आँसू बने दर्द की दवा

आँसू बने दर्द की दवा

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"प्यारी माँ का अंत्येष्टि संस्कार कर लौटे हैं पुनीत।"


"माँ के बहुत नज़दीक थे ये।”


"घर तो रिश्तेदारों से भरा हुआ है लेकिन पुनीत एकान्त में क्यूँ बैठे हुए हैं ?”


"पुनीत को गहरा सदमा है मगर स्वभाव से बहिर्मुखी और कभी न चुप बैठने वाले पुनीत एकदम मूक हो बैठे हैं।”


रंजीता के मस्तिष्क में एक के बाद एक प्रश्न अनुत्तरित थे। रंजीता ने सोचा पुनीत रो क्यों नहीं रहे?


"क्या बात है आप यहाँ एकान्त में और अंधेरे में क्यूँ बैठे हैं। सभी के साथ रहेंगे तो दुख भी कम लगेगा।"

बत्ती आॅन करती हुई बोली।


रंजीता सोच रही थी कि मैंने कभी भी रोते नहीं देखा इन्हें। मेरे भयानक एक्सीडेंट के बाद मरणासन्न हालत के समय भी नहीं और स्वयं के तीखे प्रहार वाली चोट लगने पर भी। एक आंसू नहीं आता इनकी आंखों में।


रंजीता चाहती थी कि पुनीत एक बार ज़ोर से रो लें ताकि मन का गुबार निकल सके वरना यह शरीर का नासूर बन सकता है।


रंजीता ने जानबूझकर मम्मा का नाम लेकर बात शुरू की तो पुनीत ने एकाएक रंजीता के कंधे पर सिर टिका दिया।


रंजीता ने कहा, "आप आंसू बहा लीजिए परन्तु गुमसुम न रहिए। मुझ से अपने मन की कहिए और खाली कर लीजिए अपने मन का बोझ।"


रंजीता का इतना कहना भर था कि पुनीत फूट फूट कर हिचकियाँ ले लेकर रंजीता का कंधा भिगो दिया।

उसके पश्चात् रंजीता ने पुनीत को बहुत हल्का व शांत पाया।


आज माँ को गये 15 दिन हो गए हैं। ननद ननदोई जी व सभी रिश्तेदार विदा ले चुके हैं। दोनों बच्चे स्कूल गये। रंजीता भी फुर्सत पाकर दो प्याले चाय के लेकर पुनीत के बगल में जा बैठी।


"रंजीता"


"हुँ"


"बचपन से लेकर माँ के जाने तक मैं यही जानता था कि दर्द में भी आँसू नहीं निकलना चाहिए क्योंकि लड़के रोते नहीं हैं। तुम हो दुनिया की वह एकमात्र शख्स, जिसने मुझे सिखाया कि लड़के भी रोते हैं और तुम्हारी यह सीख मेरे दर्द की सबसे बड़ी दवा बन गयी।”


पुनीत रंजीता का हाथ अपने हाथ में ले कर भरी आंखों से बोले, "सच है लड़के भी रोते हैं।"


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