुस चुकीं थी। घर में उनको देखकर सबकी आंखों में डर स्पष्ट था। मम्मी के सामने हमेशा साड़ी पहनने वाली प्रिया जींस और टॉप में खड़ी मुस्कुरा रही थी, पिंकी ने भी शॉरट्स पहने हुए थे। टीवी में फुल स्पीड पर स्पीकर के साथ राजू इंग्लिश पिक्चर देख रहा था। वर्मा जी पीछे अपने कमरे में सो रहे थे। वैसे भी वर्मा जी को अपने काम से काम रखना ही पसंद था। घर के मामलों में वह तटस्थ ही थे और भावना जी का ही घर में एकछत्र राज्य चलता था। तभी कोई ऑनलाइन खाना देने आ गया, शायद इन लोगों ने खाना बाहर से मंगवाया था। इतने में ही विनय भी चिल्लाता हुआ आया और बोला "देखा टिकट मिल गई है, आज रात का शो है, "ओके बच्चों" हम लोग जाएंगे और तुम" ------- बात वहीं रुक गई ! "अरे माँ! तुम कब आईं?" लगभग घबराते हुए विनय बोला।
और कोई समय होता तो भावना जी अब तक फट चुकी होती, उनके होते हुए इतनी मजाल है कि बहू बिना चुन्नी के और वह भी तब, जब ससुर भी घर में हों। पिंकी के डिजाइनर कपड़े पहनना ही भावना को बरदाश्त ना था पर यहां तो शॉरट्स? दिन में ही पिक्चर देखने के लिए दोनों को सौ बहाने बनाने पड़ते थे, पर रात में पिक्चर देखने जाना, बाहर से खाना मंगवाना, यह तो एक अपराध था। मम्मी को देखकर सारे घर में शांति छा गई।
प्रिया चुन्नी लेकर आ गई, राजू ने टीवी बंद कर दिया। पिंकी दादी को नमस्ते बोल कर अंदर अपने सोने वाले कमरे में चली गई। प्रिया ने भी सास के पैर छुए। विनय बोला, "मम्मी आप कैसे? बतला देतीं, मैं लेने आ जाता। आप ही कह रही थीं कि वहां मेरा 13 दिन रुकना जरूरी है।"
"तुम्हारे मामा जी इधर आ रहे थे तो मैं भी उनके साथ ही आ गई। भावना जी अपनी बहन की मृत्यु होने के पश्चात बच्चों की इच्छा के विरुद्ध वहां ही रुक गई थी, उन्होंने कहा कि बहन नहीं रही तो, अब मैं ही बड़ी हूं मुझे इनकी बहू को समझाने के लिए कुछ दिन वहां पर रहना जरूरी है।" वैसे भी घर में मम्मी की तो हर बात आखिरी और सर्वमान्य ही होती थी। विनय और पापा जी वापस आ गए थे, बच्चों के स्कूल भी थे। भावना जी कमरे में से उठीं और बोली मैं बहुत थक गई हूं, सोने जा रही हूं। "प्रिया बेटा, तुमने पिक्चर देखने जाना है तो जाओ और अपना खाना खा लो।"
" माँ तुम भी खा लो" विनय ने आग्रह किया, "नहीं, मैं खा कर आई हूं। भावना जी अपने कमरे में चली गईं।"
मम्मी का यह व्यवहार सबको अजीब सा तो लगा, पर सबने सोचा शायद मम्मी अभी दुख में हैं, कल सब को सुनाएंगी, सोचते हुए सब अपने अपने काम में लग गए। भावना और कामिनी, लगभग इन दोनों बहनों में यह प्रतियोगिता लगी ही रहती थी कि किसकी बहू ज्यादा परंपरागत है और किसका घर ज्यादा व्यवस्थित है। घर की हर चीज पर अपना काबू रखने की बेतुकी सनक के कारण उनके घर के बच्चे कितना दुखी हैं, यह उन दोनों को कभी नहीं दिखता था।
वर्मा जी भी भावना को देखकर हैरान हो उठे और बोले, "तुम इतनी जल्दी क्यों आ गईं? तुम तो वहीं रहने वालीं थी। कैसे आईं?" भावना फफक पड़ी और बोली "मैं तो सोचती थी कि वहां कामिनी की बहू को मेरी बहुत जरूरत होगी, कामिनी के बिना उसका घर कैसे संभलेगा? लेकिन मैंने जब बहू रानी को फोन पर बोलते सुना, "शायद अपने घर में किसी से बात कर रही होगी" कह रही थी "हाँ हाँ मेरे लिए भी वैसे ही सूट ले लो, अब तो मैं पहन सकती हूं। बच्चे भी जो चाहे वही पहन लेंगे। अब कोई रोक थोड़े ही है। हाँ हाँ, मैंने देख लिए, मम्मी की अलमारी में गहने, सारे उन्होंने ही दबा कर रखे थे| पहनना तो दूर देखने भी नहीं देती थी, अब के जब आऊंगी ना, वही पहन कर आऊंगी। बस यह लोग और चले जाएं। यह सुननेेे के बाद, तुम ही बताओ क्या और रुकना संभव था?
घर आ कर के मैंने देखा कि मेरे बच्चे भी मेरे पीछे ज्यादा सुखी और संतुष्ट दिखाई दे रहे थे। क्या मेरे बच्चे भी मुझे वैसे ही याद करेंगे, जैसे कि कामिनी के बच्चे कर रहे थे?" रोते रोते ही भावना जी बोलीं, "बहू और बेटे दोनों बड़े हैं, अपना भला-बुरा अपने आप सोच सकते हैं| मैं तुम्हारे सामने प्रण करती हूं कि मैं इनकी जिंदगी में अब कभी भी दखल नहीं दूंगी। यह और उनके बच्चे, जो चाहे सो करें। हमने भी जैसा चाहा वैसा ही अपने बच्चों को बनाया। अब इनके बच्चे, इनका घर। बहू के गहने भी बैंक से निकाल लाना, मैं उसको ही दे दूंगी।" भावना जी रोते-रोते बोली।
वर्मा जी ने भावना को चुप करवाया और कहा "मैं तो हमेशा से ही कहता था पर तुम्हें यह बात कभी समझ में ही नहीं आई। चलो, कोई बात नहीं, अब भी कोई ज्यादा देर नहीं हुई| तुम्हारे इस व्यवहार से बच्चों का डर भी प्यार में बदल जाएगा तो यह घर स्वर्ग हो जाएगा। अब सो जाओ, बहुत थक गई हो तुम भी। शुक्र है तुम्हें तो समय रहते ही समझ आ गई।"